Incest Porn Kahani जिस्म की प्यास
07-19-2018, 12:21 PM,
#1
Star  Incest Porn Kahani जिस्म की प्यास
चेतावनी ........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक पारवारिक सेक्स की कहानी है 

जिस्म की प्यास 




दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी लेकर हाजिर हू दोस्तो जिस्म की प्यास एक ऐसी प्यास है जो बड़े बड़े खानदानो को तबाहओ बर्बाद कर देती है ये कहानी भी जिस्मो की प्यास पर आधारित है दोस्तो

ये कहानी एक साधारण भारतीय परिवार की है... दिल्ली शहर में बसा हुआ ये परिवार एक साथ बहुत खुश

रहता है मगर अलग अलग इनकी ज़िंदीगिया कुच्छ और ही है... और इनमे 5 लोग है..

सब से पहले

नारायण : उम्र: 50 साल.. रंग: सावला... दिखने में: लंबा, पतला और 6.5 इंच का लंड.. एक स्कूल अध्यापक

होने के कारण कयि लड़कियों से घिरा रहता था और उसकी वजह से उसकी काई इच्छाएँ थी जिनको वो . करने से डरता था.

शन्नो : उम्र 42 साल.. रंग: गोरा.. दिखने में: हट्टी कत्ति आंटी.. 38डी/30/38 साइज़ है और गाल पे एक तिल है..

एक ज़िम्मेदार पत्नी और मा मगर एक कमी है कि ये पैसो के बारे में कुच्छ ज़्यादा ही सोचती है..

डॉली : उम्र 23 साल.. रंग सावला.. दिखने में: 34बी/24/36 साइज़ खूबसूरत चेहरा और 5 7 इंच की हाइट..

सच्चे प्यार की तलाश में रहती है.. काफ़ी शरीफ और घरेलू लड़की है और अपने परिवार से बहुत प्यार करती है.

ललिता : उम्र 19 साल.. रंग गोरा.. दिखने में: 36सी/26/37 साइज़... छोटी उम्र मगर बाकी सब कुच्छ बड़ा..

अपनी बहन से बिल्कुल अलग.. प्यार से ज़्यादा इसको चुदाई में ज़्यादा दिलचस्पी है.... मगर अभी तक इसकी सील टूटी नहीं है...

चेतन :उम्र 18 साल.. रंग सावला.. दिखने में लंबा मोटा.. घर का सबसे छोटा और काफ़ी शरीफ लड़का..

आज तक उसने किसी लड़की को छुआ भी नहीं था छूना तो दूर की बात उसे बात भी करनी नहीं आती थी.. लेकिन उसका भी मन करता था कि उसकी कोई गर्ल फ्रेंड हो जो उसे बहुत ज़्यादा प्यार करें

ये कहानी नारायण के परिवार के बारे में हैं जो कि ईस्ट देल्ही में रहते हैं. नारायण 50 साल

का है और पेशे से स्कूल का टीचर है. उसकी बीवी शन्नो है जो कि घर की और पूरे परिवार की देखबाल

करती है. शन्नो के पिता ने उसकी 19 साल की उम्र में ही शादी करा दी थी. इतनी कम उम्र में शादी होने के बावजूद

अभी भी उनकी शादी शुदा ज़िंदगी अच्छी है. अपनी पहली बच्ची का नाम उन्होने डॉली रखा और कुच्छ साल बाद

उनको दो और बच्चे हुए जिनका नाम उन्होने ललिता और चेतन रखा. डॉली कॉलेज के आखरी साल में है....

ललिता डिस्टेन्स से अपने कॉलेज की पढ़ाई कर रही है मगर फिर भी उसको क्लासस के लिए हर दिन जाना पड़ता है

और चेतन फिलहाल स्कूल में पढ़ रहा है मगर ऐसा स्कूल जिसमे सिर्फ़ लड़के पढ़ते है...

