Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
12-27-2021, 01:42 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
अशोक ने अपना लंड थोड़ा रगड़ा और मेरे मुँह में भर दिया. मैं उछलते हुए रंजन को चोद भी रही थी और अशोक का लंड चूस भी रही थी.

मेरा मुँह तो बंद था पर मेरे उस रात के दोनों पतियों की सिसकियाँ गूंज रही थी. इधर अशोक ने अपना पानी मेरे मुँह में छोड़ना शुरू किया और दूसरी तरफ रंजन और मैंने अपना पानी छोड़ना शुरू कर दिया.

अशोक अपना लंड मेरे मुँह में ही रखने की कोशिश कर रहा था, ताकि पानी ना छलके पर मेरी चूत से पानी रिसना शुरू हो गया.

अशोक ने झड़ने के बाद अपना लंड मेरे मुँह से बाहर निकाल दिया, पर उसका पानी अभी भी मैंने अपने मुँह में भर रखा था. रंजन से निपटु तो बाथरूम में जाकर वो पानी थूंक आऊ, पर रंजन अपनी पहली सुहागरात को इतना जल्दी ख़त्म नहीं करना चाहता था.

मैंने नीचे देखा तो उसका लंड मेरी चूत से निकले पानी से पूरा भर चूका था था. नीचे दबी दो चार लाल गुलाब की पंखुडिया पर सफ़ेद पानी से भर दागदार हो चुकी थी. मुझे उन गुलाब की पंखुड़िया अपने जैसी लगी, मेरी तरह वो भी दागदार हो चुकी थी.

फिर मैंने अपने मुँह में अशोक का छोड़ा पानी अपमान के घूंट की तरह पी लिया. रंजन के कहने पर मैं उसके ऊपर पीठ के बल लेट गयी. उसने मेरे दोनों मम्मे दबोच लिए और मसलना शुरू कर दिया.

अब मैंने धक्के मारना बंद कर दिया था. मैंने अपने दोनों पाँव मोड़ दिए और अपनी चूत उसके लिए पूरी खोल दी और रंजन अपने घुटने मोड़ कर धक्के मारता हुआ मुझे चोदना जारी रखे हुए था.

इस बीच अशोक ने पास बैठे हुए मेरी चूत को सहलाना शुरू कर दिया. मेरी चुदाने की इच्छा फिर से जाग गयी. अंदर एक झुरझुरी सी होने लगी. रंजन के लंड की रगड़ के साथ मेरी आहें फिर से चालू हो गयी थी. हम दोनों अपने चरम की तरफ बढ़ने लगे.

रंजन: “बोल, ज्यादा अच्छा कौन चोदता हैं?”

मैं: “तुम..”

रंजन ने एक और जोर का झटका मारा बोला: “जोर से बोलो.”

मैं: “आहह्ह, रंजन ज्यादा अच्छा चोदता हैं.”

रंजन: “अब जब तक ख़त्म न हो मेरी तारीफे करती रहो.”

उसने मुझे ये बात रटते को बोली कि मेरा नया पति रंजन मुझे ज्यादा अच्छा चोदता हैं. मैं भी चूदने के आधे नशे में थी तो मैं भी ये बात जोर जोर से रटने लगी.

अशोक को तो अच्छा नहीं लगा होगा वो उसके चेहरे से पता चल गया, पर रंजन पर मर्दानगी का ज्यादा नशा चढ़ने लगा.

वो नीचे से अपनी गांड पटक पटक कर मुझे झटके मारता रहा. रंजन अब मुझे जो बोलने को कहता मैं वो बोलती, रंजन का मकसद खुद को उकसा कर ज्यादा मजे लेना था.

हम दोनों को कोई चिंता ही नहीं थी कि अशोक पर क्या बीतेगी. रंजन ने मुझे ये सब बातें बोलने को बोली और मैंने भी आधी मज़बूरी में ये सब बोला:

“आह्हह रंजन क्या चोदते हो तुम. उई माँ, आज तक तुम्हारे जैसा किसी ने नहीं चोदा. रंजन आज चोद चोद कर मेरी भौसड़ी फाड़ दो. रंजन अपना लंड और जोर से अंदर डाल कर हिलाओ. हां, ये वाला, आहह्ह्हह मेरी चूत, अपना पानी भर दो रंजन मेरी चूत में.”

