RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"पहले मेरी यह उंगली सूखी थी मा मगर इसके गीले हो जाने के बाद तुम्हे ज़्यादा दर्द नही झेलना पड़ेगा" ऋषभ ने अपनी उसी उंगली को अपनी मा के समक्ष प्रदर्शित करते हुवे कहा जिसे कुच्छ वक़्त पूर्वा उसने उसके कुंवारे गुदा-द्वार के भीतर घुसाया था.
"तेरी उंगली गंदी है बेटे! मत .. मत कर" ममता ने विनय के स्वर में हकलाते हुवे कहा.
"तुम मेरी मा हो! तुमसे ही मुझे यह जीवन मिला है, तुम्हारे शरीर का कोई भी अंग मेरे लिए कतयि गंदा नही हो सकता. मेरा विश्वास करो मा! मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा" अपनी मा के प्रति अपना प्रेम दर्शाने के पश्चात ही ऋषभ अपनी गंदी उंगली को अपने मूँह के भीतर क़ैद कर लेता है, जिसके नतीजन आकस्मात वे मा और पुत्र जड़वत अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं. जहाँ ममता अपने पुत्र द्वारा दर्शाए गये प्रेम के हाथो विह्वल हो उठी थी, उसके प्रेम का वास्तविक अर्थ खोजने का असफल प्रयत्न करने लगी थी वहीं ऋषभ के मूँह में तीव्रता से घुलती जा रही उसकी सग़ी मा के मल-द्वार की मादक सुगंध और मंत्रमुग्ध कर देने वाले कसैले से स्वाद ने उसके लंड की कठोरता को फॉरन अपने चरम पर पहुँचा दिया था. रोमांच के अतुलनीय आनंद की पराकाष्ठा से दोनो के गुप्तांगो ने त्राहि-त्राहि की पुकार मचानी शुरू कर दी थी.
"अब तुम्हे घबराने की ज़रूरत नही मा! तुम निश्चिंत रहो" अपनी उंगली में सिमटी अपनी मा के शरीर की गंध और स्वाद को अपने गले से नीचे उतारने के बाद ऋषभ उसे अपने मूँह से बाहर निकालते हुवे बोला. उसके चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान फैल गयी थी, जिसे देख ममता भी खुद को मुस्कुराने से रोक नही पाती. यक़ीनन उस अत्यंत सुंदर मा की मुस्कान ने उसके अत्यधिक बलिष्ठ पुत्र को संकेत किया था कि उसकी बीती सभी नाराज़गी का अंत हो चुका है.
"अब नही घबराउन्गि रेशू और मुझे तुझ पर विश्वास है कि तू अपनी मा के रोग का हर संभव इलाज करेगा, उसे पूरी तरह से रोग मुक्त कर देगा" ममता की मुस्कुराहट ज़ारी रही, उसने दोबारा अपने हाथो को अपने चूतड़ के पाटो पर कस लिया और उन्हे विपरीत दिशा की ओर खींचते हुवे बोली. अपने नीच कथन और निर्लज्ज कार्य के ज़रिए उसने ऋषभ को अपनी स्वीकरती प्रदान कर दी थी कि उसे अपने रोग के उपचार हेतु अपने पुत्र की बेहद आवाश्यकता है, उसकी एक मात्र आशा अब उसके पुत्र के साथ ही जुड़ी हुवी है.
"मैं भी यही चाहता हूँ मा! मैने पहले भी वादा किया था, फिर से करता हूँ कि कॅबिन छोड़ने से पूर्व तुम्हे पूरी तरह से रोग मुक्त कर दूँगा, तुम्हारी खोई हुवी मुकसान को वापस लौटना मेरे लिए सर्वोपरि होगा" इतना कह कर ऋषभ ने स्वयं की थूक से लथपथ अपनी वही उंगली पुनः अपनी मा के स्पंदन करते गुदा-द्वार के दानेदार मुहाने पर टिका दी, तत-पश्चात अपनी मा की आँखों में देखते हुवे ही अपनी उंगली को उसके मल-छिद्र के भीतर ठेलने लगता है. ममता के चेहरे की बदलती आकृति ने उसके कार्य को बाधित करने का प्रयास अवश्य किया मगर हौले-हौले वह अपनी उंगली को गुदा के छल्ले तक घुसा देने में सफल हो जाता है.
"छेद को सिकोडो मत मा" अपने पुत्र की अनैतिक आग्या के समर्थन में ममता ने अपने निचले धड़ को फॉरन ढीला छोड़ दिया. अत्यंत तुरंत ऋषभ ने एक लंबी खखार ली और अपना चेहरा अपनी मा के चूतड़ो के बीचों-बीच ला कर अपने मूँह के भीतर इकट्ठा किया गाढ़ा थूक सीधे गुदा-द्वार के ऊपर उगल देता है. ममता उसकी इस शरम्नाक कार्य-वाही से दंग रह गयी थी, क्या प्यार में घिंन! गंदगी! अप्राक्रतिक विचारधारा का मेल होना ज़रूरी है ? वह सोचने पर मजबूर थी.
