non veg story एक औरत की दास्तान
11-12-2018, 12:29 PM,
#11
RE: non veg story एक औरत की दास्तान
सुबह राज की आँख जैसे ही खुली तो उसने अपने सामने स्नेहा को खड़ा पाया.. पिंक कलर की सलवार कमीज़ मे वो बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत लग रही थी.. राज का दिल तो कर रहा था कि वो उठकर उसे बाहों मे लेकर जी भरकर प्यार करे..पर वो इस वक़्त ऐसी जगह पर था जहाँ ऐसा करना उसके लिए मुमकिन नही था.. उसने रात मे ही अपने घर फोन कर के बता दिया था कि वो आज रात अपने एक दोस्त के यहाँ रुकेगा.. इसलिए जग्गू काका उसका इंतेज़ार ना करें... फिर वो दूध पीकर सो गया था.. ना जाने कितने दिनो के बाद उसे ऐसी चैन की नींद सोने को मिली थी.. उसके दिल को एक अजीब सा सुकून मिला था...

वो अभी लेटा हुआ ये सब सोच ही रहा था कि सामने खड़ी स्नेहा बोल पड़ी... "क्यूँ महाराज.. आज सोए रहना है क्या..? सुबह के 7 बज गये हैं.. पापा नीचे तुम्हें बुला रहे हैं... तुम जल्दी से फ्रेश होकर नीचे आ जाओ फिर हम इकट्ठे कॉलेज के लिए निकलेंगे.." स्नेहा ने एक साँस मे सारी बात बोल दी..

"पर वो रात मे तुम मुझसे कुछ कहना चाहती थी..जो तुम कहते कहते रुक गयी थी... क्या तुम अभी अपनी बात पूरी नही करोगी...?" राज ने उसे छेड़ते हुए कहा.. पर ये सुनकर स्नेहा के गालों पर एक बार फिर शर्म की लाली छा गयी... वो इस बार फिर वहाँ से भागना चाहती थी पर राज ने उसका हाथ पकड़ लिया...

"छ्चोड़ो ना प्लीज़..." स्नेहा ने हाथ खींचने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा...

"ये हाथ छ्चोड़ने के लिए नही पकड़ा है जी... अब तो अगले सात जन्मों तक नही छ्चोड़ूँगा ये हाथ..." राज ने मज़े लेते हुए कहा..

"अच्छा जी.. ऐसी बात है... पर मैने तो अभी तक कुछ कहा ही नही तो आपने कैसे मान लिया कि आप मेरा हाथ सात जन्मों तक पकड़ सकते हो... अब छ्चोड़ो जल्दी..." स्नेहा ने फिर से हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर राज की पकड़ बहुत ज़्यादा मजबूत थी..

"इतनी आसानी से नही छ्चोड़ने वाला मैं ये हाथ.. पहले तुम वो बोल दो जो रात मे बोलना चाहती थी.."

"मैं भला क्या बोलना चाहती थी..?" शर्म के मारे स्नेहा ज़मीन मे गाड़ी जेया रही थी..

"यही की.... यू लव मी.." राज ने अब सीधा सीधा पॉइंट पर आना ठीक समझा.. पर उसके ऐसे करने से स्नेहा की हालत खराब हो रही थी.. वो हाथ छुड़ाने की कोशिश भी कर रही थी पर वो हर बार नाकाम हो जाता था...

"पापा...." उसने अचानक दरवाज़े की तरफ देखते हुए ज़ोर से कहा..जिससे राज का ध्यान दरवाज़े की तरफ चला गया और उसकी पकड़ स्नेहा के हाथों पर कमज़ोर पड़ गयी... इतना वक़्त स्नेहा के लिए काफ़ी था... उसने जल्दी से अपना हाथ उसकी हाथों से छुड़ाया और हस्ती हुई नीचे की तरफ भाग गयी.. राज बस उसे देखता ही रह गया... उसकी चंचलता पर वो मस्कुराए बिना ना रह सका...

उसने घड़ी की तरफ देख तो सुबह के 7:15 हो गये थे.. वो जल्दी से उठा और बाथरूम मे घुस गया.. फ्रेश होकर वो नीचे गया जहाँ ठाकुर साहब और स्नेहा डाइनिंग टेबल पर बैठे उसका इंतेज़ात कर रहे थे.. उसने पहली बार ठाकुर साहब को आमने सामने देखा था.. हालाँकि उनकी फोटो पेपर मे वो रोज़ ही देखता रहता था पर मिला उनसे पहली बार था.. राज खुद भी एक अमीर परिवार से था और उसकी कंपनी के बिज़्नेस रिलेशन्स भी थे ठाकुर साहब की कंपनी के साथ पर उसने इन सब मे कोई ज़्यादा इंटेरेस्ट नही लेता था.. वैसे भी उसका सारा काम तो जग्गू काका ही संभालते थे तो उसे इन सब की क्या ज़रूरत थी... वो सीढ़ियों से उतरता हुआ नीचे पहुँचा.. उसके शरीर मे अब भी हल्का दर्द हो रहा था पर इतना नही की वो सहेन ना कर सके...

