XXX Kahani मेरा सुहाना सफर-कुछ पुरानी यादें
08-04-2021, 12:17 PM,
#3
RE: XXX Kahani मेरा सुहाना सफर-कुछ पुरानी यादें
*मेनका के साथ*

यह कहानी नहीं अपनी आपबीती है.एक दिन एक झाड़ी के पीछे मैंने सोचा देखा कि एक आदमी एक औरत के ऊपर लेटा हुआ है और ऊपर से वो धक्के मार रहा है और औरत की नंगी टांगें हवा में ऊपर लहरा रही थीं.थोड़ी देर बाद वो आदमी अपनी धोती को ठीक करते हुए उठा और औरत की नंगी टांगों और जांघों पर हाथ फेरता रहा था.तभी वो औरत भी उठी और अपनी धोती ठीक करती हुई खड़ी हो गई. मैं भी वहाँ से खिसक गया, साइकिल उठा कर घर आ गया.
और यहाँ से शुरू होती है मेरी और मेनका की कहानी.
मेनका न सिर्फ सुन्दर थी बल्कि काफी चालाक भी थी. यह मैं आज महसूस कर रहा हूँ कि कैसे उसने मेरी मासूमियत का पूरा फायदा उठाया. अपने शरीर को मोहरा बना कर उसने सारे वह काम करने की कोशिश की जो वह कभी सोच भी नहीं सकती थी.उसने रोज़ मेरे साथ सोने का पूरा फायदा उठाया, वह रोज़ रात को मुझ से ऐसे काम करवाती थी जो उस समय मैं कभी सोच भी नहीं सकता था.शुरू में तो मुझको वह रोज़ रात को मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसती थी जिससे मुझको बहुत मज़ा आता था. उसने तभी मुझको उसकी चूत में ऊँगली डालना सिखाया और जब वह मेरा लंड चूसती तभी मैं उसकी चूत में ऊँगली डाल कर अंदर बाहर करता.यह काम मुझ को बहुत अछा लगता था.
लेकिन सबसे पहले उसने अपने स्तन को चूसना सिखाया था मुझे कि कैसे निप्पल को होंटों के बीच रख कर चूसना चाहिए जिसके करने से उसको मज़ा तो बहुत आता था लेकिन मुझ को भी कुछ कम नहीं आता था. उसके छोटे लेकिन ठोस उरोजों को चूसने का एक अपना ही आनन्द था.
यह काम कुछ दिन तो खूब चला लेकिन एक दिन मम्मी को शक हो गया और उन्होंने मेरी एक भी न सुनी और मेनका को मुझसे दूर कर दिया. वह अब सिर्फ घर की गाय भैंस से दूध निकालने का काम करने लगी.
उसकी जगह जो आई, वह ज्यादा मस्त नहीं थी लेकिन शारीरिक तौर से काफी भरी हुई थी, उसके चूतड़ काफी मोटे थे.अब उसके साथ नहाने का मज़ा ही नहीं था क्यूंकि वह मुझ को अंडरवियर पहने हुए ही नहलाती थी. एक दो बार उसके मम्मों को छूने की कोशिश की लेकिन उसने हाथ झटक दिया.रात को वह चटाई पर सोती थी और बड़ी गहरी नींद सोती थी.
एक रात वह जब सो रही थी तो मैंने उसकी धोती उठा कर उसकी चूत को देखा ही नहीं, उसके काले घने बालों के बीच में ऊँगली डाल कर देखा.उसकी चूत तो सूखी थी और बहुत ही बदबूदार थी लेकिन कोई रुकावट नहीं मिली जिसका मतलब तब तो नहीं मालूम था लेकिन अब मैं अच्छी तरह समझता हूँ, यानि वह कुंवारी नहीं थी.
