RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
भाग 10
माया जी का पश्चाताप
[मैं माया]
छाया की नौकरी लगने के दुसरे दिन मैं शर्मा जी की बाहों में संभोग के पश्चात नग्न लेटी हुई थी . शर्मा जी ने अपना चरमसुख प्राप्त कर लिया था परंतु मेरा चरमोत्कर्ष कुछ दिनों से नहीं हो रहा था.
शर्मा जी ने पूछा
"माया जी आजकल आप उदास रहती हैं और संभोग के समय भी आप में उत्तेजना कम प्रतीत होती है.”
“मुझे आत्मग्लानि है”
“पर क्यों आपने तो ऐसा कुछ नहीं किया”
“नहीं मुझे इस बात का दुख है कि मैंने छाया को मानस से अलग कर दिया और आपके साथ इस तरह संभोग सुख का आनंद ले रही हूँ. जब यह विचार मेरे मन में आता है तो मेरी उत्तेजना कम हो जाती है.”
“हां यह बात तो है. जब से मानस और छाया अलग हुए हैं मेरे मन में भी दुख है. पिछले कई दिनों से वह दोनों अपने जीवन का अनूठा सुख ले रहे थे. बिना संभोग किये निश्चय ही उन दोनों ने साथ में उन खुबसूरत पलों को जी भर कर दिया होगा.”
“अब मैं क्या करूं मैं समझ में नहीं पा रही हूँ.”
“ऐसी स्थिति में हम क्या कर सकते हैं? तुमने छाया से बात की क्या?”
“क्या बात करूं मैं उससे. जब मानस और उसका विवाह टूट ही गया है तो अब वो मानस के पास क्यों जाएगी? मैं उससे यह तो नहीं कह सकती कि तुम अपनी और मानस की यौन इच्छाओं की पूर्ति वैसे ही करती रहो जैसे करती आई थी.”
“हां यह बात तो सही है. अब वह दोनों भविष्य में जब कभी एक नहीं हो सकते. उनका इस तरह साथ रहना उचित नहीं होगा.” शर्मा जी भी चिंतित थे.
“पता नहीं छाया के मन में क्या चल रहा होगा? उससे पूछ पाने की मेरी हिम्मत नहीं है.”
अगली सुबह मानस के पीठ में खिचाव था. छाया और शर्मा जी बाहर गए हुए थे. मैं मानस को देखकर द्रवित हो गयी. वह स्नान करने जा रहा था.
मैं अपने पुराने दिनों के बारे में सोचने लगी जब मैंने पहली बार मानस का वीर्य अपने हाथों में से छुआ था. मानस का वीर्य अपने हाथों से छूने के बाद कुछ दिनों तक वह मेरे ख्वाबों का शहजादा था. मैंने अपने मन में उसे लेकर कई प्रकार की कामुक कल्पनाएं अवश्य की थी परंतु उसके साथ इस तरह की बातें करना और उसे उकसाना मुझे पसंद नहीं आ रहा था क्योंकि वह उस समय एक किशोर था .
मैंने कुछ समय इंतजार करने की जरूरत होती पर समय बीतता गया वह छाया को पढ़ाता और दोनों साथ रहते मुझे उसके साथ कामुक होने में असहजता महसूस होती पर एकांत में मैंने हस्तमैथुन के लिए उसका सहारा अवश्य लिया था.
बेंगलुरु आने के बाद मैंने यह महसूस किया उसकी और छाया की दोस्ती हो चली थी. मुझे यह तो नहीं पता था कि दोनों अन्तरग कार्यों में लिप्त थे पर अपनी बेटी के साथ घूम रहे नवयुवक के से मैं इस तरह अन्तरंग सम्बन्ध नहीं रखना चाहती थी. अततः मैंने मानस को लेकर पनपती कामुकता का परित्याग कर दिया.
छाया और मानस को एक साथ नग्न देखने के बाद एक बार फिर मुझमे कामुकता ने जन्म ले लिया. मानस का नग्न और मांसल शरीर और बेहद खुबसूरत लिंग देखने के बाद मेरी योनि अक्सर गीली रहती और मैं अनजाने पुरुष के साथ संभोग के लिए लालायित रहती.
शर्मा जी से मुलाकात के पश्चात ही मेरी तृप्ति हुयी थी.
