XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
04-11-2022, 02:23 PM,
#55
RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
भाग - 33
दिन रविवार
सोमिल के वचन की लाज
(मैं सीमा)
रविवार को हमने दूसरा होटल बुक किया था। छाया ने सिर्फ हमारा कमरा विशेष रूप से सजाया था. हम चारों के बीच सिर्फ सोमिल ही ऐसा था जिसने आज तक संभोग सुख नहीं लिया था छाया अपने पति का संभोग सुख सुहागरात की तरह मनाना चाहती थी. सोमिल को उसकी सुहागरात के दिन दूसरे कमरे में हुई मानस और छाया के मिलन की जानकारी नहीं थी। उसे यह बताना उचित भी नही था।
मैं और छाया एक बार फिर उसी तरह सज धज कर होटल पहुंच गए थे। पार्लर वाली महिला हम दोनों को इस तरह दोबारा सजते हुए देख कर मुस्कुरा रही थी। उसे शायद यह हमारी कामुकता का प्रतीक लग रहा था। उसे हमारे साथ हुयी घटना की कोई जानकारी नहीं थी.
इस बार मानस स्वयं सोमिल को लेकर उस होटल में आए थे। मैं और छाया सोमिल के कमरे में बैठकर बातें कर रहे थे। मानस और सोमिल कमरे में आ चुके थे हमने उन्हें बिस्तर पर बैठा दिया और वापस दूसरे कमरे में आ गए। छाया भी हमारे पीछे पीछे चली आई थी सोमिल अपने सुहागरात के दिन की घटनाओं को एक बार फिर होते हुए महसूस कर रहे थे।
मानस और छाया के कमरे में आने के बाद उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया। मैंने भी अपने मिशन पर जाने की तैयारी कर ली थी। जाते समय मैंने मानस और छाया के साथ थोड़ा-थोड़ा पेप्सी पी और सोमिल के वचन की लाज रखने निकल पड़ी । छाया ने मुझे आलिंगन में लेकर मेरी रानी को अपनी हथेलियों से सहलाया और मेरे कान में बोला
"सीमा भाभी अपने मुझे और मानस को अपनाया है अब सोमिल को भी अपना लीजिए वह भी अब अपना ही है."
मैंने उसे गालों पर चुम लिया पर मैंने अपनी शैतानी कर दी थी। मानस की ग्लास में मैंने वियाग्रा की एक गोली डाल दी थी।
मैं भी चाहती थी कि मेरी प्यारी ननद और सहेली छाया रात भर मेरे साथ साथ जागती रहे। आखिर मै उसके वैवाहिक सुख के लिए ही सोमिल के पास जा रही थी….।
मैं मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर आ गयी वह दोनों मुझे सोमिल के कमरे में जाते देख रहे थे और मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

(मैं सीमा)

सोमिल बिस्तर पर बैठा इंतजार कर रहा था. मैं मानस और छाया को छोड़कर वापस आई और दरवाजे की सिटकनी लगा दी. वह यह देख कर बहुत खुश हुआ. उसे पूरी उम्मीद हो गई कि आज ही उसके वचन का पालन हो जाएगा. वह उठकर मेरे पास आ गया. मैं जानबूझकर उससे चिपक गई. मैंने उसके राजकुमार को अपने हाथों से सहलाया और बोला
“आज मैं आपकी हूं. अपने वचन का पालन कीजीए.”
सोमिल खुश हो गया था. और उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया. मैंने उसके पसंद की हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी हुई थी. उसने मुझे माथे पर चुंबन दिया धीरे-धीरे उसके चुंबन मेरे गालों तक पहुंच चुके थे. पर वह मेरे होठों को नहीं चूम रहा था शायद उसे इसकी अहमियत पता थी. मैं अब किसी और की पत्नी थी. कुछ ही देर में मैंने उसके कपड़े खोलने शुरू कर दिए उसकी पजामी निकल कर बाहर आ चुकी थी. और राजकुमार मेरे हाथों में खेल रहा था . मैं अभी तक राजकुमार को देख नहीं रही थी क्योंकि वह मुझे अपने से चिपकाए हुए था और मेरे गालों जो चूमे जा रहा था. राजकुमार को हाथों में लेकर एक अलग प्रकार की अनुभूति हो रही थी. इस राजकुमार को मैंने अपनी किशोरावस्था में दो-तीन वर्ष तक खिलाया था और जाने कितनी बार इसका वीर्य प्रवाह कराया था.