फिर एक रात मेरी नींद खुली तो मैंने महसूस किया कि मोटी नौकरानी की धोती ऊपर उठी हुई थी और उसकी ऊँगली काफी तेज़ी से हिल रही थी चूत पर.तब तो मैं नहीं समझ पाया लेकिन अब जानता हूँ कि वह अपना पानी ऊँगली से छुठा रही थी. जैसे ही उसकी उंगली और तेज़ी से चली तो उसके मुख से अजीब अजीब सी आवाज़ें आने लगी. ऊँगली की तेज़ी बढ़ने के साथ ही उसके चूतड़ भी ऊपर उठने लगे और आखिर में एक जोर से ‘आआहा’ की आवाज़ के बाद उसका शरीर ढीला पड़ गया.मैं भी अपन आधे खड़े लंड के साथ खेलता रहा.
लेकिन मैं भी मेनका को नहीं भूला था, एक दिन जब वह दूध लेकर रसोई में जा रही थी तो मैंने उसको रोक लिया और इधर उधर देख कर जब कोई नहीं था तो मैंने उसको अपनी बाहों में भींच लिया और झट से उसके गाल पर चुम्मा कर दिया.वह गुस्सा हो गई लेकिन मैंने भी हाथ उसकी धोती के अंदर डाल दिया और उसकी चूत के काले बालों के बीच चूत के होठों पर रख दिया. उसके एक हाथ में दूध की बाल्टी थी और दूसरे में लोटा, वह बस हिल कर मेरा हाथ हटाने की कोशिश करती रही.यह ज़रूर बोलती रही- सतीश न करो, कोई देख लेगा.
मैंने भी झट उसकी चूत के अंदर ऊँगली दे डाली और उसके चूत के बालों को हल्का सा झटका दे कर हाथ निकाल लिया और बोला- अभी मेरे कमरे में आओ, ज़रूरी काम है.उसने हाँ में सर हिला दिया और रसोई में चली गई.
जब वो आई तो मैंने उसे बताया कि मैं उसको कितना मिस कर रहा हूँ.तो वह बोली- सतीश, तुम कुछ देते तो हो नहीं और मुफ्त में छेड़ छाड़ करते रहते हो?मैं बोला- अच्छा, क्या चाहिए तुमको?तो उसने कहा- पैसे नहीं हैं मेरी माँ के पास.
मैंने झट जेब से एक रूपया निकाल कर उसको दे दिया और कहा कि अगर वह रोज़ दोपहर को मेरे पास आयेगी तो मैं उसको रोज़ एक रूपया दूंगा.यह उन दिनों की बात है जब एक रूपए की बड़ी कीमत होती थी.
यहाँ यह बता दूँ मैं कि हमारी हवेली का कैसा नक्शा था.
हवेली सही मायनों में बहुत बड़ी थी और उसमें कम से कम 10 कमरे थे. एक बड़ा हाल कमरा और 7 कमरे नीचे थे, जिसमें मम्मी और पापा के पास तीन कमरे थे और बाकी गेस्ट रूम थे.क्यूंकि मैं अकेला ही बच्चा घर में था तो मेरा कमरा दूसरी मंजिल पर था, किसी भी नौकर को मेरी मर्ज़ी के बिना अंदर आने की इजाज़त नहीं थी. लड़कियाँ जो नौकरानियाँ थी, वे सब ऊपर तीसरी मंज़िल पर रहती थीं.
गर्मियों में हम सब दोपहर को थोड़ा सो जाते थे. घर में सिर्फ 5-6 पंखे लगे थे. मेरे कमरे का पंखा बहुत बड़ा था और बहुत ठंडी हवा देता था और सब काम वाली लड़कियाँ कोशिश करके मेरे कमरे में सोने को उत्सुक रहती थी.
मेनका दोपहर में मेरे पास आ गई और गर्मी से परेशान हो कर उसने अपने ब्लाउज के बटन खोल दिए और उसके उन्नत उरोज खुल गए. गरीबी के कारण गाँव की लड़कियाँ ब्रा नहीं पहनती थी.
