RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
फ़िर उसने कहा-“हमारा भाई तो शेर है। वो कभी नहीं रोएगा। बस बहनों की मुहब्बत में थोड़ा कमजोर हो गया था…” यह कहकर वो रोती हुई आँखों से हँसने लगी। इस दौरान मेरी दूसरी बहन ने भी पहली की तरह मेरा माथा चूमा, और बड़ी की बात सुनकर वो भी मुश्कुराने लगी।
मैंने भी बारी-बारी दोनों के आँसू पोंछे और कहा-“तुम्हारा भाई वाकई शेर है। दुनियाँ की कोई भी ताकत उसे रुला नहीं सकेगी। लेकिन तुम्हारी मुहब्बत उसकी अब बहुत बड़ी कमजोरी बन गई है। तुम अगर कभी रोई तो यह भाई भी रो देगा…”
मेरी बात सुनकर वो दोनों एक बार फ़िर मेरे गले लग गई। इसी दौरान एक दूसरी खूबसूरत सी खातून आगे बढ़ आई, उनके चलने और बात करने में एक अजीब ही वेकार और दबदबा था, उनकी आँखों से भी आँसू की झड़ी लगी हुई थी। उन्होंने करीब आकर मेरी बहनों की पीठ पर हाथ रखा और और जबरदस्ती मुश्कुराते हुए कहा-“अच्छा अब अगर बहनों का दिल भाई से मिलकर भर गया हो तो, हम भी अपने भाई की निशानी से मिल लें?”
तब मुझे अंदाज़ा हुआ कि वो खातून शायद मेरी छोटी फूफो हैं। उनकी बात सुनकर दोनों बहनों ने मुड़कर उन्हें देखा और छोटी वाली ने कहा-“छोटी फूफो साईं। हम नहीं छोड़ेंगे अपने भाई को। क्या इतनी जल्दी हमारा दिल अपने भाई से भर जाएगा?”
उसकी बात सुनकर सबके चेहरे पर मुश्कुराहट आ गई।
मैंने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा-“तुम्हारा भाई अब यहाँ है। लेकिन अब बड़ों से ना मिलकर अपने भाई को नाफरमान तो ना बनाओ…”
मेरी बात सुनकर बड़ी फूफो के मुँह से फौरन निकला-“मैं सदके मेरी जान। हमारा खून नाफरमान हो ही नहीं सकता…” यह कहकर उन्होंने आगे बढ़कर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और मेरे माथे को चूमते हुए, मुझे अपने गले से लगा लिया।
कुछ देर तक तो उन्होंने मुझे अपने गले से लगाए रखा, और फ़िर दूर होते हुए बोली-“मेरी जान मैं हूँ तुम्हारी बड़ी फूफो, तुम्हारे बाबा की बड़ी बहन…” उन्होंने यह तारूफ करवाकर मुझे जता दिया था कि मैं गलती से भी उनसे हुई मेरी पहली मुलाकात का इजहार ना करूँ और ना ही उनसे किसी शहनसाइ महसूस कारवाऊूँ।
मैंने एकदम से झुक कर बड़ी फूफो के पैर छू लिए।
जिस पर उन्होंने जल्दी ही पीछे हाथ करके मुझे दोनों बाजू से पकड़कर ऊपर उठा दिया और कहा-“नहीं मेरे बच्चे, तुम्हारी जगह तो हमारे दिल में है…”
मैंने मुश्कुराते हुए उन्हें देखकर कहा-“लेकिन बड़ी फूफो। मैं बड़ों का सम्मान और खानदानी रिवायत से भी तो रोगाडानी नहीं कर सकता…”
मेरी बात सुनकर उन्होंने एक बार फ़िर मेरे चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए, मेरे माथे को चूम लिया, और दो आँसू के कतरे उनकी आँखों से बह गये। मैंने अपने हाथों से उनके आँसू सॉफ करते हुए गर्दन हिलाकर उनको रोने से मना किया। इसी दौरान किसी ने पीछे से आकर मेरी पीठ को थपथपाया।
मैंने गर्दन घुमाकर देखा तो छोटी फूफो मेरे पीछे खड़ी मुश्कुरा रही थी। उनकी भी आँखें आँसुओं से भरी थीं, मगर उनके होंठों पर मुश्कुराहट थी। उन्होंने भी मेरे चेहरे को अपने हाथों में भरते हुए मेरे माथे पर चूमा और कहा-“बिल्कुल हमारे बाबा का दूसरा रूप हो तुम, वही कद, वही आँखें, वैसा ही नैन नक्श। ऐसा लगता है कि बाबा… पीर सैयद बादशाह अली शाह फ़िर से हमारे सामने आ गये हों…”
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