RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
खाना जल्द ही लग गया था लेकिन सोनू और गुड्डी का हम इंतजार कर रहे थे. वो लोग 2 घंटे बाद आए. जब बिना पूच्छे ही वो बोलने लगी, गाड़ी काफ़ी लेट हो गयी थी, उन लोगों को छोड़े बिना कैसे आते, फिर अपने समान की लिस्ट भी पकड़ा दी थी, किताब लेने में तो 10 मिनट भी नही लगा होगा. तो मे समझ गयी कि ...वो हो गया जो ...होना था.
रीमा उपर कमरे में...बात करते करते उसे देर हो गयी और वो कहने लगी कि मे यही सो जाती हूँ.
और वो भी ना उसे चिढ़ाने लगे की हां हां क्यों नही सो जाओ इतनी चौड़ी पलंग है लेकिन इस कमरे का एक रूल है कि तुम्हे नाइटी पहन के सोना होगा और वो भी बिना चड्धि बनियान के.
वो भी ...कहाँ पीछे हटने वाली थी तुरंत तैयार हो गयी. अब मे उसे समझाती...फिर वो भी घाटा तो उन्हे ही होगा. मे बोली अर्रे जेठानी जी बुरा मान जाएँगी. गुड्डी और अंजलि के साथ तुम्हारे सोने का इताज़ाम किया है उन्होने. जब किसी तरह उसे मना के मे ले गयी तो पता चला कि सीढ़ी का दरवाजा ही बंद था. मे समझ गयी कि किसकी शरारात होगी...अंजलि की.
लौट के हम आए तो ब्लॅक नेग्लिजी में वो बहुत सेक्सी लग रही थी हां बिना ब्रा पैंटी वाली शर्त ना उसने मानी ना मेने लेकिन परेशान उन्हे ही होना पड़ा. ( मेने देखा है कि ज़यादातर मर्द ..बातें चाहे जितनी बोल्ड कर लें लेकिन असली मौके पे...हिम्मत नही दिखा पाते. शराफत आड़े आजाति है.) मेने भी बोला और रीमा ने भी ...लेकिन वो सोफे पे लेट गये.
मे लाख कहती रही लेकिन वो नही माना, लेकिन वो तो जब रीमा ने धमकी दी कि वो उनके साथ सोफे पे आके सो जाएगी तो वो बिस्तर पे आए, लेकिन फिर भी रीमा की ओर नही, बीच में मे और वो किनारे एक दम लगता था कि गिर जाएँगे. और रीमा और, चिढ़ाते चिढ़ाते... डरते हैं जीजा जी साली से, क्यों जीजू मे इतनी बुरी तो नही. ये तो नही है कि दोनो बहने मिल के दबा देंगी. मेने ज़ोर से डाँट के चुप कराया तब जा के सोई वो. मेने उनसे कहा कि नाइट लॅंप भी बुझा दीजिए,
इससे ज़रा सी भी लाइट हो तो नींद नही आती. उन्होने फुट लाइट भी बुझा दी.
तुरंत ही वो हल्के हल्के खर्राटे लेने लगी.
मे समझ गयी कि कितना नाटक कर रही है वो क्योंकि मे इतने दिन उस के पास सोई थी और अच्छि तरह जानती थी कि वो ज़रा सा भी खर्राटे नही लेती. पर जिसके लिए नाटक था उसे तो विश्वास हो ही गया. वो एक दम मेरे पास चिपक आए. मेने उनके कान में पूछा उपवास करना है क्या. उनका तो पता नही लेकिन मेरा तो मन बहुत कर रहा था, उनकी बाहों में खोने का. वो नही बोले लेकिन मेरे हाथो को तो पता लग गया था. जब मेने उनके शॉर्ट के उपर हाथ लगाया तो ' वो अच्छि तरह तन्नाया था. मेने कस के 'उसे' दबा दिया और बोली, क्यों मन कर रहा है क्या. वो चुप रहे.
मेने शॉर्ट के अंदर हाथ डाल के उसे पकड़ लिया और कस के मुठियाने लगी. उनका तो पता नही लेकिन मे किसी 'उपवास' के मूड में नही थी. मेने फिर जीभ उनके कान में सहलाते पूछा,
क्यों मन कर रहा है क्या.
