RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
उस दिन बहुत से स्टूडेंट्स कुर्रे सर के लपेटे मे आ गये...मैं चाहता था कि अरुण भी उस लपेटे मे फस जाए लेकिन साला होशियार निकला और जब कुर्रे सर ने उसे खड़ा किया तो लंबा चौड़ा भाषण उसने दे डाला.....
"बड़े ध्यान से सुन रहा था कुर्रे का बोरिंग लेक्चर....."
"मतलब...."
" उसका लेक्चर सुने बिना तू इतना सब कैसे बोल सकता है..."
"ये सब तो पहले से मालूम था मुझे..."कंधा उचका कर वो बोला....
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"मैं आज ड्रॉयिंग की क्लास अटेंड नही करूँगा...." अपना बॅग बंद करते हुए नवीन ने हम दोनो से कहा....
"क्यूँ जाके गान्ड मरवाना है..."
"लवदे..."अरुण को एक हाथ लगाकर नवीन ने कहा "जब देखो तब गाली भरे रहता है मुँह मे...."
"तू उसको हटा और ये बता कि आज ड्रॉयिंग की क्लास क्यूँ छोड़ रहा है....सुना है बहुत हार्ड सब्जेक्ट है ये..."मैं नही चाहता था कि वो वहाँ से जाए , क्यूंकी नवीन के साथ रहने से क्लास बोरिंग नही लगती थी...
"भैया आ रहा है घर से और 3 बजे उन्हे रेलवे स्टेशन लेने जाना है,..."
"जब काम 3 बजे है तो फिर अभी से क्यूँ जा रहा है,..."
"बस जा रहा हूँ....रूम की सॉफ-सफाई भी करनी है ,वरना भाई रूम मे आकर मेरा हाल-चाल बाद मे पुछेगा उससे पहले मुझे बोलेगा कि चल पहले रूम सॉफ कर..."
"आज तेरे रूम पर ही रुकने का प्लान है क्या उनका...."मेरे अंदर एक अलग ही ख्छिछड़ी पाक रही थी जिसमे मिर्च मसले डालते हुए नवीन बोला...
"नही, 4 बजे उनकी ट्रेन है..."
"आज रात मैं तेरे रूम पर रुकुंगा...."
"क्यूँ..."मेरे एकदम से कहने पर नवीन थोड़ा चौक सा गया,
"क्यूँ बे, तू आज उसके रूम पर क्यूँ रुकेगा...."अरुण ने मुझे बीच मे टोका...
"काम है कुछ..."
"गे गे गे गे..."एक धुन मे गाते हुए अरुण ने कहा....
"आक्च्युयली मैं सोच रहा था कि एसा जिस हॉस्पिटल मे है, वहाँ जाकर उसे देख आउ..."
"नवीन, लौंडा तो गया हाथ से..."मुस्कुराते हुए अरुण ने कहा"फिर मैं भी चलता हूँ..."
फिर क्या था हम तीनो ने अपना बॅग उठाया और निकल पड़े नवीन के रूम की तरफ....रास्ते भर मैने प्लान बनाया की मुझे हॉस्पिटल जाकर आक्च्युयली करना क्या है, लेकिन फिर याद आया कि हमे तो उस हॉस्पिटल का नाम तक नही मालूम जिसमे एश अड्मिट है.....
"अबे तू किसलिए मेरे साथ आया है..."बाइक पर बैठे हुए ही मैने कोहनी से अरुण को मारा....
"तेरे साथ उस हॉस्पिटल मे जाउन्गा ,जहाँ एश अड्मिट है..."
"घंटा जाएगा , पहले ये तो मालूम कर कि एश है किस हॉस्पिटल मे...."
कॉलेज से नवीन के रूम पहुचने मे सिर्फ़ आधा घंटा लगा,इधर नवीन रूम की सफाई मे लग गया और उधर मैं और अरुण उसके बिस्तर पर किसी महाराजा की तरह सवार होकर अपना प्लान बनाने लगे........
"भू को कॉल करता हूँ...."अरुण ने अपना मोबाइल निकालते हुए कहा.....भू भी एश के पीछे पड़ा हुआ था इसलिए अरुण ने सोचा कि शायद उसे कुछ मालूम हो और हमारा दाँव एक दम फिट बैठा, उस साले भू को मालूम था कि एश कहाँ अड्मिट है....
"काम हो गया...."कॉल डिसकनेक्ट करके अरुण ने कहा....
"कहाँ है वो और किस हालत मे है..."
"अपोलो मे है...."
"चल जल्दी से चलते है वहाँ...."मैं बिना कुछ सोचे समझे जाने के लिए उठ खड़ा हुआ, तभी नवीन जो रूम की सॉफ-सफाई मे लगा हुआ था वो बोला
"हेलो...किधर.."
"अपोलो..."
