RE: Desi Chudai Kahani मकसद
Chapter 2
वातावरण में भोर का उजाला फैल रहा था जबकि मैंने अपने अपहरणकर्ताओं से झपटी एम्बेसडर बाराखम्बा रोड के उस होटल की लॉबी में ले जाकर रोकी, बकौल हबीब बकरा, जिसके पेंथाउस अपार्टमेंट में लेखराज मदान नाम का सुपर गैंगस्टर रहता था ।
भीतर पहुंचने पर मुझे मालूम हुआ कि तेरहवीं मंजिल पर स्थित उसके पेंथाउस तक एक लिफ्ट सीधी जाती थी जो कि उस वक्त मजबूती से बंद थी ।
“ये लिफ्ट” पूछने पर रिसेप्शन पर मौजूद क्लर्क ने मुझे बताया, “मदान साहब अपने अपार्टमेंट से एक बटन दबाते हैं तो खुलती है ।”
“ऐसा कब होता है ?” मैंने पूछा ।
“नौ बजे से पहले तो कभी नही होता ।”
“ऐसा क्यों ?”
“मदान साहब देर से सो के उठते हैं । वो नौ बजे से पहले डिस्टर्ब किया जाना पसन्द नहीं करते ।”
“रास्ता यही एक है ऊपर पहुंचने का ?”
“जी हां ।”
“लेकिन मेरी तो उनसे मुलाकात बहुत जरूरी है । बहुत ही जरूरी है । हकीकत ये है कि वो ही पसंद नहीं करेंगे कि मैं देर से उन्हें रिपोर्ट करूं ।”
“ऐसा है तो आप” उसने काउंटर पर पड़ा एक फोन मेरी तरफ सरका दिया, “उन्हें फोन कर लीजिए ।”
“गुड ।” मैंने रिसीवर उठाकर हाथ में लिया, “नम्बर बोलो ।”
“वो तो” क्लर्क मुस्कराया, “आपको मालूम होना चाहिए ।”
मैंनै हौले से रिसीवर वापस क्रेडल पर रख दिया ।
यानी कि राष्टषति भवन में दाखिला आसान था दादा लोगों की डेन में दाखिला मुश्किल था ।
नौ बजे लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था ।
नौ बजने में अभी तीन घंटे बाकी थे ।
मैं मोतीबाग जाकर हबीब बकरे से वहां का नम्बर उगलवा सकता था, आखिर उसने फोन पर मदान से बात की थी, लेकिन एक तो उसमें भी ढेर वक्त लगता और दूसरे मुझे फिर ऐसे घर में कदम डालने पड़ते जहां कि गोलियों से बिंधी एक लाश मौजूद थी ।
वक्तगुजारी के लिए मैंने अपने दोस्त मलकानी के पास जाने का फैसला किया जो कि करीब ही पहाड़गंज में एक साधारण सा होटल चलाता था ।
नौ बजे तक मैं वापस होटल की लॉबी में पहुंचा तो तब मुझे सीधे पेंथाउस जाने वाली लिफ्ट लॉबी में खड़ी मिली जिसमें सवार होने से मुझे किसी ने न रोका ।
सुपरफास्ट लिफ्ट पलक झपकते तेरहवीं मजिल पर पहुंच गई ।
मैं लिफ्ट से निकला तो वहां सामने मुझे एक ही दरवाजा दिखाई दिया जिसकी चौखट में कॉलबैल का पुश लगा हुआ था । मैंने पुश को दबाया और प्रतीक्षा करने लगा ।
कुछ क्षण बाद दरवाजे में एक झरोखा सा खुला और मुझे उसमें से दो हिरणी जैसी काली कजरारी मदभरी आंखें दिखाई दीं ।
“यस” साथ ही एक खनकता हुआ स्त्री स्वर सुनाई दिया ।
“मदान साहब से मिलना है ।” मैं बोला ।
“क्यों मिलना है ?”
“उनके लिए एक संदेशा है ।”
“किसका ?”
“हबीब बकरे का ।”
“किसने मिलना है ?”
“बंदे को सुधीर कोहली कहते हैं ।”
“वेट करो ।”
झरोखा बंद हो गया ।
मैं प्रतीक्षा करने लगा ।
दो मिनट बाद दरवाजा खुला ।
दरवाजे पर रेशमी गाउन में लिपटी हुई रेशम जैसी ही अनिद्य सुंदरी प्रकट हुई । उस पर एक निगाह पड़ते ही आपके खादिम की हालत बद हो गई और ओर फिर बद से बदतर हो गई । अगर वही औरत लेखराज मदान की बीवी थी तो हबीब बकरे ने गलत नहीं कहा था कि मैं उस पर एक निगाह डालूंगा और गश खा जाऊंगा, फिर पछाड़ खाकर उसके कदमों में गिरूंगा और इस फानी दुनिया से रुखसत फरमा जाऊंगा ।
मेरी पसंद की हर चीज उसमें थी, न सिर्फ थी, ढेरो में थी ।
|