रंजन अपनी तारीफे सुन सुनकर पागलो की तरह चोदे जा रहा था. दूसरी तरफ अशोक गुस्से में अपना लंड रगड़े जा रहा था.

फिर रंजन ने जोर जोर से आहह्ह्ह आहह्ह्ह करते हुए अपनी हर एक आहह्ह्ह के साथ अपने लंड से अपना पानी मेरी चूत में थूंक रहा था. अपनी आठ दस आहों के साथ ही उसने अपना सारा पानी मेरी चूत में उतार दिया. साथ ही साथ मैं भी झड़ गयी.

रंजन घायल शेर की तरह वही ढेर हो गया. मैं उस पर से उठी और मेरी चूत से जैसे सफ़ेद पानी की हलकी बौछार हुई और रंजन के लंड और गोटियो को नहला दिया.

मैं अपने आप को संभालती उसके पहले ही अशोक जो गुस्से में भरा बैठा था मेरे ऊपर टूट पड़ा. उसने मुझे वही बिस्तर पर उल्टी गिरा दिया और अपना लंड मेरी गांड में घुसा दिया. मैं तो वैसे ही थकी और भरी हुई थी तो बिना हरकत के लेटी रही.

अशोक मेरी गांड को जोर जोर से थाप थप की आवाज निकाले मारते हुए अपनी मर्दानगी साबित कर रहा था. अगर मैं चीखती तो शायद उसकी मर्दानगी साबित हो जाती.

जहा वो चोद रहा था वहा मजे से आहें तो आना मुश्किल था, पर हलके दर्द से कराह जरूर शुरू हो गयी. उसको इसी में संतोष मिल गया.

दोनों पतियों की असली मर्द होने की होड़ में मैं पीस गयी थी. उसने अगले पांच दस मिनट तक मेरी गांड मार कर अपनी भड़ास मिटाई और मैं कराहते हुए उसकी मर्दानगी को संतुष्ट करती रही.

उसके मेरी गांड में झड़ने के बाद ही उसने मुझे छोड़ा. मेरे में अब हिम्मत नहीं बची थी कि मैं उठ कर चल भी पाऊ. उन्ही दोनों ने मिल कर जितनी साफ़ सफाई करनी थी उतनी की.

मैं वही लेटी रही और मेरे दोनों पतियो ने मुझे बीच बिस्तर में लेटा मेरे आजु बाजू आकर लेट गए. इतनी मेहनत करने के बाद हम तीनो ने चैन की नींद ली.

सुहागरात की अगली सुबह मेरी आँख तब खुली जब रंजन मुझ पर चढ़ कर मुझे चोदने में लगा था. मेरी पहली नजर आस पास गयी अशोक को ढँढ़ते हुए, पर वो कही नजर नहीं आया. मैंने अपने हाथों से रंजन को पीठ पर मारते हुए रोकने की कोशिश की.

मैं: “उतर, छोड़ अशोक आ जायेगा.”

रंजन: “अरे घबराओ मत, तुम एक दिन के लिए मेरी बीवी हो. मुझे तुम्हे चोदने से कोई नहीं रोकेगा.”

वो मुझे खिसकाता हुआ पलंग के कोने तक ले आया और मेरा सर पलंग के साइड से लटक सा गया. अब उसने मुझे चार-चार सेकंड के अंतराल से एक एक बहुत गहरा झटका चूत के अंदर मारना शुरू किया.

थोड़ा पानी तो उसका बनने ही लगा था और थपाक की एक जोर की आवाज के साथ वो झटके मार रहा था.

उसके जोर के गहरे झटके के आगे मैं कराहने के अलावा कुछ ना कर सकी. हर चार सेकंड में एक झटका और उसके बाद मेरी एक आहह्ह्ह..
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