RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल- "आअहह... वसीम चाँदिए। फाड़ डालिए मेरी चूत को। अहह ... खा जाइए मझे, नोच लीजिए मेरी चूचियाँ को वसीम्मह आह्ह ... आह्ह... चोदिए वसीम आहह... जैसे मन करें बैंसे चोदिए आह्ह.. में रोगी नहीं आपको। ये जिश्म आपका है, सारे गुबार को निकल लीजिए आह्ह... फाड़ डालिए मेरी चूत को आहह.. वसीम..."
वसीम और जोर-जोर से धक्कर लगाने लगा- "हाँ... मैगी रंडी, फाड़ डालूँगा तेरी चूत को, बहुत गर्मी है तेरी चूत में, आज पता चलेगा की चुदाई क्या होती है? चोद चोद कर फाड़ डालूँगा तेरी चूत को मेरी रांड़..."
शीतल की चूत पानी छोड़ दी थी और वो दोनों हाथ फैलाकर जिस्म को दीला छोड़ दी थी। उसकी चूत छिलने लगी थी। वो चाह रही थी की वसीम अब उतार जाए उसके ऊपर से, लेकिन अभी वो रुकने वाला नहीं था। बमीम उसी तरह धक्का लगाता हुआ चोदता जा रहा था और होठ, गाल, गर्दन, कंधे, चूचियों को निपल पे दाँत लगाता हुआ काटता जा रहा था।
वसीम- "क्या हुआ रंडी, निकल गई गर्मी, उतर गया चुदाई का भूत, बुझ गई चूत की आग? हाहाहा... मैंने कहा
था ना की आज पता चलेगा की चुदाई क्या होती है?
शीतल फिर से गरमा गई थी- “आहह... हाँ मेरे राजा, मेरी चूत की गर्मी निकल गई, लेकिन आप और चोदिए अपनी मंडी को, जितना मन करे उतना चादिए, आपकी रंडी आपको कभी रोकेगी नहीं। मेरी चूत का रास्ता खुला है आपके लिए और चोदिए वसीम आहह... और चोदिए."
वसीम भी फुल स्पीड में चोदता रहा और फिर शीतल के ऊपर पूरी तरह से लेटकर लण्ड को पूरा अंदर डाल दिया
और शीतल को कस के अपनी बाहों में कसता चला गया। वसीम के होंठों में शीतल के होंठ को जकड़ लिया और चूत को अपने वीर्य से भरने लगा। शीतल भी वीर्य की गर्मी पाकर दबारा झड़ गई। दोनों पशीने से लथपथ थे
और हाँफ रहे थे। बीर्य की आखिरी बंद एक बार फिर से शीतल की चूत में गिराकर वसीम बगल में लटक गया और निढाल होकर सो गया।
शीतल की चूत छिल गई थी। उसका रोम-राम दर्द में डूब गया था। लेकिन वो संतुष्ट थी। पहली इसलिए की वो वसीम का साथ दे पाई और दूसरी इसलिए की इस चुदाई ने उसकी प्यास मिटा दी थी। वो उठकर बाथरूम चली गई। पेशाब करते हुए फिर से उसकी चूत में जलन हुई गाढ़ा सफेद लिक्विड उसकी चूत से बहनें लगा। वो अपनी चूत को ठंडे पानी से धोने लगी, लेकिन उसका दर्द कम नहीं हुआ। वो किचन में आकर फ्रज से बर्फ निकाली और चूत पे रगड़ने लगी। वो आईने में अपने जिश्म को, उसपर लगे निशान को देखने लगी। अब उसे अपने जिश्म पे जलन महसूस हो रही थी। चूचियों पे दो जगह, गर्दन में एक जगह, और होंठ से तो थोड़ा सा और जोर लगाने में जैसे खून ही निकल जाता। वो इन जगहों पे भी बर्फ लगाने लगी।
शीतल- ओह्ह... वसीम, क्या मस्त चुदाई करते हैं आप, 50-55 साल की उम्र में ये हालत है, काश की मैं आपसे आपकी जवानी में मिली होती और उस वक्त आपसे चुदवाई होती। उफफ्फ...जान निकल दी आपने। आज तक में एक रात में दो बार नहीं चुदी थी। मेरी चूत छिल गई है, 6 बार पानी गिरा चुकी हैं, फिर भी मैं आपसे अभी दो बार और चुदवाना चाहती हैं। आहह... वसीम, मैं चाहती हूँ की मेरी चूत में आपका लण्ड हमेशा घुसा रहे और आप मुझे चोदते ही रहे। मैं आपसे जिंदगी भर चुदवाना चाहती हूँ राज। मेरी चूत को और काई शांत नहीं कर सकता अब। आपने मुझे अपना दीवाना बना लिया है। मैं खुशकिस्मत है की आप मुझे मिले। मुझे तो पता हो नहीं था की सेक्स इतना मजेदार होता है। आप नहीं मिलतं तो मैं तो इस एहसास को समझ ही नहीं पाती, महसूस ही नहीं कर पाती। मुझे अब आपसे हो चुदवाना है वसीम। मेरी चूत को अब आपका ही लण्ड चाहिए। मुझे अब जो भी करना पड़े इसके लिए..."
शीतल सोफा में बैठ गई थी, बर्फ को अपनी चूत के अंदर डाल ली थी। अब उसे थाहा ठीक लग रहा था। वो गम में आई तो क्सीम को नंगा सोते देखी। वो गौर से वसीम को सोते देखी, तो उसे हँसी भी आ गई। काला, मोटा, पेट निकला हुआ और जांघों के बीच झलता हुआ काला नाग। उसे वसीम पे प्यार उम्रड़ आया। वो आकर वसीम के पैरों में पैर रखकर, अपनी चूचियों को वसीम के जिस्म में दबाते हए उससे चिपक कर सो गई। वो सोचने लगी की कितना मजा आए की अभी वसीम फिर से जागकर उसे तीसरी बार भी चोद ही दें। मैं तो मर ही जाऊँगी। भले नेरी जान निकल जाए लेकिन मैं उन्हें रागी नहीं। शीतल वसीम की बाहों में सुख की नींद सो गई।
शीतल के सोते वक़्त लगभग 1:30 बज रहा था। दिन भर की भाग-दौड़ और वसीम के घोड़े जैसे लण्ड से दो बार पलंगतोड़ चुदाई के कारण शीतल बेसुध होकर सो रही थी। लभाग 3:30 बजे वो फिर से अपने जिस्म पे हाथ घूमता हुआ महसूस की। वसीम शीतल के जिश्म पे चिपका जा रहा था और उसे अपने बाहों में भरता जा रहा था। वसीम का हाथ शीतल की चूचियों पर आया और पूरी ताकत से मसल दिया।
शीतल- “आहह... माँ..' बोलती हुई शीतल की नींद खुल गई।
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