RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल वसीम की छाती को सहलाते हुये बोली- "क्या हुआ, आप उदास बन्यों हैं? अब भी आप उदास ही रहेंगे क्या ?"
वसीम. "नहीं नहीं। उदास कहाँ हैं? जिसकी बाहों में तुम जैसी हसीना हो वो भला क्यों उदास रहेगा.."
शीतल- "मैं बोली ना... जब भी आपका मन करेंगा मैं आपके लिए हाजिर रहूंगी। अब आप इतना मत सोचिए। अगर अब भी आप इतने उदास रहेंगे तो फिर मेरे होने का क्या फायदा? मेरा ये जिश्म आपका है, सिर्फ आज की रात के लिए नहीं, हर रात के लिए जब भी आपका मन हो उस वक़्त के लिए." कहकर शीतल वसीम से
और चिपक गई और उसकी छाती सहलाती हई गर्दन पे किस करने लगी।
वसीम व्यंग करने के अंदाज ने इस दिया।
शीतल को ये बात बहत नागवार लगी। वो उठकर बैठ गई और बोली- "वसीम में सच कह रही हैं। मैंने आपसे शादी की है। आपसे अपनी माँग में सिंदूर भरवाई हैं। आपने मुझे मंगलसूत्र पहनाया है। मैं कसम खाकर कहती हैं की में पूरी तरह से आपकी हैं। जैसे किसी का अपनी बीवी पे हक होता है उतना ही हक हैं आपका मेरे ऊपर, मेरे जिएम के ऊपर..."
वसीम फिर व्यंग से हँसता हुआ बोला- "और विकास क्या है? कल जब वो आ जाएगा तब?"
शीतल जवाब देने में एक पल भी नहीं लगाई. "विकास ने मुझे पमिशन दी है आपके साथ कुछ भी करने की।
और ये पमिशन एक रात की नहीं है। और फिर भी अगर विकास मना करता है तो ये मेरा टेंशन है। जो बादा में आपसे की हैं वो पक्का है। मेरा जिश्म आपको समर्पित है वसीम। आप उदास मत रहिए प्लीज.."
वसीम कुछ बोला नहीं और अपनी बाहों को फैला दिया। वो जानता था की शीतल सच कह रही है, पं तो पूरी तरह अब मेरी है. अब बस विकास शर्मा को पूरी तरह लाइन में लाना है। शीतल वसीम की बाहों में जाती हुई उसके जिस्म से चिपक कर लेट गई। उसे लगा की अब वसीम उसे चोदेगा अपने मसल लण्ड से। लेकिन वसीम बस उसकी बौह और पीठ को सहलाता रहा।
शीतल की चूत गीली हो रही थी। वो एक बार और चुदवाना चाहती थी वसीम से। वसीम की एक चुदाई में उसकी सारी प्यास मिटा दी थी। सेक्स में इतना मजा उसे आज तक नहीं आया था। वो एक और बार उस विशाल लण्ड को अपनी चूत की गहराइयों की मैंच कराना चाहती थी। सही बात है की पता नहीं कल क्या हो? आज की रात तो उसकी है।
शीतल वसीम की गर्दन में किस करने लगी और अपनी चचियों को वसीम के सीने पे रगड़ने लगी। वसीम शीतल की हालत देखकर खुद में गर्व कर रहा था।
शीतल बोलना चाह रही थी की- "क्सीम चोदिए मुझे, मेरी चूत आपके लण्ड के लिए तरस रही है... लेकिन बैचारी शर्म और संस्कार की बजह से नहीं बोल पाई और वसीम से चिपककर लेटी रही। दिन भर की भाग-दौड़ और ऐसी कमरतोड़ चदाईकी वजह से शीतल जल्द ही सो गई।
वसीम जागी हालत में तो खुद पे काबू पा लिया था। लेकिन उसे सोए एक घंटा भी नहीं हुआ था की वो शीतल की तरफ करवट लेकर घूम गया और शीतल को अपनी बाहों में भरता हुआ उसके जिस्म को चूमने लगा, सहलाने लगा।
शीतल भी नींद में ही थी, लेकिन वो भी वसीम का साथ देने लगी। वसीम शीतल के ऊपर आ गया और उसके होंठ को पागलों की तरह चूस रहा था और पूरी ताकत से दोनों चूचियों को मसल रहा था। शीतल को दर्द होने लगा और उसकी नींद खुल गई। वो वसीम को रोकने के लिए उसका हाथ पकड़ी, लेकिन वो भला क्या रोक पाती वसीम को। वो फिर से पूरी ताकत लगाकर वसीम को रोकना चाह रही थी।
