RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-38)
दूसरे दिन कलकत्ता पहुंचकर कमिशनर के केबिन में घुसते ही देवश ने सलाम ठोंका…कमिशनर ने मुस्कराए देवश के कंधे पे हाथ रखा..और उसे शाबाशी दी
कमिशनर : वेरी वाले डन इंस्पेक्टर देवश चटर्जी मुझे तुमसे यही उम्मीद थी तुमने प्रूव करके दिखा दिया की पुलिस डिपार्टमेंट किसी से कम नहीं आस फर आस ई में कन्सर्न्ड और ट्रांसफर आर्डर इस कॅन्सल्ड ऐसे ही मन लगाकर ध्यान देते रहो
देवश : सर मैंने वही किया जो कानून के लिए शाइ हो…पर आप इसे मेरा फायदा मत समझिए मैंने कोई भी काम सिर्फ़ अपने फाएेदे के लिए नहीं किया…बस इस बात का कहीं ना कहीं डुक हें सर की काला साया कोई मुजरिम नहीं था वो बस पुलिस की मदद कर रहा था भले ही उसके आक्षन्स ठीक ना हो वो कानून के खिलाफ काम करता है ऊसने खून किए पर किसके मर्डरर्स के क्रिमिनल्स के जो मासूमों की जिंदगी से खेलना चाह रहे थे
कमिशनर : वॉट दो यू मीन? काला साया इस अगेन्स्ट थे लॉ
देवश : लेकिन अभी स्टिल डॉन;त नो वेदर अभी स्टॉप थे क्राइम वितऊथ हिं…सॉरी सर मुझसे कोई लव्ज़ गलत निकला हो मांफ कीजिएगा बस मैं यही कहूँगा सर कहीं ना कहीं हमने क्राइम को गताया नहीं बढ़ाया पर आप फिक्र ना कीजिए जब तक इंस्पेक्टर देवश ज़िंदा है तबतक लॉ कोई हाथ में नहीं ले पाएगा
कोँमिससिओने : आस और विश सन ई आम रियली प्राउड ऑफ यू (मुस्कराए कमिशनर ने बात को स्मझा…देवश सल्यूट मार्टाः आह बाहर निकल गया)
घर पहुंचकर ऊसने सबसे पहले अपने घर जो की चाचा चाची ने पहले से धखल किए हुए थे उसे बारे ही सहेजता से खरीदने की उक्सुकता जाहिर की ऊसने जिसके नाम घर था उसका सिग्नेचर कोर्ट को पेश किया इस पे ऊसने बारे ही सहेजता से चाल चली और अपने दाँव पैच से वो घर ख़ैरीड लिया जो ऑलरेडी उसी के नाम था….दिव्या को अपना वीरना घर ही पसंद था पर देवश चाहता था की वो अब चुपके ना रहे….बेरहेआल वो दिव्या के साथ अपने नये घर में आ गया….दिव्या जिस घर की कभी नौकरानी होया करती आज वो ऊस घर की मालकिन खुद को महसूस कर रही थी….इधर देवश को अपने दूसरे घर में जाना भी था
और उसी दिन वो अपने पुराने घर आकर….घर में ही कुछ देर तक आराम करता है क्या पता ? अपर्णा काकी और शीतल आ जाए उससे मिलने अकेले अकेले