छाया की नौकरी लग जाने के पश्चात मेरा मन ख़ुशियों से भर गया था . मैंने और मेरी छाया ने जीवन की ढेर सारी ख़ुशियाँ पा लीं थीं। हम मानस के साथ खुश तो कई वर्षों से थे पर अब मेरी बेटी के नौकरी पाने के बाद मेरे मन में गजब का उत्साह था। इन सभी खुशियों के पीछे सिर्फ एक ही इंसान था मानस।
पिछले दो-तीन महीनों से छाया और मानस की नजदीकियां खत्म हो गयी थी. छाया अब अपने कमरे में रहती वह मानस के कमरे में नहीं जाती थी मुझे यह बात जानकर दुख होता कि जिस मानस ने छाया के साथ न जाने कितनी रातें नग्न होकर गुजारी होंगी उसे छाया के बिना कैसा महसूस होता होगा। मैंने उन दोनों को कामदेव और रति के रूप में एक दूसरे की बाहों में नग्न देखा था मुझे वह दृश्य कभी नहीं भूलता। छाया जैसी सुकुमारी और कोमलांगी के साथ नग्न हो कर कई रातें के बिताने के पश्चात अचानक मानस को जिस विरह का सामना करना पड़ता होगा यह मैं समझ सकती थी. मैंने अपने जीवन में वियोग का इतना दंश झेला था कि मुझे इन दो-तीन महीनों में ही मानस पर दया और करुणा आ रही थी।
मैं बाथरूम में नहाते समय एक बार फिर मानस के बारे में सोचने लगी। मैंने उसके एकांत को मैंने आनंद में बदलने की सोची यह कैसे होगा मैं नहीं जानती थी पर मैं उसके लिए कुछ ना कुछ करना चाहती थी। मेरी उम्र उससे इतनी भी ज्यादा नहीं थी की उसने कभी मेरे बारे में कुछ गलत ना सोचा हो।
इतना तो मैं दृढ़ प्रतिज्ञ थी कि मैं उसके साथ संभोग नहीं कर सकती थी परंतु मैंने अपने मन में कुछ सोच रखा था और आज मैं उसे अमल में लाना चाहती थी। नहाने के पश्चात मैंने अपनी सबसे सुंदर नाइटी पहनी जिसमें मेरा शरीर तो पूरा ढका हुआ था परंतु शरीर के उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे।
बेंगलुरु आने के बाद मेरे रंग और चहरे पर निखार भी आ चुका था। यह सब मानस की ही देन थी और आज मैं इस सुंदरता का कुछ अंश उसे देना चाहती थी। मैं पूरी तरह तैयार होकर हॉल में आ गयी। मैंने एक कटोरी में तेल गर्म किया और मानस के कमरे की तरफ चल पड़ी।
[ मैं मानस]
बाथरूम से नहाकर निकलने के बाद मुझे अपनी पीठ का दर्द बढ़ता हुआ लगा मैंने मुश्किल से अपने शरीर को पोछा और बिस्तर पर आकर तोलिया पहने हुए ही लेट गया। मैं पेट के बल लेटा हुआ था । माया आंटी कब अंदर आई मैं देख नहीं पाया। मेरे बिल्कुल पास आने के बाद उन्होंने मेरी नंगी पीठ को छुआ और बोला
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“मानस कहां पर दर्द है।”
मैं उनकी तरफ मुड़ा और इससे पहले मैं कुछ बोल पाता मेरा ध्यान उनकी नाइटी पर चला गया। यह नाइटी उनके ऊपर खूब खिल रही थी। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे माया जीअपनी उम्र से आंख मिचोली कर युवा हो गयीं थीं।
मेरा ध्यान कई दिनों बाद उनके स्तनों पर चला गया उनके स्तन उभरे हुए थे उनका आकार निश्चय ही छाया से बड़ा था। ( मेरे पास तुलना करने के लिए सिर्फ छाया ही थी सीमा से उनकी तुलना बेमानी थी मैंने उसे कई वर्ष पहले देखा था) उन्हें इस तरह देखकर मैं कुछ देर निशब्द रहा फिर मैंने अपनी पीठ पर हाथ लगाकर वह जगह दिखाई जहां दर्द हो रहा था.
