RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --19
गतान्क से आगे........................
कार की बॅटरी से तेज़ाब निकाल कर एक ग्लास में डाला जा चुका था. वहीं खड़े पोलीस वाले खामोशी से ये तमाशा देख रहे थे.
"इसकी आँखें खोलो" ठाकुर ने अपने आदमियों को इशारा किया. 2 आदमी आगे बढ़े और ज़बरदस्ती राजन को पकड़कर उसकी सूजी हुई आँखें खोली. सरिता देवी आगे बढ़कर राजन के करीब आई और उसकी आँखों में आँखें डालकर देखा.
"देख मुझे राजन" उन्होने हल्का सा झुकते हुए कहा.
राजन की आँखों में ख़ौफ्फ उन्हें सॉफ दिखाई दे रहा था. वो डर जैसे उनके ज़ख़्म पर मलहम का काम कर था. कलेजा जैसे ठंडा हो गया.
थोड़ी ही देर बाद राजन की दर्द भरी चीखें हवेली में गूँज उठी. ग्लास से तेज़ाब खाली हो गया था और राजन की ज़ुबान कटी हुई ज़मीन पर पड़ी थी.
3 दिन की जागी सरिता देवी को उस रात बहुत आराम की नींद आई.
2 महीने गुज़र गये पर सरिता देवी उस रात को भूल नही पाई. भले ही उन्होने राजन से अपना बदला पूरा कर लिया था पर राजन की कही बात सच हो रही थी. उनका दिन रात का सुकून उड़ गया था. हर पल दिमाग़ में वही लम्हा घूमता रहता था जब वो 7 अजनबी आदमियों के बीच नंगी बैठी लंड चूस रही थी. रात को सोती तो वही पल बार बार सपने में आता.
उस रात के बाद ठाकुर के साथ बिस्तर पर भी वो पूरा साथ नही दे पाती थी. पत्नी होने के नाते अपने पति को रोक तो नही पाती थी पर बिस्तर पर जिस तरह से वो पहले पूरी तरह ठाकुर के साथ होती थी अब वो बात नही रही थी. कपड़े उतारते ही उन्हें ऐसा लगता के अब भी आस पास खड़े कई लोग उन्हें नंगी देख रहे हैं, अपने पति से चुदवाते हुए देख रहे हैं.
और सबसे मुश्किल हो गया था उस लड़के के सामने जाना. उसको अनदेखा वो कर नही सकती थी, वो नामुमकिन था पर जब भी वो सामने आता, वो शरम से नज़र नीचे झुका लेती थी. उस लड़के के साथ उनके रिश्ते में एक ऐसा बदलाव आ गया था जिसकी उन्होने कभी कल्पना भी नही की थी. कभी उन्होने सोचा भी नही था के कमरे से निकलने से पहले ये दुआ करेंगी के वो लड़का उनके सामने ना आए.
उस रात के बाद उनकी कभी उससे बात नही हुई. ना ही लड़के ने उनसे बात करने की कोशिश की, बस उसको कुच्छ चाहिए होता तो वो माँग लेता था.
सरिता देवी को डर था के कहीं ठाकुर साहब से डर के मारे कह ना दे के राजन ने ठकुराइन से क्या कराया था पर वो उसने पूरा उनका साथ दिया. बदनामी और अपने पति की नज़र में गिर जाने के डर से उन्होने किसी से कुच्छ नही कहा तो लड़के ने भी किसी से कुच्छ नही कहा.
वक़्त यूँ ही गुज़रता रहा और ठकुराइन धीरे धीरे अपनी ज़िंदगी की तरफ वापिस जाने लगी. उस रात की याद आती तो अब भी थी पर अब बस आके गुज़र जाती थी. उस रात से जुड़ा गुस्सा और दर्द धीरे धीरे कम हो रहा था.
और फिर कुच्छ ऐसा हुआ के हर याद ताज़ा हो गयी.