अपना गाढ़ा थूक छिद्र के भीतर पहुँचाने हेतु ऋषभ अपनी उंगली को तीव्रता के साथ गोलाकार आक्रति में घुमाते हुवे उसे छल्ले की अवरुद्धि के पार निकालने के भरकस प्रयास में जुट जाता है, उसकी कोशिश इतनी अधिक प्रबल थी कि कुच्छ ही लम्हो बाद उसकी संपूर्ण उंगली उसकी मा की गान्ड के छेद के भीतर पहुँच चुकी थी. लग रहा था मानो छिद्र ने उसकी उंगली को चूसना आरंभ कर दिया हो और जिसमें ना चाहते हुवे भी ममता सहायक भूमिका निभा रही थी. शरीर के कुच्छ विशेष हिस्सो पर मनुष्यों का नियंत्रण होना मुश्किल होता है, आप कितना भी प्रयत्न करो मगर अपने गुदा-द्वार को तब सिकुड़ने से कभी नही रोक सकते जब उसके भीतर कोई वास्तु घुसी हुवी हो.
"अब कैसा लग रहा है मा ?" ऋषभ ने अपनी उंगली को बलपूर्वक छेद के अंदर-बाहर करते हुवे पुछा.
"बड़ा .. बड़ा अजीब सा लग रहा है रेशू" ममता कपकापाते स्वर में बोली.
"इसे महसूस करो मा! यह वो सुखद एहसास है जिससे आज तक पापा ने तुम्हे वंचित रखा था" ऋषभ ने कहने के पश्चात ही दोबारा छिद्र पर अपना गाढ़ा थूक उगल दिया. वह अपना बायां हाथ भी दरार के भीतर पहुँचा चुका था जिसकी प्रथम उंगली के नाख़ून से अब वह अपनी मा की चूत और उसकी गान्ड के छेद के भीच की झांतों से भरी सतह को कुरेदने लगा था.
"ओह्ह्ह रेशू! यह .. यह मुझे क्या होता जा रहा है" ममता सिहरते हुवे बोली. उसके निच्छले धड़ में अपने आप कंपन होना शुरू हो गया था, चूत अचानक से उबाल पड़ी थी और निप्पलो में अत्यधिक तनाव आने लगा था.
"तुम्हारी ग़लती नही मा! तुम गुदा संबंधी रति-क्रियाओं से अन्भिग्य थी और अभी जिस अकल्पनीय आनंद की प्राप्ति तुम्हे हो रही है, सोच कर देखो मा! यह तो मात्र इसकी शुरूवात है, अंत कितना सुखद होता होगा, मैं शब्दो में कतयि बयान नही कर सकता" ऋषभ अपनी उंगली को बाहर खींच कर बोला और तत-पश्चात अपनी दूसरी उंगली को उससे जोड़ते हुवे, दोनो को एक-साथ छिद्र के भीतर ठेलने लगता है.
"उफफफ्फ़ रेशू! अब .. अब थोड़ा सा दर्द हो रहा है" अपनी गान्ड के छेद की मास-पेशियों में आकस्मात खिंचाव आता महसूस कर ममता सिसकते हुए बोली.
"मा! गुदा-मैथुन का शुरूवाती मज़ा सिर्फ़ मर्द को ही आता है, औरत तो बस अपनी जान छुडवाने के लिए अंत तक उसके साथ बनी रहती है मगर इसके उपरांत चलते-फिरते, उठते-बैठते जो मीठा-मीठा दर्द औरत को लुभाता है, खुद ब खुद पुनः वो अपनी गांद मरवाने के उपाय खोजना आरंभ कर देती है" अपने कथन का लाभ लेते हुवे ऋषभ अपनी दोनो उंगिलयों को अपनी मा के तंग मल-द्वार के भीतर पेल चुका था, उसने स्पष्ट रूप से देखा कि उसकी मा की चूत से निरंतर टपकता हुवा उसका गाढ़ा कामरस मेज़ पर इकट्ठा होता जा रहा था.
"तेरी जानकारी से तेरी मा विचलित होने लगी है रेशू! जैसे तूने मुझ पर कोई जादू सा कर दिया हो" कह कर ममता ने समय नही लिया और अपने चूतड़ो को पिछे की ओर धकेलने लगी. गुदा के भराव को भर पाना नामुमकिन होता है, लंड छोटा हो या बड़ा, सबकी हार सुनिश्चित रहती है.
"हे हे हे हे! जादू तुमने मुझ पर किया या मैने तुम पर, कहना ज़रा मुश्किल है मा" ऋषभ ने ठहाका लगाते हुवे कहा. उसे तो अब बस अपने स्थान पर खड़े ही रहना था, जो कुच्छ करना था उसकी मा स्वयं करती और यक़ीनन करने भी लगी थी. अविलंब अपने चूतड़ो को हिला रही थी, अपने पुत्र की उंगलियों को चोद रही थी.
"उम्म्म्म" अचानक से ममता ने हुंकार भरी और बलपूर्वक अपने चूतड़ो को पिछे की दिशा में धकेला, जिसके नतीजन वह मेज़ पर बनाया हुवा अपना संतुलन खो बैठती है.
"अपने हाथो से मेज़ को पकड़ लो मा वरना गिर जाओगी" ऋषभ ने फॉरन अपनी उंगलियाँ उसके गुदा-द्वार से बाहर खींच ली और अपने दोनो हाथो से उसके चूतड़ को साधते हुवे बोला. ममता पर तो जैसे कहेर सा ढह गया था. अपनी गान्ड के छेद में आए खालीपन्न से वह खिसिया जाती है, जिसका सॉफ प्रमाण ऋषभ के हाथो में क़ैद उसके चूतड़ थे जो अब भी तीव्रता के साथ आगे-पिछे होते जा रहे थे.
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