RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
इनायत के साथ मैं एक अलग ही इंसान बन गयी थी. अब मुझे जिंदगी मे मज़ा आने लगा था. इनायत के साथ दिन रात घूमना फिरना, हसी मज़ाक और ना जाने क्या क्या. इनायत शौहर कम लेकिन एक दोस्त
ज़्यादा लगता था. उसके साथ मुझे आए हुए लगभग 2 महीने होने को आए थे. लेकिन जब से मैने अपने जिस्म को उसके हवाले किया था तब से लेकर आज तक का वक़्त जैसे पंख लगा कर उड़ चुका था.
इनायत ने मुझसे बड़ा कॉन्फिडेन्स भर दिया था. अब मैं अकेले ब्यूटी पार्लर जा सकती थी, अकेले ही बाज़ार से समान खरीद सकती थी, किसी से बात करने के लिए मुझे अब हिचक नही होती थी. मुझ मे जो
खुद ऐत्माद की कमी थी वो भी अब धीरे धीरे ख़तम सी हो चुकी थी.मेरे कपड़े पहेन्ने का ढंग भी बदल गया था और जो सबसे ज़्यादा बदला था वो मेरे सेक्स के लिए नज़रिया. अब ये रात तो
अंधेरे मे शरमाने की चीज़ नहीं रहा था बल्कि दिन के उजाले में भी मज़ा करने का नया तार्रेका बना चुका था. इनायत ने मुझे बताया था कि जिस तारह शौहर को इस चीज़ की ज़रूरत पेश आती है
ठीक उसी तरहा बीवी की भी ख्वाइश और मर्ज़ी ज़रूरी है. अब कोई वक़र नहीं था सेक्स का,सब मन किया मूड बन गया. शौकत ने मेरे जिस्म के हर हिस्से को प्यार किया था. लेकिन इन सब चीज़ो से ज़्यादा
ज़रूरी चीज़ ये थी कि उसने मुझे एक हौसले मंद इंसान बनाया था. उसी ने मुझे आगे पढ़ने या अपने कदमो पर खड़े होने के लिए उकसाया था. वो हर वक़्त इस बात का ध्यान रखता की मेरी मर्ज़ी
और मूड कैसा है. मुझे ब्यूटी पार्लर वाला आइडिया अच्छा लगा जिसके लिए मुझे देल्ही मे ट्रैनिंग के लिया जाना था. एक एक लंबा कोर्स नहीं था और खर्चा भी अफोर्डबल था. वैसे भी हमारे यहाँ
सिर्फ़ एक ही ब्यूटी पार्लर था जो हमेशा भरा रहता था. अब हमारा कस्बा बड़ा होता जा रहा था. इसमे अब नये कॉलेजस, नये हॉस्पिटल्स,नयी सड़क जो हाइवे को जोड़ती थी और नयी दुकानो की भरमार
थी. कस्बे का डेवेलपमेंट इन कुछ सालो मे बहुत हुआ था. ये एक छोटे से शहेर की सकल ले चुका था. अब हर दूसरी चीज़ के लिए नज़दीकी शहेर नही जाना पड़ता था.
खैर, एक दिन जैसे हमारी इन खुशियो को किसी की नज़र लग गयी. इनायत काफ़ी परेशान दिख रहा था. वो मुझसे पुराने दिनो की तरहा सिर्फ़ उतनी ही बात कर रहा था जितनी ज़रूरत थी. मैने उससे पूछना चाहा
तो वो टाल गया. शाम को ही मेरी खाला ज़ाद बहेन रीना का फोन आया.
रीना: "अस्सलाम क्या हाल हैं मेडम के"
मैं:"वालेकुम सलाम हाल तो बढ़िया हैं, तुम सूनाओ क्या चल रहा है "
रीना: "अर्रे वाह मेरी दुखी बहना अब लगता है खुश है, क्यूँ"
मैं: "क्यूँ, खुश रहने के लिए मौसम का इंतेज़ार करना पड़ता है क्या?"
रीना: "नहीं, ऐसा तो नहीं है, खैर वो सब जाने दो ये बताओ की कहाँ पहुँची तुम्हारी कहानी?"
मैं:"कैसी कहानी"
रीना: "बनो मत, बताओ यार क्या हुआ, कुछ हुआ की नही, या अभी भी पहले आप, पहले आप पर गाड़ी रुकी हुई है?हाआााआ......"
मैं:"रीना ये कोई मज़ाक नही है, समझी तुम"
रीना: "सॉरी बाबा लेकिन क्या करूँ तुम कभी फोन नही करती हो, कुछ बताती भी नही हो"
मैं: "तो सुनो मैं अब बहुत खुश हूँ और मेरा शौकत के पास जाने का कोई इरादा नहीं है, समझी की नही"
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