RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --3
गतान्क से आगे........................
हवेली के गेट के बाहर कॉरिडर में सरिता देवी हाथ में विस्की का ग्लास लिए बैठी थी. ये हर शाम होता था. खाने के बाद ठकुराइन हाथ में शराब का ग्लास लिए अपनी व्हील चेर को गेट के पास लाकर बैठ खुली हवा में बैठ जाती थी. जहाँ तक भूषण को याद आता था, शराब की ये आदत ठकुराइन को उस आक्सिडेंट के बाद पड़ी जब वो सीढ़ियों से गिर गयी थी और फिर कमर में चोट आ जाने की वजह से कभी अपने पैरों पर खड़ी ना हो सकी. पिच्छले 15 साल से वो व्हील चेर पर ही थी.
भूषण ठाकुर के कमरे के अंदर पहुँचा. ठाकुर अब भी बाथरूम के अंदर ही थे पर दरवाज़ा खुला हुआ था.
"मालिक" उसने ज़रा ऊँच आवाज़ में कहा
"गाड़ी निकाली?" ठाकुर की अंदर से ही आवाज़ आई.
"मालिक चाभी आपके पास है" भूषण ने कहा
"एक गाड़ी निकालने में इतना वक़्त लग रहा है? पहले याद नही आया था? चाभी सामने टेबल पर रखी है. जल्दी से गाड़ी निकालो" ठाकुर ने अंदर से चिल्लाते हुए कहा
कमरे में लगे फुल साइज़ मिरर में एक पल के लिए भूषण को बाथरूम में खड़े ठाकुर साहब नज़र आए. वो बाथरूम में शीशे के सामने खड़े थे वॉश बेसिन पर झुके खड़े थे.
भूषण फिर कमरे से बाहर निकला और कॉरिडर में आया ही था के एक कार हवेली के सामने आकर रुकी और उसमें से जै निकला.
जै ठाकुर साहब का भतीजा था, ठाकुर के सगे छ्होटे भाई का बेटा. उमर कोई 35 साल. जहाँ तक भूषण जानता था, उसके माँ बाप एक कार आक्सिडेंट में मर गये थे. उसके बाद कुच्छ टाइम तक वो हवेली में ही रहा पर एक दिन किसी बात पर ठाकुर ने उसको हवेली से निकाल फेंका और जायदाद में से एक छ्होटा सा हिस्सा उसको दे दिया जो कि जै को लगता था के कम है जिसकी वजह से वो आज भी ठाकुर साहब से साथ कोर्ट में केस लड़ रहा था.
"ताया जी कहाँ हैं?" जै ने कार से निकलते हुए सवाल भूषण और कॉरिडर में बैठी सरिता देवी, दोनो से पुछा.
"अपने कमरे में" जवाब भूषण ने दिया.
जै गुस्से में था ये उसके चेहरे से साफ नज़र आ रहा था. वो गुस्से में पावं पटकता हवेली के अंदर चला गया और भूषण फिर गॅरेज की तरफ चला. उसने ठाकुर साहब की मर्सिडीस निकाली और चलकर हवेली के गेट तक लाया और कार से बाहर निकला.
तभी पूरी हवेली एक चीख की आवाज़ से गूँज उठी.
रात के तकरीबन 11 बज रहे थे जब इनस्पेक्टर मुनव्वर ख़ान की गाड़ी हवेली के बाहर जा कर रुकी. उसके पिछे पोलीस की एक और जीप थी जिसमें 6 पोलिसेवाले और मौजूद थे. वो फ़ौरन गाड़ी से बाहर निकला और हवेली के अंदर घुसा.
ड्रॉयिंग रूम में जैसे तूफान आया हुआ था. काफ़ी सारे लोग ड्रॉयिंग में खड़े हुए थे जिनमें से कुच्छ एक दरवाज़े को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे.
"क्या हो रहा है?" इनस्पेक्टर ने चिल्लाते हुए पुच्छे. उसके पिच्चे बाकी पोलिसेवाले भी हवेली में दाखिल हो चुके थे.
