RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
"नहीं, उसे नहीं मालूम है। दरअसल वो भी दुनिया के तंगदिल लोगों में से एक है। मजबूरी में उससे यह राज छुपाना ही पड़ता
"यह तो आप भी स्वीकार करेंगे कि आपका नजरिया दुनिया के सांस्कृति और मानसिक नजरियों से कुछ हटकर है?"
"कुछ नहीं, बिल्कुल हटकर है। मुझे गर्व है कि मैं दुनिया बालों से बिल्कुल अलग नजरिया रखते की हिम्मत और ताकत रखता
चाय खत्म हो चुकी थी, इसलिए डॉक्टर जय के नौकर को बुलाकर बर्तन ले जाने के लिए कहा और जेब से सिगरेट का पैकेट निकाल कर राज की तरफ बढ़ाते हुए बोला
"लो सिगरेट पियो.....।”
राज ने पैकेट में से एक सिगरेट निकाली और उसे सुलगाकर कश लेते हुए डॉक्टर जय की तरफ देखने लगा। इस वक्त तक उसकी बातों से राज ने जो अन्दाजा लगाया था, वो यह था कि या तो यह बहुत खतरनाक किस्म का आदमी है, या फिर खिसका हुआ है।
एक बात और भी थी, जो न जाने क्यों राज बड़ी सखी से महसूस कर रहा था। राज का ख्याल था कि डॉक्टर जय ने उससे मिस्री सांप के मर जाने को सिर्फ बहाना किया है, जबकि हकीकत में वो कहीं-न-कहीं जिन्दा है। क्योंकि ऐसे सतर्क और तजुर्बेकार शख्स से इस तरह की लापरवाही की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी।
"क्या सोचने लगे?" डॉक्टर जय ने राज को सोचते हुए पाकर पूछा।
"कुछ नहीं....कुछ नहीं।" राज चौंक कर बोला, मैं जाना चीनी की प्लेटों के बारे में सोच रहा था। क्या आप उनमें से एक प्लेट मेरे हाथ बेच सकते हैं?" ।
"आप क्यों खरीदना चाहते हैं उस प्लेट को?" डॉक्टर ने सन्देह से पूछा।
"कुछ खास बात नहीं है, मैं भी उस दुर्लभ चीज को रखना चाहता हूं बस।"
"बेचना तो बहुत मुश्किल है।" डॉक्टर ने अपनी आधी सिगरेट का सिरा ऐश-ट्रे में रगड़ते हुए, "लेकिन चूंकि आप मेरी प्लेटों पर बुरी तरह फिदा हो गए हैं, इसलिए एक प्लेट मैं आपको तोहफे में देता हूं।"
"थैक्स डॉक्टर।" राज ने जवाब दिया-"मैं आपकी इस दयालुता को कभी नहीं भूलूंगा।"
"इसकी जरूरत नहीं है। दोस्ती और विश्वास के सामने ये सारी चीजें बेकार हैं।"
"बहरहाल, मैं आपका आभारी हूं।'' राज ने कहा और डॉक्टर जय मुस्कराने लगा।
वक्त काफी हो चुका था, इसलिए राज ने डॉक्टर जय से इजाजत मांग ली। थोड़े से रूकने के अनुरोध के बाद डॉक्टर ने उसे इजाजत दे दी। राज उसकी दी हुई जाना चीनी की प्लेट को लेकर चल पड़ा।
वो घर वापिस पहुंच गया। डॉक्टर जय से जाना चीनी की प्लेट मांगने के पीछे राज की कोई भावना नहीं काम कर रही थी। दरअसल आदमी बौखलाहट में अजीब-अजीब सी हिमाकतें करने लगता है। राज भी क्योंकि इन दिनों सतीश को मौत की तरफ बढ़ता देखकर बौखलाया हुआ था, इसलिए झुंझलाहट और बौखलाहट में हो गई एक हिमाकत ही थी यह।
