RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल वसीम के करीब आते हए बड़े प्यार से और समझाने के लहजे में बोली "मुझे पता है वसीम चाचा की आप बहुत अरसे से अकेले हैं और मैंने यहाँ आकर आपकी साई तमन्नाओं को जगा दिया है। मुझे आपके बारे में कुछ पता नहीं था इसलिए मैं जैसे बहती थी वैसे ही हमेशा रहती रही। मुझे पता है की हर मर्द के जिम की अपनी जरूरतें होती हैं, भला में क्या करती? मेरी क्या गलती की मैं खूबसूरत हैं? मैं बचपन में ऐसे ही कपड़े पहनती आई है। लेकिन जब से मुझे आपकी हालत पता चली है में खुद को आपके सामने लाने से बचती रही..."
वसीम फिर भी चुप रहा।
शीतल फिर आगे बोली- "फिर मैंने सोचा की इस तरह दूर रहकर मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती। एकलौता उपाय था की हम इस घर में चले जाते, और इसके लिए मैंने विकास से बात भी की। लेकिन उसने कहा की तुरंत दूसरा घर कहाँ मिलेगा और उसने बात को टाल दिया। अब में संभव नहीं था की यहाँ बहते हुए आपसे दूर रह पाऊँ। कपड़े मुझे छत पे ही देने होते सूखने के लिय। किसी ना किसी तरह आपकी नजर मुझसे पड़ती ही, आप मेरी आवाज भी सुनते ही। तब सिर्फ एक उपाय था की फिर आपस छपने से आपकी मदद नहीं होगी, बल्कि खुलकर आपके सामने आना होगा.'
शीतल सांस लेने के लिए रुकी और फिर बोलना चालू की- "में कई बार सोची की आपका बोलं, आपकी मदद करें लेकिन आप मेरी तरफ देखते ही नहीं है। में आपको कितना हिंट दी, कितनी तरह से कोशिश की की आप मुझे देखें, मेरे से बात करें। लेकिन अकेले में तो आप बहुत कुछ कर लेते हैं, लेकिन सामने तो नजर भी नहीं उठाते। तब जाकर फाइनली मैंने सोचा की आज आपसे खुलकर बातें कर ही ..."
अब वसीम के बोलने की बारी थी- "ता क्या करेंग में बोलो। सालों में में अपनी बौरान जिंदगी को अपनी तन्हाई के साथ गुजर रहा था। सब कुछ ठीक चल रहा था की अचानक तुम सूखी धरती में पानी की फुहार बनकर यहाँ आ जाती हो। तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की एक ऐसे मर्द के सामने आ जाती है जो कई सालों से अकेला है, तो उसके अरमान नहीं जागेंगे क्या? अरे तुम तो ऐसी हो की कोई भी तुम्हें देखकर खुद को ना रोक पाए, लेकिन मुझे खुद को रोकना पड़ा। देखो खुद को। तुम हर अप्सरा का मत देने वाली हसीना हो और मैं बदसूरत। तुम दूध से भी गारी हो और मैं बिल्कुल सांबला। तुम्हारी छरहरी काया किसी मुर्दे में भी जान डाल सकती है और में मोटा और तोंद निकला हुआ। तुम अपनी कमसिन उम्र में हो और में बुढ़ापे की ओर जाता हुआ एक हारा हुआ इंसान। तुम किसी और की अमानत हो और मैं किसी का घर नहीं उजाड़ना चाहता। तो मुझे यही रास्ता नजर आया की मैं तुमसे दूर रहने की कोशिश करें, और फिर भी खुद को रोक नहीं पाया तो अकेले में ऐसा किया। मझे माफ कर दो। आगे से ऐसा कुछ नहीं करेंगा में, चाहे कुछ भी हो जाए..."
वसीम अपनी बात खतम करने के बाद अपने रूम की तरफ चल पड़ा, जैसे वो अपनी बात पे अब कायम रहना चाहता है। वो इंतजार कर रहा था की शीतल पीछे से आकर उसे पकड़ लेगी। शीतल वसीम को पीट से पकड़ी तो नहीं लेकिन उसके सामने जरूर आ गई।
शीतल बोली- "ता आपने मुझसे कभी बात क्यों नहीं की? मुझसे बात करते। हँसी मजाक करते तो शायद आप राहत महसूस करते। मैंने तो कितनी बार कोशिश की। मुझे आपके दर्द का अंदाजा है। तभी तो जब आपनें बात नहीं की तो मैं ही आ गई बेशर्म बनकर आपसे बात करने। वसीम चाचा, मैं आपकी मदद करना चाहती हैं। अब मैं क्या करने की मैं इतनी खूबसूरत हैं?"
वसीम बोला- "और चिंगारी को हवा दूं। देखता भी नहीं हैं टब भि तो इतना मुश्किल है, अगर बात करता या हँसी मजक करता तो शायद तुम्हें पकड़ ही लेता... वसीम अब अपने घर के अंदर आ गया। बाहर बात करने का काम हो चुका था।
शीतल भी वसीम के पीछे-पीछे उसके रूम में आ गई। आज वो रुकना नहीं चाहती थी।
शीतल आज वो अधूरी बात नहीं छोड़ना चाहती थी। बहुत हिम्मत जुटाकर वो आई थी और उसने फैसला किया हुआ था की अब वसीम का तड़पने नहीं देना है। शीतल वसीम के सामने आती हई बाली- "ता पकड़ क्यों नहीं लिए। मैं तो आपको कितनी हिंट दी, कितने इशारे दिए। पकड़ लीजिए ना, उतार लीजिए अपने अरमान लेकिन इतने परेशान नहीं रहिए. ऐसा बोलते हुए शीतल वसीम के गले लग गई।
शीतल की चूचियां वसीम के सीने से दबने लगी, कहा- "वसीम चाचा में आपका तड़पता नहीं देख सकती..."
वसीम का जी चाहा की वो भी शीतल को कस के अपनी बाहों में दबा ले। लेकिन अभी खेल पूरा नहीं हुआ था। वसीम पीछे हटता हुआ बोला- "नहीं, ये मैं नहीं कर सकता। मैं विकास के साथ चीटिंग नहीं कर सकता की उसकी गैर हिजिरी में मैंने उसकी हसीन बीवी के साथ जिस्मानी संबंध बनाए। नहीं शीतल मुझसे ये गुनाह मत करवाओ..."
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