"तुझे किसने बुलाया बे?" दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश कर रहे लोगों में से एक आगे आया जिसको इनस्पेक्टर पहचानता था. वो तेज था.
"मुझे एक फोन आया था के यहाँ बड़े ठाकुर का खून हो गया है" ख़ान ने जवाब दिया.
"ये हमारा घरेलू मामला है. चल बाहर निकल" कहता हुआ टेक उसकी तरफ आया.
ख़ान जानता था के ये होगा इसलिए अपने साथ जितने हो सके, पोलिसेवाले लाया था.
"ठाकुर साहब यहाँ एक खून हुआ है" ख़ान ने कहा "और ये घरेलू मामला नही है"
"तू जाता है या.....?" कहता हुआ तेज आगे बढ़ा ही था के ख़ान ने अपनी रेवोल्वेर उसकी तरफ तान दी.
"देखिए मैं जानता हूँ के दिस ईज़ ए डिफिकल्ट टाइम राइट नाउ पर मैं भी सिर्फ़ अपना काम ही कर रहा हूँ. बेहतर ये है के आप प्लीज़ को-ऑपरेट करें वरना मुझे ज़ोर ज़बरदस्ती करनी पड़ेगी"
तेज उसका इशारा समझ गया. ख़ान के पिछे 6 हथ्यार बंद पोलिसेवाले खड़े थे.
"तेज" व्हीलचार पर बैठी एक औरत ने कहा जो कि ख़ान जानता था के ठकुराइन सरिता देवी थी
तेज अपनी माँ का इशारा समझकर पिछे हो गया.
"कौन है कमरे के अंदर?" ख़ान ने पुछा
"जै" एक दूसरे आदमी ने जवाब दिया जिसको ख़ान ठाकुर के बड़े बेटे पुरुषोत्तम सिंग के नाम से जानता था "साला बाबूजी पर हमला करके अंदर किचन में जा छुपा है"
"और ठाकुर साहब?" ख़ान ने पुछा तो पुरुषोत्तम ने एक कमरे की तरफ इशारा किया. ख़ान ने 2 पोलिसेवालो की तरफ देखा और उन्हें हाथ के इशारे से कमरे में देखने को कहा.
वो खुद किचन के दरवाज़े तक पहुँचा. जै को वो खुद भी जानता था. ठाकुर साहब का भतीजा था वो.
"जै बाहर आ जाओ वरना मुझे दरवाज़ा तोड़ना पड़ेगा" ख़ान ने चिल्लाते हुए कहा
"ये लोग मार डालेंगे मुझे" अंदर से जै ने चिल्लाकर कहा "मैने कोई खून नही किया है"
"कोई कुच्छ नही करेगा ये मेरा वादा है. पोलीस यहाँ आ चुकी है. पर अगर तुम बाहर नही आए तो मौका-ए-वारदात से भागने की कोशिश करने के जुर्म में मैं खुद गोली मार सकता हूँ तुम्हें"
"मैं भाग कहाँ रहा हूँ" जै ने अंदर से कहा "मैं तो यहाँ किचन में बंद खड़ा हूँ साले. चाहूं भी तो नही भाग सकता"
"जानता हूँ पर मुझे तो तुम्हें गोली मारने के लिए कोई बहाना चाहिए ना. तो तुम भाग रहे थे से अच्छा बहाना क्या है" ख़ान ने जवाब दिया
थोड़ी देर के लिए खामोशी च्छा गयी.
"कितने पोलिसेवाले हैं तुम्हारे साथ?" अंदर से जै ने पुछा.
"6 कॉन्स्टेबल्स और मुझे और मेरे ड्राइवर को मिलाके 8. बाहर आ जाओ. कोई तुम पर हमला नही करेगा" ख़ान ने और अपने पिछे खड़े पुरुषोत्तम और जै को आख़िरी से वॉर्निंग दी के कुच्छ करने की कोशिश ना करें.
