RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
वो आईने में खुद को निहार रही थी। उसकी पैंटी पूरी तरह गीली हो चुकी थी।
शीतल मन ही मन सोच रही थी- "लीजिए वसीम चाचा, अब तो मेरे मंगलसूत्र और माँग में भी आपका वीर्य लग गया। अब तो एक तरह से आप भी मेरे पति हुए। अब तो मेरे पूरे जिश्म में आपका भी हक है और मैं चाहकर भी आपको मजा नहीं कर सकती। अब तो मुझसे शर्माना छोड़ दीजिए और खुलकर जी लीजिये अपनी जिंदगी." शीतल मुश्कुराते और शांत हुए रूम से बाहर आ गई।
आज वो पूजा नहीं की और किचन में जाकर चाय बनाने लगी। वो चाय लेकर पहले वसीम के कमरे में गई, जहाँ वसीम को सच में नींद आ गई थी। शीतल उसे सोता देखकर सोच रही थी- "अभी मझें नंगी नहाते देखें और वीर्य गिराए, तब तो बहुत मजा आ रहा होगा जनाब को। लेकिन अभी सोने की आक्टिंग कर रहे हैं..."
उसका मन हुआ की वसीम के साथ कुछ करें लेकिन फिर वो सोची की अभी सही वक़्त नहीं है। विकास घर में हैं, और में कुछ बोलें अगर तो मैं कुछ बोल नहीं पाऊँगी। दोपहर का वक़्त तो अपना है आज। उसने फार्मल आवाज में कहा- "क्तीम चाचा गुड मानिंग, उठिए चाय हाजिर है, उठिए उठिए..."
वसीम को बहुत मजा आया। बरसों से किसी ने उसे इस तरह नहीं जगाया था। वो आँखें खोलकर शीतल को देखा तो मेकप के बाद शीतल और हसीन लग रही थी। वो शीतल को देखता ही रह गया की शीतल शर्मा गई।
वसीम ने नजरें नीची कर ली और उठकर बैठ गया।
शीतल उस रूम से निकालकर अपने रूम में गई और विकास को भी जगाई। दोनों जाग कर बाहर आ गयें और सोफे में बैठ गये। शीतल दोनों को मानिंग ताय सर्व की।
वसीम के कप उठाते ही वसीम का हाथ थोड़ा हिला।
शीतल तुरंत ताना मारी- "सम्हल कर वसीम चाचा, जमीन पे मत गिराइए."
वसीम समझ गया की रांड़ क्या बोल रही है। लेकिन वो सिर झकाए चाय पीने लगा।
नाश्ता करके विकास और वसीम अपने-अपने कम पे चले गये और शीतल सोचने लगी की क्या किया जाए? अब वो और देर नहीं करना चाह रही थी। उसने सोच लिया की आज दोपहर में उसे वसीम से बात कर ही लेनी हैं, क्याकी कल सनडे है। कल विकास घर में रहेंगे तो फिर बात नहीं हो पाएगी। अब उसकी हिम्मत बहुत बढ़ गई थी। शीतल दोपहर का इंतजार करने लगी। दोपहर में जब वसीम घर आया, तब तक शीतल मन बना चुकी थी।
वसीम घर आया तो उसने आज भी शीतल का दरवाजा अंदर से ही बंद देखा। उसे आज बुरा नहीं लगा क्योंकी उमें 100 फीसदी यकीन था की आज शीतल उसके पास जरर आएगी। वो अपने रूम में गया और लंगी गंजी पहनकर बाहर आ गया।
शीतल टाइम का अंदाजा लगाकर थोड़ी देर बाद छत पे चली आई। वसीम अभी शीतल की पैटी को हाथ में लिया ही था की शीतल वहाँ पहुँच गई।
शीतल- "वसीम चाचा ये क्या कर रहे हैं आप?"
वसीम ने ऐसी आक्टिंग की जैसे हड़बड़ा गया हो- "कुछ नहीं। ये तो बस नीचे गिर गया था तो उठा दे रहा था..."
शीतल वसीम की हड़बड़ाहट देखकर मुश्कुरा दी। वो नहीं चाहती थी की उसके देख लेने में वसीम अपराधी महसूस करें। मुश्कुराती हुई शीतल बोली- "मुझे सब पता है की रोज आप मेरी पैंटी के साथ क्या करते हैं? मुझे में भी पता है की आज सुबह आपने क्या किया है?"
वसीम चुपचाप नजरें झकाए खड़ा था। वो ये सब भाषण के लिए तैयार था। तभी तो वो अपनी चाल को और आगे बढ़ाता और शीतल उसमें वसीम की पालतू कुतिया बनने के लिए अपने आपको फंसाती।
शीतल वसीम के करीब आते हए बड़े प्यार से और समझाने के लहजे में बोली "मुझे पता है वसीम चाचा की आप बहुत अरसे से अकेले हैं और मैंने यहाँ आकर आपकी साई तमन्नाओं को जगा दिया है। मुझे आपके बारे में कुछ पता नहीं था इसलिए मैं जैसे बहती थी वैसे ही हमेशा रहती रही। मुझे पता है की हर मर्द के जिम की अपनी जरूरतें होती हैं, भला में क्या करती? मेरी क्या गलती की मैं खूबसूरत हैं? मैं बचपन में ऐसे ही कपड़े पहनती आई है। लेकिन जब से मुझे आपकी हालत पता चली है में खुद को आपके सामने लाने से बचती रही..."
वसीम फिर भी चुप रहा।
|