Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
09-12-2018, 11:44 PM,
#11
RE: Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
मैने अपने सीने से चुनरी हटा दी और उसे बिस्तेर के एक साइड पर रख दिया......इस वक़्त मैं सूट और लॅयागी में थी.......जो हमेशा की तरह टाइट थी और मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........जैसे ही मेरे सीने से चुनरी हटी मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ मचल कर बाहर को आने लगी......दुपट्टा हट जाने से मेरा क्लेवरेज काफ़ी हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रहा था.....वैसे तो विशाल की नज़र दूसरे तरफ थी मगर मुझे उस हाल में अगर वो मुझे देख लेता तो कहीं ना कहीं उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ तो अरमान जनम ले ही लेते......

जैसे ही मैने विशाल के ज़ख़्मो को छुआ उसके मूह से एक दर्द भरी कराह निकल पड़ी......उसके पीठ पर कई जगह काले निशान पड़ गये थे......और उसके राइट हॅंड पर भी काफ़ी सूजन थी.........मैं अपने हाथों में हल्दी और तेल दोनो लेकर विशाल के पीठ पर धीरे धीरे लगाने लगी.......विशाल को अब अच्छा लग रहा था मेरे हाथों का स्पर्श......मगर इधेर पता नहीं क्यों मेरे अंदर की आग अब धीरे धीरे भड़कने लगी थी........ये मुझे भी समझ नहीं आ रहा था कि ये मुझे क्या होता जेया रहा है......

आज मेरे मा बाप जानते थे कि मैं विशाल से प्यार करती हूँ.....विशाल भी मुझे बहुत प्यार करता था.......मगर मुझे क्या पता था कि एक दिन ये प्यार कुछ और ही नया रूप ले लेगा.......जिसे लोग भाई बेहन की परिभाषा दिया करते थे....उनके बीच की पवित्रता प्रेम .....मुझे नहीं पता था कि एक दिन यही प्रेम मेरी मोहब्बत में धीरे धीरे बदल जाएगी.......मैं अपने ही भाई से इश्क़ लड़ा लूँगी ये सब सुनने में ही अजीब सा लगता है मगर ये सच होने वाला था और अब इसकी शुरूवात हो चुकी थी ......आने वाला वक़्त देखना था कि मेरे लिए क्या सौगात लेकर आता है.

विशाल का चेहरा अभी भी दूसरी तरफ था........मैं अपने नाज़ुक हाथों से उसके ज़ख़्मों पर धीरे धीरे हल्दी और तेल लगा रही थी......उसके बदन का स्पर्श मुझे भी अच्छा लग रहा था और वही विशाल को भी...... मेरे हाथों की नर्माहट विशाल अपने जिस्म पर पल पल महसूस कर रहा था.....मेरी साँसें अभी भी मेरे बस में नहीं थी.......मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धडक रहा था उसके वजह से मैं बहुत लंबी लंबी साँसें ले रही थी जिससे मेरे दोनो बूब्स उपर नीचे हो रहें थे........पता नहीं क्यों बार बार मेरे मन में विशाल के प्रति बुरे ख्याल आ रहें थे......शायद विशाल की मौजूदगी की वजह से........

विशाल- दीदी क्या आप अब भी मुझसे नाराज़ है........विशाल के मन में उठ रहें सवाल अब उसकी ज़ुबान पर आ गये थे........फिर उसने अपना चेहरा मेरी तरफ किया.....और जब उसकी नज़र मेरे सीने की तरफ गयी तो वो एक पल तो मानो मेरे सीने को देखता रहा........उसकी नज़र मेरे सीने से चिपक सी गयी थी.......मगर कुछ सेकेंड्स के बाद उसने अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर ली.......यानी मेरे चेहरे के तरफ.........

मैं उसके चेहरे को देखकर मुस्कुराती रही- नहीं.......अब तुमसे कोई नाराज़गी नहीं है.......विशाल ने तुरंत अपनी नज़रें मेरे चेहरे से हटा ली......शायद उसे ऐसा लगा था कि मैने उसकी नज़रो को पकड़ लिया हो........

विशाल- रहने दो दीदी अब.......आपके हाथों में भी तो चोट लगी है..........आप बेवजह परेशान हो रहीं है.........विशाल की बातों से मुझे ऐसा लगा कि वो ज़रूर मुझसे ये कहेगा कि मैं भी हल्दी और तेल लगा देता हूँ तुम्हें.......मगर उसने ऐसी कोई बात अपने मूह से नहीं कही.......शायद वो शरम से ऐसा ना कह सका हो.......मैं अंदर ही अंदर खुस थी कि काश विशाल आगे मुझसे कुछ और कहता जो मैं उसके मूह से सुनना चाहती थी मगर अगले ही पल मेरी खुशियों पर मानो पानी सा फिर गया.......मैं यही तो चाहती थी कि वो मेरे नाज़ुक से हाथों पर तेल और हल्दी लगाए और अपने कठोर हाथों से मेरे बदन की कोमलता को अच्छे से अपने अंदर महसूस करे...... मगर मेरी ये ख्वाहिश मेरे दिल की दिल में ही दबकर रह गयी........