आज मेरा मन था कि मेनका को पूरी नग्न देखूँ, मेरे कहने पर पहले तो वह नहीं मानी फिर एक रूपये के लालच से मान गई.दरवाज़ा पक्का बंद करवाने के बाद उसने पहले धोती उतार दी और फिर उसने ब्लाउज भी उतार दिया. सफ़ेद पेटीकोट में वह काफी सेक्सी लग रही थी लेकिन उस वक्त मुझको सेक्सी के मतलब नहीं मालूम थे, मैं उसके उरोजों के साथ खेलने लगा, दिल भर कर उनको चूमा और चूसा और उसकी चूत में भी खूब ऊँगली डाली.
फ़िर न जाने मेनका ने या फिर मैंने खुद ही उसकी चूत पर स्थित भगनासा ढून्ढ लिया.जब मैंने उसको रगड़ा उँगलियों के बीच तो मेनका धीरे धीरे चूतड़ हिलाने लगी.मैंने पूछा भी कि मज़ा आ रहा है क्या?तो वह बोली तो कुछ नहीं लेकिन मेरे हाथ को ज़ोर से अपनी जाँघों में दबाने-खोलने लगी और मैंने फिर महसूस किया उसका सारा जिस्म कांप रहा है और मेरे हाथ को उसकी गोल जांघों ने जकड़ रखा है.थोड़ी देर यही स्थिति रही फिर धीरे से मेरा हाथ जांघों से निकल आया लेकिन हाथ में एकदम सफ़ेद चिपचापा सा कुछ लगा था.
मैंने पूछा भी यह क्या है तो वह कुछ बोली नहीं, आँखें बंद किये लेटी रही.मैंने भी अपने हाथ के चिपचिपे पदार्थ को सूंघा तो बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी.
वह था पहला अवसर जब मैंने किसी औरत को छूटते हुए देखा और महसूस भी किया. मुझे नहीं मालूम था कि जीवन में ऐसे कई मौके आने वाले हैं जब मैं ऐसे दृश्य देखूँगा.
मैंने मेनका से पूछा- यह पानी कैसा है?तो वह बोली- यह हर औरत की चूत से निकलता है जब वह खूब मस्त होती है.तब उसने मुझको खूब चूमा और मेरे लबों को चूसा.मैंने उससे पूछा- क्या यह ही औरतों में बच्चे पैदा करता है?वह ज़ोर से हंसी और बोली- नहीं रे सतीश… जब तक आदमी का लंड हमारे इस छेद में नहीं जाता, कोई बच्चा नहीं पैदा हो सकता.
उस रात जब मोटी नौकरानी मेरे कमरे में सोई तो मैंने फैसला किया कि मैं भी उसको नंगी देखूंगा लेकिन यह कब और कैसे संभव होगा यह मैं तय नहीं कर पा रहा था.
जब वह खूब गहरी नींद में थी तो मैंने उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए और उसके उसके ब्रा लेस स्तनों को देखने लगा, फिर धीरे से मैंने उसके निप्पल को ऊँगली से गोल गोल दबाना शुरू किया और धीरे धीरे वो खड़े होने लगे और फिर मैंने एक ऊँगली उसकी चूत में डाल दी.
हल्के हल्के सिसकारी भरते हुए उसकी चूत ने गीला होना शुरू कर दिया और उसके चूतड़ ऊपर उठने लगे. मैंने उसका चूत वाला बटन मसलना शुरू कर दिया और वह भी तेज़ी से अपनी चूत मेरे हाथ पर रगड़ने लगी और फिर एकदम उसका सारा शरीर अकड़ गया और उसकी चूत में से पानी छूट पड़ा.मैंने जल्दी से हाथ चूत से निकाला और अपने बिस्तर में लेट गया और तब देखा कि उसने आँख खोली और इधर उधर देखा, खासतौर पर मेरे बेड को और जल्दी से अपना पेटीकोट नीचे कर दिया और फिर खर्राटे भरने लगी.
मेरा एक और तजुर्बा सफल हुआ.

कहानी जारी रहेगी.

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RE: XXX Kahani मेरा सुहाना सफर-कुछ पुरानी यादें - by desiaks - 08-04-2021, 12:17 PM

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