RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --2
गतान्क से आगे........................
"रंडी हूँ तो क्या हुआ" वो गुस्से में बोल पड़ी "कम से कम रोज़ रात को अपने जिस्म का सौदा करके कमाती हूँ तब 2 वक़्त की रोटी खाती हूँ. बाप के पैसे पे अययाशी नही करती"
"क्या बोली तू?" तेज उसपे उपेर से हटकर बिस्तर पे बैठ गया
"जो सुना वही बोल रही हूँ" रेखा भी उठकर बैठी और चादर अपने नंगे जिस्म पर लपेटने लगी "मुझे ये याद दिलाने से पहले के मैं एक रंडी हूँ ये सोच लिया करो के मैं फिर भी आपसे बेहतर हूँ. कम से कम मेरे पास अपना ये एक मकान है. आपके पास क्या है? बाप की हवेली और ज़मीन और बड़े भाई के फेंके हुए कुच्छ पैसे जिनपर आप पल रहे हो?"
एक तो शराब का नशा दूसरे रेखा के मुँह से कड़वी सच्चाई. तेज का हाथ उठा और रेखा के मुँह पर पाँचो उंगलियाँ छप गयी.
"थप्पड़ मारता है" रेखा भी गुस्से में आग बाबूला हो उठी "बाप और भाई के टुकड़ो पर कुत्ते की तरह पल रहा है और मुझे थप्पड़ मारता है"
इस बात ने आग में घी का काम किया और तेज के गुस्से का ठिकाना नही रहा.
थोड़ी देर बाद जब अपनी कार में बैठा हवेली की तरफ जा रहा था. पीछे रेखा का वो मार मारकर बुरा हाल करके आया था. गुस्से में उसका दिमाग़ भन्ना चुका था और उसने फ़ैसला कर लिया था के इसी वक़्त अपने पिता से जाकर बात करेगा.
थोड़ी देर बाद वो हवेली में दाखिल हुआ. दरवाजे के पास ही उसको हवेली का पुराना नौकर भूषण मिल गया.
"पिताजी कहाँ हैं?" उसने भूषण से पुछा
"जी अपने कमरे में" भूषण ने कहा
कुच्छ देर बाद तेज अपने पिता ठाकुर शौर्या सिंग के कमरे में खड़ा था. ठाकुर साहब अपने कमरे की चादर ठीक कर रहे थे.
"क्या मतलब के तुम्हें अपना हिस्सा चाहिए?" चादर ठीक करते करते उन्होने तेज से पुछा
"मतलब के मुझे ज़मीन वामीन में कोई दिलचस्पी नही. मेरे हिस्से का जितना बनता है आप मुझसे कॅश में दे दीजिए" तेज अब भी शराब के नशे में था.
"ताकि तुम उसको रंडियों के यहाँ उड़ाते फ़िरो? बिल्कुल नही" ठाकुर साहब ने जवाब दिया.
तेज के गुस्से का पारा आसमान च्छुने लगा.
थोड़ी ही देर बाद पूरी हवेली एक चीख की आवाज़ से गूँज उठी.
"सुनो ना" रूपाली ने पिछे से पुरुषोत्तम के गले में अपनी बाहें डाली
"ह्म्म्म्म ... कहो" पुरुषोत्तम अपनी टेबल पर सामने रखे कुच्छ पेपर्स में बिज़ी था
रूपाली ने धीरे से पुरुषोत्तम के गले पर किस किया और उसके कान को अपने दांतो के बीच लेकर बाइट किया.
"आउच" पुरुषोत्तम ने अपले गले को झटका " क्या करती हो"
"वही जो के आक्च्युयली तुम्हें शुरू करना चाहिए पर उल्टा हो रहा है. तुम्हारा काम मैं कर रही हूँ और मेरे डाइलॉग तुम बोल रहे हो"
"शाम के 8 बज रहे हैं. थोड़ी देर में डिन्नर लग जाएगा. ये कोई टाइम है भला?"
"प्यार का कोई टाइम नही होता" रूपाली पिछे से पुरुषोत्तम के साथ चिपक गयी और अपनी चूचियाँ उसके कंधो पर रगड़ने लगी.
