सुहागरात से पहले
06-02-2017, 04:58 PM,
#1
सुहागरात से पहले
मेरी सगाई की तारीख पक्की हो गई थी। मैं जब सुनील से पहली बार मिली तो मैं उसे देखती रह गई। वो बड़ा ही हंसमुख है। मज़ाक भी अच्छी कर लेता है। मैं ३ दिनों से इन्दौर में ही थी। वो मुझे मिलने रोज़ ही आता था। हम दोनो एक दिन सिनेमा देखने गए। अंधेरे का फ़ायदा उठाते हुए उन्होंने मेरे स्तनों का भी जायज़ा ले लिया। मुझे बहुत अच्छा लगा था।

पापा ने बताया कि उज्जैन में मन्दिर की बहुत मान्यता है, अगर तुम दोनों जाना चाहो तो जा सकते हो। इस पर हमने उज्जैन जाने का कार्यक्रम बना लिया और सुबह आठ बजे हम कार से उज्जैन के लिए निकल पड़े। लगभग दो घण्टे में ७०-७५ किलोमीटर का सफर तय करके हम होटल पहुँच गये.

कमरे में जाकर सुनील ने कहा-"नेहा फ्रेश हो जाओ. ..नाश्ता करके निकलेंगे. ."

मैं फ्रेश होने चली गयी. फिर आकर थोड़ा मेक अप किया. इतने में नाश्ता आ गया. नाश्ते के बीच बीच में वो मेरी तरफ़ देखता भी जा रहा था. उसकी नज़ारे मैं भांप गयी थी. वो सेक्सी लग रहा था.

मैंने कहा -"क्या देख रहे हो. .."

"तुम्हे. .... इतनी खूबसूरत कभी नहीं लगी तुम. ."

"हटो. ....." मैं शरमा गयी.

"सच. ..... तुम्हे बाँहों में लेने का मन कर है"

"सुनील !!! "

"आओ मेरे गले लग जाओ. ."

'वो कुर्सी से खड़ा हो गया और अपनी बाहें फैला दी. मैं धीरे धीरे आंखे बंद करके सुनील की तरफ़ बढ गयी. उसने मुझे अपने आलिंगन में कस लिया. उसके पेंट में नीचे से लंड का उभार मेरी टांगों के बीच में गड़ने लगा. मैं भी सुनील से और चिपक गयी. उसने मेरे चेहरे को प्यार से ऊपर कर लिया और निहारने लगा. मेरी आंखे बंद थी. हौले से उसके होंट मेरे होंटों से चिपक गए. मैंने अपने आपको उसके हवाले कर दिया. वो मुझे चूमने लगा. उसने मेरे होंट दबा लिए और मेरे नीचे के होंट को चूसने लगा. मैं आनंद से भर उठी. उसके नीचे का उभार मेरी टांगों के बीच अब ज्यादा चुभ रहा था. मैंने थोड़ा सेट करके उसे अपनी टांगों के बीच में कर लिया. अब वो सही जगह पर जोर मार रहा था. मैं भी उस पर नीचे से जोर लगा लगा कर चिपकी जा रही थी.

वो अलग होते हुए बोला -"नेहा.. .एक बात कहूं. ..."

"कहो सुनील"

"मैं तुम्हे देखना चाहता हूँ. ..."

मैं उसका मतलब समझ गयी , पर उसको तड़पाते हुए मजा लेने लगी. ......."तो देखो न. ..सामने तो खड़ी हूँ. .."

"नहीं. ..ऐसे नहीं. ......"

"मैंने इठला कर कहा -"तो फिर कैसे.. "

"मतलब. ..कपडों में नहीं. .."

"हटो सुनील. ...चुप रहो. .."

"न. .नहीं. .मैं तो यूँ ही कह रहा था. .. चलो. ..अच्छा. ."

मैं उस से लिपट गयी. ." मेरे सुनील. ... क्या चाहते हो. .... सच बोलो. .

"क कक्क कुछ नहीं. .. बस. ."

"मुझे बिना कपडों के देखना चाहते हो न. ...."

उसने मुझे देखा.. . फिर बोला. ." मेरी इच्छा हो रही थी. . तुम्हे देखने की. ...क्या करून अब तुम हो ही इतनी सुंदर. ..."

"मैं धीरे से उसे प्यार करते हुए बोली - " सुनो मैं तो तुम्हारी हूँ. .... ख़ुद ही उतार लो. ."

"सच. ....." उसने मेरे टॉप को ऊपर से धीरे से उतार दिया. मैं सिहर उठी.

"सुनील. .... आह. .."

ब्रा में कसे मेरे उरोज उभार कर सामने आ गए. सुनील ने प्यार से मेरे उरोजों को हाथ से सहलाया. मुझे तेज बिजली का जैसे करंट लगा. ...फिर उसने मेरी ब्रा खोल दी. उसकी आँखे चुंधिया गयी. उसके मुंह से आह निकल पड़ी. मैंने अपनी आंखे बंद करली. वो नज़दीक आया उसने मेरे उभारों को सहला दिया. मुझे कंपकंपी आ गयी. उस से भी अब रहा नहीं गया. ..मेरे मस्त उभारों की नोकों को मुंह में भर लिया. .और चूसने लगा. .

"सुनील मैं मर जाऊंगी. .....बस. ..करो. ." मेरे ना में हाँ अधिक थी.