तभी 2 पोलिसेवाले जो कमरे के अंदर गये थे बाहर आए.ख़ान ने उसकी तरफ देखा.
"अंदर बड़े ठाकुर हैं" एक ने कहा "मर चुके हैं"
इतना कहते ही चेर पर बैठी सरिता देवी फिर रोने लगी और तेज फिर से किचन की तरफ बढ़ा.
"प्लीज़ ठाकुर साहब" ख़ान ने उसको रोक दिया "लेट मी हॅंडल दिस"
"मैने कोई खून नही किया है. जब मैं आया तो वो ऑलरेडी मर चुके थे" अंदर से फिर जै चिल्लाया
"बाहर आ जाओ जै" ख़ान ने कहा "इसमें तुम्हारी ही भलाई है"
"ठीक है मैं बाहर आ रहा हूँ" जै ने कहा
कोई 3 मिनट बाद किचन का दरवाज़ा खुला और जै बाहर आया. वो पूरा खून में सना हुआ था और हाथ में एक बड़ा सा चाकू था.
उस पूरी रात और अगला पूरा दिन मुनव्वर ख़ान को बैठने का मौका नही मिला. ठाकुर की लाश को पोस्टमॉर्टम के लिए शहर भेज दिया गया था और खुद जै को भी ठाकुर के खून के इंटेज़ाम में मुक़दमा होने तक शहर की ही एक जैल में शिफ्ट कर दिया गया था. ठाकुर की मौत एक लंग पंक्चर होने की वजह से हुई थी. एक स्क्रू ड्राइवर उनकी छाती में घुसाया गया था जिसने उनका राइट लंग पंक्चर किया और जो की मौत की वजह बना.
केस का प्रोफाइल बड़ा था, खून एक नामी ठाकुर का हुआ था जो इलाक़े का सबसे बड़ा रईस था और कई पोलिटिकल कनेक्षन्स थे इसलिए खुद ख़ान भी जानता था के इस केस को सॉल्व करने के लिए उसके पास वक़्त बहुत कम है. प्रेशर बढ़ेगा और अगर वो रिज़ल्ट्स ना दे पाया तो केस किसी और को थमा दिया जाएगा.
ख़ान की उमर कोई 30 के आस पास थी. उसका रेकॉर्ड क्लीन था और वो 6 महीने पहले तक एक टॉप कॉप माना जाता था. 6 महीने पहले एक एनकाउंटर के दौरान क्रॉस फाइयर में उसकी गोली से एक सब-इनस्पेक्टर की मौत हो गयी थी. पोलिसेवालो ने मामला बाहर नही आने दिया और बात दबा दी गयी पर ख़ान को उठाकर इस छ्होटे से गाओं में डाल दिया.
वो पोलीस स्टेशन में बैठा सोच ही रहा था उसका मोबाइल बज उठा. नंबर अननोन था.
"ख़ान" उसने फोन उठाते हुए कहा
"हेलो इनस्पेक्टर" दूसरी तरफ से एक लड़की की आवाज़ आई. उस आवाज़ को वो बहुत खून जानता था.
"किरण" उसने धीरे से कहा
"ओह" दूसरी तरफ से लड़की ने कहा "आवाज़ पहचानते हो अब भी मेरी"
"तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ" ख़ान के गुस्सा धीरे धीरे बढ़ रहा था "दोबारा अगर मुझे फोन किया तो कसम खुदा की, इस बार घर में घुसके मारूँगा. डोंट पुट माइ पेशियेन्स ऑन टेस्ट"
कहते हुए ख़ान ने फोन काट दिया. वो जानता था के फोन फिर बजेगा इसलिए सेल स्विच ऑफ कर दिया. पुरानी यादें ताज़ा होनी शुरू हुई तो वो सर पकड़कर बैठ गया.
"दिन काफ़ी लंबा रहा सर" आवाज़ आई तो ख़ान ने सर उठाकर देखा. वो हेड कॉन्स्टेबल शर्मा था.