"नही नही नही ..... " पुरुषोत्तम ने उसकी बाहें अपने गले से निकाली और फिर पेपर्स में सर झुका कर अपना काम करने लगा,
रूपाली ने उसके गले से बाहें निकाली और थोड़ा पिछे होकर अपना सारी खोलनी शुरू कर दी. उसने नीले रंग की सारी प्लेन पहेन रखी थी. सारी उतारकर वहीं ज़मीन पर गिरा दी और एक ब्रा और ब्लाउस में पुरुषोत्तम के सामने आ खड़ी हुई.
पुरुषोत्तम ने नज़र उठाकर अपनी बीवी की तरफ देखा. नीले रंग का ब्लाउस और पेटिकट उसके गोरे रंग के साथ जैसे ग़ज़ब ढा रहा था. 36 साइज़ की बड़ी बड़ी चूचियाँ ब्लाउस फाड़ कर बाहर आने को उतावली हो रही थी. नीचे गोरा मखमली पेट जिसपर चरबी का निशान तक नही थी. लंबी सुडोल टांगे और किसी पहाड़ की तरफ शानदार तरीके से उठी हुई गांद. सामने अगर ऐसी औरत आधी नंगी चुदवाने के लिए खड़ी हो तो किसी नमार्द का भी लंड जोश मार जाए, पुरुषोत्तम तो खैर उसका पति था.
वो रूपाली की ओर देखकर मुस्कुराया और रूपाली उसकी और. पुरुषोत्तम एक कुर्सी पर बैठा हुआ था और रूपाली ठीक उसके सामने खड़ी थी. उसने आगे बढ़कर उसके नंगे पेट पर अपने होंठ टीका दिए और पेटिकट का नाडा खोल दिया.
रूपाली ने नीचे पॅंटी नही पहेन रखी थी. पेटिकट सरसारा कर उसके कदमो में जा गिरा और वो कमर के नीचे से नंगी हो गयी. जिस्म पर अब सिर्फ़ एक ब्लाउस बचा था.
पुरुषोत्तम ने एक नज़र अपनी बीवी की नंगी चूत पर दौड़ाई. वो पहले चूत क्लीन शेव रखती थी पर पुरुषोत्तम के कहने पर अब हल्के हल्के से बॉल रखती थी. पुरुषोत्तम ने धीरे से अपने एक हाथ रूपाली की चूत पर फेरा और दूसरे हाथ से उसकी गांद सहलाने लगा.
रूपाली से एक हल्का सा टच भी बर्दाश्त ना हुआ और वो फ़ौरन घुटनो पर जा बैठी. पुरुषोत्तम एक कुर्सी पर बैठा हुआ था. रूपाली ने जल्दी जल्दी उसकी पेंट के हुक्स खोलने शुरू कर दिए. आगे जो होने वाला था वो पुरुषोत्तम जानता था. उसने अपना जिस्म कुर्सी पर ढीला छ्चोड़ दिया और आँखें बंद करके बैठ गया.
रूपाली ने उसकी पेंट खोलकर लंड बाहर निकाला और धीरे धीरे सहलाने लगी. मुरझाए हुए लंड में हल्का सा हाथ फिराते ही जान आने लगी और उसका साइज़ बढ़ने लगा. रूपाली आगे को झुकी और अपनी जीब लंड पर फिराने लगी. उसकी जीभ लंड पर ऐसे हिल रही थी जैसे कोई बिल्ली दूध पी रही हो. नीचे एक हाथ लंड को हिला रहा था और दूसरे पुरुषोत्तम के टटटे सहला रहा था.
"आअहह रूपाली" जैसे ही रूपाली ने उसका लंड अपने मुँह में भरा, पुरुषोत्तम के मुँह से आह निकल पड़ी.
रूपाली ने पूरा लंड अपने मुँह में लिया और टटटे सहलाते हुए लंड को चूसना शुरू कर दिया. उसका सर लंड पर तेज़ी के साथ उपेर नीचे होने लगा. मुश्किल से एक मिनट भी नही हुआ था के पुरुषोत्तम का जिस्म एक पल के लिए काँप उठा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ समझ या कर पाती, उसके मुँह में वीर्य की एक धार आ लगी.