पर आज इसकी कद काठी कुछ अलग ही लग रहा थी. ऐसा लगता था जैसे पिछले दो-तीन वर्षों में सोमिल का राजकुमार और जवान हो गया था. मैं अभी भी उसे देख नहीं पाई थी.
मुझे अपनी पीठ पर सोमिल की उंगलियां महसूस हुयीं. वह मेरे वस्त्रों को खोलने के लिए व्याकुल था पर खोल नहीं रहा था. मैं अब उसकी प्रेमिका नहीं बल्कि सलहज थी. शायद वह शर्मा रहा था. मैंने उसके कान में बोला
“आज कपड़ों में ही अपना वचन पूरा करोगे क्या ?” वह हंस पड़ा. उसकी उसकी उंगलियां अब उसकी पसंदीदा साड़ी को मेरे शरीर से अलग कर रही थीं. कुछ ही देर में मैं गहरे हरे रंग का पेटीकोट और सजे धजे ब्लाउज में उसके सामने थी. मेरे सीने पर मंगलसूत्र ठीक वैसा ही था जैसा छाया के पास था. मैंने भी आज अपनी नथ दुबारा पहन ली थी. ब्लाउज हटाते ही उसकी नजर स्तनों पर की गई मेहंदी की सजावट पर गयी. उसे देखकर वह अत्यंत खुश हो गया वह स्तनों को चूमने लगा. उसे इस बात की उम्मीद नहीं थी की मैं इस तरह सज धज कर आउंगी . मेरे पास उसकी खुशी के लिए अभी और भी बहुत कुछ बाकी था.
वह मेरी नाभि को चुमता हुआ वह नीचे आया और मेरे पेटीकोट का नाडा खोल दिया. मेरी जांघों और राजकुमारी के ऊपर की गई मेहंदी से सजावट देख कर बहुत खुशी से झूम उठा. उसने अपना चेहरा मेरी राजकुमारी के पास रख दिया. और उसे बेतहाशा चूमने लगा. वह घुटनों के बल आ चुका था. मैं अभी भी खड़ी थी उसके हाथ मुझे आलिंगन में लिए हुए थे. उसके हाँथ मेरी जाँघों को पकडे हुए थे और उसका गाल मेरी रानी पर सटा था. वह अपने गालो और होंठों से मेरी जाँघों और पेट को चूमे जा रहा था. मैं खुद भी उसके बालों पर उंगलियाँ फिरा रही थी. आज हम दोनों जल्दी में नहीं थे. कुछ देर के बाद वह वापस उठ खड़ा उसकी आँख में खुसी के आंसू थे.
मेरी नजर उसके राजकुमार पर पड़ी वह पहले से ज्यादा बलिष्ठ और मजबूत लग रहा था. उसे देख कर मुझे एक अजीब तरह की सनसनी हुयी. यह मानस से अपेक्षाकृत काफी बड़ा था. मुझे मानस का लिंग लेने की आदत पड़ चुकी थी वह मेरी गहराइयों के हिसाब से उपयुक्त हो गया था परंतु सोमिल के राजकुमार की कद काठी देखकर मैं खुद दंग थी. एक बार के लिए मैं डर गई. कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे सुहागरात में अनुभव किया गया दर्द आज मुझे दोबारा मिलने वाला था. मैं थोड़ा डरी हुई थी. मेरा डर उसने पहचान लिया और मुझे चूम लिया.
कुछ ही देर में हम दोनों बिस्तर पर थे. मैंने बिस्तर पर पड़ा हुआ लाल तकिया अपनी रानी पर रख लिया था. शर्म तो मुझे भी आ रही थी. अपने पति को छोड़कर मैं अपने पुराने प्रेमी के सामने इस तरह सज धज कर नंगी लेटी हुयी थी.
वह मेरी रानी के दर्शन करना चाहता था. उसने कहा
“सीमा मैंने तुम्हारी योनि को याद कर हमेशा से अपना वीर्य बहाया है मैं उसके दर्शन करना चाहता हूँ” वह मासूम सा लग रहा था.
मैंने उसे प्यार से अपने पैरों के बीच ले लिया और अपनी जांघें फैला दी. पर तकिया अपनी जगह पर ही था.
मैंने कहा
“लो कर लो अपने वचन का पालन” यह कहकर मैंने तकिया हटा दिया.