उसने मेरी सफ़ेद पेंट की चैन खोल दी और नीचे बैठ कर उसे उतारने लगा. मैंने उसकी मदद की और ख़ुद ही उतार दी. अब वो घुटनों पर बैठे बैठे ही मेरे गहरे अंगों को निहार रहा था. धीरे से उसके दोनो हाथ मेरे नितम्बों पर चले गए और वो मुझे अपनी और खींचने लगा.। मेरे आगे के उभार उसके मुंह से सट गए. उसकी जीभ अब मेरी फूलों जैसे दोनों फाकों के बीच घुस गयी थी. मैंने थोड़ा और जोर लगा कर उसे अन्दर कर दी. फिर पीछे हट गयी.

"बस करो ना अब.. ...." वो खड़ा हो गया. ऐसा लग रहा था की उसका लंड पेंट को फाड़ कर बाहर आ जाएगा

"सुनील. .अब मैं भी तुम्हे देखना चाहती हूँ. ... मुझे भी देखने दो.. "

सुनील ने अपने कपड़े भी उतार दिए. मैं उसका तराशा हुआ शरीर देख कर शर्मा गयी. अब हम दोनों ही नंगे थे. उसका खड़ा हुआ लंड देख कर और उसकी कसरती बॉडी देख कर मन आया कि. .... हाय. ....ये तो मस्त चीज़ है. .. मजा आ जाएगा. .... पर मुझे कुछ नहीं कहना पड़ा. वो ख़ुद ही मन ही मन में तड़प रहा था. वो मेरे पास आ गया. उसका इतना कड़क लंड देख कर मैं उसके पास आकर उस से चिपकने लगी. मुझे गांड कि चुदाई में आरंभ से ही मजा आता था. मुझे गांड मराने में मजा भी खूब आता है. उसका कड़क, मोटा और लंबा लंड देख कर मेरी गांड चुदवाने कि इच्छा बलवती होने लगी.

मेरी चूत भी बेहद गीली हो गयी थी. उसका लंड मेरी चूत से टकरा गया था. वो बहुत उत्तेजित हो रहा था. वो मुझे बे -तहाशा चूम रहा था. "नेहा. ..डार्लिंग. .... कुछ करें. ....."

"सुनील. ..... मत बोलो कुछ. .." मैं ऑंखें बंद करके बोली " मैं तुमसे प्यार करती हूँ. ..मैं तुम्हारी हूँ. . मेरे सुनील. ."

उसने मुझे अपनी बलिष्ठ बाँहों में खिलोने की तरह उठा लिया. मुझे बिस्तर पर सीधा लेटा दिया. मेरे चूतडों के नीचे तकिया लगा दिया. वो मेरी जांघों के बीच में आकर बैठ गया। धीरे से कहा -"नेहा मैं अगर दूसरे छेद को काम में लाऊं तो. .." मैं समझ गयी कि ये तो ख़ुद ही गांड चोदने को कह रहा है. मैं बहुत खुश हो गयी."चाहे जो करो मेरे राजा. ..पर अब रहा नहीं जाता है."

" इस से सुरक्षा भी रहेगी. .किसी चीज का खतरा नहीं है. ..."

"सुनील. ..अब चुप भी रहो न. ..... चालू करो न. ...." मैंने विनती करते हुए कहा.

मैंने अपनी दोनों टांगे ऊँची करली. उसने अपने लंड कि चमड़ी ऊपर खीच ली और लंड को गांड के छेद पर रख दिया. मैं तो गंद चुदवाने के लिए हमेशा उसमे चिकनाई लगाती थी. उसने अपना थूक लगाया और. ... और अपने कड़े लंड की सुपारी पर जोर लगाया. सुपारी आराम से अन्दर सरक गयी. मैं आह भर उठी.

"दर्द हो तो बता देना. .नेहा. ."

"सुनील. ..... चलो न. ....आगे बढो. ... अब. ." मैं बेहाल हो उठी थी. पर उसे क्या पता था की मैं तो गांड चुदवाने और चुदाई कराने मैं अभ्यस्त हूँ. उसने धीरे धीरे धक्के मारना चालू किया.

"तकलीफ़ तो नहीं हुई...नेहा. .."

"अरे चलो न. ...जोर से करो ना. ..क्या बैलगाडी की तरह चल रहे हो. .." मुझसे रहा नहीं गया. मुझे तेजी चाहिए थी.

सुनते ही एक जोरदार धक्का मारा उसने. ... अब मेरी चीख निकल गयी. लंबा लंड था. .....बहुत अंदर तक चला गया. अपना लंड अब बाहर निकल कर फिर अन्दर पेल दिया उसने. ..... अब धक्के बढने लगे थे. खूब तेजी से अन्दर तक गांड छोड़ रहा था. . मुझे बहुत मजा आने लगा था. "हाय. .मेरे. .राजा. .... मजा आ गया. ... और जोर से. .. जोर लगा. ..जोर से. ... हाय रे. ..."

उसके मुंह से भी सिस्कारियां फूट पड़ी. "नेहा. .... ओ ओह हह ह्ह्ह. .... मजा. .आ रहा है. .. तुम कितनी अच्छी हो. .."

"राजा. ...और करो. .... लगा दो. ......अन्दर तक. ..घुसेड दो. .. राम रे. ..तुम कितने अच्छे हो. ..आ आह हह. ..रे. ."

मेरी गांड चिकनी थी. ..उसे चूत को चोदने जैसा आनंद आ रहा था. ... मेरी दोनों जांघों को उसने कस के पकड़ रखा था. मेरी चुन्चियों तक उसके हाथ नहीं पहुँच रहे थे. मैं ही अपने आप मसल रही थी. और सिस्कारियां भर रही थी. मैंने अब उसे ज्यादा मजा देने के लिए अपने चूतडों को थोड़ा सिकोड़ कर दबा लिया. पर हुआ उल्टा. ........
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