वो बोले, मन तो कर रहा है लेकिन कैसे वो जाग जाएगी तो.
एक झटके में मेने चमड़ी खिच कर उनका मोटा लाल सूपड़ा खोल दिया और उसे सहलाते बोली,
मेरे उपर छोड़ दो, वो घोड़े बेच के सो रही है. मे जानती हूँ उसे, एक बार सो गयी तो भूकंप भी आजाए तो वो जगने वाली नही. साइड से कर लेते हैं ना, बस तुम हल्के से करना, शोर मत मचाना.
मेरी पैंटी सरक गयी और उनकी शॉर्ट, फिर मेने खुद अपनी जंघे अच्छि तरह खोल के टाँग उन के उपर रख दी. फिर क्या था थोड़ी देर में ही उनका बेताब लंड मेरी प्यासी चूत में, वो मेरी कमर पकड़ के हल्के हल्के धक्के लगा रहे थे. कुछ देर तक तो उन्होने इस तरह किया लेकिन जिस तरह की चुदाई के हम दोनों आदि थे, जम के मज़ा नही आरहा था. मेने उन्हे इशारा किया कि मे पूरी तरह से रज़ाई उपर ले लेती हूँ और वो सीधे से उपर आ जाएँ. कुछ देर में हम दोनों के पूरे कपड़े फर्श पे थे और वो पूरी तरह से ताक़त के साथ गपगाप गपगाप, सूपड़ा बाहर निकाल के फिर सीधे बच्चेदानि तक...बहुत मज़ा आरहा था.
जिस तरह से उस के ख़र्राटों की आवाज़ें बढ़ गयी थी, मुझे अच्छि तरह पता चल गया था कि वो जाग भी रही है और टुकूर टुकूर देख भी रही होगी. लेकिन मे उस समय मस्ती में इतनी चूर थी कि अगर वो जाग के बगल में बैठ के भी देख रही होती तो मेरी चुदाई नही रुकने वाली थी.
वो कस कस के मेरी चून्चिया दबाते क्लिट को छेड़ते. आधे घंटे से ज़्यादा चोदने के बाद ही वो झाडे.
उसके बाद भी नींद न इनको आराही थी ना मुझे. कुछ देर बाद मे बाथ रूम गयी तो दबे पाँव पीछे पीछे ये भी और फिर वहाँ भी...मुझे बाथ टब के सहारे झुका के, अपने फॅवुरेट पोज़िशन में. और इस समय बिना किसी हिचक के मन भर के उन्होने चोदा और, मेने चुदवाया. लेकिन लौटने पे फिर वही मुझे रीमा के बगल में... और खुद किनारे पे. इतने दिनों के रात जगे से इन्हे भी अब नींद लग गयी और मुझे भी. एक बार मेरी नींद खुली. मैं पानी पीने के लिए उठी तो...अब मे किनारे पे थी.
हल्के से सरका के मेने उन्हे रीमा की ओर कर दिया. सुबह जब मेरी नींद खुली तो वो रीमा को पकड़े सो रहे थे और रीमा भी. चाइ बना के मे लाई तो पहले मेने रीमा को जगाया और सुबह सुबह उसने अपने जीजा जी के साथ उनके एक बलिश्त के ...(सुबह के समय उनका हमेशा खड़ा रहता है). झेंप गयी बेचारी. और वो भी जब उनके जगाने पे मेने उन्हे बताया. दिन भर दोनों को चिढ़ाती रही मे.
दोपहर को रीमा, संजय और सोनू मेरे मायके के लिए वापस चल दिए और उसके कुछ देर बाद हम दोनों टॅक्सी से बनारस के लिए. वहाँ से रात में मुघल सराय से कालका एक्सप्रेस पकड़नी थी, शिमला के लिए. तो इस तरह ख़तम होती है कहानी सुहाग रात के दिनों की. और उसके बाद हनिमून जो ट्रेन से ही शुरू हो गया...फिर शिमला और . दोस्तो ये कहानी यही ख़तम हो जाती है अगर इससे आगे क्यूट रानी ने अगर लिखी भी है तो मुझे मिली नही दोस्तो फिर मिलेंगे एक ओर नई कहानी के साथ तब तक के लिए अलविदा आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त
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