RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"आह्ह्ह्ह्ह्ह रेशू" बिना उत्तर दिए ममता कसमासाई और कहीं उसकी सिसकारी पुनः ना फूट पड़े अपने निचले होंठ को अपने नुकीले दांतो के मध्य बलपूर्वक भीच लेती है.
"वैसे भी कॅबिन में बाथरूम नही है और क्लिनिक का मेन गेट भी खुला हुवा है" ऋषभ ने आकस्मात ही अपनी मा के कसावट से भरपूर दोनो मम्मो को अपने विशाल पंजो के भीतर कस लिया और कुच्छ लम्हे उनकी अन्द्रूनि कठोरता का लुफ्त उठाने के पश्चात अपने पंजो को मुट्ठी के आकार में सिकोड़ने लगता था.
"उफफफफ्फ़" ममता की आँखें मूंद गयी, अपने मम्मो पर अपने पुत्र की हथेलियों की रगड़ और दबाव झेल पाना उसकी सेहेन्शक्ति से बाहर था. उसकी चूत संकुचित हो कर गहराई में छुपे कामरस को अचानक से बाहर उगल देने को विवश हो उठती है और उसके निपल किसी नोक-दार अस्त्र के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं.
"क्या हुआ मा ? क्या तुम्हे अपने मम्मो में दर्द हो रहा है ?" ऋषभ ने चिकित्सक की भाँति पुछा जब कि वह अच्छे से जानता था कि उसकी मा की सीत्कार उसकी उत्तेजना को परिभाषित कर रही थी ना कि उसकी पीड़ा को.
"न .. नही" ममता ने अपने जबड़े भींचते हुवे कहा और अपने दाएँ हाथ की उंगलियों को तेज़ी से अपने सुडोल चूतड़ो की गहरी दरार के भीतर घुमाने लगती है, तत-पश्चात उसके बाये हाथ का अंगूठा और प्रथम उंगली भी उसकी चूत के भग्नासे को उमेठ देने के उद्देश्य से कुलबुलाने लगते हैं.
ऋषभ ने उस स्वर्णिम मौके का पूरा लाभ लिया, कभी अपने पंजो से वह ममता के मम्मो को बेदर्दी से गूँथने लगता तो कभी उंगलियों से हौले-हौले उन्हे सहलाना शुरू कर देता.
"मा! बचपन में मैने तुम्हारे इन्ही निप्प्लो को चूस कर तुम्हारा दूध पिया था ना ?" उसने अपनी उंगली का हल्का सा स्पर्श अपनी मा के तने हुवे दोनो निप्पलो पर देते हुवे पुछा.
"हां रेशू" ममता अब अपने पुत्र के पूर्ण नियन्त्र में आ चुकी थी, बिना झिझके वह अपनी गान्ड का छेद खुज़ला रही थी और तो और उसकी तीन उंगलियाँ बेहद तीव्रता से उसकी गीली चूत के संकरे मार्ग पर फिसलते हुवे चूत के अंदर-बाहर होने लगी थी.
"मैं तुम्हारे ऋण से कभी मुक्त नही हो सकूँगा मा! किस्मत की मेहेरबानी है जो आज जवानी में पुनः मैं अपनी मा के इन सुंदर निप्पलो को देख पा रहा हूँ" अपनी मा के निप्पलो को अपनी उंगलियों के दरमिया फसा कर ऋषभ उन से खेलना आरंभ कर देता है. आज उसका अपनी मा को देखने का नज़रिया पूरी तरह से बदल चुका था, वह उसे एक ऐसी प्यासी स्त्री जान पड़ रही थी जिसकी संतुष्टि को पूर्ण करना ही अब उसका प्रमुख लक्ष्य बन चला था.
"ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह रेशू! ऐसा मत कर बेटे! मैं तेरी सग़ी मा हूँ" ममता ने अपने पुत्र की वासनमयी सुर्ख आँखों में झाँकते हुवे कहा मगर खुद की नीच हरक़त को कतयि नही रोक पाती. वैसे तो औरतों को मर्द के इरादों का बहुत जल्दी पता लग जाता है, फिर भी इस पूरे अमर्यादित घटना-क्रम के दरमिया वह अक्सर अपनी सोच को अपने ममता तुल्य हृदय के आगे केवल वहाँ का नाम देती रही थी.
"मा! मुझे तुम्हारे मम्मो में कोई गाँठ नज़र नही आ रही" ऋषभ ने उसे बताया मगर उसके मम्मो और उन पर शुशोभित तने हुवे निप्पलो को मसलना नही छोड़ा और पहली बार ममता के मन में हुक उठी कि मा होने के बावजूद उसका बेटा उसकी नंगी काया पर बुरी तरह से मोहित हो चुका था.
"यह क्या है मा ?" अचानक ऋषभ ने पुछा और ममता की निगाहें भी अपने पुत्र की आँखों का पिछा करती हुवी अपनी कुर्सी, जिस पर वह काफ़ी देर से बैठी हुवी थी, उससे जुड़ गयी. कुर्सी की रेगजीन सतह उसकी चूत के कामरस से तर-बतर थी और जिसे देखते ही ममता पुनः उस पर विराजमान हो जाती है.
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