RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --37
गतान्क से आगे........................
"साउंड्स रीज़नबल" जै ने सहमति जताई "चड्ढा मान गया?"
"हां" ख़ान बोला "पर एक शर्त पर"
"कैसी शर्त?"
"देखो सरकारी वकील होने के नाते वो तुमसे फीस नही माँग सकता पर उसकी शर्त है के अगर तुम बेगुनाह साबित होकर रिहा हो गये, तो मोटी फीस देनी पड़ेगी"
"कितनी?" जै बोला
"मैने पैसे की बात नही की पर जितनी भी हो यार" ख़ान बोला "तुम्हारी जान बच जाए इसके लिए भले कितने भी पैसे लगें. या पैसे ज़्यादा प्यारे हैं तुम्हें?"
"बचूँगा ही नही तो पैसे का क्या करूँगा?" जै हस्ता हुआ बोला
"एग्ज़ॅक्ट्ली. तो पैसे की बात हम उससे बाद में करते रहेंगे" जै ने हां में सर हिलाया
"और अब क्यूंकी हमारे पास ज़्यादा वक़्त नही है, तो हमें जो करना है जल्दी करना पड़ेगा"
"ओके"
"देखो तुम्हारे केस में अब तक जो हमें थोड़ी बहुत बढ़त मिली है वो तुम्हारी ही बताई हुई बातों से मिली है और जो तुम बता सकते हो वो कोई और नही बता सकता. ठाकुर का खून हुआ और और ज़ाहिर सी बात है कि किसी घर के आदमी ने ही किया है. तो इस खून की वजह भी कहीं किसी घरेलू मामले में ही च्छूपी है. मैं चाहता हूँ के तुम मुझे अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालो और सोचो के वजह मौजूद किस आदमी के पास खून करने की वजह हो सकती
थी. कुच्छ भी, कोई पुराना झगड़ा, कोई क़र्ज़ जिसे चुकाने के लिए दौलत चाहिए हो, वसीयत से बाहर होने का डर, एनितिंग"
"ओके" जै किसी बच्चे की तरह सुन रहा था
"और जैसा की मैने कहा के हमारे पास ज़्यादा वक़्त नही है, ये काम भी तुम्हें जल्दी ही करना पड़ेगा"
"यॅ ओके. आइ कॅन डू दट. मैं हवेली में रहने वाले हर शक्श की रग रग से वाकिफ़ हूँ"
"गुड. तुम मुझे सोचके बताओ और फिलहाल मुझे उस कॉल गर्ल का अड्रेस दो. आज शहर आने की एक वजह उससे मिलना भी था"
"ओके" जै ने अड्रेस बताना शुरू किया और ख़ान ने लिख लिया.
"मैने यहाँ जैल के वॉर्डन से बात कर ली है. अच्छी जान पहचान है मेरी उससे. मैने कह दिया है के जब भी तुम मुझे फोन करना चाहो तो तुम्हें रोका ना जाए"
"ओके" जै खुश होता हुआ बोला
"चलता हूँ मैं" ख़ान उठकर जाने लगा "फोन करना मुझे सोचकर"
जै भी साथ ही उठ खड़ा हुआ. ख़ान ने उससे हाथ मिलाया और शर्मा के साथ दरवाज़े की तरफ बढ़ा.
"एक बात बताओ" वो जाते जाते पलटा "तुमसे जो मिलने आई थी जैल में, वो कामिनी थी ना?"
जै के चेहरे पर एक पल के लिए आसार बदले.
"क्यूँ क्या हुआ? कोई प्राब्लम हो गयी?"
"नही ऐसे ही पुच्छ रहा हूं" ख़ान ने कहा तो जै ने हां में सर हिलाया.
"फिर आई वो तुमसे मिलने?"
"नही उसको भी अपने भाई का डर है" जै ने कहा
वो दोनो फिर दरवाज़े की तरफ बढ़े तो इस बार शर्मा पलटा.
"एक बात बताओ दोस्त" वो जै से बोला "मतलब तुम मौका-ए-वारदात से रंगे हाथ पकड़े गये, खून किसी और ने किया और फस तुम गये क्यूंकी तुम ग़लत टाइम पे वहाँ पहुँच गये, तुम्हारे अपने घरवाले तुम्हारे खिलाफ हैं, सब तुम्हें फाँसी पे टँगे देखना चाहते हैं और एक हमारे ख़ान साहब के सिवा कोई तुम्हें बचना नही चाहता और अब कोई वकील भी तुम्हारे केस नही ले रहा?"