रोज़ की तरह सुबह नारायण 6 बजे उठ कर दौड़ने चला गया. कुच्छ देर बाद शन्नो बिस्तर से सोके उठी और किचन

में जाके सुबह का नाश्ता बनाने लगी. जब तक नारायण दौड़ के आया शन्नो ने चेतन और ललिता दोनो को उठाया

और जल्दी से तैयार होके नाश्ता करने को कहा. चेतन हमेशा की तरह ललिता से लड़ झगड़ के बाथरूम में पहले

घुस गया. ललिता ज़ोर से दरवाज़े को पीटने लगी.... इन दोनो के बीच में कुत्ते बिल्ली जैसी लड़ाई होती रहती थी..

किसी ना किसी बात पर बहस होती रहती थी और कभी कबार हाथा पाई भी.... जैसे की सुबह कभी ललिता टाय्लेट

जल्दी चली जाती थी तो कभी चेतन और दोनो एक दूसरे को सताने के लिए बहुत समय लगाते थे... थोड़ी देर बाद

दोनो अच्छी तरह तैयार होके टाइम से खाना खाने के लिए आ गये. देखते ही देखते घर खाली हो गया.

नारायण ललिता को स्कूटर पे ले गया ताकि वो उसको क्लासस के लिए छोड़ दे और फिर स्कूल चले जाए और

चेतन अपने स्कूल चला गया बस से. ललिता को भी जल्दी जाना था क्यूंकी आज उसका एग्ज़ॅम था...

शन्नो को थोड़ी देर के लिए राहत मिली तो वो आराम करने चली गयी. जब उसकी आँख खुली तब 8:10 हो गये थे

वो जल्दी भागी डॉली के कमरे में उसको उठाने के लिए. जब तक वो पहुचि वहाँ डॉली पहले ही

तयार हो चुकी थी कॉलेज जाने के लिए. शन्नो उसके पास गयी और उसके माथे को हल्के से चूमा

और खाना खाने के लिए बोला. खाने के बाद डॉली भी अपना कॉलेज बॅग उठाके मेट्रो पकड़ने के लिए चली गयी.

शन्नो अकेले रूम में बैठ कर अपनी बेटी के बारे में सोचने लगी.. उसको डॉली पे बहुत नाज़ था और वो चाहती थी

की डॉली अपनी पढ़ाई पूरी करके अपनी ज़िंदगी जिए जो वो खुद नही कर पाई थी .

दूसरी ओर डॉली आनंद विहार स्टेशन पहुचि और जब तक वो प्लॅटफॉर्म पे पहुचि ट्रेन चली गयी थी.

अगली ट्रेन 4 मिनट में थी तो डॉली गर्ल्स कॉमपार्टमेंट की लाइन में जाके खड़ी हो गई.कुच्छ कदम दूर ही एक गार्ड

था जोकि लंबा चौड़ा था और डॉली को देखे जा रहा था. डॉली ने उसको नज़र अंदाज़ करने की कोशिश करी

मगर वो चलके उसके पास आने लगा. तभी मेट्रो आने की आवाज़ आई और डॉली झट से जाके उसमें बैठ गयी.

उस गार्ड ने तो उसको डरा ही दिया था मगर आज वो बहुत खुश थी क्यूंकी उसके बाय्फ्रेंड राज और उसके

रिलेशन्षिप को 6 महीने हो गये थे और वो सीधा उसके घर जाने का सोच रही थी इसीलिए तो उसने

अपनी फॅवुरेट ब्लू जीन्स और ब्लॅक टी-शर्ट ब्लॅक हाइ हील्स के साथ पहनी थी. वो ट्रेन में अपनी पहली मुलाकात

के बारे में सोचने लगी जब वो दोनो मेट्रो में ही मिले थे. डॉली अपनी सहेलिओ के साथ थी और

राज अपने दोस्तो के साथ. डॉली को पहली झलक में राज से प्यार हो गया था. फिर वो सोचने लगी

जब पहली बार राज के घर गयी थी और कैसे राज ने उसको अपनी बाँहो में लेके प्यार किया था.