काफी देर तक मां-बेटी का इंतजार करने का बाद…देवश को जैसे उम्मीद थी वही हुआ…मां-बेटी दोनों साथ ही आई….अपर्णा काकी ने हल्के लाल रंग की बनारसी सारी पहनी थी आसिफ़ के तोहफे की दी हुई…तो दूसरी ओर गुलाबी रंग की मॅचिंग एआरिंग के साथ सूट शीतल ने पहनी हुई थी..दोनों मां-बेटी ही कहर ढा रही थी….डबल ऑफर तो मिला था…पर देवश ना तो मां को बेटी के सामने चोद सकता था…और ना ही बेटी को मां के सामने चोद सकता था…
बहरेहाल ऊसने फैसला किया की दोनों को अलग-अलग ही चोदना पड़ेगा….अपर्णा काकी मुस्कराए डीओॉश के सर पे हाथ फेरने लगी और उससे उसका हाल पूछा…देवश इन भी बारे सहेजता से जवाब दिया इतने में शीतल की चोरी चोरी निगाहों को वो पढ़ भी लेता…जो ठीक अपर्णा काकी के पीछे खड़ी मांडमास्त मुस्करा रही थी
“अरे शीतल बैठो ना”…..देवश ने शीतल को अपने बगल में पलंग पर बैठने को कहा
“अच्छा बेटा कुछ खाया मैं तेरे लिए कुछ बनती हूँ….साग की सब्ज़ी लाई उसे गरम कर देती हूँ और रोती बना देती हूँ”…..अपर्णा काकी ने मुस्कराए कहा और किचन की ओर चली गयी
इस बार देवश शीतल की ओर मूधके उससे बातचीत शुरू करता है…शीतल को तो बस अकेलापन ही चाहिए था मां जैसे ही गयी बस छुपी छुपी ऊसने बातें शुरू कर दी
शीतल : उफ़फ्फ़ हो कहाँ चले गये थे तुम?
देवश : बस चला गया था काम के सिसीले में
शीतल : श पता है मैं कितना मिस कर रही थी
देवश : अरे मेरी जानं सस्सह धीरे बोल मां सुन लेगी अकेले क्यों नहीं आई?
शीतल : मां को भी आना था सोचा लगे हाथों आपसे मिल्लू
देवश : त..एक है और सब ठीक तो है ना
शीतल : हाँ अभी अभी तो मासिक खत्म हुए मेरे
देवश : अरे वाह रानी यानि मेरी बहन पूरी औरत बन चुकी है
शीतल : बहुत मन कर रहा है भैया कुछ करो ना
देवश : एक..हां ठीक है मैं जनता हूँ तुम बेसवार मत हो कुछ टाइम दे
इतने में अपर्णा काकी दबे पाओ आ गयी मैं थोड़ा हड़बड़ा गया शीतल भी…”और क्या फुसुर फुसुर चल रहा है भाई बहनों में?”….अपर्णा काकी ने गरमा गरम खाना प्लेट से पलंग पे दस्तर्खान बिछके लगाया
देवश : कुछ नहीं काकी मां बस आजकल हमारी शीतल बड़ी समझदार हो गयी है
अपर्णा : कहाँ बेटा? ये और समझदार अकल घास चरने जाती है इसकी कोई भी काम बोलो तो बस ऐतने लगती है
शीतल : हाँ हाँ और कर लो भैया से शिकायत
हम सब हस्सने लगते है….फिर खाना खाने लगते है मैं अपने हाथों से अपनी औरतों को खाना खिलता हूँ…फिर अपर्णा काकी भी मुझे अपने हाथों से खिलती है…शीतल ये सब देखकर मुस्करा रही थी..इतने में अपर्णा काकी ने बात छेड़ी जिससे मेरी मुस्कान कुछ पल के लिए गायब हो गई
अपर्णा : बेटा सुना की तूने वॉ तेरे चाचा अंजर!
