Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
10-12-2018, 01:10 PM,
#8
RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
मेरी ज़िंदगी की ये सुबह एक नया रंग और रूप लेकर आई थी.सुबह हो चुकी थी लेकिन फिर भी ये एक हसीन ठंडी रात की तरहा थी जिसमे चाँद और तारे चारो तरफ मीठी ठंडी रोशनी हर तरफ फैला रहे होते हैं. हर तरफ कोई रात रानी का पौधा खुसबु फैला रहा होता है. ठंडी हवा जैसे कोई मीठा राग गा रही होती है और जैसे कोई जोड़ा
बहुत दिनो बाद मिला होता है और उस रात मे बाहों मे बाहें डाले एक दूसरे से लिपटा हुआ चाँद की तरफ देख रहा होता है. वो ऐसा नज़ारा होता है जैसे वक़्त अब कोई
मायने नही रखता और ऐसा लगता है जैसे दुनिया की भाग दौड़ और दुख तकलीफे हमेशा के लिए ख़तम हो चुकी हैं. ऐसा लगता है कि जैसे अब दुख, तकलीफ़,घबराहट,बेचैनी,डर,दर्द सब फनाह हो चुके हैं और अब सिर्फ़ दो प्यार करने वाले जन्नत मे एक दूसरे के साथ हमेशा हमेशा के लिए खुश रहेंगे.


मैं इन्ही ख़यालों मे खोई हुई थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई तो मैं जाग गयी. देखती हूँ कि मेरी ननद दरवाज़े पर पर्दे के पीछे खड़ी दरवाज़ा नॉक कर रही है.
मैने ये भी देखा कि मेरे शौहर जा चुके हैं, मैने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 10 बज चुके थे. मुझे ख़याल आया कि ना जाने घर वाले सब क्या सोचते होंगे.मैने अपनी ननद को अंदर आने को कहा.वो अंदर आई तो उसके चेहरे पर एक सवालिया निशान था लेकिन जब उसने मेरे चेहरे पर सुकून देखा तो वो थोड़ा सा मुस्कुरा दी. मेरी ननद ने अपने हाथ मे रखी चाइ की ट्रे वो बेड के साइड टेबल पर रख कर मेरे करीब बैठ कर सवाल किया.

ननद: क्यूँ भाभी आज तो चेहरे पर सुकून नज़र आ रहा है लगता है सफ़र की सारी थकान मिट गयी है और इसलिए देर तक सोती रही आप.
मैं: क्या मतलब.
ननद: रात बड़ी हसीन गुज़री है आप की.
मैं शरमा सी गयी, हलाकी की ये लड़की मुझसे उमर मे थोड़ी बड़ी होगी लेकिन अभी भी मैं इसके लिए नयी थी तो थोड़ा झिझक रही थी, इसलिए मैं कुछ बोल ना सकी.

ननद: बताओ ना भाभी कल रात क्या हुआ, क्या ये कली फूल बन पाई.
मैं अभी भी सर झुकाए अपने घुटने पर सर रखे अपना सर छुपा रही थी कि अचानक मुझे अपनी सफेद चद्दर पर खून के लाल धब्बे दिखाई दिए. ये वही खून के
धब्बे थे वो रात की कहानी कह रहे थे. ये निशान मेरे कली से फूल बनने की थे. मेरे चेहरे पर बेतहाशा शर्म और थोड़ी घबराहट के आसार नज़र आ गये जिसको
देख कर मेरी ननद की नज़रे जैसे मेरी नज़रो को टटोलते हुए उन धब्बो पर पहुँच गयी. मैने उसके चेहरे को देखा तो वो अब खुल कर हंस पड़ी.
ननद: तो ये बात है.चलो अच्छा हुआ खैर मैं आपको और परेशान नही करूँगी. आप नहा लीजिए और फिर नाश्ता कर लीजिए. बाद मे बात करेंगे.

मैं अब ये नही जानती थी कि इस चद्दर को बदलू कैसे और इसको छुपाऊ कहाँ. खैर मैं उसपर अपना तालिया रखकर फ्रेश होने चली गयी और जब लौट कर आई तो देखा कि
वो चद्दर गायब थी और उसकी जगह एक दूसरी नयी चद्दर बिछी हुई थी. मुझे एक झटका सा लगा. खैर नाश्ता किया और थोड़ा सा लेट गयी. ये बाहर का मौसम था, बाहर ठंडी मीठी हवा चल रही थी. इस घर के चारो तरफ एक बड़ी सी दीवार थी और अंदर बड़े बड़े दरख़्त थे. ये एक बड़ा सा पुश्तैनी घर था. चिड़ियो के चहकने की
आवाज़ आ रही थी और ये दिन आम दिनो से अलग बड़ा ही ख़ुशगवार लग रहा था.मैने आँखें बंद कर ली और मैं नींद मे जा चुकी थी कि दरवाज़े पर दस्तक हुई के मैं
जाग गयी. ये मेरी सास थी. मैने अपने आप को संभाला और उठ बैठी. मेरी सास मेरे करीब आकर बैठी और उन्होने मेरे माथे को चूम लिया और मेरे सर पर हाथ
रख कर बोली "शौकर चला गया काम पर ?"

