College Girl Sex Kahani कुँवारियों का शिकार
08-25-2018, 04:26 PM,
#51
RE: College Girl Sex Kahani कुँवारियों का शिकार
कुँवारियों का शिकार--33 

गतान्क से आगे.............. 

मैने अपने दोस्त से उसे दुबारा चेक करने के लिए कहा और ये भी पता करने के लिए कहा के तनवी की बहन की ससुराल वालों के मेरी ससुराल वालों से कैसे और क्या संबंध थे. कुच्छ दिन मे उसने मुझे फाइनल रिपोर्ट दे दी और उसमे दी गयी जानकारी सबसे अधिक चौंकाने वाली थी. तनवी का कुच्छ ना कुच्छ चक्कर मेरे साले से था और उसी के कारण मेरी ससुराल और तनवी की बहन की ससुराल वालों के जो बहुत अच्छे संबंध थे वो खराब हो चुके थे और इसी वजह से ही तनवी की बड़ी बहन ने अपने मायके से संबंध ख़तम कर लिया था. और शायद इसीलिए तनवी ने अपने बारे मे सब कुच्छ बता कर भी अपनी बड़ी बहन का कोई ज़िकार तक नही किया था. एक और बात जो खुल कर सामने आई वो ये थी के तनवी के पिता एक खानदानी वैद्य थे और उसकी ननिहाल का भी यही खानदानी काम था. अब मुझे पता चला के तनवी को देसी दवाओं की जानकारी कैसे और कहाँ से थी और उसका वो चॅलेंज जो उसकी चूत के बारे मे था, के मैं उसको चोद चोद कर कितनी भी ढीली कर दूँ वो उसको दुबारा किसी दवा के इस्तेमाल से केवल 5 दिन मे ठीक कर लेगी और ऐसी लगेगी जैसे कुँवारी लड़की की चूत होती है. 

लेकिन सभी बातों का निचोड़ ये था के कहीं भी 2 और 2 मिलकर 5 नही हो रहे थे और ना ही 3 हो रहे थे. पर परेशानी ये थी के 2 जमा 2 कहीं से 4 भी तो नही हो रहे थे. मतलब ये कि मैं वापिस वहीं पहुँच गया था जहाँ से शुरू हुआ था और मुझे इतना सब कुच्छ जान कर भी ये नही पता चला था कि तनवी क्या चाहती है और उसके साथ कौन है और अगर वो किसी के लिए काम कर रही है तो वो कौन है और उसकी मंशा क्या है. मैने बहुत सोचा और इसके बारे मे मुझे कोई समाधान नही सूझा कि कैसे और क्या करने से सब पता लगे. फिर मैने अपने डीटेक्टिव फ्रेंड से ही अपनी समस्या का समाधान पूछा. उसने मुझे अपने ऑफीस मे बुलाया और मैने उसको अपने और तनवी के संबंधों को छोड़कर बाकी की सारी ही जानकारी दी और उसको पूछा के समस्या का कोई समाधान है तो बताए. वो हंस पड़ा और बोला के यार तूने पहले क्यों नही ये सब बताया. सीधा सा समाधान है के उसकी कॉल डीटेल्स निकलवा लेते हैं सब अपने आप पता चल जाएगा किसको फोन करती है और किसका फोन आता है. मैने उसको तनवी का नंबर दिया और उसने कहा के वो कॉल डीटेल्स नही ले सकता वो तो मुझे ही लानी पड़ेंगी. मैने पूछा के वो कैसे? तो उसने बताया के हमारा एक और दोस्त है जो उसी फोन कंपनी मे काफ़ी ऊँची पोस्ट पर है और शायद वो मेरी मदद कर सके. 