उस दोपेहर का एक एक पल वो कभी नहीं भूल सकती जब वो दोनो पहली बारी हमबिस्तर हुए थे.

डॉली आज भी अपने आपको राज को सौपने जा रही थी और तभी उसने पर्पल ब्रा और पैंटी पहनी थी जोकि राज

का सबसे पसन्द का रंग है. डॉली लक्ष्मी नगर स्टेशन पे उतरी और राज के घर जाने लगी.

राज आकाश गंगा अपार्टमेंट्स में रहता था अपने मा बाप के साथ मगर उसके मा-बाप सुबह काम के लिए जाते थे

और शाम को ही लौटते थे... डॉली ने घर की बेल बजाई और कुच्छ सेकेंड्स इंतजार किया. थोड़ी देर फिर से बेल बजाई

तो दरवाज़ा खुला और राज के चेहरे का रंग ही उतर गया था डॉली को देख कर. डॉली ने राज को देख कर कहा

अर्रे दरवाज़ा तो खोलो. राज ने ना चाहते हुए भी दरवाज़ा खोला और डॉली घर के अंदर आके उसे लिपट गयी.

तभी रूम में से एक लड़की की आवाज़ आई "राज कौन आया है".. डॉली राज से दूर हो गयी और उसके बेडरूम में गयी.

बिस्तर पे रज़ाई ओढ़ के उसकी सबसे अच्छी सहेली नेहा लेटी हुई थी. नेहा डॉली को देख कर घबडा गई और कुच्छ बोल नही पाई.

डॉली की आँखों में आँसू आ गये और वो घर से बाहर चली गयी. डॉली अपने आपको रोक नहीं पाई

और सीडिओं पे बैठके रोने लगी. राज सीडिओं तक आया उसको चुप करने के लिए और गुस्से में आके

उसने राज को वहीं चाँटा लगा दिया और वहाँ से चली गयी...

पूरे रास्ते उसका ध्यान राज पे था जिसने उसको धोका दिया मगर उससे ज़्यादा उसे अपनी सहेली नेहा पे

गुस्सा आ रहा था.... वो नेहा को सब कुच्छ बताती थी और उसपे हद से ज़्यादा भरोसा करती मगर उसको

अंदाज़ा भी नहीं था कि वो कभी ऐसा कर सकती है... यही सोचते सोचते वो अंजाने में जाके

मेट्रो के नॉर्मल कॉमपार्टमेंट के अंदर चली गयी. इतना शोर सुनके उसका ध्यान भटका और देखा कि

पूरे कॉमपार्टमेंट में लड़के/आदमी थे. और उसके अगले कॉमपार्टमेंट में भी लड़के ही दिख रहे थे.

वो सोच में पड़ गयी कि अब लड़कियों के कॉमपार्टमेंट में जा भी नहीं सकती. डॉली पोल को पकड़के बीच में खड़ी हो गई.

उसने अपना ध्यान भटकाने के लिए इयरफोन्स लगाए और गाने सुनने लग गयी. अगले स्टेशन पे जब ट्रेन रुकी

तो और लोग उसमें चढ़ गये और डॉली सबके बीच पिस गयी. गाने सुनने के कारण डॉली के सिर में दर्द हो रहा था

तो उसने गाने सुनने बंद कर दिए मगर एअर फोन कान से नहीं निकाले. डॉली दोनो गेट के बीचे में

पोल पकड़के खड़ी हुई थी और पोले का सहारा लिए कयि लोग थे. डॉली को लगे जा रहा था कि ये लड़के/आदमी

ज़रूर मेरे हाथ को छुना चाहेंगे और इसी वजह से उसने पोल को सबसे उपर से पकड़ा.

इस ग़लती की वजह से अंजाने में डॉली की टी-शर्ट थोड़ी उपर हो गई और उसकी पतली कमर का नज़ारा दिखाने लगी.

सब लोगो की अंजाने में या जानके नज़र डॉली की कमर पे ही जा रही थी. अगला स्टेशन प्रीत विहार था

और स्टेशन पे जब गाड़ी रुकने वाली थी तभी लोग उतरने के लिए दरवाज़े की तरफ बढ़ने लगे.

