Porn Sex Kahani पापी परिवार
10-03-2018, 04:08 PM,
RE: Porn Sex Kahani पापी परिवार
"कैसा फ़र्क़ ?" निकुंज ने पूछा. "उनकी भी फॅमिली है, उनके घर में भी बच्चे हैं. फिर भी देखो कितनी फ्री हैं, लाइफ एंजाय करना कोई बुरी बात तो नही मोम"


"बुरे या अच्छे की कोई बात नही निकुंज. नीमा नॉर्मल नही है, मैने तुझे पुणे जाने के दौरान भी बताया था और फिर मैं इन्हे कैसे पहनु ? कोई देखेगा तो क्या कहेगा ?" कम्मो ने तर्क़ दिए.


"कॉन देखेगा मोम ? और वैसे भी अंडरगार्मेंट्स कपड़ो के अंदर पहने जाते हैं, खाली इन्हे पहेन कर तो कोई भी औरत घर में नही घूमती होगी." निकुंज के इस नटखटी जवाब को सुन कर कम्मो की चूत कुलबुलाने लगी और उसने फॉरन चुप्पी साध ली.


"हां बताया तो था आप ने नीमा आंटी के बारे में लेकिन शायद हमारी बात अधूरी रह गयी थी" निकुंज ने बीते पलो को कुरेदा.


"छोड़ निकुंज !! कुच्छ बातें अधूरी रहें तो ज़्यादा अच्छा रहता है" कम्मो हौले से बुदबुदाई.


"लेकिन क्यों मों ? उस वक़्त तो चर्चा हम बच्चो को ले कर ही हो रही थी और आप बता रही थीं, माता-पिता को अपनी औलाद के खातिर काफ़ी हद तक समझौते करने पड़ते हैं" निकुंज ने टॉपिक आयेज बढ़ाया.


"हां ये सच है, समझौते करने पड़ते हैं मगर नीमा जो कर रही है उसे समझौता नही विवशता कहते हैं. हलातो से हारना कहते हैं" कम्मो ने समझाया, उसकी नज़र लगातार अपने हाथ पर जमी हुई थी जिसमे उसने बेहद एरॉटिक मल्टी-कलर्ड अंडरगार्मेंट्स पकड़े हुए थे.


"हालात से तो आप भी हारी थी मोम और उस रात विवश भी थी" निकुंज के लंड मे आते तनाव ने उसे अश्लीलता के चरम पर पहुचाना शुरू कर दिया.


शुरुवती दौर में वह अपनी मा की तरफ कामोज्जित हुआ, फिर बहेन निक्की और अभी थोड़ी देर पहले आंटी नीमा ने भी सिर्फ़ उसे गरमाया ही था.


"विवशता और स्वेक्षा में भी काफ़ी अंतर है, उस वक़्त मैं मजबूर ज़रूर हुई थी लेकिन ग़लती भी तो मेरी ही थी. तो मैने जो किया उसे क़ुबूल करने में ज़रा भी जीझक नही मुझे" बोलते वक़्त कम्मो के लब थरथरा रहे थे, लग रहा था जैसे वह बुरी तरह नशे में चूर हो.


"वो एहसास तो मैं भी नही भूल सकता मोम, भले ग़लती आप अपनी मान रही हो लेकिन उस वक़्त जो कुच्छ मैने महसूस किया. वो मुझे स्वर्ग के द्वार तक ले गया था" आख़िर-कार निकुंज ने सच बोल दिया.


"तू जानता है निकुंज, उस रात मैं भी बहुत परेशान हुई थी. जो सुख आज तक मैने अपने पति को नही दिया, जिस कार्य को सोच कर ही मुझे घिन आती थी. मगर मैने खुद को तेरे लिए इतना विवश कर दिया कि स्वेक्षा से तेरा लिंग चूस्ति रही" कम्मो की आँखें मूंद गयी और हान्फते हुए उसने सीट पर अपना शीश टिका लिया.


कुच्छ देर का सन्नाटा दोनो को भारी पड़ने लगा था. निकुंज चाहता, उसकी मा बोले और कम्मो चाहती थी, उसका बेटा बोले. मगर दोनो ही चुप थे.
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