RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
उस रात अपने पति की बगल में लेटी अंजलि बेटे की हरकतों को याद करते करते बार बार मुसकरा पड़ती थी. कैसे वो उससे बार बार लिपट जाता था. कैसे उसके गालों को चूमता जाता था जैसे उसका एक दो चुम्बन से पेट् ही नहीं भरता था. कैसे वो उसे कस्स कस्स कर अपने सीने से चिपका लेता था. अंजलि का चेहरा मुसकरा रहा था और उसका मुस्कराता चेहरा रात के अन्धेरे में भी चमक रहा था.
उसे याद आता है किस तरह वो उसके सीने पर अपना सिना रगड रहा था किस तेरह उसकी जांघो पर उसका...... उसका लंड झटके मार रहा था. वो आज भी बिलकुल वैसा ही था जैसा वो छोटा हुआ करता था. शरारत करने से बाज़ नहीं आता था और फिर माँ के ग़ुस्से से भी डरता था. वो आज भी उससे बचपन की तरह चिपकता था जैसे आज भी माँ के सिवा उसके पास दुनिया में कोई और ठिकाना ही नहीं था.
"बदमाश" अंजलि अपने मन में दोहराती हंस पड़ती है. वो अपनी बहें अपने सीने पर बांध अपने मोठे मम्मो को ज़ोर से दबाती है और अपनी टांगे आपस में रगड़ती अपनी चुत की उस मीठी खुजलि को मिटाने की कोशिश करती है जो जब से वो बेटे के रूम से लौटी थी उसे परेशान कर रही थी. वो अपने बेटे को कितना प्यार करती थी और उसका बेटा भी उसे कितना प्यार करता था! इतने साल दूर रहने के बाद भी उसका प्यार अपनी माँ के लिए कम् नहीं हुआ था बल्कि कितना बढ़ गया था. उसका लाड़ला सच में उसे बहुत प्यार करता था. अंजलि मुस्कराती अपनी टाँगे और भी ज़ोर ज़ोर से रगड़ती है.
विशाल उधर कपडे उतार चादर में लेटा हुआ था. वो अपने लंड पर हाथ चलता अपनी माँ के जिस्म की गर्माहट को याद कर रहा था जब वो उसे अपने अलिंगन में लिए हुआ था. वो गर्माहट, वो सकून, वो रोमाँच जो माँ के अलिंगन में था उसने आज तक किसी और के साथ महसूस नहीं किया था चाहे उसकी जिंदगी में कितनी लड़कियां आई थी. जब भी वो उसे अपने सीने से भिचता था तोह उसके कोमल, मुलायम मम्मे किस तरह उसके सीने पर अनोखा सा एहसास करते थे. कैसे उसके नुकिले निप्पल उसके कपड़ों के ऊपर से भी उसके सिने पर चुभते थे जैसे उसने कुछ पहना ही न हो. विशाल का लंड और भी कड़क हो चुका था मगर वो अपने लंड से हाथ हटा लेता है. आज की रात उसके लिए एक लम्बी रात साबित होने वाली थी.
विशाल अभी भी गहरी नींद में था जब उसने अपने माथे पर कुछ नरम सा रेंगता हुआ महसूस किया. विशाल धीरे धीरे जागता हुआ अपनी ऑंखे खोलता है. कुछ पल लगे उसे निद्रा की मदहोश दुनिया से निकल इस असल दुनिया में वापस आने के लिये. जब उसकी ऑंखे कमरे की हलकी रौशनी में एडजस्ट हो गयी तोह उसने देखा उसकी माँ उसके ऊपर हलकी सी झुकि उसके माथे पर अपना हाथ फेर रही थी. वो स्पर्श कितना ममतामई था. किस तरह वो मुस्कराती हुयी उसे अकथनीय प्यार से देख रही थी.
"उठो सात बज गए है. घर में दुनिया भर का कम पड़ा है" अंजलि मुस्कराती हुयी बेटे को उठाती है.
"क्या माँ आप भी......इतनी सुबह सुबह.......अभी सोने दो ना........." विशाल अब तक्क लगभग पूरी तरह जाग चुआ था.
".......अभी उठने का समय है.......जानते हो ना सिर्फ आज का दिन है पूजा की तयारी के लिये.......में और तुम्हारे पिताजी तोह सुबह पांच बजे के उठे हुए है.........चलो अब उठो अपने पीता की थोड़ी बहोत मदद करो...........वो अकेले सब कुछ कर रहे है"
अंजलि ने नील रंग की साड़ी पहनी हुयी थी और उसने बाल अपनी पीथ पीछे खुले छोड़ रखे थे उसका पल्लू उसके मोठे मम्मो से कैसे ब्लाउज को पूरी तरह ढकने में नाकाम था. वो उसके चेहरे के ऊपर लटक रहे थे जैसे पके हुए फल और विशाल का दिल कर रहा था के वो पके फल उसके मुंह में आ गिरे.
"म्मम्माआ............मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा.............इतनी जल्दी यह सब.......मेरा दिल बिलकुल नहीं करता है........" विशाल माँ से नाराज़गी जाहिर करता है.
"हा तोह जनाब को क्या अच्छा लगता है......में भी तो सुनु क्या करने का दिल करता है जनाब का.........." अंजलि मुस्कराती है.
"अपनी माँ को प्यार करने को दिल करता है मेरा....और किसी काम को ." विशाल अपनी बहें अपनी माँ की तरफ फ़ैलाता है मगर वो उन्हें झटक देती है.
"बेटा सच में उठो..........पूजा के बाद जितना दिल में आये प्यार कर लेना...मगर प्लीज अब उठो....
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