उन्होंने अपने हाथों में तेल लगा कर उस जगह पर हल्की मालिश शुरू कर दी मुझे अच्छा लगा मैंने अपना सर वापस तकिये पर रख दिया और उनके कोमल हाथों के स्पर्श को अपनी पीठ पर महसूस करने लगा. उनका स्पर्श मेरे शरीर पर इस तरह शायद पहली बार हो रहा था. उनके हाथों की कोमलता छाया जैसी तो नहीं थी पर शायद उस से कम भी नहीं थी. उनके हाथ मेरी पूरी पीठ पर घूम रहे थे मैं इस अद्भुत आनंद में खोया हुआ था. अभी तक मुझे किसी उत्तेजना का एहसास नहीं हुआ था मैं अपनी पीठ दर्द में मिल रहे आराम से ही खुश था पर मैं मन ही मन माया आंटी के बारे में सोच जरूर रहा था कि आज वह इस तरह कैसे मेरे कमरे में आ गयीं. मैंने उनके हाथ अपनी कमर पर महसूस किया उनकी उंगलियां तोलिए के अंदर जाकर मेरे कमर के निचले भाग को मसाज दे रही थी. मैंने उनके हाथों को नहीं रोका कुछ समय पश्चात वह मेरे पैरों में भी तेल लगाने लगीं. उनमें यह कला अद्भुत थी उनकी उंगलियों का दबाव पैरों पर हर जगह पड़ता और मैं आनंद में खोया चला जा रहा था. उनके हाथ जब मेरी जाँघों की तरफ बढ़ते तब मुझे थोड़ा अजीब एहसास होता. मेरे राजकुमार ने अब मुझ से बगावत करना शुरू कर दिया था. वह छाया का गुलाम था पर शायद इन दो-तीन महीनों के एकांतवास से वह दुखी हो गया था. आज उसके आस पास नारी के कोमल हाथों की ठंडी बयार मिल रही थी इसीलिए वह उत्तेजित हो रहा था.
मुझे पेट के बल लेट होने की वजह से उसे व्यवस्थित करना अनिवार्य था अन्यथा दर्द बढ़ता ही जा रहा था मैंने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसे व्यवस्थित करने की कोशिश की. शायद माया आंटी में मेरी इस हरकत को देख लिया था उन्होंने कुछ कहा तो नहीं पर उनके हाथ मेरी जांघों पर और अंदर तक पहुंच गए थे. कुछ ही देर में उन्होंने अपने हाथों से मुझे पीठ के बल आने के लिए इशारा किया.
मैं शर्मा रहा था पर मैं पीठ के बल आ गया. मुझे माया आंटी को इस तरह मुझे मालिश करते हुए देखने में शर्म आ रही थी. परंतु मैं राजकुमार की उत्तेजना के अधीन था. मैंने अपनी आंखें बंद कर लीं और सब कुछ नियति पर छोड़ दिया.
बंद आंखों में कल्पना को नई ऊंचाइयां मिलती हैं. मैंने आंखें बंद कर माया आंटी से नजरे चुराई थी पर आंखें बंद करते ही माया आंटी का चेहरा और कामुक शर्रीर मेरी आंखों के सामने आ गया. बंद आंखों से आज मैंने माया आंटी का नग्न शरीर देख डाला. नाइटी का आवरण मेरी कल्पना ने नोच कर फेंक दिया था.
माया आंटी के हाथ मेरे पैरों पर फिसल रहे थे और मेरी नजरें मेरी कल्पना में उनके शरीर पर एकतक लगी हुई थी. मैं अपनी निगाहों से अपने विचारों में उन्हें पैरों से लेकर सिर तक नग्न कर रहा था और वह अपने हाथों से मेरे पैरों की मालिश.
अब वह मेरे पेट और सीने पर तेल लगा रहीं थीं. मैं उनके सामने साक्षात था और वह मेरी कल्पना में थी. अचानक मुझे अपना तोलिया हटा हुआ महसूस हुआ यह अकस्मात हुआ था उसे खोलने की प्रक्रिया में माया आंटी का कोई योगदान था यह मैं नहीं जानता पर मेरा तनाव से भरा हुआ लिंग निश्चय ही माया आंटी की दृष्टि में आ गया होगा. मेरी आंखें अभी भी बंद थी पर सांस तेजी से चल रही थी. आगे क्या होने वाला था मैं खुद नहीं जानता. मुझे नेयाति पर भरोसा था. माया जी के हाथ मेरी जांघों के ऊपर मेरी कमर तक आ रहे थे पर बेचारा राजकुमार अभी किसी भी स्पर्श से वंचित था.
