RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल बेहद हसीन थी और अनिर और खुले विचारों के घर के होने की वजह से उसके कपड़े भी माडर्न टाइप के होते थे। हालाँकी वो ट्रेडीशनल और आधुनिक इंडियन कपड़े ही पहनती थी। लेकिन फिर भी उनमें थोड़ा खुलापन होता था। उसके लिए तो ये सब नार्मल बात थी, लेकिन लोगों को तो वो अप्सरा, परी, हूर नजर आती थी। नई नई शादी होने की वजह से उसका जिस्म और खिल गया था और फूल मेकप और ज्वेलरी वैसे ही आग लगा देता था।
दो-तीन महीने होते-होते शीतल की खूबसूरती की चर्चा पूरे महल्ले में होने लगी। शीतल जब भी घर से बाहर निकलती तो वो भीड़ में भी चमक जाती थी। लेकिन शीतल इन सब बातों से बेखबर रहती थी और मजे से अपनी जिंदगी जी रही थी।
विकास भी ऐसी खूबसूरत बीबी पाकर बहुत खुश था। हालाँकि विकास ने उससे कहा था की जब तुम मार्केट जाती हो तो सब तुम्हें ही घूरते रहते हैं तो शीतल का जवाब था की ये तो बचपन से हो रहा है मेरे साथ। इसमें मैं क्या कर सकती हूँ? विकास का मन हआ की उसे बाले की ऐसे कपड़े यहाँ मत पहनो, लेकिन कहीं उसपे मीन माइंडेड होने का ठप्पा ना लग जाए इस डर से वो कुछ बोल नहीं पाया।
वसीम खान यहाँ अकेला रहता था। उसके घर में कोई नहीं था। उसकी बीवी और बच्चे की एक आक्सिडेंट में मौत हो चुकी थी। उसकी एक जूते की दुकान थी और वो सुबह 9:00 बजे अपनी दुकान पे चला जाता था और दोपहर में एक बजे आता था। दो घंटे तक वो आराम करता और फिर 3:00 बजे चला जाता था। फिर वो रात में 8:00 बजे आता था। उसका रोज का यही नियम था। ।
विकास भी सुबह 9:00 बजे बैंक चला जाता था और फिर सीधे शाम में 6:00 बजे घर आता था। दोनों की जिंदगी बड़े प्यार और मजे से कट रही थी। दोनों फिर से एक सप्ताह के लिए बाहर से घूम आए थे। विकास और शीतल दोनों में से कोई भी अभी बच्चा नहीं चाहता था, इसलिए शीतल 6 महीने से प्रेगनेंसी रोकने वाली गाली खाती थी। दोनों की मर्जी अभी खूब मस्ती करने की थी। शीतल को यहाँ आए तीन महीने हो चुके थे और उन लोगों के जीवन का सफर मजे से काट रहा था।
शीतल अपने कपड़े को छत पे सूखने देती थी। वसीम खान जिस माले में रहता था उसके सामने आधा छत खाली थी और कपड़े सूखने के लिए वही जगह थी। आज जब शीतल अपने कपड़े लेकर अपने रूम में आई और उसे समंटने लगी तो उसे अपनी पैंटी कुछ गंदी सी लगी। उसे कुछ खास समझ में नहीं आया। शीतल ने इग्नोर कर दिया। उसे लगा की शायद ठीक से साफ नहीं हआ होगा।
अगले दिन भी यही हआ की उसकी पैंटी चूत के पास वाले हिस्से में काफी गंदी जैसी हो गई थी। जब उसने गौर से अपनी पैटी को देखा तो उसे लगा की कोई लिक्विड जैसी चीज पेंटी में गिरी है जो सूखकर इतना टाइट हो ईहै। इधर वा विकास के साथ सेक्स भी नहीं की थी तो फिर ये क्या है? उसे कुछ समझ में नहीं आया। शीतल की पैंटी भी मैंहगी और डिजाइनर थी। अगले दिन नहाने के बाद पॅटी को अच्छे से साफ करके सूखने दी। अगले दिन उसकी पैंटी तो ठीक थी लौकन उसकी ब्रा टाइट जैसी थी। शीतल को समझ में नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है?
आज शीतल जा डिजाइनर पैंटी ब्रा पहनी थी वो बिल्कुल नई और फुलली ट्रांसपेरेंट थी। अगले दिन जब शीतल छत से कपड़े उतारने गई तो उसकी गुलाबी ट्रांसपेरेंट पैंटी चूत के एरिया में पूरी तरह से टाइट थी। शीतल जब गौर से देखी तो उसे किसी लिक्विड का दाग उसमें नजर आया। नई पैटी जिसे वो अच्छे से धोई थी, दाग होने का सवाल ही नहीं था।
शीतल उसे अच्छे से छूकर देखने लगी और फिर अपनी नाक के पास ले गई। एक अजीब सी गंध थी जो शीतल को बहुत अच्छी लगी। शीतल फिर से उसे सूंघने लगी, और पूरी तरह से उस गध को अपने सीने में भरने लगी। दो-चार बार सूंघने पर भी उसका मन नहीं भरा तो वा फिर अपनी पेंटी को चाटकर भी देखी। उसे बहुत अच्छा लगा लेकिन वो कुछ समझ नहीं पाई। शीतल के दिमाग में बस वही खुश्बू और वही टेस्ट बसी थी।
अगले दिन शीतल थोड़ा जल्दी कपड़े को छत से ले आई और नीचें लाते ही वो अपनी पैंटी देखने लगी। देखी तो पैटी कछ-कुछ गीली ही थी। आज भी उसमें लिक्विड गिरा हुआ था जो अभी पूरी तरह सूखा नहीं था। शीतल अपनी पैंटी को सूंघने लगी और आज उसे कल से भी ज्यादा अच्छा लगा। सूंघते-सूंघते ही उस अजीब सा नशा जैसा छाने लगा और वो अपनी पैटी पे लगे लिक्विड को चाटने लगी।
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