डॉली घबरा गयी और अपने आपको संभालने लगी. 2-3 लोगो से उसका बदन छुआ फिर उसको किसी का

हाथ गान्ड के उपर महसूस हुआ और दूसरे सेकेंड में ही उसकी नंगी कमर को सहलाता हुआ दूसरा हाथ.

डॉली ने जल्दी से अपना शर्ट नीचे करी और घबराके खड़ी हो गयी. उसने पूरी कोशिश करी कि उसकी

घबराहट किसी और को दिखे ना. प्रीत विहार पे जितने लोग उतरे तो उतने चढ़ भी गये. बस अब 2 स्टेशन बचे

थे आनंद विहार स्टेशन आने में और डॉली को उसका ही इंतजार था. धक्को के कारण डॉली दूसरे दरवाज़े

की तरफ हो गयी शीशे के बाहर देखने लगी.वो इतनी चिपकी हुई थी दरवाज़े से की मानो कभी कभी मेट्रो के

झटको के कारण उसके मम्मो और शीशे के बीच में चुंबन हो रहा हो. पर अचानक बड़ी तेज़ ब्रेक की

आवाज़ आई और झटके से मेट्रो रुक गयी. इसी मौके का फ़ायदा उठाके एक 15-16 साल के बच्चे ने डॉली की गान्ड को छुने का मज़ा उठाया. डॉली ने अपने आपको संभाला और तभी अनाउन्स्मेंट हुई

" ज़रूरी सूचना कुच्छ टेक्नीकी खराबी की वजह से मेट्रो का सफ़र रोका गया है. हमे खेद है

और जल्द ही इस समाधान को ठीक कर दिया जाएगा."

मेट्रो पूरी बंद हो चुकी थी हल्का सा अंधेरा भी च्छा गया था और एसी भी बंद हो गये थे.

डॉली ने अपनी आँखें बंद करके दुआ माँगी कि जल्दी सब ठीक हो जाए. गर्मी और दर्द के कारण डॉली ने

अपना कॉलेज बॅग अपने पैरो के पास रख दिया.

फिर से अनाउन्स्मेंट हुई कि "हम कुच्छ ही समय में सफ़र शुरू करदेंगे." डॉली को ये सुनके जान में

जान आई. डॉली का फोन वाइब्रट हुआ और उसने राज का नाम देख कर कट कर्दिआ. दो-तीन बारी कॉल आया और हर

बारी राज का कॉल कट कर दिया. मेट्रो भी चलने लगी और डॉली अब फिर आज सुबह के बारे में सोचने लगी.

जब ट्रेन आखरी स्टेशन पे पहुच गयी तब डॉली आराम से उतरी ताकि फिर धक्का मुक्की में ना फसना पड़े.

तक हारकर डॉली घर पहुचि और उसने बेल बजाई. थोड़ी देर बाद दरवाज़ा चेतन ने खोला.

"ओये तू इतनी जल्दी कैसे आ गया स्कूल से" डॉली ने चेतन से पूछा. चेतन ने कुच्छ नहीं कहा

और सीधा अपने कमरे में गया और दरवाज़ा बंद कर दिया. "अच्छी बात है आगयि तू डॉली" शन्नो गुस्से में बोली.

"क्या हुआ अम्मी" डॉली ने घबराके पूछा. "इस लड़के ने तो हमारा जीना हराम कर रखा है स्कूल

से लेटर आया है कि ये कितने दिनो से स्कूल नही जा रहा है. एक एग्ज़ॅम भी नही दिया इस नालयक ने. नज़ाने कहाँ किसके साथ रहता होगा."

ये बोलके शन्नो अपना सिर पकड़के सोफे पे बैठ गयी. डॉली ने अपनी अम्मी को तसल्ली दी और उसको कहा

की वो चेतन से बात करेगी... चेतन की सबसे चहेती बहन डॉली थी.. जितनी लड़ाई उसकी ललिता से थी उतना

ही प्यार उसका डॉली के साथ था... मगर डॉली के कई बारी दरवाज़े खटखटाने पर भी चेतन ने दरवाज़ा नही खोला.