मैने वहीं से उस दोस्त को फोन किया और तुरंत मिलने की इच्छा की और कहा के बहुत ज़रूरी काम है. उसने कहा के अभी तो वो ऑफीस मे ही है तो मैने कहा के मैं वहीं आ जाता हूँ. उसने कहा के मोस्ट वेलकम. मैं उसके ऑफीस पहुँच गया और अपना कार्ड उसके पास भेजा. उसने तुरंत मुझे अंदर बुलवाया और हाथ मिलाने के बाद मुझे बैठने को कहा और पूछा के बोलो क्या काम है? मैने उसका नॉटेपद उठाया और उसपर तनवी का नंबर लिख कर उसकी ओर बढ़ा दिया और कहा की इस नंबर की कॉल डीटेल्स चाहिए. उसने मेरी ओर देखा और बोला कि ऐसी क्या बात हो गयी तो मैने कहा के कुच्छ नही बस थोड़ी सी एंक्वाइरी करनी है. उसने कहा के अगर ये पोस्ट पैड है तो मैं पिच्छले 3 बिलिंग साइकल की रिपोर्ट तुम्हे दे सकता हूँ और अगर प्रीपेड है तो देखना पड़ेगा. मैने कहा के देखो, मेरा 3 महीने की डीटेल्स से भी काम हो जाएगा. उसने अपने कंप्यूटर मे वो नंबर फीड किया और बोला के नंबर प्रीपेड है, मैं देखता हूँ. फिर उसने और कुछ देर लगा कर कहा के राज यू आर वेरी लकी के अभी तो डीटेल्स मिल जाएँगी क्योंकि ये पुराना नंबर है और पुराने सॉफ्टवेर मे ही अभी चल रहा है. अगर तुम नेक्स्ट वीक आते तो मैं तुम्हे हेल्प नही कर पाता. फिर तो केवल डी.सी.पी. के ऑर्डर पर ही ये डीटेल्स निकाली जा सकती थीं. मैने कहा के चलो अच्छी बात है अब मुझे डीटेल्स निकाल दो. उसने कहा के उसने प्रिनटाउट ऑर्डर कर दिया है अभी पेओन लेकर आ जाएगा और बताओ क्या लोगे. फिर उसने कोल्ड ड्रिंक मंगवा ली और कोल्ड ड्रिंक आने के थोड़ी देर बाद ही पेओन प्रिनटाउट भी दे गया. मैने कोल्ड ड्रिंक ख़तम की और अपने दोस्त को कहा कि मेरे लिए कोई भी काम हो तो बेजीझक मुझे बताए. उसने हंसते हुए कहा के अगले साल….. तुम्हारा बेटा और कहीं जा भी नही सकता मेरे दोस्त, मैने उसकी बात काटी. वो हंस पड़ा और बोला के राज तुम नही बदले. और ना ही बदलूँगा, कह कर मैं वापिस अपने डीटेक्टिव दोस्त के ऑफीस की ओर चल पड़ा. 

वहाँ पहुँचकर मैने लिस्ट उसके सामने रख दी और उसने उसकी 3-4 फोटोकॉपीस निकाल लीं और ओरिजिनल मेरी ओर सरका दी और बोला के देख लो इसमे कोई नंबर जाना पहचाना है तो. मैने देखा तो कोई नंबर ऐसा नही लगा जो मेरी पहचान का हो. फिर हम ने लिस्ट के बारे मे विचार विमर्श किया और उसने कहा के वो पता करेगा सब पर कॉल करके और कुच्छ भी जानकारी होगी तो मुझे बताएगा. मुझे भी उसने कहा के मैं अपने फोन से वो सारे नंबर्स डाइयल करके देखूं के कोई जानकार का नंबर तो नही है उसमे. काई बार नंबर याद नही रहते पर सेव किए हुए होते हैं तो सामने आ जाते हैं और कॉल कनेक्ट होने से पहले ही काट दूँ तो कन्फर्म भी हो जाएगा और उधर किसी को पता भी नही चलेगा. मैं समझ गया और उसको कुच्छ पैसे देकर वहाँ से आ गया. वो तो नही ले रहा था पर मैने ही ज़बरदस्ती दिए क्योंकि मैं जानता हूँ की इस काम मे कितना खर्चा होता है. 

मैं घर पहुँचा और लिस्ट को दुबारा स्टडी करने लगा. मुझे कोई भी नंबर पहचाना हुआ नही लगा. फिर मुझे याद आया कि तनवी ने जब पहली बार मेरे पीसी को चेक किया था तो किसी से बात भी की थी. मैने वो रेकॉर्डिंग चेक की और उसका टाइम चेक किया और कॉल लिस्ट मे उसी टाइम की इनकमिंग कॉल चेक की और वो नंबर नोट कर लिया. फिर मैने अपने दोस्त को फोन करके उसे वो नंबर दिया और कहा के मुझे इस नंबर पर शक़ है और वो इसको इन्वेस्टिगेट करके मुझे बताए कि ये किसका है. मेरे दोस्त ने मुझे कहा के वो मुझे अगले दिन ही बता देगा के वो नंबर किसका है. 

