RE: Rishton mai Chudai - दो सगे मादरचोद
में: "मा तुझे आइस क्रीम चूस के खाने में मज़ा आता है पर मुझे तो इस लंबी कोन में जीभ डाल चाट के खाने में मज़ा आता है." मा खिलखिलके हंस पड़ी. "मा यह पार्क बहुत बड़ा है. क्या पार्क का पूरा चक्कर काट के देखोगी?"
मा: "हन, देखो लोग कैसे चक्कर काट रहे हैं. में तो अभी भी ऐसे पार्क के 3 चक्कर काट लून." मा की बात सुन में उठ खड़ा हुवा और मा की तरफ हाथ बढ़ा दिया जिसे पकड़ वा भी खड़ी हो गई. पहले हम मा बेटों ने एक एक खुशबूदार पॅयन खाया और फिर हम भी पगडंडी पर आ गये. 9.30 बाज गये थे. पगडंडी पर नौजवान जोड़े, अधेड़ जोड़े सब थे जो साथ की महिला के हाथ में हाथ डाले, उसके कंधे पर हाथ रखे, उसकी कमर में हाथ डाले या उसे अपने बदन से बिल्कुल सताए दीं दुनिया से बिल्कुल बेख़बर हो चल रहे थे. हम मा बेटे भी जो दुनिया की नज़र में जो भी हों उससे बेख़बर चुपचाप चल रहे थे. चलते चलते हम पार्क के उस भाग में आ पाहूंचे जहाँ अपेक्षाकृत कुच्छ अंधेरा था और काफ़ी तादाद में घने झाड़ थे. हर झाड़ के साए में एक जोड़ा बैठा हुवा था, पगडंडी से विपरीत दिशा में मुख किए एक दूसरे को बाँहों में समेटे गड्डमड्ड हो रहे थे, पुरुष महिलाओं की जांघों पर लेते हुए थे, कुच्छेक पुरुष तो महिलाओं को चेहरे पर झुके हुए किस कर रहे थे. चारों तरफ बहुत ही रंगीन और वासनात्मक नज़ारा था. मा कनखियों से जोड़ों की हरकतें देख रही थी और मेरे साथ चुपचाप चल रही थी.
ऐसे वातावरण में मेरी हालत खराब होना लाज़िमी थी खाष्कर जब मेरी जवान मस्त मा मेरे साथ थी जिसे में अपना बनाना चाह रहा था. पर मेने अपने आप पर पूरा काबू कर रखा था और अपनी ओर से कोई जल्दबाज़ी या पहल करना नहीं चाहता था. में मा की सेक्स की भूख को पूरा जगा देना चाहता था और उस में तड़प पैदा करना चाह रहा था. एक चक्कर काट के ही हम पार्क से बहार आ गये. 10.30 पर हम घर पाहूंछ गये और में अपने रूम में बातरूम में घुस गया. बातरूम से फ्रेश होके निकला तो देखा की मा का रूम बंद था और में भी मा के साथ फॅंटेसी में काम क्रीड़ा करते करते सो गया.
दूसरे दिन मंडे की वजह से मुझे स्टोर से वापस आने में ही रात के 9 बाज गये. खाना ख़तम करके टीवी के सामने बैठते बैठते 10 बाज गये. में थोड़ी देर न्यूज़ चॅनेल्स देखता रहा. फिर मेने मासे बात च्छेदी, "क्यों मा, यहाँ चंडीगार्ह की शहरी जिंदगी पसंद आ रही है ना? बोल गाँव से अच्छी है या नहीं?"
मा: "मुझे एक बात यहाँ की बहुत अच्छी लगी की लोग एक दूसरे से मतलब नहीं रखते की कौन क्या पहन रहा है, कैसे रह रहा है. वहाँ गाँव में तो कोई अच्छा पहन ले तो लोग बात बनाने लग जाते हैं."
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