वह ध्यान से मेरी राजकुमारी को देखने लगा. रानी के ऊपर लिखे आई लव यू से उसे बहुत खुशी हुई. उसने उसे चूम लिया. वो अपनी उंगलियों से मेरी रानी के होठों को छू रहा था. उसकी उंगलिया मेरे प्रेम रस से भीग रहीं थीं. वह उसकी खूबसूरती से हतप्रभ था. उसने धीरे से अपना चेहरा मेरी रानी के समीप लाया और उसे चूम लिया.
कुछ ही देर में वह अपनी जानकारी के आधार पर योनि को खुश करने लगा. मुझे उसकी इस अदा पर बहुत प्यार आ रहा था. पहले का अधीर सोमिल अब काफी परिवर्तित हो गया था. पहले वह इन सब गतिविधियों के दौरान खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाता था पर अभी वह बिल्कुल बदला बदला सा लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे उसमें मानस के कुछ गुण आ गए थे. वह मेरी राजकुमारी जो अब रानी बन चुकी थी को प्यार से चूम रहा था था तथा रानी से निकलने वाला प्रेम रस के अद्भुत स्वाद का आनंद भी ले रहा था. कुछ देर बाद मैंने उससे ऊपर की तरफ बुलाया मेरी रानी भी अब अधीर हो चुकी थी. अब तक उसके होंठ मेरे होंठों से नहीं मिले थे. मेरे दोनों स्तनों के बीच मंगलसूत्र देखकर वह थोड़ी देर के लिए रुका पर कुछ सोच कर आगे बढ़ गया. मैं उसकी मनोस्थिति समझ रही थी. मैंने उससे यही कहा आज के दिन में तुम्हारी वधू हूं मुझे ही अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करो. ऐसा कह कर मैंने उसके होठों पर अपना चुंबन जड़ दिया. मुझे उस पर एक बार फिर प्यार आ गया था.
वह अत्यंत खुश हो गया. उसे इस बात की उम्मीद नहीं थी. वह मेरे होंठों को अपने होंठों के अंदर लेकर चूसने लगा. कुछ ही देर में हम दो जिस्म एक जान हो चुके थे. सिर्फ उसके राजकुमार का मेरी रानी में प्रवेश का इंतज़ार था.
बहती नदी अपना रास्ता खुद खोज लेती है. इसी प्रकार राजकुमार ने रानी का मुख खोज लिया था. बहता हुआ प्रेमरस राजकुमार को रानी के मुख तक ले आया था. राजकुमार उस पर बार-बार दस्तक दे रहा था. होठों के चुंबन के दौरान मैंने उसकी पीठ पर अपने हाथों का दबाव बढ़ाया यह एक इशारा था. कुछ ही देर में सोमिल ने अपना राजकुमार मेरी रानी के मुख में उतार दिया. मुझे अपनी रानी में एक अद्भुत कसाव महसूस हो रहा था परंतु प्रेम रस के कारण राजकुमार अंदर घुसता ही चला जा रहा था मैंने अपनी जांघे पूरी तरह फैला लीं थीं ताकि दर्द कम हो. कुछ ही देर में मुझे लगा जैसे मैं भर चुकी हूं. राजकुमार के लिए आगे कोई जगह नहीं बची थी. मैंने अपनी रानी को देखने की कोशिश की परंतु देख ना सकी क्योंकि सोमिल पूरी तरह मेरे था. उसने अपने सीने को मुझ से थोड़ा अलग किया तब जाकर मैं अपनी रानी को देख पायी. राजकुमार अभी भी लगभग 1 इंच के आसपास बाहर ही था. मुझे पता था लिंग के बिना पूरा प्रवेश हुए सोमिल को आनंद नहीं आएगा. मैंने एक बार फिर हिम्मत करके उसे अपनी तरफ खींचा. सोमिल ने अब अपना लिंग पूरी तरह मेरे अंदर उतार दिया था. मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे राजकुमार का मुख मेरे गर्भाशय से टकरा रहा था. मुझे थोड़ा दर्द की अनुभूति भी हुई फिर भी मैंने उसे बर्दाश्त कर लिया. मुझे लगा जैसे मेरी सात नंबर की जूती में कोई आठ नंबर का पैर डाल दिया हो.

