Hindi Kahani बड़े घर की बहू
06-10-2017, 03:33 PM,
RE: Hindi Kahani बड़े घर की बहू
कामया लेटी हुई अपने अतीत और वर्तमान की घटनाओं में डूब गई थी कहाँ से कहाँ आ गई थी वो उस घर से बाहर निकलते ही वो एक सेक्स की देवी बन गई थी लाखा, भीमा और भोला हाँ और ऋषि भी और अब गुरुजी और पता नहीं क्या-क्या चुना हुआ है उसकी किस्मत में पर कामेश कहाँ है उसे उसकी चिंता नहीं है एक बार भी उसने कॉंटक्ट नहीं किया और नहीं उसकी कोई खबर ही है कामेश भी पैसा कमाने की जुगत में लगा है और पापा जी भी ना कोई उसकी चिंता और ना ही कोई खबर पर कामया की चिंता वो लोग क्यों करे भला वो तो गुरुजी की संपत्ति की मालकिन हो गई है और उसे संभालने के लिए कामेश और पापा जी को तो मेहनत करनी ही पड़ेगी नहीं तो कामया क्या संभाल पाएगी कामया को तो अपनी जगह 
पक्की करना है बस और गुरुजी के सिखाए हुए तरीके से चलना है और क्या बस इतना सा तो काम है पूरे मजे और वैभव भरी जिंदगी है उसकी उसे तो कोई काम करने की जरूरत ही नहीं है बस हुकुम देना है और और हाँ… उसे गुरुजी जैसा भी बनना है अपने आप पर काबू रखना है अपने मन और तन को काबू में रखना है बस पर यह होगा कैसे वो तो खुद पर काबू नहीं रख पाती उसे तो सेक्स की भूख अब तो और ज्यादा लगने लगी है इस वैभव भरी जिंदगी की उसे आदत लग गई है और हर कहीं उसे सेक्स की इच्छा होती थी हर कहीं तो वो महिलाए उसे नहलाते हुए तेल की मालिश करते हुए उबटान लगाते हुए और कपड़े तक पहनते हुए उसे उत्तेजित ही करती ही रहती थी अभी खना खाकर जब वो कमरे में आई थी तो उन में से दो महिलाओं ने उसे इत्र से और पाउड़र से अच्छे से मालिश किया था फिर वो पेय पीलाकर चली गई थी पर उसे नींद नहीं आ रही थी उसे तो रूपसा और मंदिरा की हरकत के बारे में याद आ रही थी उस महिला के बारे में सोचकर ही वो उत्तेजित सी हो उठी थी उसे क्या करना चाहिए पता नहीं पर उत्तेजना बदती जा रही थी ना चाहते हुए भी वो अपनी हाथों को अपनी जाँघो के बीच में ले गई थी और धीरे-धीरे अपनी योनि को छेड़ने लगी थी होंठों से एक आह निकल गई थी इतने में कमरे का दरवाजा खुला और एक दासी जल्दी से उसके पास आ गई थी 
दासी- क्या हुआ रानी साहिबा कुछ चाहिए 

कामया- नहीं बस ऐसे ही क्यों … … 

दासी- जी वो आवाज आई थी ना इसलिए 

कामया एक बार सोचने लगी जरा सी आवाज कमरे के बाहर कैसे चली गई थी क्या उसने बहुत जोर से चिल्ला दिया था नहीं नहीं अपने हाथों को जल्दी से निकाल कर वो सोने लगी थी दासी थोड़ी देर खड़ी रही और मूड कर जाने लगी थी की कामया ने उसे आवाज दी 
कामया- सुनो 
दासी- जी 
कामया- वो रूपसा और मंदिरा कहाँ है 

दासी- जी वो नीचे कमरे में होंगी बुलाऊ … … 

कामया नहीं- सब सो गये है क्या … 

दासी- नहीं गुरुजी जाग रहे है बाकी सोने वाले होंगे पता नहीं इस माल में आप और गुरुजी ही है नीचे का पता नहीं 

कामया- गुरुजी क्या कर रहे है … 

दासी जी पता नहीं रानी जी हमें जाने की अग्या नहीं है कहे तो आपको उनके पास ले चले … 

कामया- नहीं नहीं तुम जाओ 

कुछ सोचती हुई कामया एक बार उठी और दासी की ओर देखते हुए बोली 

कामया- गुरुजी कहाँ है मुझे कुछ काम है 

कहती हुई वो जल्दी से बेड से उतरगई थी और ढीले ढाले कपड़े को किसी तरह से व्यवस्थित करते हुए दासी के पीछे चलने लगी थी दासी भी कामया की ओर एक बार देखकर चुप हो गई थी वो कपड़ा उसके अंगो को छुपा कम रहा था बल्कि दिखा ज्यादा रहा था सिर के ऊपर से एक बड़ा सा गोलाकार काट कर बस ऊपर से ढाल दिया था ना कमर में कुछ बँधा था और नहीं कुछ सृंगार था 