जै ने हां में सर हिलाया.
"इस पर एक शेर याद आया सर. सुनाऊं?" शर्मा बोला
ख़ान ने हैरानी से उसकी तरफ देखा.
"आप भी सुनीएगा, आप ही की सिचुयेशन पे अर्ज़ कर रहा हूँ. तो अर्ज़ किया है."
झोली में झाँत नही,
सराय में डेरा,
कुत्तो ने गांद मेरी,
और बंदरों ने घेरा,
के हम भी मारेंगे, हम भी मारेंगे
उसके शेर पे ख़ान ज़ोर से हस पड़ा और जै की शकल देखने लायक हो गयी.
तकरीबन एक घंटे बाद ख़ान और शर्मा जै के बताए हुए अड्रेस पर पहुँचे.
"घर तो मस्त बनाया है सर" शर्मा सामने बने बंगलो को देखते हुए बोला.
"ठाकुर जैसे और जाने कितने रईसो का पैसा लगा हुआ है यहाँ" कहकर ख़ान हस्ने लगा.
"कहिए" घंटी बजाने पर एक नौकर बाहर आया और ख़ान को पोलीस यूनिफॉर्म में देख कर फ़ौरन ऐसे बोला जैसे रोज़ की बात हो "मेडम की अभी तबीयत ठीक नही है. बाद में फोन करके आना"
ख़ान और शर्मा ने हैरत से एक दूसरे का मुँह देखा.
"आए साले" शर्मा जल्दी से बोले "दरवाज़ा खोल वरना तेरी मेडम के साथ साथ तेरी तबीयत भी खराब हो जाएगी"
"कहा ना कल आना" नौकर फिर बोला तो इस बार ख़ान भड़क पड़ा
"सुन ओये. या तू दरवाज़ा खोल वरना मैं अंदर घुसकर ......"
वो बात पूरी करता इससे पहले ही नौकर दरवाज़ा खोल चुका था.
उसके पिछे चलते दोनो घर के अंदर आए.
"बैठिए" नौकर ने उनको बैठने का इशारा किया. वो दोनो बैठे ही थे के अंदर से एक तकरीबन 40 साल की औरत बाहर आई. उसकी शकल देख कर कोई भी कह सकता था के वो 40 की थी पर जिस्म ऐसा के 20 साल की लड़की भी शर्मा जाए.
वो औरत चलती हुई ड्रॉयिंग रूम में आई और ख़ान और शर्मा को ऐसे देखने लगी जैसे याद करने की कोशिश कर रही हो.
"नही हम पहले कभी मिले नही" ख़ान ने उसकी शकल देख कर समझते हुए कहा
"तो फिर माफ़ कीजिएगा मेरी तबीयत कुच्छ आज ठीक....." वो कह ही रही ही के ख़ान बीच में बोल पड़ा
"हां बताया आपके नौकर ने पर हम उस काम से नही आए"
"तो किस काम से आए हैं?" वो औरत वहीं एक कुर्सी पर बैठते हुए बोली
"हम तेज को ढूँढ रहे हैं. ठाकुर तेजविंदर सिंग"
नाम सुनते ही उस औरत का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा. ख़ान को उसे देख कर पूरा यकीन हो चला था के अगर वो पोलीस वाला ना होता तो उस वक़्त धक्के देकर बाहर निकाल दिया जाता.
"और आपको ऐसा क्यूँ लगता है के वो कुत्ता आपको यहाँ मिलेगा?" रेखा गुस्से में बोली
"कुत्ता?" शर्मा फिर बीच में बोला "नही कुत्ता नही, तेज एक आदमी का नाम है"
"चुप रहो" ख़ान ने उसको इशारा किया "देखिए हमको यही बताया गया था के तेज अपना ज़्यादातर वक़्त आपके यहाँ गुज़ारता है"
"है नही था" रेखा बोली "अब अगर वो कमीना यहाँ आया भी तो उसके टुकड़े घर से बाहर जाएँगे"
"ह्म्म्म्मम" ख़ान हैरत से बोला "और इतनी नफ़रत की वजह?"
