Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-05-2019, 01:40 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
अगले दिन मैने उठते ही मिथ्लेश को एसएमएस किया और पूछा कि क्या हम मिल सकते है तो उसने कहा कि मैं उसको पब्लिक लाइब्ररी के बाहर मिलू मुझे थोड़ा बॅंक का काम भी था तो मैने वो निपटाया फिर मिता को पिक कर लिया
आज तो वो बहुत ही प्यारी लग रही थी उसने पूछा हम कहाँ जा रहे है तो मैने कहा बस ऐसे ही घूमने के लिए और अपनी बाइक को नहर पे बने डॅम की ओर मोड़ दिया थोड़ी देर मे हम वहाँ पहुच गये एक अजीब सा सन्नाटा सा फैला हुआ था वहाँ पर अब गर्मी मे कौन आता वहाँ पर मैं और निशा तो अक्सर ही घूमते रहते थे वहाँ पर पर मिता के साथ आज पहली बार आया था पास ही एक बेरो का बगीचा था तो मिता बोली चलो बेर खाते है तो हम उस ओर चले गये वहाँ पर बस एक अम्मा ही थी तो उसे कुछ बेर लिए और इजाज़त ली कि क्या हम थोड़ी देर बाग मे घूम ले तो उन्होने हाँ कर दी



वहाँ के माहौल मे थोड़ी ठंडक सी थी तो गरम लू भी अच्छी लग रही थी मिता बोली एक बात मान नी पड़ेगी तुम्हारी चाय्स बहुत ही अलग है तुम साधारण चीज़ो को भी अलग बना देते हो तुम्हारी इसी बात पर तो मैं मर मिटी हू मैने मिता के हाथ को अपने हाथ मे पकड़ लिया हम एक पेड़ के नीचे बैठ गये उसने पूछा कब जाना है तो मैने कहा एक हफ्ते बाद वो बोली मत जाओ ना मैं क्या कहता बस इतना ही कह पाया कि जाना पड़ेगा अब एक फ़ौजी का नसीब यही तो होता है गिनती के ही दिन मिलते है अब उसमे क्या क्या कर ले मिता ने अपना सर मेरे कंधे पर टिका दिया और कहने लगी कितनी जल्दी ख़तम हो गये तुम्हारे हॉलिडे तो मैने कहा यार तेरे प्यार के लिए ही तो नौकरी की है अब बस तू जल्दी से मेरी ज़िंदगी मे आ जा वो भावुक होते हुए बोली कि मैं तो आज आ जाउ पर घरवालो से बात कैसे करू कुछ समझ नही आता है

रोज सोचती हू कि मम्मी से बात करू बट हिम्मत नही पड़ती है

मेरा गला भी भर आया मैं बस इतना ही कह पाया मिथ्लेश नही जी पाउन्गा तेरे बिन जितनी भी साँसे है बस तेरे लिए ही है पहली और आख़िरी पसंद बस तू ही है कुछ भी कर पर बस तुम मेरी ही दुल्हन बन ना मैं बोला अगली छुट्टी आते ही चाहे कुछ भी हो मैं तेरे घर आउन्गा तेरा हाथ माँगने के लिए

मितलेश कहने लगी की तब तक उसका कोर्स भी ख़तम हो जाएगा और वो भी जॉब करने लग जाएगी कोई डेढ़ दो घंटे तक हम लोग वही रहे फिर मैने कहा यार भूख लग आई है चल चलते है और हम वापिस शहर की तरफ आ गये मैं उसको एक नये खुले रेस्टोरेंट मे ले गया और साथ ही हमने लंच किया मैं आज का पूरा दिन बस मिता के साथ ही बिताना चाहता था

जब वो साथ होती थी तो टाइम भी बहुत तेज़ी से दौड़ लगाने लगता था मैने बाइक को पार्किंग मे लगाया और पैदल ही बाजार की तरफ निकल गये मैने कहा कुछ लेना है वो मना करने लगी पर मैने उसके लिए कुछ ड्रेस खरीद ही ली फिर मैने उसके लिए एक घड़ी खरीदी तभी वो बोली कि मुझे गोलगप्पे खाने है तो मैं उसको लेकर खोम्चे पे गया लड़किया भी ना गोल्गप्पो के लिए बड़ी ही क्रेज़ी होती है वो बड़े चाव से खाती रही और मैं बस उसको देख कर खुश होता रहा


अब ज़िंदगी मे ये कुछ लम्हे ही तो थे जिनके सहारे मैं वहाँ आर्मी मे जीता था ये यादे ही तो मुझे हौसला देती थी मिता भी मेरी मनोस्थिति को समझ रही थी पर वो बेचारी भी क्या कर सकती थी वो बस मुझे खुश करने की कोशिश ही कर रही थी तभी मुझे एक स्टेशनरी की शॉप इखी तो मैने कुछ नये पैंट और ब्रश खरीद लिए

मिथ्लेश बोली अब भी पैंटिंग करते हो तो मैने कहा की हा जब भी तुम्हारी याद आती है कर लेता हू वो हँस पड़ी उसको खिल खिलाते हुए देख कर मेरा दिल भी झूम उठा जब जब वो मेरे पास होती थी मेरे दिल की धड़कन ऑटोमॅटिकली बढ़ जाती थी