उस रात ठकुराइन नहाकर कमरे से निकली थी. गर्मी के दिन थे और रात को नहाए बिना उन्हें नींद नही आती थी. वो अपनी नाइटी पहने बाथरूम से बाहर निकली और शीशे के सामने खड़ी होकर बाल सूखने लगी. लाल रंग की नाइटी में सरिता देवी का गोरा रंग और भी उभरकर सामने आ रहा था.
गीले बालों से गिरते पानी ने नाइटी को उपेर से गीला कर दिया था जिसकी वजह से ठकुराइन के निपल्स सॉफ दिखाई दे रहे थे. वो रात को कभी भी ब्रा पहेनकर नही सोती थी.
बाल झाड़ते झाड़ते उनके हाथ में पकड़ी कंघी छूट कर ज़मीन पर जा गिरी. ठकुराइन उसको उठाने के लिए नीचे को झुकी ही थी के उन्हें अपनी कमर पर 2 हाथ महसूस हुए और गांद पर एक चुभन सी हुई.
वो अच्छी तरह जानती थी के गांद पर उनको क्या चुभ रहा था. वो मुस्कुराती हुई उठकर सीधी हुई और सामने शीशे में देखा. ठाकुर पिछे खड़े हुए थे और कमर से ठकुराइन को पकड़ रखा था. अपनी गांद पर होती चुभन को महसूस करके सरिता देवी जानती थी के वो नीचे से नंगे थे.
"इसके अलावा और कुच्छ सूझता है आपको?" उन्होने मुस्कुराते हुए अपने पति से पुछा
"जिसके कमरे में इतनी खूबसूरत औरत झुकी खड़ी हो, उसको अगर और कुच्छ सूझ जाए तो लोग उसको नमार्द कहेंगे" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए कहा
"नही नमार्द तो नही हो आप" ठकुराइन धीरे से हस्ते हुए बोली "इस बात की गवाही तो मैं दे सकती हूँ"
दोनो धीरे से हस पड़े और ठाकुर ने हाथ कमर पर रखे रखे उनकी नाइटी को उपेर उठना शुरू कर दिया.
दोनो शीशे के सामने खड़े थे और नज़र एक दूसरे की नज़र से मिला रखी थी. ठाकुर के लंड का दबाव उनकी गांद पर बढ़ गया था.
ठाकुर ने नाइटी को धीरे धीरे घुटनो के उपेर तक उठा दिया. अब उनकी नज़र ठकुराइन की नज़र से हटकर शीशे में उनकी टाँगो पर थी. खुद ठकुराइन भी उनकी नज़र का पीछा करते हुए अपनी टाँगो की तरफ ही देखने लगी थी. नाइटी धीरे धीरे जाँघो के उपेर आ गयी.
सरिता देवी ने एक नज़र शीशे में डाली. आगे वो और उनके पिछे खड़े ठाकुर जिनके दोनो हाथ उनकी नाइटी को उपेर खींच रहे थे. ठकुराइन की दोनो मासल जांघे खुली हुई थी और बड़ी बड़ी चूचियाँ भीगी हुई नाइटी से सॉफ झलक रही थी. और तब ये नज़र देखकर कई दिन बाद सरिता देवी को
वो महसूस हुआ जिसके लिए वो खुद भी तरस गयी थी.
उनकी चूत धीरे धीरे गीली हो रही थी.
पिच्छले कुच्छ दिन से ठकुराइन बिस्तर पर अपने आपको तैय्यार नही कर पाती थी. जबसे राजन ने उनके साथ बद-तमीज़ी की थी, ठाकुर को उन्हें चोदने से पहले अपने लंड पर तेल लगाना पड़ता था क्यूँ सरिता देवी की चूत बिल्कुल भी गीली नही होती थी और सूखी चूत में लंड घुसने पर उन्हें तकलीफ़ होती थी. आज महीनो बाद अपने आपको शीशे में यूँ नंगी होते देख वो उन्हें अपनी चूत में गीलापन महसूस हुआ.