"बेटा ,अभी जाना है तो ऑटो मे जाओ ,क्यूंकी 3 बजे भाई को लेने रेलवे स्टेशन जाना है और वैसे भी अपोलो 2 कमरो का कोई छोटा हॉस्पिटल नही है जो मुँह उठा के पहुच गये...बेटा अंदर घुसने के लिए आइडी कार्ड लगता है....."हम दोनो के बढ़ते कदम वही रुक गये और अरुण के हाथ से नवीन ने बाइक की चाबी छीन कर कहा"पिछवाड़े मे लात मार के बाहर करेंगे वहाँ का सेक्यूरिटी गार्ड्स...."
"तो अब क्या करे...."
"4 बजे तक रुक ,भाई को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद मैं भी साथ मे चलूँगा...."
उस दिन नवीन के भाई ने 1 घंटे बुरी तरह से बोर किया और नवीन के रूम को सॉफ देखकर खुश भी बहुत हुए, और जाते जाते हम तीनो को ठीक से पढ़ने की नसीहत भी दी, 4:30 बजे के लगभग नवीन रेलवे स्टेशन से वापस रूम पर आया और हम तीनो अपोलो हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े......
"ले आ गया अपोलो , अब बोल अंदर जाने का क्या जुगाड़ है..."नवीन जब बाइक पार्क करके आया तो मैने उससे पुछा....
"मेरे इधर के अंकल यहाँ अड्मिट है, उनको बाहर बुलाता हूँ...."कहते हुए नवीन ने मोबाइल निकाला और फिर अपने अंकल से बात की,...कुछ ही देर मे नवीन के अंकल बाहर आए, नवीन और उसके अंकल ने कुछ देर ही हेलो जैसी कयि पकाऊ बाते की और फिर हमे दो कार्ड देकर बोले कि तुम तीनो मे से सिर्फ़ दो लोग ही अंदर जा सकते हो....जाना तो तीनो को था इसलिए हम तीनो एक दूसरे का मुँह तकने लगे कि कौन अपनी कुर्बानी देगा....लेकिन जब कोई फ़ैसला नही हुआ तो अंकल ने हम तीनो को कुछ देर रुकने के लिए कहा और फिर जुगाड़ करके एक और आइडी कार्ड लेकर आए....
"नवीन, अपने अंकल से पुच्छ के देख कि ये एश को जानते है कि नही...."
"चूतिया है क्या...."
"तू चूतिया, तेरा बाप....."इसके आगे मैने कुछ नही बोला और थोड़ी डोर खड़े नवीन के अंकल के पास गया, जो किसी से बात कर रहे थे.....
"अंकल, हमारे कॉलेज की एक लड़की ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की है,...उसे आप जानते है क्या....."
"एश......"
"ओ तेरी "अंदर ही अंदर खुश होते हुए मैने नवीन के अंकल से कहा"हाँ वही, जब यहाँ आए है तो सोचा कि उससे भी मिल लूँ...."
"वो मेरे करीबी दोस्त खुराना की एकलौती बेटी है , एश की स्यूयिसाइड की खबर सुनकर मुझे भी दुख हुआ था, लेकिन अब वो ठीक है और यदि उससे मिलना चाहते हो तो 125 रूम नंबर. मे जाओ"
"थॅंक यू अंकल"
वहाँ से खुशी-खुशी मैं अरुण और नवीन के पास आया और उन्हे रूम नो. 125 मे चलने के लिए कहा,..
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गये थे बड़े आशिक़ बनकर, सोचा था किसी ना किसी बहाने उससे बात कर ही लूँगा , फिर उसका हाल चाल भी पुच्छ लूँगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ और ना ही इसके आस-पास कुछ हुआ.... जिस रूम मे एश अड्मिट थी , हम तीनो उस रूम के बाहर चुप चाप खड़े अंदर झाँक रहे थे क्यूंकी अंदर झक्क मार के झाँकने के सिवा हम तीनो या फिर कहे कि मैं कुछ कर भी नही सकता था, क्यूंकी जो काम मुझे करना था वो रूम. नंबर. 125 मे कोई और कर रहा था, जिन अरमानो की गठरी बनाकर मैं यहाँ आया था वो खुल कर जिस रूम मे एश अड्मिट थी उसके बाहर बिखर चुकी थी , कानो मे एक बार फिर वही आवाज़ गूँजी जिसे मैं सुनना नही चाहता था, जिसे मैं बर्दाश्त नही कर सकता था....."प्यार ,मोहब्बत का चक्कर है भाई, तू उसे भूल जा...." उस वक़्त अरुण भी चुप था और नवीन भी चुप चाप खड़ा था.....रूम के अंदर एश एक लड़के से बात कर रही थी, एश की आँख मे आँसू थे और उस लड़के की आँख भी हल्की नम थी, दोनो साले मेरी लव स्टोरी की धज्जिया उड़ा कर अपने लिए फॅमिली प्लॅनिंग कर रहे थे.....जिस लड़के ने एश का हाथ पकड़ रखा था उसे मैने कॉलेज मे शायद काई बार देखा था, और यदि मेरा अंदाज़ा सही था तो वो यक़ीनन मेरा सीनियर है......
