Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
09-17-2021, 01:06 PM,
#55
RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-59)

मैं आज हार गया हूँ दिव्या”…….दिव्या के गाओड़ी में सर रखकर मेरे आंखों से आँसू बह रहे थे

“तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो? देवश…मानती हूँ अपराध को रोका नहीं जा सकता तो क्या तुम ऐसे घूंत्त घूँट के कबतक जियोगे अगर आज काल साया ना होता तो क्या ये लोग सुरक्षित रही सकते थे….तुम एक महेज़ इंसान हो कोई देवता नहीं हर इंसान को अपनी बचाव खुद करनी पढ़ती है अगर कल तुम मुसीबत में फासे तो कौन बचाएगा”…….मैं दिव्या के बातों को सुन रहा था उसके हाथों को अपने बालों को सहलाते महसूस कर रहा था

देवश : तुम सही हो दिव्या बहुत सही हो आज मेरा मूंड़ नहीं हे मैं थोड़ा गश्त लगाकर आता हूँ

दिव्या : सावधान रहना मुझे तुम्हारी फिक्र लगी रहेगिइइ

देवश : तुम हो ना साथ मेरे (दिव्या के माथे को चूमते हुए मैं निकल गया)

जीप को फुरती से 60 की बढ़ता में चला रहा था…सड़क एकदम सुनसान थी….जगह जगह सड़क के कुत्ते भौंक रहे थे कहीं रो रहे थे कोई शराबी कचदे के धायर पे सोया हुआ है…कहीं कोई ग़रेबे सड़क पे चादर बिछाए सो रहा है….रात का 1 बज रहा था…आंखों से आँसुयो को रोक नहीं पाया…साला ये जिंदगी की भी अज़ीब है कहाँ से श्रुऊ किया था? कहाँ चल रहा है? एक वक्त था बदले की भावना में जी रहा था और आज ऐसे मोड़ पे हूँ की जिस गलियों को छोडा जिस भैईस को चोदा आज ऊस्की इतनी जरूरत महसूस हो रही है…कमिशनर की मां तो चुद रही होगी बारे बारे उक्चे लोग पब्लिक सब ऊसपे क्वेस्चन की बरसात कर रही होगी हम और होना भी च्चाईए ऊस जैसे मतलबी इंसान को क्या समझा आए की काला साया की क्या जरूरत थी?…..अचानक देखता हूँ की किसी ने मेरी जीप को ओवर्टेक किया

पुलिस की जीप को ओवर्टेक..मैं जीप रोककर फौरन उतरा…”आए कौन्ण है?”…….वन से कुछ गुंडे बाहर निकले….और दूसरी ओर निशानेबाज़ मज़ूद था…जो सिगरेट फहुंककर मुझे देख रहा था मुस्करा रहा था..”तो तू है वो इंस्पेक्टर जिसने रोज़ को बचाया हरमजादे”……..एक गुंडे ने बताया वाइर्ले पे अभी हाथ रखने ही वाला था

की इतने में हॉकी का एकदांडा हाथ पे पड़ते पड़ते बच्चा.आ..मैंने फ़ौरना उसके चेहरे पे एक घुसा मर के उसे गिरा डाला….पीछे से चैन मेरी गर्दन पे…और गुंडे के लात घुषो की बौछार मुजपे…आज इतना बेबस हो जाऊंगा सोचा नहीं था…ऊन्होने फुरती से एक लात मर के मुझे गिरा डाला…”शितत मोबाइल भी दूर जाकर गिरी अब ना तो रोज़ को कॉल कर सकता था और ना ही पुलिस को सूचना दे सकता था…आज बेबस हो गया त मैं”…….तभी एक हॉकी का डंडा सीधे मेरे सर पे पारा….आहह…मैं दूसरी ओर गिर पड़ा

हाहहाहा…ऊन लोगों की तहाका लगती हँसी मेरे अंदर के खून को खौला रही थी….”बड़ा आया इंस्पेक्टर साले उठ हाहाहा खलनायक भाई से पंगा लेगा कांट दो साले के हाथ पाओ हड्डी तोड़ दो इसकी”……..निशानेबाज़ ऊन गुंडों की बातेयसुनके उठ बैठा