डॉली आज वैसे ही काफ़ी झेल लिया था और अब वो परेशान होके अपने रूम में चली गयी सोने के लिए.

4 बजे तक घर पे सब शांत था फिर घर की बेल

बजी और शन्नो जल्दी से उठी दरवाज़ा खोलने के लिए.

नारायण और ललिता खड़े थे बाहर और नारायण कुच्छ

ज़्यादा ही गुस्से में था.

"कहा है साहब ज़ादे" नारायण ने चिल्लाके पूछा

शन्नो से. शन्नो ने कहा कि अपने रूम को बंद करके

बैठा हुआ है. नारायण ने भी चेतन को उसके हाल पे

छोड़ दिया और इंतजार किया उसके बाहर निकलने का.

शाम के 6 बज गये थे और डॉली और ललिता दोनो

बिस्तर पे सो रहे थे तभी चेतन ने अपने कमरे का

दरवाज़ा खोला और देखा के उसके अम्मी और पापा दोनो टीवी

देख रहे है. वो चुप चाप जाके सोफे पे बैठ गया.

कुच्छ देर बाद चेतन ने हिम्मत झुटाके पापा कहा और

नारायण ने टीवी बंद कर्दिआ.

"बोलो मैं सुन रहा हूँ" नारायण ने अपनी भारी

आवाज़ में बोला. "मैं मानता हूँ कि मैने स्कूल बंक

किया मगर खुदा की कसम मैने कोई ग़लत काम

नहीं किया. मैं चंदर के घर पे रहता हर समय

आप चाहे तो पूच्छ सकते है". नारायण ने कहा "उसकी

कोई ज़रूरत नहीं है मैने चंदर से पहले ही बात करली

थी और मुझे तुमपे भरोसा है कि तुमने कुच्छ ग़लत

काम नहीं किया होगा. मैं तुम्हारे स्कूल गया था

और बहुत गुज़ारिश करने के बाद तुम्हारी प्रिनिसिपल

ने तुम्हे आखरी मौका दिया है. मगर मुझे ये

बताओ तुमने एग्ज़ॅम क्यूँ नहीं दिए और स्कूल क्यूँ

बंक करा??"

"पापा उस स्कूल में सब मेरा मज़ाक उड़ाते है

और मुझे हर वक़्त परेशान किया जाता है. मुझे

उस स्कूल में तरह तरह के नामो से पुकारा जाता है"

ये बोलके चेतन के आँखों में आँसू आ गये.

नारायण ने समझाया "बेटा इस दुनिया में

कयि बारी तुम्हारे पे मुसीबते आएँगी मगर तुम्हे

उनसे भागना नहीं चाहिए. मेरेलिए तुम फिर से

स्कूल जाके देखो. अब तुम्हे कोई परेशान नहीं

करेगा". केयी कोशिशो के बाद चेतन ने नारायण की

बात मानलि और जाके दोनो के गले लग गया.

रात तक माहौल काफ़ी सुधर गया था. सब अपने अपने

रूम में सोने के लिए चले गये थे. डॉली अपने बिस्तर

पे अकेले नेहा और राज के बारे में सोचने लगी.

उसे एक पल भी नहीं लगा था कि ये दोनो मिलके उसको इतना

बड़ा धोका देंगे. तभी उसका मोबाइल बजा और राज

का मैसेज आया प्लीज़ डॉली फोन उठा लो बहुत ज़रूरी बात

करनी है. डॉली ने काफ़ी देर सोचा और उसको रिप्लाइ करा

कि मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी और तुम्हारी

आवाज़ हरगिज़ नहीं सुननी. राज ने फिर

लिखा की अगर हमारा प्यार सच्चा है तो कल तुम

मुझे अपने कॉलेज के बाहर मिलोगि.... मैं इंतजार

करूँगा... डॉली ने राज के मैसेज का कोई रिप्लाइ नहीं करा.

