RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मिस्टर कोहली, कभी नहीं में क्या कल शाम शामिल नहीं होती ?”
“मुलाकात हुई न सही लेकिन होने तो वाली थी ! कल शाम साढ़े आठ बजे !”
“कौन कहता है ?”
“अभी तो मैं ही कहता हूं ।”
“गलत कहते हो ।”
“कल शाम चार बजे आपकी उससे फोन पर बात नहीं हुई ?”
“नहीं हुई । मैं भला क्यों फोन करूंगा उसे ?”
“उसने आपको किया हो ?”
“नो । नेवर ।”
“आपकी उससे फोन पर कोई बात नहीं हुई ? आपने उसे फोन पर ये नहीं कहा कि अगर आपको उसके घर जाना पड़ा तो आप उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने जाएंगे ?”
“कहां बहक रहे हो, मिस्टर कोहली ! जब मैं कह रहा हूं कि...”
“आप ऐसे किसी वार्तालाप से इंकार करते है ?”
“हां । सरासर इंकार करता हूं ।”
“बहुत मुमकिन है, यही सवाल आपसे पुलिस भी पूछे ।”
“चाहे फौज पूछे । मेरा जवाब यही होगा ।”
“आपके पापा के पास एक बाइस कैलीबर की, हाथी दांत की मूठ वाली रिवॉल्वर है जिसका सीरियल नम्बर डी- 241436 है ।”
“होगी ।” वो लापरवाही से बोला, “मुझे फायरआर्म में कोई दिलचस्पी नहीं ।”
“हाल ही में आपने उस रिवॉल्वर को हैंडल किया था ?”
“शशिकांत को शूट करने के लिए ?” वो ठठाकर हंसा ।
“हां ।” मैं जिदभरे स्वर में बोला ।
“बड़े ढीठ हो, यार ! फिर वहीं पहुंच गए !”
“जवाब दीजिए ।”
“अरे, मैंने कभी डैडी के गन कलेक्शन की ओर झांका तक नहीं । मैंने आज तक अपने हाथ में कभी कोई रिवॉल्वर पकड़कर नहीं देखी । मैं कैलीबर नहीं समझता । मैं पिस्तौल और रिवॉल्वर में फर्क नहीं समझता । मैं ये भी आज ही सुन रहा हूं कि फायरआर्म पर सीरियल नम्बर भी होते हैं ।”
“आप...”
“देखो, मेरे भाई । शाम का वक्त है । सारा दिन ऑफिस के काम में माथा फोड़ने के बाद मैं तफरीह के लिए यहां आया हूं । इसीलिए तुम भी यहां आए होंगे । अब क्यों रंग मैं भंग डाल रहे हो सिरफिरी, बेमानी, वाहियात बात करके ? अब क्यों चाहते हो कि मुझे अफसोस होने लगे कि मैंने तुम्हारे से मिलने के लिए हामी भरी ?”
“नहीं चाहता । तकलीफ की माफी ।” मैं उठ खड़ा हुआ, “मैं इजाजत चाहता हूं ।”
“अरे बैठो । एनजाय करो । हमारे साथ ड्रिंक लो । लेकिन वो किस्सा छोड़ो ।”
“थैंक्यू । ड्रिंक्स फिर कभी । और अगर जरूरत पड़ी तो वो किस्सा भी फिर कभी ।”
“तौबा !” वो वितृष्णापूर्ण स्वर में बोला, “अभी भी फिर कभी ।”
“जनाब, ये एक काम है जो आपके डैडी ने मुझे सौंपा है । आप इससे तौबा कर सकते हैं, मैं नहीं कर सकता । मेरी रोजी-रोटी का सवाल है । बहरहाल नमस्ते ।”
मैं वहां से हट गया ।
मैं पुनीत खेतान की टेबल पर पहुंचा ।
“हल्लो !” मैं मुस्कराकर बोला ।
पुनीत खेतान ने सिर उठाकर मेरी तरफ देखा ।
“ओ, हल्लो वो बोला, “कमाल है, भई । चंद घंटों में तीन बार मुलाकात हो गई ।”
“पहली तो यूं ही हड़बड़ी भरी मुलाकात थी ।” मैं बोला, “तीसरी तो अभी होगी । जायकेदार मुलाकात तो दूसरी ही थी ।”
उसके नेत्र सिकुड़े ।
“बैठो ।” वह बोला ।
“थैंक्यू ।” मैं एक खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
मीट माई फ्रेंड । निशा ।” वह बोला फिर वह युवती की ओर घूमा, “डार्लिग, ये कोहली है, सुधीर कोहली । फेमस डिटेक्टिव है । प्राइवेट ।”
हम दोनों में हल्लो का आदान-प्रदान हुआ ।
“मैंने” फिर मैं बोला, “रंग में भंग तो नहीं डाला ?”
युवती के तेवरों से साफ लगा कि मैंने रंग में भंग ही डाला था लेकिन खेतान तत्काल चहककर बोला, “नहीं, नहीं । ये तो जा रही हैं ।”
युवती ने सकपकाकर उसकी तरफ देखा ।
“ठीक है न डार्लिंग !” वह बोला, “लेकिन आज जाना तुम्हें खुद पड़ेगा । ये लो” उसने पर्स निकाला और सौ-सौ के कुछ नोट जबरन उसकी मुट्ठी में ठूंसे, “टैक्सी कर लेना । और कल फोन करना ।”
युवती उठी और भुनभुनाती हुई वहां से रुखसत हो गई ।
“ड्रिंक मंगाते हैं,” वो बोला ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
उसने एक वेटर को इशारा किया । उसने वेटर को मुट्ठी मे एक पचास का नोट खोंसा और बोला, “ये तुम्हारी एडवांस टिप । एक मिनट में ड्रिंक लाओ ।”
वेटर जैसे जादू के जोर से वहां से गायब हुआ ।
“वो लड़की “ मैं बोला, “आपकी फ्रेंड । दिल्ली में नहीं रहती ?”
“दिल्ली में ही रहती है ।” वो बोला, “क्यों ?”
“टैक्सी के किराए की वजह से पूछा जो कि आपने उसे दिया । वो तो देहरादून पहुचने के लिये काफी था ।”
वो हो-हो करके हंसा ।
तभी वेटर ड्रिंक सर्व कर गया हम दोनों ने चियर्स बोला । “वहां, बाराखम्बा” फिर मैं सहज स्वर में बोला, “मदान के आने तक तो रुके ही होंगे आप ?”
“नहीं । मैं पहले चला गया था ।” उतने बड़ी संजीदा शक्ल बनाकर मेरी ओर देखा, “कोहली, कुछ उलटा-सीधा मत सोचना ।”
|