"कोई वजह नही." रेखा गुस्से में लाल होती बोली "बस हमारे यहाँ वहशी कुत्तो का यही हाल करते हैं"
"वहशी कुत्ता, वाउ" ख़ान ने कहा "काफ़ी हैरानी हुई मुझे. मुझे तो लगा था के आपका बहुत बड़ा आशिक़ था"
"आशिक़?" रेखा ऐसे हसी के ख़ान को समझ नही आया के वो हस रही है या उसकी बात पर हस रही है "आशिक़ होता तो ये ना करता"
और फिर रेखा ने वो किया जिसके लिए ना ख़ान तैय्यार था और ना शर्मा. वो अचानक से खड़ी हुई और अपना नाइट गाउन खोल दिया. गाउन के अंदर उसने नीचे एक पाजामा पहेन रखा था पर उपेर से गाउन के नीचे नंगी थी.
ख़ान को एक पल के लिए समझ नही आया के क्या करे. देखे या नज़र घुमा ले. और देखे तो क्या वो देखे जो सामने है या वो देखे जो रेखा दिखाना चाह रही थी.
"कितने बड़े बड़े हैं" शर्मा की आवाज़ आई तो ख़ान का ध्यास सा टूटा और पहली बार उसको वो दिखाई दिया जो रेखा दिखना चाह रही थी.
उसकी चूचियो पर, पेट पर, कंधो पर नीले और रंग के लाल निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे.
"साले ने जानवर की तरह मारा था मुझे, ऐसे कि निशान आज तक गये नही जबकि उस बात को हफ़्तो हो गये" वो अपना गाउन फिर से बंद करते हुए बोली
"आपने पोलीस में रिपोर्ट नही लिखाई?" ख़ान ने पुछा
"हां ज़रूर" रेखा ने इस अनडाआज़ में कहा के ख़ान ने फिर इस बात को आगे नही बढ़ाया.
"इस पेपर में मेरा फोन नंबर लिखा हुआ है. अगर वो यहाँ आए या आपसे मिलने की कोशिश करे तो प्लीज़ मुझे फोन कीजिएगा. मोबाइल नंबर है मेरा"
"वो अभी नही आएगा" रेखा बोली "जब तक के उसके चाचा के लड़के को फाँसी नही लग जाती तब तक गायब रहेगा. जब उसके करम की सज़ा उसका चचेरा भाई उठा लेगा और बात ख़तम हो जाएगी, तब आएगा वो"
"उसके करम की सज़ा?" ख़ान ने हैरानी से पुछा
"अर्रे उसने मारा है अपने बाप को. काब्से इस ताक में बैठा था. कई बार बोला मुझे के अपने बाप को एक दिन मैं ही मारूँगा और मौका मिला तो कर भी दिया. और फाँसी लग रही है किसी और को"
उसी शाम वादे के मुताबिल जै ने ख़ान को फोन कर दिया.
"सर बहुत सोचा मैने पर हर किसी को इतना करीब से जानता नही. जितना मैं जानता था उनके बारे मैं आपको ऑलरेडी बता चुका हूँ"
"ओके" ख़ान ने अपना पेन और डाइयरी उठाई. एक पल के लिए उसने जै से ठकुराइन के आक्सिडेंट और पुरुषॉटटम के ठाकुर से बात ना करने के बारे में पुछा पर फिर अपना इरादा बदल दिया.
"बस एक इंसान और है जिसके बारे में मैं आपको बता सकता हूँ." जै बोला
"कौन?"
"कामिनी"
"कामिनी? उसके बारे में क्या?"
"मुझे लगता नही के ये केस से कोई ताल्लुक रखने वाली बात है पर उसका किसी लड़के से चक्कर था या फिर है शायद"
"कौन?" ख़ान ने फ़ौरन पुछा
"ये तो पता नही"
"कभी बात है ये?"
"हाल फिलहाल की बात है सर. और जहाँ तक मेरा ख्याल है चाचा ठाकुर को ये बात पता चल गयी थी जिसको लेकर हवेली में काफ़ी हंगामा भी हुआ था."
"ओके आंड तुम्हें ये बात कैसे पता?"
"कैसी बात कर रहे हो सर. भले हवेली में रहता नही पर हवेली की सारी खबर रखता हूँ मैं. और वैसे भी ऐसी बातें कहाँ च्छुपति हैं"
"यप" ख़ान ने कहा
क्रमशः........................................
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