"रूको" रूपाली ने लंड फ़ौरन अपने मुँह से बाहर निकाला पर देर हो चुकी थी. कुच्छ वीर्य उसके मुँह में और कुच्छ लंड बाहर निकलते ही उसके चेहरा और ब्लाउस पर आ गिरा.
"आइ आम सॉरी" पुरुषोत्तम ने आँखें खोली और रूपाली की तरफ देखा. रूपाली ने कहा कुच्छ नही पर जिस तरह से वो देख रही थी वही पुरुषोत्तम के लिए काफ़ी था.
"आइ आम सॉरी मैं रोक नही पाया. वी कॅन डू इट अगेन इन दा नाइट" वो बोला
रूपाली ने उठकर टेबल पर रखे पुरुषोत्तम के रुमाल से अपने मुँह और चेहरे पर गिरे वीर्य को सॉफ किया, पेटिकट कमर पर बँधा और सारी पहेन्ने लगी. तभी उसको अपने ब्लाउस पर पड़े पुरुषोत्तम के वीर्य के धब्बे नज़र आए इसलिए उसने सारी और ब्लाउस उतारकर एक तरफ फेंक दिया और एक गुलाबी रंग का सलवार सूट निकालकर पहेन लिया.
"हां ताकि रात को तुम फिर एक मिनट में निपट जाओ और मैं अनसॅटिस्फाइड बिस्तर पर रात भर पड़ी रहूं. है ना?"
"रूपाली" पुरुषोत्तम थोड़े ज़ोर से बोला
"चिल्लइए मत" रूपाली ने भी वैसे ही जवाब दिया "अपनी नमार्दानगी को अपनी आवाज़ के शोर में दबाने की कोशिश मत कीजिए."
"इतनी गर्मी है अगर जिस्म में तो एक सांड़ लाकर बांड दूँ? फिर भी अगर टाँगो के बीच की आग ठंडी ना हो तो कहीं किसी और के पास पहुँच जाओ"
पुरुषोत्तम ने कहा और गुस्से में पैर पटकता कमरे से बाहर निकल गया. वो हवेली से बाहर आया और अपनी कार निकालकर गुस्से में बाहर चला आया. रास्ते में वो एक शराब की दुकान पर रुका, एक बॉटल खरीदी और गाओं से बाहर नहर के किनारे आ गया. उसने कार एक अंधेरी जगह पर रोकी और बाहर कार के बोनेट पर बैठ कर दारू पीने लगा.
वो खुद जानता था के बिस्तर पर वो अपनी बीवी को खुश करने में नाकाम है, उसको प्रिमेच्यूर ईजॅक्युलेशन की बीमारी थी और अक्सर रूपाली से पहले ही उसका काम ख़तम हो जाता था. कई बार उसने सोचा के किसी डॉक्टर के पास जाए पर वो इस इलाक़े के ठाकुर खानदान का सबसे बड़ा लड़का था. अगर बात फैल जाती के ठाकुर पुरुषोत्तम को नमार्दानगी की बीमारी है तो वो कहीं मुँह दिखाने लायक ना रहता. इसी डर से वो कभी किसी डॉक्टर के पास भी ना जा सका.
कोई एक घंटे बाद वो शराब के नशे में धुत वापिस हवेली पहुँचा. कार बाहर खड़ी करके वो हवेली में दाखिल हुआ और अपने कमरे की तरफ बढ़ा. उसका कमरा फर्स्ट फ्लोर पर था. वो किसी तरह सीढ़ियाँ चढ़कर उपेर पहुँचा पर फिर नौकर को डिन्नर कमरे में ही सर्व करने के बोलने के इरादे से वो रुका और फिर नीचे किचन की तरफ बढ़ चला.