"आओ बेटा... बैठ जाओ.." ठाकुर साहब ने राज को देखते ही उसे पास बुलाया और कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए उसे बैठने का निमंत्रण दिया... बैठते बैठते राज ने पहली बार ठाकुर साहब को ध्यान से देखा.. ठाकुर खानदान के अनुरूप ही उनका चेहरा भी रौबिला था.. चेहरे पर कड़क मूँछें थी और गंभीरता उनके चेहरे से तपाक रही थी...

"अब तबीयत कैसी है बेटा...?"

"तबीयत तो ठीक है अंकल पर एक बात कहना चाहूँगा..." इतना बोलकर राज रुक गया...

"बोलो बोलो.. डरो मत..." ठाकुर साहब ने उसे अपने बात पूरी करने को कहा...

"जी बस ये बोलना चाहता था कि.....आपके मुस्टंडे पीटते बहुत ज़ोर से हैं..." राज ने मज़किया अंदाज़ मे कहा... ये सुनकर पास बैठी स्नेहा की हसी छूट गयी...ठाकुर साहब भी बिना मुस्कुराए ना रह सके... पहली नज़र मे ही ये लड़का उन्हे पसंद आ गया था पर ये भी जानना ज़रूरी था कि ये चोरों की तरह सुबह सुबह घर मे क्यूँ घुस रहा था..

"अरे बेटा.. उनका काम ही है पीटना... इसी के तो उन्हे पैसे मिलते हैं.. पर ये बताओ कि तुम ऐसे चोरों की तरह अंदर क्यूँ घुस रहे थे... उन्हे बता कर भी तो आ सकते थे.." ठाकुर साहब ने कहा...

"अरे क्या बताऊ अंकल... तबीयत खराब होने की वजह से मैं बहुत दिनो से कॉलेज नही गया था... सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकला तो सोचा कि क्यूँ ना स्नेहा से जाकर नोट्स ले लूँ.. इसी चक्कर मे मैं सीधा अंदर घुस गया और वॉचमन को भी बोलना भूल गया.." राज ने कहानी बनाते हुए कहा..

"कोई बात नही बेटा.. अगली बार से याद रखना.. वरना हड्डियाँ भी नही बचेंगी..." ठाकुर साहब ने भी मज़किया लहज़े मे कहा..

"अंकल जी.. आप चिंता ना करें... अगली बार से उसकी ज़रूरत ही नही पड़ेगी.. अब तो हमारा रिश्ता हो गया है... आइ मीन दोस्ती का रिश्ता..." राज ने स्नेहा की तरफ देखते हुए कहा जो अब सर नीचे झुकाए मुस्कुरा रही थी.. उसके चेहरे पर ये मुस्कुराहट इतनी अच्छी लग रही थी कि राज का मंन कर रहा था कि उठकर उसके होठों को अपने होठों मे दबा ले..पर हालत और जगह सही नही थे अभी..इसलिए उसे अपने आप पर काबू करना पड़ा..

"बेटा एक बात तो बताओ.. तुम धनराज सिंघानिया के बेटे राज सिंघानिया हो क्या...?" अब ठाकुर साहब ने उसके परिवार के बारे मे जानने की कोशिश की...

"हां अंकल मैं उन्ही का बेटा हूँ.. पर मुझे तो अब उनका चेहरा ही याद नही.. आपको तो शायद पता ही होगा उनके बारे मे..." राज का चेहरा अपने मा बाप के बारे मे सोचकर उदास हो गया था...

"हां बेटा... बड़े भले आदमी थे तुम्हारे मम्मी डॅडी... हमारे अच्छे बिज़्नेस रिलेशन्स हुआ करते थे.. बड़ा धक्का लगा था जब हम ने उनके मौत की खबर सुनी थी.. खैर छ्चोड़ो.. ये बताओ कि अब तुम किसके साथ रहते हो..?" ठाकुर साहब ने उसके मा बाप की बात को अब आगे बढ़ाना ठीक नही समझा.. उसने राज के चेहरे पर आई उदासी को भाँप लिया था...

"अंकल.. मम्मी पापा के मरने के बाद तो मेरी परवरिश जग्गू काका ने की... मैं अब भी उन्ही के साथ रहता हूँ.."

"जग्गू कौन..? वो नौकर...?" ठाकुर साहब ने राज के मा बाप के मरने के बाद अपन सारे बिज़्नेस रिलेशन्स उसकी पापा की कंपनी के साथ तोड़ दिए थे क्यूंकी उनकी नज़र मे एक नौकर इतनी बड़ी कंपनी कैसे चला सकता था पर जग्गू काका ने ना केवल वो कंपनी चलाई थी बल्कि उनकी कंपनी हमेशा प्रॉफिट मे ही रही थी..