"इसका नाम गौतम है और ये सेकेंड एअर मे है...."नवीन ने धीरे से कहा, लेकिन यदि वो ज़ोर से भी कहता तो कोई फरक नही पड़ता क्यूंकी वहाँ हमे सुनने वाला कोई नही था, जो बीमार थे वो तो अलॉट हुए रूम मे ही पड़े थे और जो उनके करीबी थे वो या तो अपने करीबी के साथ रूम मे थे या फिर बाहर की हवा खाने के लिए बाहर गये हुए थे...उस वक़्त हम तीनो रूम नंबर. 125 की खिड़की से अंदर देख रहे थे, हम तीनो ने देखा कि उस लड़के ने एश का हाथ अपने दोनो हाथो से थाम लिया और कुछ बोलने लगा...जिसे सुनकर एश की आँखे खुशी से छलक उठी....
उस वक़्त आँखो मे आँसू उसके भी थे ,उस वक़्त दिल मेरा भी रोया था.....उस वक़्त अपने प्यार के सामने वो भी चुप थी ,उस वक़्त अपने प्यार के सामने चुप मैं भी था....उसके बगैर जीने की आदत ना तो उसे थी और उसके बगैर जीना मेरा भी मुश्किल था......
धीरे-धीरे मेरे कदम खुद बा खुद बाहर के लिए चल पड़े, अब सिचुयेशन बिल्कुल अलग थी, जहाँ कुछ देर पहले तक मैं यहा आने के लिए मरा जा रहा था वही अब मैं जल्द से जल्द यहाँ से दूर जाना चाहता था,जहाँ कुछ देर पहले मेरा दिल उसके दीदार के लिए उछल-उछल कर बेतहाशा हुआ जा रहा था वही अब मेरा दिल हताश होकर शांत बैठ गया था....हॉस्पिटल से बाहर आते वक़्त मैने कयि लोगो को देखा, लेकिन फिर भी ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा था कि मैं वहाँ ,उस बड़े से आलीशान हॉस्पिटल मे बिल्कुल अकेला हूँ....कोई यदि वहाँ धीरे से भी कुछ बोलता तो उसकी आवाज़ जोरो से मेरे कानो मे चुभति....मुझे उस वक़्त ऐसा लगने लगा था जैसे की मैं बरसो से उस जगह क़ैद हूँ और वहाँ से निकलने की कोशिश कर रहा हूँ.......
"अरमान....."मेरे कंधे को पीछे से पकड़ कर अरुण ने मुझे ज़ोर से हिलाया...."कहाँ जा रहा है...."
"बाहर...."अपने चारो तरफ देखते हुए मैने अरुण से कहा,"क्यूँ कुछ हुआ क्या..."
"ये बाहर का रास्ता नही है...सामने देख तू उस रूम की तरफ जा रहा है जहाँ अनाथ डेथ बॉडीस को रखा जाता है...."
अरुण सच कह रहा था, मेरे सामने कुछ दूरी पर वही रूम था, मेरा सर घूमने लगा और उसके बाद आँखो के तार सुस्त पड़ने लगे मैं उस वक़्त सोना चाहता था और मेरे मन मे ना जाने क्या सूझा जो मैं उसी रूम की तरफ चल पड़ा जहाँ मरे हुए लोगो के शरीर को रखा जाता था....मेरा दिमाग़ मेरे काबू मे नही था....मैं बस सोना चाहता था....
"अबे रुक,..."नवीन और अरुण ने मुझे पकड़ा लेकिन मैं उन्हे घसीटते हुए आगे बढ़ने लगा.....
"वत्फ़, बीसी मरवाएगा हमे..."अरुण मेरे कान के पास चिल्ला कर बोला और अचानक ही मैं होश मे आया.....
"मुझे क्यूँ पकड़ के रखा है बे..."उन दोनो को घूरते हुए मैने कहा,....
नवीन कुछ कहना चाहता था, लेकिन अरुण ने उसे इशारा करके शांत कर दिया और खुद बोला...."कुछ नही चल यहाँ से....
जहाँ एक तरफ एश ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की थी वही मेरे और एश के प्यार ने भी, जो कि शुरू तक नही हुआ था, स्यूयिसाइड करने की कोशिश की.....वो दिन मुझे आज भी याद है जब मैं बहक कर उस काले रूम की तरफ जा रहा था....इंजिनियर था इसलिए छोड़ दिया वरना यदि डॉक्टर होता तो दिमाग़ निकालकर उसमे मेरे उस दिन के बिहेवियर का रीज़न ढूंढता........
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