धीरे- धीरे सोमिल ने अपने राजकुमार को अंदर बाहर करना शुरू किया. रानी के सारे कष्ट अब खत्म हो गए थे. राजकुमार का आवागमन उसे प्रफुल्लित कर रहा था और मैं आनंद के सागर में डूब रही थी. सोमिल के चेहरे पर तृप्ति का भाव था. उसने अपना वचन पूरा कर लिया था. धीरे- धीरे उसकी गति बढ़ती चली गई. मैंने भी आज उसके इस उद्वेग को रोकने की कोशिश नहीं की. जब सोमिल अपने राजकुमार को पूरी तरह अन्दर कर देता तो मुझे कभी-कभी हल्का दर्द महसूस होता पर उसी समय मेरी भग्नासा पर रगड़ होती थी. यह रगड़ मुझे बहुत पसंद थी. सुख और दुःख साथ साथ मिल रहे थे. सुख ज्यादा था.
हम दोनों एक दूसरे से काफी देर तक प्यार करते रहे. रानी भी जैसे राजकुमार को हराने में लगी हुई थी. कोई पहले स्खलित नहीं होना चाह रहा था. और अंततः राजकुमार का उछलना बढ़ गया. मैं अपने राजकुमार को पराजित होता नहीं देख सकती थी. सोमिल की सांसे फूलने लगी थीं. मैंने अपने स्तनों की तरफ इशारा किया वह तुरंत ही मेरे स्तन चूसने लगा. स्तनों का चुसना रानी को स्खलित होने पर मजबूर कर दिया.
मैंने खुद ही अपनी रानी को हरा दिया था. मैं स्खलित हो रही थी. रानी के कंपन राजकुमार ने महसूस किए होंगे और वह भी स्खलित होना प्रारंभ हो गया. किसके कंपन ज्यादा थे यह समझ पाना बड़ा कठिन था. जब तक मेरी राजकुमारी स्खलित होती रही उसका राजकुमार उछलता रहा. रानी में उसके उछलने लायक जगह तो नहीं थी फिर भी वह अपनी उछाल का अनुभव मुझे दे रहा था. सोमिल ने अपने सारा वीर्य मेरी रानी के अंदर उड़ेल दिया था. उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि वह मुझे गर्भवती कर सकता है. मैंने भी उसे नहीं रोका आखिर मैं विवाहिता थी. वह बहुत खुश दिखाई पड़ रहा था. मैंने उसके होठों पर फिर चुंबन लिया.
कुछ देर बाद वह मुझसे अलग हुआ और मेरे बगल में लेट गया. हम दोनों अभी भी एक दूसरे की बाहों में थे. मुझे मेरी जांघों से सोमिल का वीर्य बहता हुआ महसूस हो रहा था पर मैंने उसे यथास्थिति में छोड़ दिया.
कुछ ही देर में हम दोनों फिर से पुरानी बातें करने लगे. उसने अचानक मुझसे पूछा
“छाया कहाँ है?”
“वह भी संभोग में लिप्त होगी.”
“पर किसके साथ?”
“अपने प्यारे मानस भैया के साथ”
उसकी आँखे फटी रह गयीं.
“परेशान मत हो तुम्हारे वचन ने ही उन्हें यह मौका दिया है। छाया अपनी सुहॉगरात के दिन तक कुवारी थी। मैंने तुम्हे ये बात बतायी भी थी” वह पुरानी बाते सोचने लगा.
मैंने उसे छाया और मानस के प्रेम संबंधों के बारे में विस्तार पूर्वक बता दिया. वह बड़े आश्चर्य से यह बात सुन रहा था और अपने मन ही मन उन परिस्थितियों की कल्पना कर रहा था.
यह जानने के बाद की छाया के साथ मानस ने सुहागरात मनाई हैं सोमिल के मन में साहस आ गया और वह एक बार फिर से अपने राजा बन चुके राजकुमार को मेरी रानी में प्रवेश कराने को उत्सुक था. मैं उसका इशारा समझ चुकी थी. इस बार मैंने कमान संभाल रखी थी. सोमिल नीचे लेटा हुआ था और मैं उसके ऊपर थी. मै राजकुमार को मैं अपनी स्वेच्छा से अपने अंदर ले सकती थी. मैंने पिछले कुछ महीनों में मानस के साथ संभोग करते हुए अपनी कमर को हिलाने में दक्षता प्राप्त कर ली थी. सोमिल को आज रात मैं सारे सुख दे देना चाहती थी जिसकी तलाश में वह कई दिनों से भटक रहा था. उसकी रात को यादगार बनाने के लिए मैंने अपनी सारी कुशलता का प्रयोग कर दिया था. हम दोनों एक बार फिर स्खलित हो चुके थे.