नाइटी अब उनकी कमर के उपेर आ चुकी थी. ठकुराइन की सफेद रंग की पॅंटी के दोनो तरफ से बाल बाहर आ रहे थे. ठाकुर ने एक हाथ पॅंटी के उपेर से ही उनकी चूत पर फिराया और धीरे से बाल पकड़कर खींचे.
ठकुराइन के मुँह से ठंडी आह निकल पड़ी.
"जानती हूँ आपको पसंद नही" उन्होने धीरे से कहा "कल काट दूँगी"
ठाकुर ने जवाब में कुच्छ नही कहा. एक हाथ से उन्होने ठकुराइन की नाइटी को कमर पर पकड़ा हुआ था और दूसरे हाथ से पॅंट को पकड़कर नीचे खींचने लगे.
"इसको पाकड़ो" उन्होने ठकुराइन से कहा
ठकुराइन ने अपने दोनो हाथों से अपनी नाइटी कमर पर पकड़ ली. ठाकुर थोड़ा पिछे को हुए और ठकुराइन के पिछे अपने घुटनो पर नीचे बैठ गये. दोनो हाथों से उन्होने पॅंटी को पकड़ा और एक झटके से नीचे घुटनो तक खींच दिया.
ठकुराइन ने एक नज़र फिर अपने आप पर शीशे में डाली.
वो अपनी नाइटी को कमर तक पकड़े खड़ी थी. पॅंटी नीचे घुटनो में फसि हुई थी और बालों से धकि चूत सॉफ दिखाई दे रही थी. ठाकुर उनके पिछे घुटनो पर बैठे हुए थे. उनका चेहरा सरिता देवी की गांद के पिछे था इसलिए वो शीशे में नज़र तो नही आ रहे थे.
ठाकुर ने नीचे बैठे बैठे ठकुराइन की दोनो जाँघो को अपने हाथों से सहलाया और हाथ धीरे से उपेर लाते हुए उनकी गांद को पकड़ा.
"मस्त गांद है आपकी" पीछे से ठाकुर की आवाज़ आई.
सरिता देवी जानती थी के बिस्तर पर ठाकुर को इस तरह से बात करना बहुत पसंद था पर वो खुद चाहकर भी कभी इस तरह की बातें नही कर पाती थी. ठाकुर ने उनको कई बार उकसाया पर ठकुराइन कभी बेशर्मी से इस तरह की बातें नही कर पाई थी.
ठाकुर ने अपने हाथों से से ठकुराइन की गांद को दोनो तरफ से पकड़ा और खोला. एक हाथ नीचे से दोनो टाँगो के बीच आया और सरिता देवी की चूत को सहलाने लगा.
"आआहह" ठकुराइन के मुँह से आह निकल पड़ी
ठाकुर ने नीचे से दोनो टाँगो के बीचे अपना हाथ पूरी तरह घुसा दिया और सरिता देवी की चूत को बुरी तरह से रगड़ना शुरू कर दिया. उनके होंठ पिछे से ठकुराइन के गांद को चूम रहे थे.
और फिर जब ठाकुर की एक अंगुली ठकुराइन की चूत में घुसी तो महीनो बाद उनकी चूत से पानी छूट पड़ा.
"आआहह" ठकुराइन की आवाज़ तेज़ हो गयी "पूरी अंदर घुसाओ"
उनके कहते ही ठाकुर ने अपनी पूरी एक अंगुली चूत के अंदर घुसाई और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगे. गीलापन अब सरिता देवी की चूत से उनकी जाँघो तक पहुँच चुका था. वो शीशे के सामने खड़ी नज़र बाँधे अपने आपको देखे जा रही थी. ठाकुर उनके पिछे बैठे थे इसलिए उनका सिर्फ़ हाथ ही सरिता देवी को नज़र आ रहा था जो उनकी चूत को बेदर्दी से मसल रहा था.
चूत में अंदर बाहर होती अंगुली बाहर आई और फिर पिछे को सरक कर ठकुराइन की गांद पे जा लगी.