मैं अभी सोचों मे ही था कि तनवी आ गयी. मैने उसे बैठने को कहा और वो बैठ गयी. मुझे सोच मे देख कर वो बोली कि क्या बात है बहुत उदास लग रहे हो? मैने कहा नही कुच्छ खास नही पर आज मुझे अपनी पत्नी की बहुत याद आ रही है. कल उसकी बरसी है. उसने मेरी ज़िंदगी ही बदल के रख दी थी. मेरे जैसे आदमी को उसने प्यार से ऐसे बाँध लिया था की मैं अपने आप को बदलने पर मजबूर हो गया. उसके जाने के इतने टाइम बाद भी मैं अपने आप को पूरी तरह संभाल नही पाया हूँ. मेरे मा, पिताजी और भाई के साथ वो भी चली गयी. मेरी तो पूरी दुनिया ही ख़तम हो गयी. मैं ज़िंदा रहा तो सिर्फ़ अपने बच्चों के लिए. मुझे उन तीनों के जाने का इतना दुख नही हुआ जितना उसके जाने का. उसको तो मैने जाना था लेने के लिए 3 दिन बाद. पर अचानक मा, पिताजी और भाई का शिमला जाने का प्रोग्राम बन गया 3-4 दिन का और जब उसे पता चला कि वो वापिस चंडीगढ़ होकर ही आ रहे हैं तो उसीने ज़िद करी के वो भी उनके साथ ही वापिस आ रही है. 

मैं चुप हुआ तो तनवी मेरे पास आ गयी और मेरे बालों मे हाथ फिरा कर बोली की बहुत प्यार करते थे तुम उनको. वो बहुत अच्छी थीं और अच्छे लोग दुनिया मे ज़्यादा दिन नही रहते. मैं भी अपने पिताजी को बहुत मिस करती हूँ. पर क्या करें यहाँ आ कर इंसान हार जाता है. मेरी तरह तनवी की भी आँखे गीली थीं. फिर मैं उठकर बैठ गया और तनवी को अपने साथ चिपका लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा. तनवी ने कहा के मैं नही जानती थी कि तुम अपनी पत्नी से इतना प्यार करते थे. मैने कहा के वो थी ही ऐसी. उसने मुझे इतना प्यार दिया और कभी भी कोई भी शर्त नही रखी. वो प्यार से सब कुच्छ मनवा लेती थी. और ये उसकी सबसे बड़ी खूबी थी कि जो भी बात होती थी उसको बहुत अच्छे से समझ कर ही आगे का सोचती थी. कभी किसी बात पर हमारा मतभेदभी होता था तो वो अपनी बात या तो अच्छे से समझा देती थी या मेरी बात को समझकर मान जाती थी. 

कितनी अच्छाइयाँ गिन्वाऊ उसकी. वो तन की सुन्दर तो थी ही, मन से और भी अधिक सुन्दर थी. पति-पत्नी मे प्यार होना बहुत अच्छी बात है, जो हमारे बीच मे था, पर उसके भी ऊपेर होती है अंडरस्टॅंडिंग जो की हमारे बीच मे प्यार से भी अधिक थी. दोनो एक दूसरे को कॉंप्लिमेंट करते थे. एक दूसरे के पूरक थे हम दोनो. उसके बाद तो जैसे मैं खो गया था. बच्चो का ख्याल ना होता तो शायद मैं कभी उभर ही ना पाता उसके वियोग से. मैं संभाला तो केवल और केवल बच्चो की खातिर और उनकी वजह से. नहीं तो पता नही मेरा क्या होता. तनवी जो खामोशी से मेरा प्रलाप सुन रही थी, भावुक हो गयी और मुझे दिलासा देते हुए बोली कि हां कुच्छ लोग ऐसे ही होते हैं कि इंसान उन्हे कभी नही भूल पाता. पर तुमने उनके बाद अपनी ज़िम्मेवारियों को बहुत अच्छे से निभाया है और दोनो बच्चो को काबिल और अच्छा इंसान ही नही बनाया उनकी शादी भी अच्छी तरह से करके उनको बढ़िया तरीके से सेट्ल कर दिया है, जो की अपने आप मे एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. वो जहाँ कहीं भी हैं उन्हे इस बात की बहुत खुशी होगी की उनके दोनो बच्चे खुश हैं और वेल सेटल्ड हैं और तुमने उनकी देखभाल मे कोई कमी नही आने दी. 