"अंकल.. वो आपके लिए नौकर होंगे पर मेरे लिए तो वो किसी देवता से कम नही हैं.. वोही मेरी मा हैं..वोही मेरे बाप.. अगर वो ना होते तो मैं ना होता... " राज को यूँ एक नौकर का गुणगान करते देख ठाकुर साहब को अच्छा नही लगा और उन्होने वहाँ से उठना ही ठीक समझा क्यूंकी अगर वो ना उठते तो उनके मुह्न से कुछ ग़लत निकल जाता जो कि उन्हे लगा कि राज को पसंद नही आएगा..

"ठीक है.. तुम दोनो नाश्ता कर लो.. मेरा नाश्ता हो गया..." ठाकुर साहब ने नॅपकिन मे हाथ पोंछते हुए कहा और फिर कुर्सी पीछे सरका कर डाइनिंग टेबल से उठ गये और अपने कमरे की तरफ चल दिए...

"लगता है..उन्हे एक नौकर की तारीफ़ पसंद नही आई.." उनके कमरे मे जाते ही राज ने स्नेहा से कहा..

"ऐसी कोई बात नही है राज.. उनका पेट भर गया होगा इसलिए वो उठकर चले गये... तुम इतना मत सोचो इसके बारे मे.."स्नेहा को पता था कि बात यही है फिर भी उसने अपने बाप की जलन को च्छुपाने की कोशिश की..

"कोई बात नही स्नेहा.. पर एक बात याद रखना.. अगर जग्गू काका के लिए मुझे अपने प्यार को कुर्बान भी करना पड़े तो मैं वो भी करूँगा.." राज ने अपना इरादा बता दिया..

"पर तुम्हारा प्यार है कौन जो तुम उसे कुर्बान करने की बात कर रहे हो..?" स्नेहा ने बात को बदलने की कोशिश करते हुए मज़किया ढंग से कहा..

"अजी.. क्यूँ मज़ाक करती हैं मोह्तर्मा... ये आप भी जानती है और हम भी की हमारा प्यार कौन है..." राज भी अब मज़ाक के मूड मे आ गया...

"मैं क्यूँ जानने लगी भला आपके प्यार को... आपके प्यार को आप खुद जाने और आपका प्यार जाने..." स्नेहा ने भी चटखारे लेते हुए कहा..

"स्नेहा.. एक बार कह दो ना.. आइ लव यू..." राज ने फिर से सीधा पॉइंट पर आते हुए कहा.. ये सुनकर स्नेहा थोड़ा शरमाई पर उसे राज को तड़पाने मे बहुत मज़ा आ रहा था...

"मैं क्यूँ बोलूं..आइ लव यू..? वो तो आपका प्यार बोलेगा आपसे..." स्नेहा ने फिर भी तड़पाना नही छ्चोड़ा...

"बोल भी दो ना... प्लीज़..." इस बार राज ने हाथ जोड़ लिए उसके सामने... प्यार मे लोग ना जाने क्या क्या करते हैं.. स्नेहा से अब उसकी ये तड़प देखी नही जा रही थी... उसने अभी आइ लव यू बोलने के लिए मुहन खोला ही था कि ठाकुर साहब के कमरे से आवाज़ आ गयी..

"स्नेहा... बैठकर बातें ही करती रहोगी क्या... 9 बज गये हैं.. तुम्हारे कॉलेज का टाइम हो गया है..." इस आवाज़ ने राज का इंतेज़ार और बढ़ा दिया... और स्नेहा को उसे और तड़पाने का बहाना मिल गया... वो उसे मुह्न चिढ़ाती हुई डाइनिंग टेबल से उठ गयी.. और राज अपने हाथ मलता रह गया.. ये इनेत्ज़ार ख़तम होने का नाम ही नही ले रहा था... जब भी प्यार का इज़हार होने वाला होता, कोई ना कोई रोड़ा बीच मे आ ही जाता... राज को अब बहुत गुस्सा आ रहा था अपनी किस्मत पर... वो डाइनिंग टेबल से उठा और हाथ धोकर गेट से बाहर निकल गया.. उसने स्नेहा को भी नही बताया कि वो जा रहा है.. बाहर निकलते ही तीनो मुस्टंडे उसे फिर से दिख गये... इस बार उनके साथ वॉचमन भी था.. उसे देखते ही चारो ने सलाम ठोका पर राज ने इस पर कोई ध्यान नही दिया.. उसके दिमाग़ पर तो गुस्सा छाया हुआ था... उसने अपनी बाइक स्टार्ट की और फुल स्पीड के साथ कॉलेज की तरफ बढ़ा दी... अंदर स्नेहा उसे ढूँढ रही थी और जब ढूँढती हुई बाहर आई तो उसे पता लगा कि वो चला गया है.. उसे समझ आ गया कि राज उससे गुस्सा है..

क्रमशः.........................
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RE: non veg story एक औरत की दास्तान - by sexstories - 11-12-2018, 12:29 PM

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