RE: XXX Kahani नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
आखिर राम नाम लेकर उसने सूली पर चढ़ने का फैसला कर ही लिया और सबसे पहले उसने जूते उतार कर कार में डाल दिए। उसके बाद पाईप हाथों के थाम कर और दीवार पर पैर जमाकर राज ने धीरे-धीरे ऊपर की तरफ सरकना शुरू कर दिया। पाईप चूंकि दीवार से पूरी तरह सटा हुआ नहीं था, इसलिए राज की अंगुलियां पाईप को चारों तरफ से पकड़ में ले सकती थीं। इसलिए उसे ऊपर चढ़ने में बहुत आसानी हो गई थी। काम बेहद कठिन था और राज को अपना संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो रहा था, वो बार-बार फिसल रहा था और थोड़ा नीचे आ जाता था, फिर ऊपर सरकने लगता था।
एक बार तो छत का सिरा सिर्फ एक मीटर दूर रह गया था कि वो फिसल कर दो मीटर और नीचे आ पहुंचा, पाईप को दीवार के साथ लगाए रखने के लिए थोड़े-थोड़े फासले पर लोहे के मजबूत हुक ठोंके गए थे, उन्होंने छत पर चढ़ने में राज की बहुत मदद की।
उनका अपना ख्याल था कि अगर वो लोहे के हुक दीवार पर न लगे होते तो वह छत पर कभी नहीं नहीं चढ़ सकता था वो थक जाता था तो नीचे वाले हुक में पैर फंसाकर और ऊपर वाले हुक को थामकर थोड़ा सुस्ता लेता था एक दो मिनट के लिए।
आखिरकार पौन घंटे के लगातार संघर्ष के बाद राज छत पर पहुंचने में कामयाब हो ही गया। बहुत आहिस्ता-आहिस्ता बैठे-बैठे वो सरकते हुए सबसे करीबी वेटीलेटर के करीब पहुचा। खड़े होकर चलने की हिम्मत इसलिए न कर सकता था कि कहीं कदमों की आवाज से नीचे रहने वाले चौंक न उठे।
ऊपर वाला झरोखा कहिए या रोशनदान या कुछ और, काफी चौड़ा था और उस पर शीशे लगे हुए थे। उस पर एक छप्पर सा बनरा हुआ था जिसके नीचे लोहे की जाली थी यानि इन्हें बनाने में खास ख्याल रखा गया था कि हवा और रोशनी नीचे कमरों तक जा सके।
इस वक्त रात का एब बज रहा था और शायद कोठी के तमाम वासी अपने-अपने कमरों में सो चुके थे, क्योंकि पूरी दत पर अन्धेरा था, किसी भी छप्पर के नीचे से रोशनी नहीं नजर आ रही थी, सिर्फ एक छप्पर के नीचे से हल्की-हल्की रोशनी दिखाई दे रही थी।
राज सरकता हुआ उस छप्पर के करीब पहुंचा और उसने बड़ी सावधानी से नीचे झांककर देखा। नीचे एक बहुत बड़ा हॉल कमरा था जो बड़े करीने से सजा हुआ था, वो स्टडी रूम लगता था, चारों तरफ आलमारियों मे किताबें लगी हुई थीं और बीच में एक मेज थी जिस पर लिखने-पढ़ने का सामान नजर आ रहा था, ऊपर वाला रोशनदान इतना चौड़ा था कि उसकी एक साईड में आधार कमरा नजर आता था। दूसरी साईड से बाकी का
आधा कमरा भी देखा जा सकता था।
इस वक्त कमरा बिल्कुल खाली था। कमरे की दीवारों पर भी काफी तस्वीरें टंगी हुई थी और मेज पर भी एक तस्वीर का फ्रेम नजर आ रहा था।
मेज पर कागज-कलम इस तरह पड़े हुए थे जैसे कोई लिखते-लिखते किसी काम से उठकर चला गया हो। करीब दस मिनट बाद राज को नीचे कहीं कदमों की आवाज सुनाई दी। एक पल बाद ही लायब्रेरी का दरवाजा बेआवाजा खुला और जमाल पाशा नाईट गाउन पहने हुए लायब्रेरी में दाखिल हुआ और आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ मेज के करीब कुर्सी पर आकर बैठ गया।
थोड़ी देर तक वो दोनों कोहनियां मेज पर टिकाए सामने रखी फ्रेम की तस्वीर की घूरता रहा। फिर उसने फ्रेम उठाकर तस्वीर को चूमा और फिर बड़ी सावधानी से फ्रेम वापिस मेज पर रख दिया, लेकिन तस्वीर शायद मेज पर अपने बैक स्टेण्ड के सहारे टिकी नहीं थी। क्योंकि उसके हाथ हटाते ही तस्वीर सीधी होकर मेज पर गिर पड़ी। जमाल पाशा ने फौरत ही तस्वीर को उठाकर फिर सीधा कर दिया।
लेकिन इतनी देर में राज की निगाह उस तस्वीर पर पड़ चुकी थी। और अगर फासला ज्यादा होने की वजह से उसकी निगाहों ने धोखा नहीं खाया था तो वह तस्वीर जूही की ही थी।
शायद राज इस बक्त अपनी नजर की कमजोरी मान लेता, अगर एक दिन पहले ही उसने सतीश के पास बैठी जूही को जमाल पाशा की तरफ एक खास इशारा करते हुए न देखा होता उस वक्त जमाल पाशा भी जूही की तरफ देखकर मुस्कराया था।
इससे राज की समझ में दो बातें आईं। पहली यह कि यह
तो जमाल पाशा जूही से मोहब्बत करता था और जूही चूंकि रंगीन मिजाज, उड़ती तितली थी, इसलिए किसी एक मर्द से उसकी तसल्ली नहीं हो सकती थी। हो सकता है कुछ दिन उसने जमाल पाशा के साथ भी इश्क के पेंच लड़ाए हों, लेकिन बाद में किसी और मर्द की तरफ आकर्षित हो गई हो ओर अब सतीश में दिचस्पी ले रही हो।
हो सकता है उस दिन की उनकी इशारेबाजी सिर्फ संयोग से मिल जाने की वजह से हो या फिर दूसरी सूरत यह हो सकती थी कि जूही सिर्फ जमाल पाशा से ही मोहब्बत करती हो ओर उसकी तमाम साजिशों में भी शामिल हो। इस वक्त वो किसी प्लान के तहत की जमाल और शिंगूरा के कहने पर ही वो सतीश को फांस रही हो।
अगर जूही और सतीश के सम्बंधों की वजह यह दूसरी बात थी तो स्थिति वाकई गम्भीर थी। राज ने सोचा, इसका मतलब है कि उन्होंने हमोर लिए कोई नई और अनोखी तरकीब सोचाी
क्योंकि राज जानता था कि उन तीनों में से सतीश ही ऐसा मोहरा था कि कभ भी आसानी से फरेब दिया जा सकता था। इसलिए राज को उसी की तरफ से ज्यादा चिंता थी। राज को यकीन था कि उसे अगर उस खेल में मात होती है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी सीधे-सादे सतीश पर ही होगी।
जूही के बारे में सारे ख्यालों में से यह आखिरी ख्याल ही राज को सही लगा था। जरूर वो जमाल पाशा की किसी साजिश के तहत ही सतीश की फांस रही थी।
वो अभी इसी सोच-विचार में गुम था कि अचान किसी कार के इंजन की आवाज से चौंक उठा। उसने जरा सा सिर उठा कर सड़क क तरफ देखा तो ऐ कार इसी कोठी की तरफ आते देखी।
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