“आबे ओह जान से मत मर देना मर के खलनायक भाई के पास लेकर भी जाना है”…….ऊस्की बात को सुनकर गुंडे ने हाँ में सर हिलाया मेरी ओर हिंसक निगाहों से आगे आए…मुझे उठाते ही फिर मेरे पेंट और मुँह पे हॉकी का बल्ला पड़ा…बहुत क़ास्सके दर्द उठा…लेकिन तीसरे वार जैसे ही मुझपर होता ऊस हॉकी के बल्ले को हाथ से रोक डाला…काला साया यक़ीनन नहिता पर दानव पैच तो थे ही बरक़रार

फौरन जंग की शुरूवात की और भाई किक सामने हॉकी का बल्ला पकड़े शॅक्स के मुँह पे…वो लोग मुझपर भीढ़ गये…अब मैं अपने फॉर्म में आ गया और अपनी मंकी किक सामने वाले के सीने पे उतार डाली वो वन पे जा गिरा…शीशा खनक से टूटा और उसके पीठ पे धंस गया….दूसरी आईडी की चोट एक गुंडे की गर्दन पे…मैंने फुरती से अपनी पेंट के पीछे से नानचाकू निकाला…और ऐसे करतबो से चलाने लगा….की वो लोग सहम गये

“आओ सुवार की औलादो क्या हुआ? रांड़ की पैदाइश हो क्या?”…….ऊन्होने मेरे गाली को सुनते ही आक्रमण कर डाला…मैंने नानचाकू को बारे फुरती से ऊँपे चला डाला…किसी का सर किसी का टाँग किसी की गर्दन किसी का मुँह…किसी की अँड सबपे नानचाकू बरसाने लगा…ऊन लोगों की टूटती हड्डिया और बिबीलते स्वरो से वही धैरहोणे लगे….”पुलिसवाले के पास नानचाकू स्ट्रेंज”……निशानेबाज़ जो सोच रहा था की ऊस्की पलूए इस पुलिस को मर गिराएँगे डर्सल चूतिया था उसे क्या पता? की जिस शेयर को वो लोग पुलिसवाला समझ रहे है वो असल में कौन है?

निशानेबाज़ मेरा एक्शन देखने लगा….ऊन गुंडों को इतनी मर मारा की वो लोग उठ नहीं पाए जल्द ही निशानेबाज़ ने फुरती से मेरे ऊपर तीर चला दी जो मेरे बाए कूल्हे पे लगा…”आअहह”……मैं दर्द से बिबिला उठा वो अभी दूसरा हमला करता उसके तीर को मैंने हाथों से लोक लिया.और फिर ऊसपे नानचाकू फ़ैक्हा..उसके चेहरे पे जा लगा….निशानेबाज़ हड़बड़ा गया…मैं उसके पीछे दौरा…ओसोने फिर तिरो का हमला किया इस बार मैं बच ना पाया पीठ और गर्दन पे तीर धंस गया

निशानेबाज़ तहाका लगाकर हस्सने लगा….मैंने पास रखी हॉकी स्टिक उठाई और उसके मुँह पे मारी….वो बच निकाला लेकिन मैंने उसके पाओ को पकड़कर नीचे पटक डाला…”टीटी..तू इतना हुनर कैसे जनता है साले”……निशानेबाज़ करते का हमला करने लगा…”मैंने उसके दोनों हाथ ओको क़ास्सके दबोच लिया…”क्योंकि तू मुझे नहीं जनता मैं कौन हूँ और सीधे उसके मुँह पे एक लात जमा दी

निशानेबाज़ देख सकता था की इतने घायल होने के बाद भी मुझमें कितनी हिम्मत थी खलनायक ने सक़ती से मना किया था की मैं जान से ना मारू..निशानेबाज़ मुझे पाक्ड़ने आया था लेकिन अब वो साँप को कैसे पकड़ पाता..”बिना तीर के तू कुछ नहीं कर सकता कमीने”…….मेरी एक लात उसके पीठ पे जम गयी

