RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
सलामू ने जल्दी से उसे देखते हुए कहा-“बाबा खामिसा तुम जाओ। छोटा साइन को यह सब पसंद नहीं है…”
खामिसा के आँखों में आँसू से आ गये और वो जल्दी से दोनों हाथ बाँधकर काँपती हुई आवाज में बोला-“साइन मुझसे कोई गलती हो गई है क्या? अगर कोई गलती हो गई है तो खाल खींच लो, पर साईन मुझे इससे मना मत करो…”
मैं उसकी हालत देखकर घबरा गया और अपना पाँव पीछे करके जमीन पर रखा और दोनों हाथों से उसे बाजू से पकड़कर खामिसा को ऊपर उठा लिया और बोला-“मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ। बाकी मुझे यह सब पसंद नहीं…”
खामिसा दोनों हाथ बाँधे मेरे सामने खड़ा हुआ था और मेरे इस तरह उसको उठाने से वो थरथर काँप रहा था। उसकी आँखें पानी से भर आई थी।
इसी दौरान एक तरफ से आवाज आई-“ओये छोरा। इधर आओ। इस शेरी को क्या पता की पीरों की शान क्या होती है?”
मैंने गर्दन घुमाकर देखा तो एक लगभग 5’6” कद का खूबसूरत नोजवान दो हथियारबन्दो के साथ खड़ा अपनी बड़ी और घनी मूँछो पर ताओ दे रहा है।
खामिसा अब तक मेरे सामने हाथ बाँधे खड़ा था। मगर अब उसकी हालत और पतली हो चुकी थी। वो बेचैनी का शिकार था कि क्या करे? मेरे पास खड़ा रहे या उधर चला जाए?
मैंने अजनबी नजरों से उसे देखा।
तो सलामू ने मेरे करीब आकर सरगोशी में कहा-“यह पीर जमील शाह हैं। पीर जमाल शाह के बड़े बेटे। (पीर जमाल शाह यानी के बाबा के कजिन)
उसने एक बार फ़िर खामिसा को आवाज लगाई-“छोरा सुना नहीं। इधर आ और असली पीरों की खिदमत कर, ताकी तुझे कुछ हासिल भी तो हो…”
मैंने खामिसा की तरफ देखा और हल्के से कहा-“जाओ…” मेरे बस जाओ कहने की ही देर थी खामिसा ने जमील शाह की तरफ दौड़ लगा दी।
मैंने जल्दी से अपने जूते पहने और सलामू के साथ आगे बढ़ गया। लेकिन पीछे से मुझे जमील शाह की बात करने की आवाज सुनाई दी।
“अरे छोरा वो आधा पीर है। उससे तुझे कुछ नहीं मिलना। हमारी चाकरी कर तेरी दुनियाँ भी बन जाएगी और मरने के बाद भी सुख में होगा…” इसके साथ ही कुछ कहकहों की आवाजें पीछे से सुनाई दी।
मैंने एक बार उनको मुड़कर देखा मगर मैं रुका नहीं। मैं उनकी बातों को कोई अहमियत नहीं देना चाहता था। क्योंकी मुझे ना उनसे कोई ताल्लुक रखना था, और ना ही इस पीरी मुरीदी से। मैं आगे बढ़ता रहा।
मगर सलामू ने भी शायद सब सुन लिया था। उसने बड़े धीरे से चारों तरफ देखते हुये मुझे कहा-“छोटे साईन आप इनकी बातों पर ध्यान ना दें। ऐसे बकवास करना उनकी आदत है। लेकिन यह जमील शाह है बहुत ही जालिम आदमी। सारे हरी इससे घबराते हैं। इसलिए इसको कोई इनकार नहीं करता…”
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