तुम्हारा वचन पूरा हो गया है. वह कुछ बोला नहीं सिर्फ मुस्कुराता रहा. हम दोनों ने कुल 5 बार संभोग किया वह खुश था और मैं भी. मैंने उसकी सुहागरात यादगार बना दी थी.

मानस के कमरे में
(मैं छाया)

मुझे अपनी तकदीर पर गर्व हो रहा था. मैंने हमेशा भगवान से यही मांगा था कि मेरा कौमार्य भेदन मानस के हाथों ही हो पिछले रविवार मेरी सुहागरात के दिन मुझे वह सुख प्राप्त हो चुका था. मैं भगवान की शुक्रगुजार थी . मेरा विवाह अवश्य सोमिल से हुआ था पर मेरे मन में मानस की छवि बसी हुई थी. पिछले दिनों जिन परिस्थितियों का निर्माण हुआ था और जिस तरह मानस और सीमा ने उसे संभाला था यह एक करिश्मा ही था.
सीमा के सोमिल के कमरे में चले जाने के बाद मैं और मानस भैया अपने कमरे में आ गए थे। सीमा दीदी ने आज मुझे जबरदस्ती सजवा दिया था। मेरी सुहागरात तो पहले ही पूरी हो गई थी और हमने उसका जी भर कर आनंद भी उठाया था पर सीमा शायद इतने से संतुष्ट नहीं थी।
आज उसे हमें पास लाने का एक और मौका मिल गया था। पिछले छह दिनों में जो मानसिक दंश मैंने झेला था शायद वह उसे मुझे मानस की बाहों में सौंप कर उसे मिटाना चाहती थी।
मैं और मानस भैया बिस्तर पर लेटे सीमा को ही याद कर रहे थे। हमारे संभोग में अब पहले मिलन वाली बात नहीं थी। हम उसके पश्चात भी संभोग कर चुके थे। सीमा की बातें करते करते मानस भैया के लिंग में उत्तेजना बढ़ने लगी।
मानस भैया के साथ संभोग करना हर दिन एक नया अनुभव देता था। वह मेरे कामदेव थे और मैं उनकी रति। आज भी हम दोनों अपने कौशल के साथ पुनः संभोग रत हो गए थे। आज मुझे मानस भैया के लिंग में अद्भुत तनाव महसूस हो रहा था। इतना तनाव मैंने पहली बार महसूस किया था। उनका राजकुमार फूल कर थोड़ा मोटा भी हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर खून का अद्भुत प्रवाह हो रहा था। मेरी रानी इस बदलाव को महसूस कर रही थी।
संभोग करते समय यह पहली बार हुआ था कि मैं स्खलित हो चुकी थी पर राजकुमार का तनाव जस का तस था। वह अपने राजकुमार को लगातार हिलाये जा रहे थे अंत में मुझे हार माननी पड़ी। मैं उनके उत्तेजित लिंग को स्खलित नहीं करा पायी थी।
मैं मानस भैया की बहुत इज्जत करती थी पर कामकला में उनसे हारना मेरी फितरत में नहीं था। हम दोनों ने कामकला एक साथ सीखी थी।
मैं पुनः अपनी थकी हुई रानी को लेकर उनके ऊपर आ गई थी। मैं अपने छोटे अनुभव और कौशल से उन्हें स्खलित करने का प्रयास करने लगी। परंतु जाने आज उसे कौन सी विशेष शक्ति प्राप्त थी। मेरे जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी मैं मानस भैया को स्खलित नही कर पायी। राजकुमार उद्दंड बालक की तरह तन कर खड़ा था मेरी मान मुनहार और आलिंगन का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा था मैं थक चुक्की थी मेरी रानी स्खलित होकर दूसरी बार पराजित हो चुकी थी।
मानस भैया अपनी विजय पर आनंदित थे वह मुझे बच्चे की तरह प्यार कर रहे थे उनका राजकुमार मेरी हथेलियों के स्पर्श से उछल तो जरूर रहा था पर अपना वीर्य त्याग करने को तैयार नहीं था मैं पशोपेश में थी।