देवश : ऊस हरामी का नाम मत लो काकी मां
अपर्णा : देख बेटा मैं समझती हूँ हालत बहुत बुरे थे ठीक ही हुआ जो वो लोग कुत्ते की मौत मारे जिसपे तेरा हक़ था उसे तूने वापिस पा लिया अच्छा है लेकिन ये बात मैं ही जानती हूँ की तेरा उनके साथ क्या रिश्ता है? वो तो ऊस दिन बाज़ार में कुटुम्ब मिल गयी थी खूब परेशान थी बोल रही थी की उसका घर संसार उजध सा गया है मैं तो कुछ समझी नहीं
देवश रोती का नीवाला खाए बस अपनी आंखें इधर उधर कर रहा था…”जाने दो ना काकी मां जाने दो जिस इंसान ने हमारा घर उजड़ा हो ऊस्की क्या दुनिया उजदेगी अच्छा हुआ मर गये”……काकी मां ने कुछ नहीं कहा बल्कि मेरे ऊन लवज़ो में हामी भारी
अपर्णा : हाँ बेटा मुझे नहीं पता था की वो कमीने लोग यही है बेटा मर गया देख कुदरत का कहर अंजर गाड़ी के नीचे आ गया…और कुटुम्ब तो पागलख़ाने चली गयी उसका तो ब्लूएफीलंताक बन गया था और शांतलाल गुंडे के साथ उसके संबंध भी थे
शीतल : अरे मां क्यों इधर उधर की बात लेकर बैठी हो? भाई का इतना अच्छा मूंड़ बना है उसे खराब तो मत करो
अपर्णा : अरे बाबा भाई की बड़ी चिंता है तुझे चल अच्छा है लेकिन सुन अपने भाई को ज्यादा तंग मत करना (इस बात को सुनकर कुछ पल के लिए ही सही मुस्कान वापिस लौट आयआई मेरे चेहरे पे)
देवश : अच्छा काकी मां आप दोनों आज इधर ही रुक जाओ वजह ये है की मैं कहीं जाऊंगा तो नहीं तक भी गया हूँ
अपर्णा : लेकिन बेटा शीतल को भेज देती हूँ दो घर का काम पारा हुआ है
शीतल : मां आप ही चली जाओ ना
देवश : एक काम कर ना शीतल तू ही चली जा आजना थोड़े देर में हम लोग कहाँ भागे जा रहे है?
शीतल : पर भी (मैं जनता था शीतल क्यों चिढ़ रही है?)
देवश : पर वॉर कुछ नहीं अभी जा तो अभी जा
शीतला ना नुकुर करके ऐत्ते हुए मां को मन ही मन गाली देते हुए निकल गयी…अपर्णा काकी भी मुझे मुस्कुराकर देखते हुए किचन में बर्तन माझने लगी…अब मैं घर में अकेला चलो पहले मां से ही शुरू करता हूँ
उसी वक्त बाहर का एक बार नज़ारा देखा….और दरवाजा कूडनी भेड़ लिया..शीतल को आनें आइन कम से कम 2 घंटे तो लग जाएँगे इतने देर में….काकी मां की भूखी सुखी चुत मर लूँगा ताकि वो थक्के पष्ट हो जाए फिर शीतल आए और वो भी मुझसे चुदाया ले…मां बेटी को एक ही दिन में चोदने का प्लान बना लिया था मैंने
फौरन कपड़े उतारे और किचन में चला गया…काकी मां एकदम से जैसे पीछे मुदिी तो शर्मा गयी…मैंने फौरन किचन की खिड़की लगाई और क्काई मां को अपने सीने से लगा लिया काकी मां मुझसे छुड़ाने लगी पर अब कहाँ छुड़ाना चुड़ानी..ऊन्हें निवस्त्र करने में वक्त नहीं लगा
वही ऊन्हें कुतिया की मुद्रा में झुकाया और अपना खड़ा लंड उनके चर्वी डर पिछवाड़े में घुस्सेद दिया…अफ क्या मस्त गान्ड थी? पर ढीली थी…लंड पे थोड़ा सा थूक माला और फिर लंड को छेद में टिटके एक करारा शॉट मारा…आआहह काकी मां के मुँह से मीठा स्वर निकाला और वॉ भी मदमस्त चुदवाने लगी….
देवश : आस ककीिई मां क्या सौंड्रा है तुम्हारा? क्या गान्ड है तुम्हारी?