"दिन भी और रात भी" ख़ान ने कहा "नींद आ रही है यार"
"लीजिए चाइ पीजिए" शर्मा ने चाइ का एक कप ख़ान के हाथ में दिया और उसके सामने बैठ गया.
"हिम्मत मानता हूँ लौंदे की सिर. घर में घुसके अपने चाचा को मार दिया" शर्मा ने कहा
"शर्मा मुझे नही लगता के जै ने मारा है ठाकुर को" ख़ान ने कहा "मुझे लगता है के वो बेचारा बस ग़लत टाइम पर ग़लत जगह पे पहुँच गया"
"ह्म्म्म्म" शर्मा ने कहा "बयान क्या दिया उसने?"
ख़ान ने सामने रखी एक फाइल उठाई
"उसके हिसाब से वो हवेली पहुँचा तो ठाकुर साहब ऑलरेडी ज़मीन पर गिरे पड़े थे. वो उनके करीब पहुँचा और उनको उठाने लगा के तभी घर की नौकरानी वहाँ आ पहुँची और उसने चीख मारी जिसके चलते पुरुषोत्तम और तेज वहाँ आ गये. उन दोनो को लगा के हमला खुद जै ने किया है इसलिए उन्होने उसको मारना शुरू कर दिया. जान बचाकर जै भागता हुआ किचन में घुस गया और उसके बाद वहीं रहा जब तक हम नही आ गये."
"ये मैं आपसे पुच्छना चाहता था सर" शर्मा ने कहा "हमें किसने इनफॉर्म किया के खून हुआ है?"
"हवेली से एक औरत ने फोन किया था" ख़ान बोला
"किसने?"
"फिलहाल पता नही. अब तक सबकी स्टेट्मेंट्स ली गयी हैं पर किसी ने इस बात का इक़रार नही किया के वो फोन उसने किया था. मैं सबसे बात करूँगा अभी तो शायद पता चल जाए" ख़ान बोला
कुच्छ देर तक दोनो खामोशी से चाइ पीते रहे.
"तुम्हें घर जाना होगा अब?" ख़ान ने थोड़ी देर बाद कहा "तुम भी तो कल रात से घर नही गये"
"जाऊँगा सर" शर्मा ने कहा "बीवी तो वैसे ही डंडा लिए बैठी होगी तो आराम से जाऊँगा और कुच्छ रास्ते में खरीदके ले जाऊँगा ताकि उसका गुस्सा ठंडा हो"
शर्मा की बात पर दोनो हस्ने लगे.
"एक बात बताओ शर्मा" थोड़ी देर बाद ख़ान बोला "मैं यहाँ नया हूँ इसलिए सिर्फ़ ठाकुर के 2 बेटो को जानता हूँ वो भी नाम से और जै को मैने कल पहली बार देखा था. इससे पहले बस नाम ही सुना था. इसके अलावा किसी को नही पहचानता. मैं सिर्फ़ नाम जानता हूँ के कल रात हवेली में कौन कौन था. उन लोगों के बारे में तुम कुच्छ जानते हो?"
"मैं तो हमेशा से यहीं रहा हूँ सर" शर्मा ने कहा "यहीं पैदा हुआ और यहीं पाला बढ़ा. सबको जानता हूँ"
"तो बताओ कुच्छ इन लोगों के बारे में" ख़ान ने कहा
"हवेली में जब हम पहुँचे तो वहाँ कुल मिलाके 12 लोग थे, एक मुर्दा यानी के ठाकुर साहब और 11 ज़िंदा यानी के उनका परिवार. जै हमें किचन मिला और बाकी सब किचन के बाहर. वैसे एक बात बताइए सर, उस जै ने ये बताया के वो इतनी रात को हवेली में करने क्या गया था?"
"यही एक बात नही बताई उसने" ख़ान बोला "मैं बहुत पुछा पर जवाब नही दिया साले ने. बता देगा. अपनी जान प्यारी है तो बताना पड़ेगा उसको"
क्रमशः........................................
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