वो जानती थी के ठाकुर क्या करने वाले हैं. शादी के बाद से ही ठाकुर ने कई बार उनकी गांद मारने की कोशिश की थी पर ठकुराइन ने कभी ऐसा करने नही दिया. जब भी ठाकुर उनकी गांद मारने की बात करते, वो हर बार टाल जाती थी. उन्हें लगता था के अगर एक अंगुली के घुसने से ही इतना दर्द होता है तो पूरा लंड घुसने पर क्या होगा?
चूत के पानी में भीगी अंगुली ने धीरे से उनकी गांद में घुसने की कोशिश की और थोड़ी से अंदर हो गयी.
"ऊऊओह मर गयी !!!!" सरिता देवी के मुँह से आवाज़ निकली.
वो जानती थी के अगर उन्होने ठाकुर को नही रोका तो ये अंगुली थोड़ी ही देर बाद पूरी गांद के अंदर होगी और फिर दूसरी अंगुली जाएगी और उसके बाद लंड घुसने की कोशिश. फिर वही गांद मारने देने की ज़िद.
ठकुराइन फ़ौरन पलटी और ठाकुर की तरफ मुँह करके खड़ी हो गयी. अब उनकी चूत सीधा ठाकुर के चेहरे की तरफ थी.
सरिता देवी ने नीचे बैठे ठाकुर की तरफ देखा और ठाकुर ने उपेर को उनकी तरफ. सरिता देवी अब भी अपनी नाइटी अपनी कमर पर पकड़े खड़ी थी और पॅंटी अब भी घुटनो में फसि हुई थी. ठाकुर ने एक पल उनसे नज़र मिलाई और फिर आगे बढ़कर अपने होंठ उनकी चूत पर रख दिए.
"आआआअहह" ठकुराइन के मुँह से इतनी ज़ोर से आवाज़ निकली के उन्हें लगा के कोई बाहर सुन ना ले. नीचे ठाकुर ने अपने दोनो होंठ उनकी चूत से मिला दिए और ज़ोर ज़ोर से घिसने लगे. वो अपने होंठ उनकी चूत पर ज़ोर ज़ोर से रगड़ रहे थे और ठकुराइन के दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी.
ठाकुर एक पल को पिछे हुए और घुटनो में फसि हुई पॅंटी को पूरी तरह से उतारकर कमरे में एक तरफ उच्छाल दिया. अब ठकुराइन कमर के नीचे पूरी तरह से नंगी खड़ी थी.
सरिता देवी ने अब भी अपनी नाइटी कमर पर पकड़ रखी थी और चूत ठाकुर के चेहरे के ठीक सामने खुली हुई थी. वो एक पल को रुके और चूत को गौर से देखने लगे.
"क्या हुआ?" बेसबर होती सरिता देवी ने पुछा
"देख रहा हूँ" ठाकुर ने जवाब दिया
"क्या?"
"यही के आज पहली बार आपकी चूत पूरे बालों के साथ देखी है और सच कहूँ तो बालों के साथ और भी अच्छी लग रही है" ठाकुर मुस्कुराते हुए बोला और एक हाथ से चूत को धीरे से सहलाया.
ठकुराइन से बर्दाश्त नही हुआ और एक हाथ से उन्होने ठाकुर के सर को पकड़ कर अपनी चूत की तरफ खींचा. दूसरे हाथ से उन्होने नाइटी को अच्छे से समेट कर अपनी कमर पर पकड़ लिया ताकि वो नीचे ना गिरे.
"क्या हुआ?" जब ठकुराइन ने ठाकुर के सर को आगे को खींचा तो ठाकुर ने पुछा
"करो ना" सरिता देवी बोली
"क्या करूँ?" ठाकुर ने शरारती तरीके से मुस्कुराते हुए पुछा
ठकुराइन जानती थी के वो क्या सुनना चाह रहे थे.
क्रमशः........................................
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