फिर पता नही क्या हुआ कि तनवी एक दम चौंक कर मुझसे अलग हो गयी और बोली कि मैं अभी आती हूँ ज़रा ऊपेर मुझे कुच्छ काम याद आ गया है. मैं 10-15 मिनट मे आती हूँ. कह कर वो ऊपेर चली गयी. मैं अपने ख्यालों मे गुम था. 5-6 मिनट के बाद जाने क्यों मैं उठकर अपने पीसी पर आया और उसमे सीक्ट्व को खोलकर तनवी को देखने लगा. तनवी अपने फोन पर किसी से बात कर रही थी और उसकाचेहरा गुसे मे तमतमा रहा था. मैने वॉल्यूम बढ़ाया और उसकी आवाज़ आने लगी…….नही भाय्या आपको बहुत बड़ी ग़लतफहमी हुई है राज के बारे मे. पता नही आपको क्यों ऐसा लगा. सच बात तो ये है कि मैं बहुत गिल्टी फील कर रही हूँ. इतनी शरम आ रही है मुझे कि मैं राज से कैसे नज़र मिला सकूँगी. फिर थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो बोली की ठीक है भाय्या, बाइ. और उसने फोन काट दिया. 

मैने देखा कि तनवी की आँखे भीगी हुई थीं और वो बहुत ही बेचैन नज़र आ रही थी. फिर उसके चेहरे के भाव बदले और ऐसा लगा जैसे उसने कोई निश्चय कर लिया है और उसके चेहरे पर एक अलग आत्मविश्वास झलकने लगा. फिर वो कमरे से बाहर आ गयी. मैने भी पीसी ऑफ किया और अपने बेडरूम मे आकर पहले की तरह लेट गया. थोड़ी देर के बाद ही तनवी आ गयी और मेरे पास आकर अपना चेहरा झुका कर बैठ गयी. मैने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो वो मुझ पर ढेर हो गयी और मुझसे लिपट कर रोने लगी. मैने उसको पूछा कि क्या हुआ रो क्यों रही हो. उसने कहा कि राज बात ही ऐसी है कि मैं अपने आप मे बहुत बुरा फील कर रही हूँ और समझ नही पा रही की तुम्हे कैसे और क्या कहूँ. मुझे कुच्छ कन्फेस करना है और मैं समझ नही पा रही हूँ कि कैसे और कहाँ से शुरू करूँ. मैने कहा के कहीं से भी शुरू करो कोई फ़र्क नही पड़ता, पर अपने दिल पर कोई बोझ मत रखो और बेझिझक जो भी कहना चाहती हो कह डालो. उसने कहा की ठीक है मैं शुरू से ही सब कुच्छ बताती हूँ. 

और तनवी ने बोलना शुरू किया. उसी के शब्दों मे: राज मैने तुम्हे बताया नही के मेरी एक बड़ी बहन भी है जो चंडीगढ़ मे रहती है. वो मुझसे 8 साल बड़ी है. एक ग़लतफहमी की वजह से हमारे उसके साथ संबंध टूट चुके हैं. हुआ यूँ कि उसकी शादी के 2 साल बाद उसका पहला बच्चा होने वाला था तो मैं अपनी मा के साथ उसके यहाँ चली गयी थी क्योंकि उसके घर मे और कोई औरत नही है. डेलिवरी के टाइम पर मेरी बहन 3 दिन हॉस्पिटल मे थी और मेरी मा भी उसके साथ हॉस्पिटल मे ही रही. घर पर मैं और मेरे जीजा अकेले थे. मेरे जीजा ने दूसरे दिन मेरी मासूमियत और नासमझी का फ़ायडा उठाना चाहा और इसके पहले की मैं कुच्छ समझती या बोलती उनके पड़ोस मे रहने वाले सुरेश भैया वहाँ आ गये और उन्होने मेरे जीजा को बहुत डांटा और मुझे अपने साथ लेकर हॉस्पिटल आ गये. वो मेरे जीजा से उमर मे बड़े हैं इसलिए मेरी बहन उनको भैया कहकर बुलाती थी और इसीलिए मैं भी उनको भैया ही कहती थी. 

