RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
विशाल को जितनी ख़ुशी हुयी थी वहीँ उसे थोड़ी मायूसी भी हुयी थी. अंजलि ने एक लम्बा ढीला सा नाईट गाउन पहना था जिसने उसे सर से लेकर करीबन करिबन पांव तक्क ढंका हुआ था. मगर विशाल के लिए तोह इतना ही बहुत था के वो आ तोह गयी थी वार्ना उसके आने की तोह उम्मीद ही ख़तम होने लगी थी. उसका सुन्दर गोरा मुखड़ा दमक रहा था. होंठो पर बहुत ही प्यारी सी मुस्कान फ़ैली हुयी थी और ऑंखे जैसे ख़ुशी के मारे चमक रही थी. उसने कमरे के अंदर आते ही दरवाजा बंद किया और धीरे धीरे बहुत ही अदा से चलति हुयी बेड के पास आती है. उसके होठो की मुस्कराहट गहरी हो चुकी थी, आँखों की चमक भी बढ़ गयी थी. उसकी नज़रें बेटे के चेहरे पर ज़मी हुयी थी. विशाल अब भी केवल अंडरवेअर में था. उसने खुद को ढकने का कोई प्रयास नहीं किया था. उसने धीरे से दूध का गिलास बेड की पुशत पर रखा और बेड के किनारे अपने नितम्ब रखकर ऊपर को हुयी तोह विशाल थोड़ा सा खिसक कर अपनी माँ के लिए जगह बनाता है. अंजलि बेड की पुश्त से टेक लगाकर बेटे की और करवट लेती है. अंजलि मुस्कराती विशाल की आँखों में देखति अपनी भवें नचाती है जैसे उसे पूछ रही हो...' हाल कैसा है जनाब का'
"बड़ी जल्दी आ गयी .......अभी दो तीन घंटे बाद आना था........या फिर रहने देती.......इतनी तकलीफ उठाने की क्या जरूरत थी........" विशाल ताना देकर अपनी नाराज़गी जाहिर करता है.
"ओह....नाराज़ है मेरा सोना.........बहुत इंतज़ार कराया क्या मैंने!!!!!!" अंजलि शरारती सी हँसी हँसति बेटे को छेड़ती है.
"इंतज़ार......मुझे तोह उम्मीद भी नहीं थी आप इतनी जल्दी आ जाएंगी.........अपने कितना बड़ा उपकार किया है मुझपर" विशाल झल्ला उठता है.
"उफ्फ्फ्फ़ तौबा मेरे मालिक....गुससा कुछ ज्याद ही लगता है.........क्या सच में इतना इंतज़ार कर्वेज मैने" अंजलि का स्वर अब भी शरारती था. वो जैसे बेटे की नाराज़गी से आनंद उठा रही थी.
"और नहीं तोह क्या........डो घंटे होने को आये.........कब्ब से राह देख रहा हुन तुम्हारी.....मगर तुम्हे क्या फरक पढता है.....मैने तोह सोचा था तुम दोपहर को ही आओगी मगर आप....आप......" विशाल किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम सा दुखी सा चेहरा बना लेता है.
"मैं.....में क्या बुद्धु........ईतना गुस्सा दिखा रहे हो जैसे इंतज़ार में जान निकल रही हो और दोपहर को पन्द्रह मिनट भी इंतज़ार नहीं कर सके......" अंजलि बेटे के कँधे पर प्यार भरी चपट लगाती है.
"क्या मतलब......तुम आई थी? देखो अब झूठ मत बोलो माँ!" अपनी माँ की बात सुन विशाल चौंक गया था.
"मैं क्यों झूठ बोलूँगी भला........पन्द्रह मिनट भी नहीं हुए थे जब में तुमसे मिलने आई थी. सोचा था इतने दिनों से बेटे को गले नहीं लगाया उसे प्यार नहीं किया मगर यहाँ तुम घोड़े बेचकर सो रहे थे और डींगे ऐसे हांक रहे हो जैसे पूरी दोपहर जाग कर काटी हो" अंजलि की बात सुन विशाल शर्मिंदा सा हो जाता है.
"तुमने मुझे जगाया क्यों नहि......."
"दिल तोह किया था एक बार तुम्हे जगा दुं....मेरा कितना दिल कर रहा था अपने बेटे को प्यार करने का.....उसे अपने अलिंगन में लेने का" अंजलि बहुत ही प्यार से ममता से बेटे का गाल सहलती है "...मगर फिर तुम पिछले दो दिनों से कितनी भागदौड कर रहे थे और पिछली रात तो तुम्हे सोने को भी नहीं मिला था इस्लिये में चुपचाप यहाँ से निकल गयी"
"वह माँ तुम्हे मुझे जगाना चाहिए था........मेरा कितना दिल कर रहा था......."
"ख़ैर छोड़ो..... अब तोह आ गयी हुन न......."
"आ तोह गयी मगर कितना लेट आई हो में कब से तुमहारी राह देख रहा था......." विशाल बहुत ही प्यार और कोमलता से अपनी माँ के गाल सहलता है.
"मैं तोह कभी की आ जाती मगर तुम्हारे पिता की बातें ही ख़तम होने को नहीं आ रही थी........कुछ ज्यादा ही एक्ससायटेड थे..........और फिर में नहाने चलि गईं.....और फिर तुम्हारे लिए दूध बनाया ....इसीलिये इतनी देरी हो गायी" विशाल अपनी माँ के बालों में धीरे से हाथ फेरता है तोह उसे हल्का सा गिलेपन का एहसास होता है.
"ओह तोह पिताजी आज बहुत एक्ससिटेड थे.......सिर्फ बातें ही कर रहे थे या कुछ और भी हो रहा था..........." इस बार विशाल अपनी माँ को छेडता कहता है.
"धतत......बदमश कहीं का..." अंजलि शर्मा जाती है और विशाल के कंधे पर चपट लगाती है.
"ओह हो......ओहो हो........देखो तोह कैसे शर्मा रही हो........जरूर दाल में कुछ कला है.........अब तोह मुझे पूरा यकीन है के बातें नहीं हो रही थी....वहाँ कुछ और भी हो रहा था......है न मेरी प्यारी माँ........देखो झुठ मत बोलना" विशाल की बात सुन अंजलि और बुरी तरह शर्मा जाती है. विशाल हंस पढता है.
“काया विशाल तुम भी न………..छोड़ो इस बात को…….तुम बताओ अभी खुश हो न……………..तुम तोह शुकर मना रहे होगे आखिरकार पूजा ख़तम तोह हुयी”
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