अपर्णा : बीता…आहह कितने सालों से दबाई रखी थी अपनी इच्छा आहह (काकी मां ने दोनों हाथ सेल्फ़ पे रख दिया…और पीछे से मेरे करार धक्को को अपनी गान्ड के भीतर झेलने लगी)
मैंने काकी मां को बहुत ही क़ास्सके चोदना शुरू कर दिया…उनकी ढीली गान्ड में लंड प्री-कम भीगोने लगा…और उनकी गान्ड में भी सनसनी उठने लगी ऊन्होने थोड़ा उठके अपना मुख मेरी तरफ किया और अपने जवान बेटे को होठों में होंठ तुसाए किस शुरू कर दी…हम दोनों एक दूसरे का गहरा चुंबन लेने लगे…काफी मजा आ रहा था नीचे से धक्के लगता और ऊपर मोटे मोटे होठों को चूसता काकी के
अपर्णा आहें भरती रही…फिर मैंने लंड को गान्ड से बाहर खींचा…और इस बार अपनी तरफ किया…इस बार काकी मां सेल्फ़ पे बैठ गयी और ऊसने टाँग हवा में उठा ली….काकी मां की सूजी डबल रोती जैसी चुत में लंड एक ही बार में पे लडिया और उनके मोटे मोटे चुचियों को हाथों में लेकर मसलने लगा अफ कितने सख्त निपल्स थे उनके एक बार तो चूसना बनता था अपर्णा काकी को बैठे बैठे ही चोदने लगा…उनकी निपल्स को मुँह में लेकर किसी बच्चे की तरह चूसने लगा…ऊसपे अपनी जबान फहीरने लगा…काकी मां भी चुत को ढीली चोद चुकी थी..और मेरा लंड आसानी से प्रवेश कर रहा था
कुछ ही देर में काकी मां ने अपने हाथ मेरे कंधे पे मोड़ दया और फिर हम दोनों एक दूसरे को किस करते हुए झधने लगे…चुत में फकच फकच्छ आवाज़ आने लगी…और मेरा रस चुत से बहता हुआ सेल्फ़ से नीचे टपकने लगा
हांफते हुए हम दोनों एक दूसरे के चुंबन लेते रहे…उसके बाद अलग हुए….काकी मां ने फटाफट सेल्फ़ पोंछा फर्श पे लगे वीर्य को पोंछा…और फिर मोटी गान्ड मटकते हुए बाथरूम में घुस्सके नहाने लगी…लेकिन जी सच में दोस्तों भरा नहीं थी एक राउंड और पेल दिया इस बार काकी मां को सीधे गुसलखाने में ही चोद डाला वो पेशाब कर रही थी…और मैंने उनके कुल्हो को दबाते हुए उनके नितंबों के बीच में ही लंड घुसेड़ दिया काकी मां ने बहुत जोरदार आहें भारी और उनकी एक मांसल टाँग को अपने हाथों में उठाए वैसे ही मुद्रा में चोद दिया…और फिर अपना रसभरा लंड उनके मुँह में डाला…उसके बाद काकी मां ने चुस्स चुस्सके मेरे लंड से सारा पानी निकल दिया अब मैं पूरी तरीके से ठंडा पढ़ चुका था
काकी मां भी सुसताने लगी…और बिस्तर पे ही कुछ देर के लिए सो गयी उनके सोने से मुझे बेहद वक्त मिल गया इतनें आइन घंटी बाजी…दरवाजा खोला देखता हूँ शीतल आई है ताकि हारी पसीने से लथपथ काम खत्म करके…”अरे शीतल तू आ गयी आजा अंदर तेरी मां सो रही है”….शीतल ने मां को सोते देखकर काफी गुस्सा किया थक्के काम ऊसने की और मां यहाँ अंगड़ाई ले रही है लेकिन ये नहीं जानती की उनकी तारक की प्यास बुझी इसलिए वो सो गयी है
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