अचानक ही पवर कट हुआ और पूरी हवेली अंधेरे में डूब गयी. पुरुषोत्तम ध्यान से सीढ़ियाँ उतर रहा था. ड्रॉयिंग हॉल में पूरा अंधेरा था. अचानक उसने देखा था हॉल के दूसरी तरफ उसके पिता के कमरे का दरवाज़ा खुला और एक औरत कमरे से बाहर निकली. अंधेरा होने की वजह से सिर्फ़ अंदर ठाकुर के कमरे से आती हल्की रोशनी में वो औरत उसको नज़र आई. उस औरत का चेहरा उसको अंधेरे की वजह से दिखाई नही दिया.
"अर्रे सुनो" कहते हुए ठाकुर साहब ने हल्का सा दरवाज़ा खोला. हल्की सी रोशनी में पुरुषोत्तम को अंदाज़ा हो गया था के उसका बाप सिर्फ़ एक अंडरवेर में है.
"तुम ये भूल गयी थी कल. ये ले जाओ" कहते हुए उसके बाप ने उस औरत के हाथ में एक ब्रा थमा दी.
जहाँ पुरुषोत्तम खड़ा था वहाँ से उसको उस औरत के पीठ नज़र आ रही थी. ठाकुर के कमरे का दरवाज़ा बंद होते ही फिर अंधेरा हो गया. बाहर निकली औरत कौन थी ये तो वो देख नही सका पर कमरे से आती हल्की सी रोशनी में उसने ये ज़रूर देख लिया था के उसने एक गुलाबी रंग का सलवार कमीज़ पहेन रखा था और उस सलवार कमीज़ को पुरुषोत्तम बहुत खूब पहचानता था.
वो औरत कमरे से निकलकर किचन की तरफ बढ़ चली.
थोड़ी ही देर बाद पूरी हवेली एक चीख की आवाज़ से गूँज उठी.
भूषण अपने कमरे में बैठा हुआ था के टेबल पर रखी घंटी बज उठी. इसका मतलब सॉफ था. के ठाकुर साहब ने उसको याद किया है.
भूषण हवेली में पिच्छले 40 साल से नौकरी कर रहा था. उसकी उमर 70 के पार थी. इससे पहले उसके पिता ठाकुर खानदान के खेत में पहरा दिया करते थे. बाद में भूषण ने हवेली में काम करना शुरू कर दिया और फिर वहीं का होकर रह गया. हवेली के बाहर कोने में एक छ्होटा सा कमरा उसका था जहाँ वो अकेला रहता था.
वो धीरे धीरे चलता हवेली में दाखिल हुआ और ठाकुर साहब के कमरे में पहुँचा. अंदर ठाकुर और ठकुराइन दोनो ही कमरे में मौजूद थे. ठाकुर उस वक़्त बाथरूम में थे और ठकुराइन सरिता देवी अपनी व्हील चेर पर बिस्तर के पास बैठी थी.
"हुकुम मालिक" भूषण ने कहा
"गाड़ी निकालो. अभी इसी वक़्त" ठाकुर ने बाथरूम के अंदर से कहा
भूषण ने एक नज़र सरिता देवी पर डाली और दूसरी नज़र घड़ी पर.
"रात के इस वक़्त कहाँ जाएँगे" उसने मंन ही मंन सोचा पर ये पुच्छने की हिम्मत नही हुई. वो चुपचाप जी मालिक कहकर कमरे से बाहर निकल आया.
ये कयि सालों का दस्तूर था के ठाकुर शौर्या सिंग के गाड़ी भूषण ही चलाता था. वो खुद काफ़ी बुड्ढ़ा हो चुका था और नज़र भी काफ़ी कमज़ोर हो चली थी पर ठाकुर साहब सिर्फ़ उसी की ड्राइविंग पर यकीन रखते थे.
धीरे धीरे भूषण पार्किंग लॉट तक पहुँचा. कुल मिलकर वहाँ 10 गाड़ियाँ खड़ी थी, सब इंपोर्टेड. वो ठाकुर साहब की मर्सिडीस तक गया और चाबी निकालने के लिए अपनी जेब में हाथ डाला तो याद आया के चाबी खुद ठाकुर के पास ही थी. वो आज दिन में गाड़ी कहीं खुद लेकर गये थे और तबसे चाभी उन्ही के पास थी. वो फिर ठाकुर के कमरे की तरफ वापिस चला.
क्रमशः........................................
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