हम दोनो एक शॉप की सीढ़ियो पर बैठे हुए थे वो पॉपकॉर्न खा रही थी मैं पेप्सी पी रहा था मैने कहा यार देख टाइम कितना चेंज हो गया है ना कभी हम एक समोसा खा कर ही खुश हो जाते थे और आज इतने रुपये खर्च करने के बाद भी मज़ा नही आता है तो वो बोली तुमने अच्छा याद दिलाया एक काम करो चलो आज फिर से अपनी पुरानी लाइफ को याद करते है आओ चले मैं उसके पीछे पीछे चल दिया हम वापिस उसी गली मे पहुच गये थे जहा अक्सर हम जलेबिया और समोसे खाया करते थे वो दुकान आज भी वैसे ही थी मैने कुछ जलेबिया ली आज भी वो दोनो मे ही देता था

गर्म गरम जलेबियो के साथ काजू-बादाम वाला दूध का कुल्हड़ पीकर मज़ा ही आ गया मैने दुकानदार को बताया कि कैसे हम 10+2 मे यहाँ आते थे हर तीसरे चौथे दिन वो भी थोड़ा खुश हो गया बिल पे करने के बाद मैने मिता को थॅंक्स कहा ऐसे ही शाम तक हम पैदल पैदल घूमते रहे तफ़री मारती रहे फिर हम पार्किंग आए बाइक ली अब बस घर ही जाना था
तो मैने मिता से पूछा कि वो कब तक रुकेगी तो वो बोली कि वो तो दो महीने रुकेगी क्योंकि कॉलेज की टर्म ऑफ हो गयी थी मैने कहा कि मैं उस से मिलने शिमला आउन्गा उसने कहा कि वो पैदल ही टेंपो स्टॅंड तक जाएगी मैने सर हिलाया और उसको जाते हुए देखता रहा मेरा थोड़ा दिमाग़ उलझ सा गया था तो मैने एक ठंडी बियर खरीदी और गटकाने लगा

ये सुनहरी रेत जो बार बार मेरे हाथो से फिसल जाती है अपने आप मे ना जाने कितनी ही कहानियाँ समेटे बैठी है कुछ हम जानते है और कुछ इस रेत मे ही दफ़न हो गयी तपती दुपहरी मे जब ये हवा से से चलती है तो मैं अक्सर अपनी इस पोस्ट से थोड़ा बाहर आकर खड़ा हो जाता हू ये गरम लू मेरे शरीर को जैसे छलनी कर डालती है पर ये गरम हवा भी जैसे मुझसे नाराज़ है मानो मुझसे कह रही हो कि वो भी मेरी तरह जुदाई का गम लिए बह रही है जब रात होती है तो ये रेत मुझ अपने आगोश मे ले लेती है बिल्कुल किसी माँ के आँचल की तरह एक सुकून सा मिलता है कल की बात है

अचानक से बारिश आ गयी ठंडी बूंदे मेरे तन को भिगो गयी लगा जैसे वो बरसात मेरी प्रेयसी का संदेशा लेकर आई थी जब मेरे चेहरे पर बारिश की फुहार पड़ी तो लगा कि जैसे मेरी प्रियतमा का चुंबन हो कभी कभी मैं अपने जज्बातो को काबू कर नही पता हू आख़िर मैं भी तो एक इंसान ही तो हू कभी कभी कोफ़्त होती है इस खाना बदोश ज़िंदगी से मुझे सबकुछ होकर भी कुछ नही है मेरे पास मैं यहा टुकड़ो मे जी रहा हू वो कही इसी हाल मे जी रही है मैं उसको भी क्या दोष दूँ बहुत मना किया था उस दीवानी लड़की को कि मैं तो एक झोंका हू कभी इस पल कभी उस पल पर वो भी मर्जानी मानी ही नही पर खुशी भी है कि वो दूर होकर भी हर पल पास ही है मेरी रूह से इस कदर जुड़ चुकी है वो कि शब्दो मे बया ही नही कर सकता दिल की बाते दिल मे ही कहीं रह जाती है कोशिश तो करता हू पर होंठो पे आ ही नही पाती है पर मैं करू भी तो क्या आज यहा कल वहाँ अब तो पूरी डुंजया ही मेरा घर हो गयी है जहा जगह मिली वही चद्दर तान कर सो गये सवेरा हुआ तो चल दिए ना किसी से कोई शिकवा है ना कोई गिला है आख़िर इस ज़िंदगी को मैने ही तो चुना था अपने लिए शिकायत नही कर रहा हू बस कभी कभी थोड़ा सा तल्ख़ हो उठता हू

जब कभी लगता है कि टूट के बस बिखर ही जाउन्गा तो अपनी इस पोस्ट के बाहर आकर खड़ा हो जाता हू बस थोड़ी ही दूरी पर एक बंकर और दिखता है जहा मेरे जैसा ही कोई और दिखता है बोली भाषा भी मेरे जैसी ही पर बीच मे एक तारो की दीवार है जिसे हम सरहद कहते है ना इस पर कुछ फरक है ना उस पार कुछ फरक है बस ये बाद हमे जुदा कर देती है अक्सर पेट्रॉल्लिंग टाइम पे उसे भी गुफ़्तुगू होती ही रहती है कभी ज़ुबान बात करती है कभी बंदूक कभी छुपकर जश्न भी साथ होता है तो कभी आँसू भी भा लेते है मैं कभी भी समझ नही पाता हू इंसानी भावनाओ को कभी तो अपनो को भी जुदा कर देती है और कभी दुश्मनो के लिए भी रुला देती है
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