निशानेबाज़ भागा…मैं भी उसके पीछे तीर को उकाध के अपने कमर और जिस्मो से अलग करके फैक्ने लगा…जल्द ही वो साए की तरह वापिस अपनी गुप्तिए निए गाड़ी में सवार हो गया…मैं उसके पीछे जाता ही लेकिन ऊसने गाड़ी मेरे ऊपर चलानी की सोची मैंने फौरन कूदके उसके रास्ते से हाथ गया और वो बढ़ता में गाड़ी को लेकर कहीन्द और भाग गया…पुलिस को सूचना देना बेकार ही था…वो भाग चुका था…मैं वैसे ही घायल हालत में इधर उधर देखते हुए जीप पे सवार हुआ गुंडे धायर हो चुके थे

एक को उठाकर उससे पूछताछ की तो पाया खलनायक ने मुझे किडनॅप करने के लिए भेजा था…और ऊस्की नज़र मुझपर है क्योंकि मैंने उसका माल और ऊस्की दुश्मन रोज़ को बचाया है….मैंने ऊस अधमरे गुंडे को वही फ़ेक डाला…और अपनी जीप एप सवार हो गया…क्योंकि ठिकाना उसे भी पता नहीं था

किसी तरह जीप को बीच में ही रोकना पड़ा दर्द बहुत ज्यादा बढ़ने लगा…मैंने देखा सामने एक घर है जो जाना पहचाना है वही लंगदाते हुए दरवाजा खटखटने लगा….अचानक दरवाजा खुला और एक साया मेरे सामने खड़ा था

“कोई हे दरवाज़..आ के..होल्ल्लो”……मेरी आवाज़ बुरी तरीके से कनपें जा रही थी…दर्द से बेचैनी हो रही थी…बार बार आंखें बंद होने लगी थी…”अरे कोई है आहह”……धधस्स से एकदम से दरवाजा खुल गया…और एक साया सामने अंदर से बल्ब की रोशनी में साफ उसके चेहरे को देखते ही जान में जान आई ये जाना पहचाना साया कंचन का था..

ऊसने मुँह पे हाथ रखकर…मेरी तरफ देखा और मेरे फटे कपड़ों से निकल रहे खून को…”अरे साहाबब आप?”…….इससे पहले वो कुछ और कह पति…मैंने उससे अंदर आने की इजाज़त माँगी..ऊसने फौरन झट से मुझे घर के अंदर दाखिल करवाया ऊसने क़ास्सके मेरे कंधे को पकड़ा हुआ था…मेरी चलने की हिम्मत नहीं थी…वो तो अच्छा हुआ की कंचन का सहारा मिल गया…ऊस्की बस्ती पास ही में दिख पड़ी…जल्दी से ऊसने दरवाजा बंद करके मुझे खतिए पे लेटा दिया

मैं दर्द से सिसक रहा था…ऊसने फौरन मेरे ज़ख़्मो को देखते हुए बोला “या अल्लाह आपका तो खून बह रहा हाीइ आपको क्या हुआ साहेब?”……..मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था फिर किसी तरह उठके इस हालत को खुद ही संभालना था

फौरन अपने फटे वर्दी वाले शर्ट को उतार फ़ेक अब मेरे जिस्मो के इर्द लगे तीर के घाव को देखकर कंचन ने मुँह पे हाथ रख दिया और फिर मेरी पीठ पे भी देखा….खून से बनियान थोड़ी लाल हो गयी थी “अल्लाह जख्म बहुत गहरा है अब क्या करे?”……वो सोच में पारह गयी “आ..हे के..आँचनन्न फ़ौरान किसी डॉक्टर को बुला लाओ जो तुम्हारे बस्ती के कहीं पास रहता हो बोल देना आहह दारोगा घायल है प्ल्स जल्दी करो”……..कंचन गरीब जरूर थी पर नुस्खे और होशियार चाँद भी थी
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