साइड से उसके हर अंग का उतार चढ़ाव भी दिख रहा था सामने से और पीछे से थोड़ा बहुत ढँका हुआ था कमरे से बाहर आते ही सन्नाटे ने उसे घेर लिया था बस कुछ दूरी पर एक दासी और खड़ी थी दीवाल से चिपक कर शायद वही कमरा था गुरुजी का और पूरा फ्लोर खाली था बिना झिज़्के कामया ने अपने कदम गुरुजी के कमरे की ओर बढ़ा लिए थे दासी कुछ दूरी पर रुक गई थी और दूसरी दासी ने भी उसे झुक कर सलाम किया था और डोर के सामने से हट गई थी कामया जब डोर के सामने पहुँचि थी तो पलटकर एक बार उन दोनों दासी की ओर देखा था वो दूर जाती हुई देख रही थी यानी की पूरे फ्लोर में सिर्फ़ यह दो दासिया ही है हिम्मत करके उसने बड़े से डोर को धक्का दिया और खुलते ही वो अंदर दाखिल हो गई थी 

गुरु जी डोर से दूर पर्दो के बीचो बीच में एक बड़े से पलंग पर अधलेटे से दिखाई दिए डोर खुलते ही उनकी नजर भी डोर की ओर उठी थी और जैसे ही कामया को अंदर दाखिल होते देखा तो एक मधुर सी मुश्कान उनके होंठों पर दौड़ गई थी 

कामया ने घुसते ही डोर को धीरे से बंद कर दिया था और अंदर से लॉक भी लगा दिया था गुरुजी उसकी हरकतों को बड़े ध्यान से देख रहे थे दरवाजा बंद करने के बाद कामया ने एक नजर गुरु जी की ओर देखा जो की अब उठकर बेड पर बैठ गये थे और जो कुछ पढ़ रहे थे वो भी हटा दिया था 

कामया थोड़ा सा झिझकी थी पर अपने आपको ववस्थित करते हुए अपने कदम आगे गुरु जी के बेड की ओर बढ़ा दिए थे कामया थोड़ा सा डरी हुई थी थोड़ा सा घबराई हुई भी पर अपने तन के हाथों मजबूर कामया अपने शरीर की आग को ठंडा करने गुरुजी के पास आई थी 

गुरुजी- क्या बात है सखी … … 

कामया- जी वो नींद नहीं आ रही थी इसलिए 

गुरुजी- कोई बात नहीं सखी आओ मैं सुला दूं 
कहते हुए गुरुजी ने अपने हाथ कामया की ओर बढ़ा दिए थे कामया तब तक उनके बेड के पास पहुँच गई थी और जैसे ही गुरुजी की हाथों को अपनी ओर देखा झट से उसने अपने हाथ उसपर रख दिए थे अब उसे कोई डर नहीं था 
गुरुजी- आओ बैठो 
और अपने पास उसे बैठने का इशारा किया गुरुजी ऊपर से नंगे थे और नीचे सिर्फ़ एक लूँगी टाइप का छोटा सा कपड़ा बँधा था पूरा शरीर साफ दिख रहा था कामया उन्हें देखते ही उत्तेजना से भर गई थी पर एक झिझक थी जो उसे रोके हुए थी शायद वो झीजक ही खतम करने आई थी वो 
गुरुजी के पास बैठते ही 
गुरुजी- ठीक से बैठो सखी यह सब तुम्हारा ही है यहां इस आश्रम का हर चीज तुम्हारा है मैं भी तुम्हारा हूँ तुम इस अश्राम की मालकिन हो जिससे तुम जो कहोगी वो उसे करना है इतना जान लो इसलिए झीजक और शरम इस अश्राम के अंदर मत करना वो सब बाहरी दुनियां के लिए है 

कामया ठीक से बैठ गई थी उसके शरीर में जो कपड़ा था वो बैठते ही सरक कर उसकी जाँघो के बहुत ऊपर सरक गया था और साइड से बिल्कुल खुलकर सामने की ओर लटक गया था साइड से देखने में कामया का शरीर एक अद्भुत नजारा दे रहा था कमर से उठ-ते हुए उसके शरीर का और सुंदर और सुडौल जाँघो के नीचे उसकी टांगों का उउफ्फ… क्या लग रही थी नज़रें झुकाए बैठी कामया गुरुजी के आगे बढ़ने का इंतजार करती रही पर गुरुजी कुछ नहीं किए सिर्फ़ उसे नजर भरकर देखते रहे कामया ने एक नजर उठाकर उसे देखा था गुरुजी से आखें टकराई थी और गुरुजी के होंठों पर फिर से वही मुश्कान दौड़ गई थी 
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