वह सिर्फ पूर्वानुमान में ही अपनी उत्तेजना कायम किए हुए तन कर खड़ा था. शायद कभी कोई उसका भी ख्याल रखेगा पर माया जी एक सुरक्षित दूरी बनाते हुए मेरी कमर और जाँघों के आसपास अपना हाथ घुमा रहीं थीं. मैं स्वयं उत्तेजना से पागल हो रहा था मैं चाहता था कि कब मेरा राजकुमार उनके हाथों में खेले पर मुझे सिर्फ और सिर्फ इंतजार करना था. अचानक मैंने माया आंटी को अपने दोनों पैरों पर बैठता हुआ महसूस किया उन्होंने मेरे दोनों पैरों को आपस में सटा दिया था और स्वयं मेरे घुटनों के थोडा उपर मेरी जाँघों पर पर बैठ गई थी. उन्होंने अपना सारा वजन अपने घुटनों पर ही रखा था जो मेरे दोनों तरफ बिस्तर पर थे.
मेरे पैर उनकी नंगी जांघों से टकराते ही मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे बैठते समय उनकी नाइटी स्वतः ही ऊपर उठ गई थी. उनकी नग्न जाँघों का स्पर्श अपनी जांघों से स्पर्श होता महसूस कर मेरा राजकुमार और तन गया.
मैंने अपनी आंखें अभी भी बंद की हुई थी मैंने माया आंटी को पिछले कई वर्षों में उन्हें कामुक निगाहों से नहीं देखा था. वह एक खूबसूरत महिला थी और मेरी होने वाली सास थीं. उनके हाथ मेरी जांघों पर से होते हुए मेरे पेट और छाती तक आ रहे थे. जब वह आगे की तरफ आती तो कई बार उनका पेट मेरे राजकुमार से टकराता उसकी उत्तेजना लगातार बढ़ रही थी. माया आंटी ने अपनी नाइटी उतारी थी या नहीं अब तो मैं नहीं जानता परंतु उनकी जांघे मेरे पैरों से छूती हुए एक कोमल और कामुक एहसास जरूर दे रही थी.
कुछ ही देर में मैंने उनके नग्न दिन नितंबों को अपने पैरों पर महसूस किया यह अद्भुत एहसास था मुझे ऐसा लगा जैसे वह पूरी तरह नग्न हो गई थी. मैं अपनी आंखें बंद किए हुए इस सुख को अनुभव कर रहा था अचानक वह अपनी कमर और पीछे की तरफ ले गई उनके कोमल नितंब मुझे अपने पैर के पंजों से छूते हुए महसूस हुए. वह मेरे पैरों की मालिश करते हुए और मेरे पेट तक आप आ रही थी इसके ऊपर आना संभव नहीं हो पा रहा था जब वह मेरे पेट तक पहुचातीं उनका मुख मंडल मेरे राजकुमार के समीप होता उनकी सांसों की गर्मी मेरे राजकुमार को कभी-कभी महसूस हो रही थी. राजकुमार का इंतज़ार ख़त्म हो रहा था.
[ मैं माया ]
मैं उसके पैरों पर तेल लगाते हुए उसकी नाभि तक जा रही थी बीच में उसका उत्तेजित लिंग मुझे आमंत्रण दे रहा था मैंने अपने हाथों से उसे पहली बार छुआ. राजकुमार में अचानक हलचल हुई मैंने मानस का चेहरा देखा उसने अभी भी अपनी आंखें बंद की हुई थी परंतु मेरे स्पर्श का उस पर असर हुआ था. उसके चेहरे पर सुखद अनुभूति हुई थी. अब मैं उसकी जांघों से कमर तक जाते समय अपने हाथ से उसके राजकुमार को स्पर्श कर रही थी और राजकुमार उछल रहा था. मानस का लिंग वास्तव में आकर्षक था. मेरी छाया उसे अकेला छोड़ गयी थी यह सोचकर मुझे मानस के लिंग को देखकर प्यार आ रहा था. मुझसे रहा नहीं गया और मैंने नीचे झुक कर उस लिंग को चूम लिया. मेरे होठों का स्पर्श पाकर मानस की आंखें कुछ देर के लिए खुलीं पर उसने आखें बंद कर लीं. वह समझदार था. शायद वह समझता था की उसे शर्म के परदे को कायम रखते हुए मैं उसे ज्यादा सिख दे सकती थी.