क्यों चाहती थी मैं ऐसा......आख़िर वो मेरा भाई ही तो था.......ये मुझे क्या होता जा रहा था.......मैं क्यों उसके करीब आकर बहकने लगी थी......शायद विशाल मेरे भाई से पहले वो एक संपूर्ण मर्द था......यक़ीनन उसकी ये मर्दानगी मुझे ऐसा सोचने पर पल पल विवश कर रही थी........मैं उसके मज़बूत बाहों में अपना ये जवान जिस्म सौपना चाहती थी.......महसूस करना चाहती थी.......मैं चाहती थी कि वो मेरे बदन के उन अंगों को छुएें और मसले जिसके लिए मैं अब तड़प रही थी मगर ऐसा विशाल मेरे साथ कभी नहीं कर सकता था.......शायद हमारे दरमियाँ आज रिश्ते की मज़बूत दीवार खड़ी थी.......

विशाल- अब आप आराम करो दीदी.....और हां अपने ज़ख़्मों पर भी तेल और हल्दी लगा लेना........अगर मैं ये कर सकता तो ज़रूर करता मगर आप समझ रही हो ना मेरी मज़बूरी........बेहन हो आप मेरी.........मैं बस विशाल के मासूम चेहरे को देखकर मुस्कुराती रही.......विशाल ने सही कहा था......मेरे हाथों पर और मेरे पीठ पर भी ज़ख़्म के काले काले निशान थे और उसके लिए मुझे अपना सूट निकालना पड़ता.....और रिश्ते से मैं उसकी बेहन थी.......भला वो अपनी बेहन को इस हाल में कैसे हल्दी और तेल की मालिश करता......

फिर वो दवाई लेकर अपने रूम की ओर जाने लगा.....मैं वही अपने बिस्तेर पर बैठी हुई थी........इस वक़्त मेरा सफेद सूट पर हल्दी के पीले दाग सॉफ दिखाई दे रहें थे......विशाल की नज़र मेरे कपड़ों पर लगे उस दाग पर थी.......

विशाल- ये क्या दीदी.....आपके कपड़े तो खराब हो गये......

अदिति- कोई बात नहीं विशाल....तुम ठीक हो जाओ.....मेरे लिए यही बहुत है.......और क्या मेरे पास कपड़ों की कोई कमी है.......विशाल धीरे से मुस्कुरा कर अपने कमरे की तरफ जाने लगा ......मैं उसे वही से जाता हुआ देख रही थी......नीचे नीले रंग का जीन्स पहने हुए और उपर का जिस्म उसका पूरा नंगा था.......जिससे देखकर मैं मदहोश सी हो रही थी......जैसे ही विशाल दरवाज़े के पास पहुँचा वो तुरंत रुक गया और उसने अपनी गर्देन मेरे तरफ घुमा दी......मैं अभी भी विशाल के जिस्म को घूर रही थी........मैं अब अपने बिस्तेर से उठकर वही फर्श पर खड़ी थी........

विशाल तुरंत पलटकर मेरे पास एक दम से मेरे करीब आकर खड़ा हो गया.......इस वक़्त हमारे बीच फ़ासले बहुत कम थे....यही कोई 3 से 4 इंच की दूरी......मैं उसके साँसों को अच्छे से महसूस कर सकती थी........विशाल ने एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और मुस्कुराते हुए थॅंक्स कहा.......

मैं भी बस धीरे से मुस्कुरा दी और ना जाने मुझे क्या हुआ और मैं तुरंत विशाल के सीने में अपना सिर छुपाकर उससे लिपटती चली गयी.......मेरी ये हरकत पर विशाल को एक बहुत बड़ा झटका सा लगा......ऐसा पहली बार था जब मैं विशाल के गले लगी थी.......विशाल भी अपना एक हाथ मेरे सिर पर बड़े प्यार से फेरता रहा और मुझे अपनी बाहों में धीरे धीरे समेटने लगा......मेरे दोनो बूब्स इस वक़्त विशाल के सीने से पूरी तरह चिपके हुए थे.......शायद विशाल भी मेरे बूब्स को अपने सीने पर पल पल महसूस कर रहा था......उसकी नर्माहट को अपने अंदर समेट रहा था.......

इस वक़्त हम दोनो खामोश थे......बस मैं विशाल से लिपटी रही और विशाल मुझसे.......ना ही वो कुछ कह रहा था और ना ही मैं....मगर शायद इस खामोशी में आज मैं अपने दिल का हाल उसे बताना चाहती थी.....मगर मेरी ज़ुबान से चाह कर भी कुछ नहीं कह पा रहें थे........फिर कुछ देर बाद विशाल ने अपनी ये खामोशी तोड़ी.......

विशाल- दीदी.....आप सच में बहुत खूबसूरत हो.......काश आप मेरी बेहन ना होती तो................विशाल के शब्द इतने पर आकर रुक गये थे......मगर मैं उसके कहने का मतलब समझ चुकी थी.......विशाल फ़ौरन मुझसे दूर हुआ और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा......मैं अकेले कमरे में खामोश होकर बस उसे जाता हुआ देखती रही.
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