मैंने अब मैंने राजकुमार को अपने होठों के बीच ले लिया और अपनी जीह्वा के प्रहार से उसे उत्तेजित कर दिया उसकी उछाल लगातार बढ़ रही थी। इसी अवस्था में मैंने मानस भैया को संभोग के लिए आमंत्रित कर दिया। मैं पीठ के बल लेट गई और अपनी जांघो को फैला दिया अपनी सुंदर रानी के दोनों होठ मैंने स्वयं ही अपनी उंगलियों से अलग कर दिया। मानस भैया इस कामुक आमंत्रण से बेचैन हो उठे। वह पूरे उद्वेग से अपने राजकुमार को मेरी रानी में प्रवेश करा कर प्रेमयुद्ध में कूद पड़े। उनकी कमर अद्भुत तेजी के साथ हिलने लगी। उनका राजकुमार द्रुतगति से मेरी रानी के अंदर बाहर होने लगा। मेरी रानी पहले ही दो बार स्खलित हो चुकी थी और आकार में फूल गई थी जिससे राजकुमार पर उसका दबाव और भी बढ़ गया था। मुझे मीठा मीठा दर्द का एहसास भी हो रहा था। उस अद्भुत दबाव से अंततः मानस भैया का राजकुमार स्खलित होने के लिए तैयार हो गया था। मानस भैया की आंखें लाल थी उन्होंने जैसे ही मेरे होठों को छू कर मुझे प्यार किया। राजकुमार ने अपना लावा उगल दिया। मैं अपने अंदर एक बार फिर अपने राजकुमार को फूलते और पिचकते हुए महसूस कर रही थी।
मैं थक कर चूर हो चुकी थी। मानस भैया ने मुझे ढेर सारे चुंबन लिए और अपनी गोद में लेकर प्यार करते हुए मुझे सुलाने लगे। वह मुझसे इतना प्यार क्यों करते थे यही सोचते हुए मैं सो गयी।
दोनो सहेलियों का मिलन
[मैं सीमा]
मैंने देखा घड़ी में 7:00 बज चुके थे. हम लोग खुद सुबह 4:30 बजे तक संभोगरत थे. मुझे पूरी उम्मीद थी छाया और मानस भी लगभग ऐसे ही जगे होंगे मेरी वियाग्रा ने छाया को सोने नही दिया होगा।. घर जाना आवश्यक था. मैंने छाया के दरवाजे पर अपनी हथेली से दस्तक दी. वह उठी और पास आकर पूछा कौन है? उसे पूरी उम्मीद थी मैं ही होंउगी क्योंकि हमने पहले ही निश्चित कर लिया था कि सुबह 7:00 बजे उठ जाएंगे. छाया सफेद चादर में लिपटी हुई थी दरवाजा खोलने आई थी. उसे सफेद चादर में लिपटा हुआ देखकर मुझ से रहा न गया मैं अंदर आ गई. बिस्तर पर मानस पेट के बल सोये हुए थे. कमरे में हल्की रोशनी थी. मैंने रूम की एक लाइट जला दी. मैंने छाया की तरफ देखा. वह मुस्कुरा दी. मैंने अपनी नाइटी पहनी हुई थी मैंने छाया की चादर हटाने की कोशिश की. वह शर्मा रही थी पर मैने उसकी चादर हटा दी. वह आकर मुझसे लिपट गई वह पूर्णता नग्न थी. मैंने उससे कहा “मुझे राजकुमारी माफ करना रानी साहिबां के दर्शन करने हैं.” वह हंसने लगी. पास पड़ी टेबल पर अपने नितम्बों को सहारा देकर उसने अपनी जांघे फैला दीं. उसकी रानी फूली फूली दिख रही थी. मैंने अपनी हथेली से उसे छूना चाहा पर छाया ने कहा
“दीदी अभी नहीं”
मैं समझ गइ की रानी पर एक साथ हुये प्रहारों ने उसे संवेदनशील बना दिया था. मैंने फिर से उसे चूम लिया. छाया भी कहां मानने वाली थी. उसे मेरी वह बात याद थी कि सोमिल का लिंग मानस से अपेक्षाकृत बड़ा है. उसने मुझसे बिना पूछे मेरी नाइटी उठा दी. और झुककर मेरी रानी साहिबा को देखा. जो स्थिति छाया की थी लगभग वही स्थिति मेरी थी.
हम दोनों एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा दिए. एक बार फिर गले लग कर मैंने उसे तुरंत तैयार होने के लिए कहा और वापस अपने कमरे में आ गयी. हम दोनों ननद भाभी ने आज फिर अद्भुत सुख को प्राप्त किया था और आज हम सभी की मनोकामना पूर्ण हो गयी थी.


समाप्त
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