रात के कुच्छ 12:30 बज रहे होंगे नारायण ने अपनी आँख

खोली और बिस्तर से उठा और अपने रूम के बाहर गया.

पूरे घर में शांति थी.. नारायण अपने कमरे

में आया और आहिस्ते से अपनी अलमारी खोलके ड्रॉयर

में सेकोन्डोम निकाला. शन्नो उसके सामने ही

सीधे पड़े हुए बिस्तर पे सोरहि थी सफेद-हरे

सलवार कुर्ते में. उसने एक पतली सी चादर ओढ़ रखी थी

अपने पेट तक. कसम से काफ़ी मस्त लग रही थी वो

और जब भी वो सासें लेती तो उसके स्तन उपर नीचे

होते रहते नारायण उसके पास जाके खड़ा हो गया

और उसको 5 सेकेंड्स देखकर ही उसका लंड जाग गया.

नारायण अपनी बेगम को चौकाना चाहता था इसीलिए उसने

उसको जगाया नहीं बल्कि धीरे से उसकी चादर

नीचे सरका दी. नारायण ने अपना उल्टा हाथ धीरे से

बढ़ाता और शन्नो के मम्मे पे रख दिया और उसको

उपर नीचे करने लगा. शन्नो के कुच्छ ना करने पर वो

फिर उन्हे दबाने लगा... फिर उसकी मोटी चुचियो को

महसूस करने लगा और वो सख़्त हो गयी... बड़ी कठोरता से

नारायण ने उसकी चुचि को नौचा जिससे शन्नो

बिस्तर पे पलट गयी.... अब शन्नो की मोटी गान्ड उसके

सामने आ गयी थी.. वो नीचे घुटनो के बल बैठा

और अपनी बेगम की गान्ड को महसूस करने लगा..

उसने कुर्ते को उपर करा और सलवार के उपर से उसकी मस्त

गान्ड को सहलाने लगा...

फिर नारायण ने अपनी उंगली शन्नो की गान्ड के बीचकी सड़क

पे चलाने लग गया... शन्नो नींद में ही परेशान होके

फिरसे पलटी...

अब वो नारायण की तरफ मूड गयी थी... नारायण खड़ा

हुआ तो उसका लंड जो कि उसके पाजामे में था, शन्नो

के मुँह की तरफ देख रहा था. नारायण ने पाजामे का

नाडा खोला और अपने लंड को कच्छे में

से बाहर निकाला.. उसका 6.5 इंच का मोटा लंड और बढ़

गया था. वो थोड़ा शन्नो के पास झुका और अपना

लंड शन्नो के गाल पे रखके सहलाने लगा. उसका लंड

शन्नो के गालो को चाट्ता चाट्ता उसके होंठो तक पहुच गया

"हाए जालिम क्या क्या कर रहे हो" शन्नो चौक के बोली.

नारायण ने शन्नो को कॉंडम दिखाया. शन्नो ने गुस्से

में बोला आप जानते है ना कि कभी भी बिना कॉंडम

के लंड नहीं चूस सकती फिर क्यूँ मेरे

मुँह के पास लाए."

नारायण ने कहा "ग़लती हो गई ना बेगम...

चलो ना अब और इंतजार ना कर्वाओ इतने दिन हो

गये है तुम्हे ढंग से देखा भी नहीं".

शन्नो परेशान होके बोली

" नारायण आज नहीं कर सकते मैं बहुत थकि हुई हूँ

पूरा घर सॉफ किया है मैने".

नारायण ने उखड़ के कहा " मैं तुमसे बात नहीं

करूँगा" शन्नो ने प्यार से बोला"ऐसे बच्चो की

तरह बात नहीं करते नारायण... "मैं आज सच्ची में

बहुत थकि हुई हूँ और समय भी बहुत हो गया है

कल उठना भी है सुबह मुझे."

क्रमशः………………..
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