RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"अब तो तुम अपने कपड़े उतार ही चुकी हो और मेरे रहते तुम्हे अपनी बदनामी का भी डर नही. तो फिर और क्या दिक्कत है मा ?" ऋषभ ने पुछा.
"यही तो सबसे बड़ी दिक्कत है रेशू कि तेरी मा होने के बावजूब भी मैने तेरे सामने अपने कपड़े उतार दिए, माना मैं दुनिया की नज़रो में बदनाम नही होउंगी मगर मेरी अपनी नज़रों का क्या ?" ममता ने अपने जवाब के अंत में एक नया सवाल जोड़ते हुवे कहा.
"तुम्हारे इलाज के खातिर तुम्हे इतना तो सहेन करना ही होगा मा" ऋषभ मुस्कुराया.
"मगर इलाज शुरू भी तो हो! तुझे बेशार्मो की तरह अपनी मा के मम्मो और चूतड़ो की झूठी तारीफ़ करने से फ़ुर्सत मिले तब ना" प्रत्युत्तर में ममता शिक़ायती लहजे में बोली.
"अभी लो! चलो खड़ी हो जाओ" ऋषभ ने खुद उसके कंधे पकड़ कर उसे कुर्सी से उठने में मदद की और तत-पश्चात उसके हल्के से उभरे हुवे पेट का ऊपरी तौर पर निरीक्षण करने लगता है, वह आशंकित हो चुका था कि कहीं उसकी मा उसकी गंदी बातों से बिदक ना पड़े और तभी फ़ैसला करता है कि अब वह अपने खुद के शारीरिक स्पर्श और अपनी कामुक हरक़तो के ज़रिए उसका मनोबल तोड़ने का प्रयास करेगा और बीच-बीच में अपने अश्लील अल्फाज़ो की भी सहायता लेता रहेगा.
"तुमने बताया था कि तुम्हे भूख नही लगती! क्या तुम्हे अपच या शौच करने में भी तकलीफ़ होती है मा ?" उसने पुछा और अपने दोनो हाथो की उंगलियों से अपनी मा के गुदाज़ पेट को कयि जगहो से दबाना शुरू कर देता है. उसका मन तो बहुत हुवा कि अपनी इस मन्घडन्त जाँच का फ़ायदा उठा कर वह अपनी जन्मस्थली, अपनी मा की चूत को भी एक नज़र देख ले मगर उसने खुद पर सैयम बनाए रखा ताकि कुच्छ वक़्त पश्चात अपने उसी सैयम को तरल सैलाब में परिवर्तित कर सीधे उसे अपनी मा की चूत की अनंत गहराई के भीतर खाली कर सके.
"न .. नही! अपच जैसा तो कुच्छ महसूस नही होता रेशू" ममता के कप्कपाते बदन के समान ही उसके लफ्ज़ भी काँपते हुवे से प्रतीत होते हैं. अपने बेटे के हाथो का चिर-परिचित स्पर्श पहले भी ना जाने कितनी बार वह अपने बदन पर महसूस कर चुकी थी परंतु तब उसका बेटा स्वयं उसी के आश्रित था, हर वक़्त अपनी मा के आँचल की ठंडी छाँव में छुपा रहता था. आज उसका वही बेटा एक जवान, बलिष्ठ और सक्षम युवक में तब्दील हो चला था, इतने विशाल लंड का स्वामी जो इस वक़्त उसकी सग़ी मा के नग्न बदन के प्रभाव से किसी सर उठाए नाग की भाँति फुफ्कार रहा था जैसे अपनी विकरालता से ही उसे अपनी मा के रोग का निदान करना हो.
"ह्म्म्म! और क्या शौच करने में दर्द महसूस होता है ?" ऋषभ ने पुछा.
"मतलब ?" अपने पुत्र के प्रश्न को ना समझ पाने से ममता ने सवालिया स्वर में कहा.
"देखो मा! अब तुम खुद मुझे मजबूर कर रही हो कि मैं तुमसे कोई बे-धन्गा सवाल करूँ ताकि तुम्हे फिर से मुझ पर बरसने का मौका मिल सके" ऋषभ ने चिढ़ने का नाटक किया.
"ओह्ह्ह्ह! तो तू फ्रेश होने के बारे में पुच्छ रहा था, नही कोई दर्द महसूस नही होता मगर ...." अपने कथन को अधूरा छोड़ते हुवे अचानक ही ममता के चेहरे पर शर्मीली सी मुस्कान व्याप्त हो जाती है.
"मगर क्या मा ?" ऋषभ ने अत्यंत तुरंत पुछा.
"मुझे! मुझे पेशाब करना है" ममता ने अत्यधिक लाज से परिपूर्ण अपने चेहरे को नीचे झुका कर कहा, यह कुच्छ वक़्त पिछे अपने सूखे गले की प्यास बुझाने के खातिर दो बॉटल पानी गाटा-गत पी जाने का ही नतीजा था.
"थोड़ी देर बाद कर लेना क्यों कि पहले मुझे तुम्हारे मम्मो की जाँच पूरी करनी है" ऋषभ गंभीरतापूर्वक बोला मानो उसे ममता की पेशाब करने वाली बात से कोई ख़ासा फ़र्क़ नही पड़ा हो बल्कि हक़ीक़त में अपनी मा के पेशाब करने के लिए पैर फैला कर बैठने और उसकी झांतो से भरी चूत की खुली व अत्यंत सूजी फांकों के बीच से निकलती हुवी पेशाब की धार की कल्पना मात्र से ही उसका लंड फॅट पड़ने की कगार पर पहुँच चुका था.
"मैं! मैं रोक नही पाउन्गि" अनायास ही ममता के मूँह से निकल गया, अब तो उसका अपने पुत्र से आँखें भी मिला पाना मुश्क़िल था.
"तुम्हे रोकने की कोशिश करनी होगी मा! तुमने बताया था कि तुम्हे पेशाब करने में जलन महसूस होती है, मुझे खुशी है कि अब उसका भी निरीक्षण मैं कर सकूँगा" अपना कथन पूरा करते ही ऋषभ ने अपने हाथो को अपनी मा के पेट से ऊपर की ओर सरकाना शुरू कर दिया, उसके दोनो हाथ उसकी मा के बदन की अत्यंत कोमल चॅम्डी से बेहद चिपक कर उसके मम्मो तक की दूरी को नाप रहे थे. ममता की कामोत्तजना में इतनी तीव्रता व्रध्हि होने लगी थी कि वा चाह कर भी अपने पुत्र के खुरदुरे पंजो और लंबी उंगलियों के घर्षण को अपने रूई समान मुलायम बदन से हटा नही पाती.
"मैं तेरे सामने पेशाब नही कर सकती रेशू, तू मुझे बाथरूम का रास्ता बता दे" एक अरसा बीत गया ममता को अपना शर्मसार संवाद कहने में, उसने खुद को कोसा कि क्यों उसने पेशाब करने की अपनी निर्लज्ज इक्छा का खुलासा किया, शारीरिक जाँच के समाप्त होने के उपरांत भी तो वा पेशाब कर सकती थी.
"क्यों ? अब पेशाब करने में क्या दिक्कत है ?" ऋषभ के हाथ उसकी मा के मम्मो की निचली सतह को छु रहे थे.
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