हमारे हॉस्पिटल पहुँचने पर भैया ने मा और बहन को कुच्छ नही बताया और यही कहा कि मैं हॉस्पिटल आना चाहती थी इसलिए वो मुझे अपने साथ ले आए हैं. अभी वो इतना बता ही रहे थे कि मेरे जीजा उनकी पत्नी को साथ लेकर हॉस्पिटल पहुँच गये और हमे वहाँ देखकर चौंकने का नाटक करते हुए सुरेश भैया को बुरा भला कहने लगे उनके और मेरे उल्टे सीधे संबंध जोड़कर और भाभी ने भी जीजा का साथ दिया, जाने क्या पट्टी पढ़ा कर लाए थे जीजा उनको. भैया एकदम सकपका गये और इतना ही बोले कि तनवी से पूच्छ लो क्या सच है. मेरे कुच्छ बोलने से पहले ही जीजा बोल पड़े कि तनवी तो वही बोलेगी जो सुरेश ने उसको पढ़ाया है. मैं रोने लगी तो मेरी बहन ने भी उनके इल्ज़ाम सच मानते हुए मुझे ही बुरा कहा और बोली कि अब क्यों रो रही है मुँह काला करते हुए नही रोई. मा ने उसे चुप कराया और सुबह होते ही मुझे लेकर वापिस आ गयी. पूरे रास्ते हम दोनो मे कोई बात नही हुई. 

घर पहुँच कर मा ने पिताजी को सारी बात बताई तो मेरे पिताजी ने मुझसे पूछा कि तनवी ये सब क्या है. मैं अपने आप को रोक ना पाई और चिल्ला कर बोली के सब झूठ है सुरेश भैया ने तो मुझे जीजा से बचाया है, वो ना आते तो जाने जीजा मेरे साथ क्या करते. फिर मैने सारी बात मा और पिताजी को बताई. पिताजी को बहुत गुसा आया. मा भी सन्न रह गयी और इतना ही बोली के उन्हे विश्वास तो नही हुआ था कि सुरेश भैया ऐसा कुच्छ कर सकते हैं पर क्योंकि जीजा के साथ भाभी भी ऐसा कह रही थी तो वो कुच्छ बोल नही सकी. 

पिताजी तुरंत चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गये. सबसे पहले सुरेश भैया को मिलकर उन्होनें मेरी बात की पुष्टि की और फिर बहन के घर गये और पहले तो बहन को समझाने की कोशिश की और फिर जीजा से भी बात की. जीजा अपनी ग़लती को नही माने और बहन ने भी उनकासाथ ही दिया. पिताजी गुसे मे दोनो को बुरा भला कह कर और ये कह कर कि वो सारी उमर उनकी सूरत नही देखेंगे वापिस आ गये. सुरेश भैया से सारी बात पिताजी ने भाभी के सामने ही करी ताकि उनके दिल मे भैया के लिए कोई बुरी भावना ना रहे. 

पिताजी के घर आते ही सुरेश भैया का फोन आया और उन्होने पिताजी से कहा की पिताजी को भैया के लिए अपने बेटी-दामाद से झगड़ा नही करना चाहिए था. पिताजी ने कहा की बेटी-दामाद हैं इसीलिए सिर्फ़ इतना ही करके आ गया हूँ कोई और होता तो पता नही क्या कर बैठता. मेरी मा रोने लगी और फोन लेकर सुरेश भैया से बोली की बेटा मुझे माफ़ कर देना मैं भी तुम्हे ही ग़लत समझ बैठी. सुरेश भैया ने कहा की नही माजी माफी की कोई बात नही है आपकी जगह मैं होता तो मैं भी वही करता जो आपने किया. फिर मा ने कहा की बेटा उनकी खबर हमे देते रहना अब उनका मुँह तो मैं नही देखूँगी, पर है तो बेटी इसलिए उनकी खबर से ही संतोष कर लूँगी. भैया ने कहा की ठीक है वो फोन करके उनकी खबर देते रहेंगे. हालाँकि भैया के और उनके घर वालों के उस घर से कोई संबंध नही रहे पर खबर तो दे ही सकते हैं उनकी. 

इतना कह कर तनवी कुच्छ रुकी और मुझसे बोली के राज तुम जानते हो ये सुरेश भैया कौन हैं? मैं मुस्कुरा दिया और कहा कि हां वो मेरा साला है. तनवी चौंक कर बोली तुम्हे कैसे पता? मैने कहा कि वो सब बाद मे पहले तुम अपनी बात पूरी कर्लो. तनवी ने फिर बोलना शुरू किया. 

क्रमशः...... 
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