उसका मकसद यह था कि कुछ दिन सतीश के खाने-पीने की चीजें प्लेट में रखकर जांची जाए, ताकि वो अपने अनुमान की पुष्टि कर सके कि सतीश को वाकई कोई जहर दिया जा रहा है या यह उसका वहम ही है।
हालांकि वो समझ भी रहा था कि यह ख्याल बड़ा मूर्खता भरा है। क्योंकि इस स्थिति में यह नामुमकिन था कि ज्योति पूरी डिश में जहर मिला देती, और सतीश भी इतना बेवकूफ नहीं था कि वो सतीश की प्लेट में उसकी आंखों के सामने ही कोई संदिग्ध चीज मिला देती हो और उसे पता भी नहीं चलता हो।
इसलिए यह तय था ज्योति अगर सतीश को कोई घातक जहर दे भी रही थी तो वह जहर खाने में नहीं दिया जा रहा होगा।
इसके अलावा जहर देने का दूसरा तरीका क्या हो सकता था? वो सोच रहा था। लेकिन उसे अभी तक कोई ऐसा तरीका सूझा नहीं था। दिमाग लड़ाने के बावजूद वो कोई ऐसा तरीका सूझा नहीं था। दिमाग लड़ाने के बावजूद वो कोई सूत्र नहीं पा सका था। जिसे सोचकर यकीन से कहा जा सकता कि हां, यह तरीका हो सकता है जहर देने का।
वो ज्योति की गैहाजिरी में उसके कमरे की तलाशी ले चुका था
और उसे ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली थी जिससे उस पर शक किया जा सके। ज्योति का पूरा परिवेश बेदाग था।
फिर भी राज का दिल गवाही देता था कि इस धवल, स्वच्छ चादर के पीछे कोई घिनौना राज छुपा हुआ है। जिस तक उसकी अक्ल नहीं पहुंच पा रही, क्योंकि बीच में ज्योति का दूरदर्शी दिमाग और उसका जादुई हुस्न दीवार बन कर खड़े हुए
इन्हीं सब चीजों को देखते हुए वो सोचते लगता था कि काश ज्योति अपने तेज तर्रार दिमाग और दूरदर्शिता का इस्तेमाल किसी नेक काम में कर सकती होती तो वह यकीनन कोई बड़ी हस्ती होती।
डॉक्टर से लाई हुई प्लेट राज ने सुरक्षा और सावधानी से एक बक्से में रख दी थी।
अब सवाल यह था कि उसे इस्तेमाल कैसे करे? सतीश को इस बात के लिए राजी करना बहुत मुश्किल काम था कि वो उस प्लेट में खाना खाया करे।
दूसरे, ज्योति की आधुनिकताा पसन्द तबीयत भी यह कभी न बर्दाश्त करती कि घर में दर्जनों नई प्लेटें होने के बावजूद उसका पति एक पुरानी और चटकी हुई प्लेट में हर रोज खाना खाए।
आखिर काफी सोच-विचार के बाद राज ने इस समस्या का हल भी निकाल लिया। घर के बावर्चियों को उसने इनाम का लालच देकर इस बात पर तैयार कर लिया था कि वो हर रोज वह प्लेट मेज पर सतीश के सामने रख दिया करे। उसने सोचा था कि दो चार दिन तो सतीश और ज्योति इस बात पर ध्यान ही नहीं देंगे कि रोजाना एक ही प्लेट सतीश के सामने रखी जा रही हैं । बाद में अगर कोई बात हुई भी तो जैसा मौका होगा, वैसा जवाब दे दिया जाएगा।
इन दिनों खाने के वक्त सतीश के सामने वही जाना चीनी की प्लेट रखी जाने लगी। दस-बारह दिन बीत गए और उम्मीद के खिलाफ किसी ने भी प्लेट पर ध्यान नहीं दिया। राज खाने के बाद किसी ने किसी बहाने किचेन में जाकर प्लेट का मुआयना कर लेता था।
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