RE: mastram kahani राधा का राज
"क्या हुआ बन्नो तू आज इतनी चुप चुप क्यों है?" मैं रचना के सवाल पर एकदम से हड़बड़ा गयी. और मेरी चम्मच से खाना प्लेट मे गिर गया.
"नही नही…..कुछ नही मैं तो….असल मे आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नही लग रही है."
"क्यों…..राज शर्मा तुमने कुछ कर तो नही दिया?" रचना राज शर्मा की ओर देख कर मुस्कुरई, "चलो अच्छी खबर है. तुम लोगों की शादी को काफ़ी साल हो गये अब तो कुछ होना भी चाहिए." कह कर रचना राज की ओर एक आँख दबा कर मुस्कुरई.
"हाँ हां और क्या अब तो रचना भी मम्मी बन गयी. तुम लोगों को भी अब प्रिकॉशन हटा देना चाहिए." अरुण नेरचना की बात आगे बढ़ाता हुआ मेरी ओर देख कर कहा, "राज शर्मा अगर तुमसे कुछ नही हो रहा हो तो किसी और को भी मौका दो." और मुझे वासना भरी निगाहों से देखा.
"हाँ हां क्यों नही…" रचना ने अपने हज़्बेंड को छेड़ते हुए कहा," मेरी सहेली को देख कर तो तुम्हारी शुरू से ही लार टपकती है. तुम तो मौका हो ढूँढ रहे होगे डुबकी लगाने के लिए."
उसे क्या मालूम था उसका हज़्बेंड डुबकी कब्की ही लगा चुका. हम चारों हँसने लगे. अचानक रचना का रुमाल हाथ से फिसल कर नीचे गिर पड़ा. ये देखते ही अरुण ने झटके से अपना पैर मेरी पॅंटी के उपर से हटा कर नीचे किया मगर उसका पैर मेरी सारी मे उलझ गया. मैने भी झटके से अपने दोनो पैर सिकोड लिए. जिससे रचना को पता नही चले. मगर मेरी सारी मे लिपटा उसका पैर हमारी बीच चल रही चुहल बाजी की कहानी कह रहा था. मगर शायद रचना को हम दोनो के बीच इस तरह की किसी हरकत की उम्मीद भी नही थी. इसलिए उसने झुक कर अपना रुमाल उठाया मगर हम दोनो की उलझी हुई टाँगों पर नज़र नही पड़ी. मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया था.
इसी तरह हम कई बार पकड़े जाते जाते बच गये.
मेरी शिफ्ट्स की ड्यूटी रहती थी. इसलिए कभी कभी जब मैं सुबह के वक़्त घर पर होती और राज शर्मा नर्सरी के लिए निकाला होता तब अरुण कुछ माँगने के बहाने से या मुझे बुलाने के बहाने से मेरे घर आ जाता और मुझे दबोच लेता. मेरे इनकार का उस पर कोई असर ही नही होता था. वो सबको बताने की धमकी देकर मेरे छ्छूटने की कोशिशों की हवा निकाल देता. वो मुझे ब्लॅकमेन्ल करके मेरे बदन से खेलने लगता. मैं उसकी जाल मे इस तरह फँसी हुई थी कि ना चाहकर भी चुप रहना पड़ता.
कई बार उसने मुझे दबोच कर एक झटके मे मेरा गाउन शरीर से अलग कर देता. फिर मुझे पूरी तरह नंगी करके मेरे बदन को चूमता चाट्ता और अपने लंड को भी मुझसे चटवाता. वो अपने लंड को ठीक तरह से सॉफ करता था या नही क्या पता क्योंकि उसके लंड से बदबू आती थी. मुझे उसी लंड को चूसने के लिए ज़बरदस्ती करता था. अपनी बीवी पर तो उसकी ज़बरदस्ती चल नही पाती थी. रचना उसके लंड को कभी मुँह से नही लगती. लेकिन मुझे उसके हज़्बेंड के लंड को अपने मुँह मे लेकर चाटना पड़ता था.
वो कभी सोफे पर तो कभी दीवार के साथ लगा कर तो कभी किचन की पट्टी पर मेरे हाथ टिका कर मुझे छोड़ता. मेरे मना करने पर भी वो मेरी योनि को अपने वीर्य से भर देता था. मैं प्रेग्नेन्सी से बचने के लिए डेली कॉंट्रॅसेप्टिव लेने लगी थी. क्योंकि क्या पता कब उसका बीज असर दिखा दे. फिर भी एक डर तो बना ही रहता था.
कुछ दिन वहाँ रह कर अरुण को अपने काम पर लौटना पड़ा. रचना को ड्यूटी पर बच्चा ले जाने मे दिक्कत रही थी. इन्फेक्षन हो जाने का ख़तरा तो रहता ही था. घर पर बच्चे को अकेला भी नही छोड़ सकती थी. मैने उसे अपने घर को बंद कर मेरे और राज शर्मा के साथ ही रहने की सलाह दी.
"नही राधा..अरुण क्या सोचेगा. वो बहुत शक्की आदमी है."
"किसी को बताने की तुझे ज़रूरत ही कहाँ है. जब वो आए तो तू अपने घर चली जाना. अब देख तू यहाँ रहेगी तो तेरे आब्सेन्स मे तेरे बच्चे की मैं ही मा बन कर रहूंगी." मैने कहा.
"लेकिन बच्चे को भूख लगी तो क्या पिलाएगी? तेरे मम्मो मे तो अभी दूध ही नही है." कहकर उसने मेरी चुचियों को मसल दिया. मैं भी उसकी हरकतों पर हँसने लगी.
"एक बात बता…." रचना ने पूछा," तेरा पति कुछ सोचेगा तो नही? मैं अगर तेरे साथ रहने लगी तो उसे कोई ऑब्जेक्षन तो नही होगा?"
"ऑब्जेक्षन और उसे?......" मैने उन दोनो के बीच संबंधों को गरम बनाना की ठान ली थी, "तेरी निकटता से उसे कभी ऑब्जेक्षन हो सकता है क्या? वो तो तेरी निकटता के लिए च्चटपटाता रहता है. और वैसे भी दो दो बीवी पकड़ कोई मना करेगा भला."
" राधा अब मैं मारूँगी तुझे" वो मुझे पकड़ने के लिए मेरी ओर दौड़ी.
"अच्छा? ज़रा आईने मे नज़र मार तेरा लाल शर्म से भरा चेहरा तेरे जज्बातों की चुगली कर रहा है. सॉफ दिख रहा है कि आग तो दोनो तरफ ही लगी हुई है." मैं हँसती हुई सोफे के चारों ओर भागी मगर उसने मुझे पकड़ लिया और हम गुत्थम गुत्था हो कर सोफे पर गिर पड़े.
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