मेरे मन में एक पल के लिए आया कि मैं मानस के लिंग को पूरी तरह अपने मुंह में ले लूं. पर मैं रुक गई मैंने अभी उसे अपने हाथों में लेकर और उत्तेजित करने के लिए सोचा. मेरे दिमाग में बार-बार वही बातें आ रही थी. यह वाही लिंग है जिसने मेरी बेटी छाया की कोमल योनी के साथ पिछले कई वर्षों तक संसर्ग किया है. मैंने इस सुंदर लिंग से अपनी प्यारी बेटी की छाया को जुदा कर दिया था. यह छाया के लिए सर्वाधिक प्रिय रहा होगा ऐसा मेरा अनुमान था. मैंने लिंग के अग्रभाग को अपने हथेलियों से से सहलाया. मुझे अपने नितंबों पर मानस के पैरों का दबाव महसूस हुआ. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसा मानस अपनी जांघों को ऊपर उठा रहा था. मैंने अपने दोनों हाथों से उसके लिंग को सहलाना शुरू कर दिया. मेरा बाया हाथ लिंग के निचले हिस्से पर अपनी पकड़ बनाए हुआ था तथा अंगूठे उसके अंडकोष को भी सहला रहे थे. मैं दाहिने हाथ से उसके लिंग को नीचे से ऊपर तक सहला रही थी. शिश्नाग्र तक पहुंचते-पहुंचते मैं अपनी हथेलियों का दबाव बढ़ा देती और मानस के चेहरे पर उत्तेजना और बढ़ जाती. शिश्नाग्र एक दम लाल हो गया था. गोरे रंग के राज्कुमार का लाल मुह देख कर मुझे एसा लगा हैसे कोई छोटा बच्चा गुस्से से लाल हो गया हो. मुझे एक बार फिर उसे चुमने की इच्छा हुई.
मैंने अपने होठों को मानस के लिंग पर जैसे ही रखा वीर धारा फूट पड़ी. मैं इस अप्रत्याशित वीर्य स्खलन से अव्यवस्थित हो गई वीर्य की पहली धार मेरे होंठो और चेहरे पर गिरी. मैंने अपना चेहरा हटाया परंतु तब तक मानस का हाथ उसके लिंग पर आ चुका था.
Smart-Select-20201217-140846-Chrome मैंने अपने हाथ से उसका लिंक पकड़े रखा था हमारी उंगलिया मिल गयीं. वीर्य उसके लिंग से लगातार बाहर हो रहा था और वह मानस के शरीर पर तथा मेरे शरीर पर गिर रहा था. हम दोनों वीर्य को अपने शरीर पर ही गिराना चाह रहे थे. मानस शर्म वश एसा कर रहा था और मैं उत्तेजनावश. मानस ने अब तक अपनी आंखें खोल लीं थी. मुझे अपने वीर्य में भीगा हुआ देखकर वाह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था परंतु अब मैंने उसके चेहरे पर से नजर हटा ली थी.
मैं बिस्तर से उतर कर नीचे आ गई मेरी नाइटी ने स्वतः ही नीचे आकर मेरे नग्न जाँघों और को ढक लिया. मैं तेल का कटोरा अपने हाथों में लिये कमरे से बाहर आ गई. मेरे हाथ में मानस के वीर्य से सने हुए थे. यह वही वीर्य था जो आज से कुछ महीने पहले तक मेरी प्यारी छाया को भिगोया करता था. मैंने मानस के वीर्य से सने हाथों को एक बार फिर चूम लिया.
तीन-चार दिनों बाद छाया और मानस को एक साथ हंसते और साथ साथ बाहर घूमते हुए देख कर मेरे मन में एक बार लगा की फिर दोनों दोनों प्रेमी पास आ गए. अब मुझे मानस का हस्तमैथुन करने का थोड़ा अफसोस हो रहा था पर उस दिन अत्यधिक खुशी और कृतज्ञता में मैंने वह कदम उठा लिया था.
मुझे इस बात से खुशी थी की वो दोनों ही समझदार और जिम्मेदार थे. इसके अलावा वह दोनों एक साथ क्या करते होंगे यह मैं जानती तो जरूर थी पर उस बारे में मैंने सोचना बंद कर दिया. वह दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे मैंने भी उनकी खुशी में अपनी खुशी ढूंढ ली थी. अब मैं बिना किसी आत्मग्लानि के साथ शर्मा जी की बाहों में आनंद लेने देखने लगी.
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