मैं: हां शायद.
सास: अच्छा, और तुम बताओ ठीक हो?
मैं: हां खाला (दर असल हमारे यहाँ एक दस्तूर है सास को खाला कहने का)
सास: अच्छा लगा बेटी तुम्हारा चेहरा देख कर, दिल को तसल्ली सी हो गयी. तुमने नाश्ता कर लिया क्या?
मैं: जी
सास: तुम्हारी मा का फोन आया था सुबह,वो तुम्हे बाकी की रस्मो के लिए घर बुलाना चाहती हैं. मैने सोचा पहले तुमसे और शौकत से मशविरा ले लिया जाए. शौकत शाम को आएगा तो मैं उससे भी पूंछ लूँगी. तुम्हारे ससुर की भी यही राई है. तुम क्या कहती हो इस बारे में?
मैं: जैसा आप लोग ठीक समझें.
सास: तो ठीक है, तुम हो आओ अपने घर और इन्ही रस्मो के बहाने थोड़ा मज़ा भी कर लो.हम बूढो को तो ये सब खेल तमाशा ही लगता है.
मैं: जी
सास: अच्छा,अगर तुम चाहो तो मेरे साथ बैठक मे बैठ सकती हो, वहाँ बड़ी ठंडी हवा आती है और औरतो के सिवा वहाँ कोई आता भी नही है.
मैं: ठीक है.

और मैं फिर उनके पीछे चल पड़ी.

रात को शौकत आए और वो मुझे मेरे घर भेजने के लिए राज़ी थे. अगले दिन मैं घर पहुँच गयी.


घर पर मेरी मा, मेरा भाई,मेरे बाबा और मेरी खाला और उनकी बेटी सब मौजूद थे. शौकत को बैठक मे बिठाया गया. फिर वही सब रस्मो रिवाज और वही सब चीज़े.
सब लोग बहुत खुश थे. मैं गौर किया कि मेरी मा भी बड़ी खुश थी,बड़े दिनो के बाद उनके माथे की सिलवटें मिट गयी थी और उनका चेहरा ताज़ा ताज़ा सा लग रहा था.
एक लड़की का बोझ जो उनके सर से उतर गया था. अब मुझे अपना ही घर थोड़ा अंजाना सा लग रहा था. मैं पलट पलट कर हर चीज़ को देख रही थी. आज ये मुझे बेगाना बेगाना सा लगता था. मुझे अपने उपर यकीन नही आ रहा था. मेरे बाबा अब भी शौकत से बात कर रहे थे और मेरी खाला मेरी मा के साथ बैठ कर बातें कर रही थीं. इसी तरह शाम हो गयी और शौकत मुझे मेरे घर छोड़ कर अपने घर चले गये. मैं लगभग कुछ दिन ही अपने घर रही. ये दिन इतनी जल्दी बीत गये कि पता
ही ना चला. अब मुझे पहली बार की तरहा घर से जाते हुई रोना नही आ रहा था. एक हलचल सी ज़रूर हो रही थी अपने शौहर के साथ अपने ससुराल जाते हुए.

सब इसी तरहा चल रहा था. एक साल बीत गया. हर तरफ से बच्चे की फरमाइश होने लगी. शौकत धीरे धीरे फिर शराब पीने लगे. मिया बीवी मे ख़त फॅट सुरू हो गयी. मेरे सास ससुर उनको बहुत समझाते लेकिन वो कहाँ समझने वाले थे. आख़िर वो खौफनाक रात आ ही गयी जिसका किसी भी लड़की को इंतेज़ार नही होता. ये बारिश का महीना था और तेज़ बारिश हो रही थी. मैं अब भी शौकत का इंतेज़ार कर रही थी. वो आज भी पी कर आए थे. जैसे ही उनके छोटे भाई ने उन्हे मेरे कमरे मे अपने
कंधो के सहारे दाखिल किया मैं उनपर बरस पड़ी. लेकिन वो नशे मे इतने डूबे थे कि बिस्तर पर गिर कर सो गये.

मैं भी ना जाने कब सो गयी और सुबह उठते ही उनसे उलझ पड़ी ये ना जानते हुए कि आज जी मेरी क़यामत आने वाली हैं. हम दोनो की आवाज़ें चार दीवारो से टकरा रही थीं.
मेरी सास और ननद भी अब कमरे मे दाखिल हो चुकी थीं. अब मैं चुप हो चुकी थी और मेरी सास और मेरी ननद मेरी तरफ से शौकत से सवाल कर रही थीं उनके
पीने के मुतलिक. मुझे याद नही कि मेरी सास ने ऐसा क्या कहा कि मेरे शौहर ने अपना रिश्ता मुझसे तोड़ लिया. वो तीन लफ्ज़ ही मैं सुन पाई की धडाम से मुरझा कर
सख़्त फर्श पर गिर पड़ी. मुझे जब होश आया तो मेरे शौहर सर पकड़े सिसक रहे थे और मैं अपनी सास की गोद मे सर रखे अपने बिस्तर पर पड़ी थी. मेरी ननद भी
रो रही थी. मैने आँखें खोली और मुझे वो ज़हरीले लफ्ज़ याद आए तो मैं भी फफक कर रो पड़ी. मेरी सास उस औरत की तरहा आँसू बहा रही थी जिसकी गोद मे उसका बच्चा
आखरी साँसे गिन रहा होता है. रोते रोते शाम हो गयी थी.
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