लेकिन फिर उसे ख्याल आया की- "नहीं। मुझं वसीम को रोकना नहीं चाहिए। मुझे वसीम को संतुष्ट करना है, तो मुझे दर्द तो सहना ही होगा। आहह... वसीम, करिए जो करना चाहते हैं आप, मैं आपके लिए कुछ भी करेंगगी, हर दर्द महंगी। मसल डालिए मेरे जिस्म को, पूरी तरह हासिल कर लीजिए मुझे, मान लीजिए की ये जिश्म पूरी तरह आपको समर्पित है वसीम। वो अपने जिश्म को दीला छोड़ दी और दर्द सहने लगी। वो तो चाहती ही थी की वसीम उसके कोमल मुलायम जिस्म का राउंड डाले, मसल डालें। वसीम के दिए दर्द का सहकर ही तो वो वसीम को रिलैंक्स कर सकती थी।
वसीम शीतल के होंठ पे, गाल पे, गर्दन में दाँत से काटने लगा और निपलों, चूचियों को तो वो बेरहमी से मसल रहा था। निपल को दो उंगली में पकड़कर मसल रहा था वो। होठ को चूमते हए वो दाँत से काट रहा था।
शीतल अपने तकिया को मदही में भरकर भींच रही थी और दर्द सहकर अपने वसीम का साथ दे रही थी। जब दर्द सहने की सीमा से ज्यादा जा रहा था तो उसके मुँह से आह्ह... उहह... की आवाज जोर से निकल रही थी। शीतल का बदन कांप रहा था।
वसीम शीतल के जिस्म को चूमता हुआ श्रोड़ा नीचे आया और निपल को चूसने लगा और पेट, गाण्ड, जांघों को महलाता हुआ चूत में उंगली करने लगा। चूत गीली तो थी ही फिर भी एक झटके में दो उंगली चूत में घुसते ही शीतल चिहक उठी। उसका जिस्म अपने आप थोड़ा ऊपर आने लगा, लेकिन वो वसीम के पंजे में थी। उंगली सरसरती हुई चूत में घुस गई और वसीम चूचियों को पूरी तरह मुँह में भरकर चूसने लगा। अब उंगली आसानी से अंदर-बाहर हो रही थी। वसीम पूरी चूचियों और निपलों को भी दाँत से काट रहा था।
शीतल की गर्दन, छाती, चूचियों, निपलों सब जगह वसीम के दौत काटने का निशान बन रहा था। शीतल वसीम के दिए हर दर्द को सहती जा रही थी। उसे बहुत मजा आ रहा था वसीम का साथ देने में।
वसीम अपनी हवस में पागल हो रहा था तो शीतल अपने वसीम के दिए दर्द को सहकर। शीतल को मजा आ रहा था दर्द सहकर। वसीम शीतल को नोच रहा था, खा रहा था। उसका खुद पे कोई काबू नहीं था। हालौकी इसमें उसकी कोई गलती थी भी नहीं। जब उसके बाज़ में शीतल नंगी सोएगी तो भला वो क्या करता?
वसीम फिर से ऊपर होकर शीतल के होंठ चूसने लगा। उसने अपने लण्ड को शीतल की चूत पे सटाया और इससे पहले की शीतल पूरी तरह पैर भी फैला पाती, एक झटके में उसका लण्ड शीतल की चूत की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर आ गया।
शीतल इतनी जल्दी इसके लिए तैयार नहीं थी। उसे लगा था की पहली बार की तरह वसीम रास्ता बनाएगा। लेकिन वो भूल गई की उस वक़्त वसीम जगा हुआ था और अभी वो नींद में अपनी हवस पूरी कर रहा था। लण्ड ने खुद रास्ता टूट लिया था और अंदर जा चुका था। कप्तीम धक्का लगाता गया और लण्ड पूी गहराई तक पहुँचकर चाट करने लगा। वसीम फिर से शीतल के जिश्म पे पूरा लेट गया था और बेरहमी से चोदता हुआ उसके जिश्म को नोचने खसोटने लगा। शीतल भी गरमा गई थी। उसने अपने पैरों को पा मार कर फैला लिया था तो लण्ड पूरा अंदर जा रहा था।
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