RE: Desi Chudai Kahani मकसद
वाशबेसिन के ऊपर लगे शीशे में से मुझे हबीब बकरे का प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा था । वो मेरे पीछे मेरे से मुश्किल से चार फुट परे खड़ा था । चेहरे पर आत्मविश्वास के भाव लिए वो बड़ी बेबाकी से मेरी तरफ देख रहा था ।
एकाएक साबुन की टिकिया मैंने अपने हाथ से फिसल जाने दी ।
उसकी निगाह स्वयंमेव ही फर्श पर परे जा गिरे साबुन की ओर उठ गई ।
मैं तनिक घूमा, एक कदम आगे बढ़ा और मैंने झुककर साबुन उठाया । फिर मैंने उठकर सीधा होना शुरू किया लेकिन सीधा होने से पहले ही मैंने सिर झुकाकर अपना सिर सांड की तरह उसके पेट से टकरा दिया । उसके मुंह से गैस निकलते गुबारे जैसी आवाज निकली और वह दोहरा हो गया । साथ ही उसने फायर किया लेकिन गोली कहीं दीवार से जा टकराई । मैंने झुके-झुके ही ताबड़ तोड़ तीन-चार घूंसे उसके पेट में रसीद किए और फिर उसके दोबारा फायर कर पाने से पहले ही उसके हाथ से उसकी रिवॉल्वर नोंच ली ।
वो फर्श पर ढेर हो गया ।
तभी गलियारे में से दौड़ते कदमों की आवाज गूंजी । जरूर हामिद ने गोली चलने की आवाज सुन ली थी और अब वो उधर ही लपका चला आ रहा था । मैंने अपने जूते की एक भरपूर ठोकर हबीब बकरे की कनपटी पर जमाई और फिर उसके ऊपर से कूदकर दरवाजे पर पहुंचा ।
तभी बाहर से दरवाजे को धक्का दिया गया ।
दरवाजा भड़ाक से खुला और मुझे चौखट पर हामिद की झलक दिखाई दी ।
एक क्षण भी नष्ट किए विना मैंने रिवॉल्वर का रुख उसकी ओर किया और घोड़ा खींचना शुरू कर दिया ।
सारी रिवॉल्वर मैंने दरवाजे की दिशा में खाली कर दी । तब मैंने देखा कि हामिद गलियारे में दरवाजे के सामने धराशाई हुआ पड़ा था । डरते-डरते मैं उसके करीब पहुंचा । मैंने पांव की ठोकर से उसके चेहरे को, उसकी छाती को, उसकी पसलियों को टहोका । उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई । मेरी चलाई गोलियों में से पता नहीं कितनी उसे लगी थीं लेकिन निश्चय ही वो मर चुका था ।
मैंने खाली रिवॉल्वर परे फेंक दी और झुककर उसकी उंगलियों में से उसकी रिवॉल्वर निकाल ली ।
मैं फिर हबीब बकरे की ओर आकर्षित हुआ ।
वो बाथरूम के फर्श पर बेहोश पड़ा था और प्रत्यक्षत: उसके जल्दी होश में आ जाने के कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे थे । लेकिएन उसका जल्दी होश में आना जरूरी था । मैंने उससे कई सवाल पूछने थे और फिर एक लाश के साथ वहां बने रहने का भी मेरा कोई इरादा नहीं था ।
मैंने उसके मुंह पर पानी के छींटे मारने शुरू किए ।
कुछ क्षण वाद उसने कराहकर आंख खोली ।
“उठके खड़ा हो जा, पहलवान ।” मैं कर्कश स्वर में बोला ।
उसने दो-तीन बार आंखें मिचमिचाइं और हड़बड़ाकर उठ बैठा ।
चेतावानी के तौर पर मैंने रिवॉल्वर उसकी तरफ तान दी । उसके नेत्र फैले । उसने जोर से थूक निगली ।
“उठ !”
वो बड़ी मेहनत से उठके खड़ा हुआ ।
“फुसफुसा पहलवान निकला ।” मैं व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला, “दो करारे हाथों में ही बोल गया । भीतर से खोखला मालूम होता है ।”
निगाहों में कहर भरकर उसने मेरी तरफ देखा लेकिन मैं अब क्या डरता ! अब तो निगाहों से ज्यादा कहर बरपाने वाला आइटम युअर्स ट्रूली के हाथ में थी ।
तभी उसकी निगाह गलियारे के फर्श पर गड़ी । उसके पहले से फैले नेत्र और फैल गए ।
“मर गया ?” वह आतंकित भाव से वोला ।
“नहीं ।” मैं बोला, “सांस रोके पड़ा है । फेफड़ों को आराम दे रहा है । सांस लिए बिना जिन्दा रहने की मश्क कर रहा है ।”
“भैय्ये ! तेरी खैर नहीं ।”
“अभी तो अपनी खैर मना मोटे भैंसे ।”
“मैं तुझे बहुत बुरी मौत मारूंगा ।”
“क्या करेगा ! मुझे बकरे की तरह जिबह करेगा और खाल उधेड़कर उल्टा टांग देगा ! भूला तो नहीं होगा अभी अपना पुराना धन्धा !”
“पुराना धन्धा !”
“कल्लाल का ! हबीबुल्लाह खान बकरेवाला । उर्फ फुसफुस पहलवान ।”
वो चौंका ।
“तू... तू मुझे जानता है ?”
“तुझे क्या, मैं तेरे बाप को भी जानता हूं ।”
“मेरा बाप !”
“लेखराज मदान । तेरे से निपट लूं, फिर उसकी भी खबर लेता हूं जाकर ।”
अब वो साफ-साफ फिक्रमंद दिखाई देने लगा ।
“बाहर निकल ।” मैंने आदेश दिया ।
उसने हामिद की लाश को लांघकर बाहर गलियारे नें कदम रखा ।
“हामिद को” मैं बोला “खुद मारता तो लाश कहां ठिकाने लगाता ?”
“क... क्या?”
“वही जो मैं बोला । मरना तो इसने था ही । अब तेरा काम मेरे हाथों हो गया है । अब बोल लाश कहां ठिकाने लगाता ?”
“यहीं ।”
“क्या मतलब ?”
“ये मकान खाली है । हमारा इससे कोई वास्ता नहीं । हमने नकली चाबियों से इसके ताले खोलकर इसे जबरन कबजाया है । इसी काम के लिए ।”
“ओह !” मैं एक क्षण खामोश रहा और फिर बोला, “भीतर चल ।”
हम दोनों वापस बैडरूम में लौटे । वहां मैंने उसे पलंग पर धकेला और उसी नायलॉन की उसी डोरी से उसकी मुश्कें कस दीं जिससे कि उसने मेरी वह गत बनवाई थी । फिर मैं कुर्सी घसीटकर उसके सामने बैठ गया ।
“शुरू हो जा ।” मैंने आदेश दिया ।
“क... क्या शुरू हो जाऊं?” वो कठिन स्वर में बोला ।
“क्या कहानी है ?”
“क..क्या कहानी है?”
|