RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
सारा मेरे आगे-आगे राहदरी के दूसरे सिरे की तरफ बने एक और दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी। उस शानदार दरवाजे पर लकड़ी का बहुत ही आला काम बना हुआ था। उसपर उभरे हुए नक़्शो निगार करीगर की कारीगरी का मुँह बोलता सबूत थे। मैं सारा के पीछे-पीछे इन तमाम चीजों को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था। सारा ने आगे बढ़कर उस दरवाजे को खोला और खुद अंदर ना दाखिल होते हुए मुझे पहले अंदर दाखिल होने का इशारा किया। मेरे दिल की धड़कन बढ़ चुकी थी। दिलो दिमाग़ पर जज़्बात हावी हो चुके थे। शायद यही वो आखिरी दीवार थी जो मेरे अनमोल रिश्तों के बीच में खड़ी थी। और अब मैं भी जल्द से जल्द इस दीवार को तोड़कर उन तक पहुँच जाना चाहता था।
मैंने धड़कते दिल के साथ उस दरवाजे की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए। मेरे उस दरवाजे से अंदर दाखिल होते ही मैं एक बड़े से हाल में पहुँच गया था। मेरी नजर सबसे पहले ही हाल के बीचोबीच लगे एक खूबसूरत से फ़ानूस पर पड़ी। जो हाल की छत से लटका यहाँ के मकीनो के अर्मट की गवाही दे रहा था। चारों तरफ की दीवारें बड़ी-बड़ी खूबसूरत तसवीरोज़ से सजी हुई थीं। अभी मैं उस हाल की ताजीन-ओ-आरैश को सही से देख भी नहीं पाया था कि मेरे ऊपर फूलों की पत्तियाँ निछावर होने लगीं।
पहले तो मैं इस अचानक इफ्तियाद से चौंक गया। मगर अपने ऊपर फूलों की बारिश होते देखकर हैरत और खुशी के मिले जुले भाव के साथ नजर दौड़ाई तो कुछ खूबसूरत लड़कियाँ मुनासिब से लिबास में अपने हाथों में फूलो से भरे थाल उठाए मुझ पर फूल बरसा रही थी। और सिंधी जबान में खुश-आमदीद का सेहरा (कुलत्रूल घाना) गाने लगी।
मैं अभी उनको देख ही रहा था कि एक जोरदार आवाज ने मुझे अपनी तरफ देखने पर मुतवीजा कर दिया-“भाई…”
भाई का लफ्र्ज सुनकर ही मेरे दिल की धड़कन और बढ़ गई और मैंने झट से सामने की तरफ देखा तो मुझे सामने कुछ औरतें खड़ी नजर आई। मैं उन्हें अभी सही से देख भी नहीं पाया था की दो नौजवान और खूबसूरत ऐसी की लगता था की आसमान से उतरी कोई परिया हों, मेरी तरफ भागने लगी। मैं अभी उनको पूरी तरह से देख भी नहीं पाया था कि वो दोनों भागती हुई आकर मेरे सीने से लग गई।
वो दोनों भी रगो-ओ-रूप की तरह कड़ो कामत मैं भी आम लड़कियों से कुछ हटकर ही थी। वो दोनों बड़ी जोर से आकर मेरे सीने से लगी थी। मैं एक लम्हे के लिए लड़खड़ा गया था। मगर मैंने अपने दोनों बाजू पहले ही खोलकर उनको भी थाम लिया और खुद को लड़खड़ाने से बचा लिया। वो मुसलसल रोए जा रही थी। उन दोनों ने अपना सिर मेरे चौड़े सीने में छुपाया हुआ था। मुझे उन दोनों के मिले जुले जो अल्फाज समझ में आ रहे थे, वो मैं यहाँ लिख रहा हूँ। मगर उस वक्त मैं अंदाज ना लगा पाया था कि कौन क्या कह रहा है।
“भाई, बाबा हमें छोड़ गये। भाई हम यतीम हो गये। भाई अब हमारा कौन है? आप भी हमसे बहुत दूर थे। हम डरे हुए थे कि आप हमारे पास आएँगे भी कि नहीं? भाई बाबा हमें छोड़ गये। भाई आप हमें ना छोड़ना। भाई इस दुनियाँ में हमारा और कोई नहीं हैं। इन बंद दीवारों में, इस हवेली की ऊँची-ऊँची दीवारों की कैद में हम आपके बगैर घुट-घुट कर मर जायेंगे। भाई हम मर जाएँगे, आप हमें छोड़कर मत जाना…”
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