RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
तांगे वाले से पता किया की कॉलेज के पास कोई धर्मशाला वग़ैरह है क्या, आज की रात या और रातें तो गुजारनी थी, जबतक हॉस्टिल की व्यवस्था नही हो जाती.
उसने एक धर्मशाला बताई जो कॉलेज से कोई 1किमी दूर थी, मैने उसे वहाँ तक छोड़ने के लिए बोल दिया.
धर्मशाला में एक छोटा सा कमरा लेके रात गुज़ारी, अपन ठहरे देहाती आदमी, सो ज़्यादा सुख-सुविधा की दरकार ही नही थी.
दूसरी सुवह अपने डॉक्युमेंट्स लेके कॉलेज पहुँचे, फीस भरके एडमिशन कराया, फिर हॉस्टिल की पुछ-ताछ की, बार्डन से मिलके फीस जमा की वो भी काम हो गया, लेकिन इन सब में दिन पूरा चला गया, खाने तक का समय नही मिला.
तसल्ली थी कि काम हो गया, हॉस्टिल में अपने अलॉट कमरे को देखा, कमरा काफ़ी बड़ा था, इसमें 4 लोगों की शेरिंग थी, चारों के लिए अलग-अलग आल्मिरा, अलग-अलग लोहे की पट्टियों वाले पलंग, हरेक को 4-4 लोहे की 3 फीट लंबी रोड्स मच्छरदानी के लिए, क्योकि पास में उजड़ जॅंगल हॉस्टिल के पीछे ही था, तो मच्छर बहुत थे.
अभी तक चारों मे से में पहला स्टूडेंट था उस कमरे मे आनेवाला.
देख-दाख के अपना धर्मशाला से समान उठाया और लगा दिया एक आल्मिरा में.
हॉस्टिल में ही मेस की व्यवस्था थी, महीने का जेन्यूवन चार्जस थे, शुरू कर दिया अपना मीटर आज से ही.
अब थोड़ा कॉलेज कॅंपस के जियोग्रफी के बारे में भी यहाँ बताना ज़रूरी हो जाता है.
कॉलेज कॅंपस के मेन गेट के सामने से ही नॅशनल हाइवे गुज़रता है, मैं कॅंपस का बड़ा सा गेट, मैन गेट से एक 12फीट चौड़ा कच्चा रास्ता लेकिन वेल मेंटेंड, कोई 50 मीटर तक मेन बिल्डिंग के गेट तक, रास्ते के दोनो तरफ छोटे-2 गर्दन.
मैं बिल्डिंग में घुसते ही रिसेप्षन, फिर ऑफीस एरिया, प्रिन्सिपल रूम, डिपार्टमेंट रूम्स, फिर क्लासस, और लास्ट में वर्कशॉप्स थे.
मैं कॅंपस से ईस्ट की ओर . पर ही कोई 500 मीटर की दूरी पर दूसरा गेट, जो एक बहुत बड़े ग्राउंड में खुलता है, जहाँ सब तरह के गेम्स फेसिलिटीस हैं, उसके बाद हॉस्टिल एरिया, एअर वाइज़ डिवाइड किए हुए ब्लॉक्स में..
फर्स्ट एअर स्टूडेंट हॉस्टिल ब्लॉक सबसे लास्ट मे है, उसके बाद जंगल जैसा एरिया शुरू हो जाता है.
चूँकि अभी एडमिशन शुरू ही हुए थे, तो ब्लॉक में ज़्यादा स्टूडेंट्स नही आए थे अबतक.
नयी जगह, नयी रात, सुनसान बिल्डिंग, रूम में अकेला जीव, बड़ी मुश्किल लगी वो रात.
रूम मे जॅंगल की ओर एक विंडो थी, हालाँकि उसमें आइरन रोड्स की जाली थी, फिर भी भयानक रात, तरह-2 के जानवरों की आवाज़ें, झींगुरों की झिन-झीनाहट, जब तक नीड नही आ गई, गान्ड फटती ही रही.
दूसरे दिन भी कोई खास तब्दीली नही हुई, क्लासेस तो अभी शुरू ही नही हुई थी, हां एक और बंदा रूम में आ गया था,
इंट्रो हुआ, नाम धनंजय चौहान, अपने ही इलाक़े का था, पर्सनॅलिटी लगभग मेरी जैसी ही थी, मीडियम कलर, हाइट कोई 5’10” जो मेरे बराबर थी. कसरती बदन. कुल मिला कर अच्छा लगा वो मुझे.
शुक्र था कि चलो कोई तो साथी मिला पहला इस नये माहौल में.
एक हफ्ते में एडमिशन लगभग पूरे हो गये, दो और रूम मेट आ गये, एक था ऋषभ शुक्ला गोरा चिटा थोड़ा नाटा यही कोई 5’5” की हाइट वदन थोडा भारी सा, इलाहाबाद साइड का, दूसरा था जगेश अत्रि. ये भी पश्किमी यूपी से था हिगत 5’8” शरीर से थोड़ा दुबला लेकिन कमजोर बिल्कुल नही.
हम चारों मे धनंजय ऊपर मीडियम घर का था, वाकई हम तीनों एवरेज मीडियम क्लास से थे.
कॉलेज शुरू हो गया था, नये स्टूडेंट्स की रगिन्ग होती थी, कभी कॅंपस मे, तो कभी हॉस्टिल मे ही आ जाते थे सीनियर्स, किसी से गाना गवाना, किसी से डॅन्स करना, किसी के कपड़े निकलवाना..वग़ैरह …….
सोचा कोई नही करने दो थोड़े दिन इनको भी मनमानी थोड़े दिन ही मिलती है करने को, और फिर कभी इन्होने भी कराई होगी अपनी… रगिन्ग..
ऐसे ही कुछ दिन और निकल गये, हॉस्टिल से कॅंपस, क्लासस, वर्कशॉप, रेजिंग, मस्ती, हँसी-मज़ाक. समय अच्छा निकल रहा था.
हम चारों एक ही डिपार्टमेंट (मेच) मे थे, तो हर समय साथ रहना, पक्के वाले दोस्त बोले तो पेंटिया यार बन चुके थे.
कहते हैं ना कि समय कभी एक समान गति नही चलता, आने वाले समय में कुछ तो उथल-पुथल होनी थी जीवन में.
लगभग दो महीने बाद एलेक्षन प्रक्रिया शुरू हो गयी, पहले सीआर (क्लास रेप्रेज़ेंटेटिव) चुने जाने थे, फिर उनके बहुमत से प्रेसीडेंट, सेक, जेटी. सेक आदि के लिए मेंबर मनोनीत करने थे जो कि केवल 3र्ड & 4थ एअर से ही हो सकते थे.
हमारे सेक्षन में एक बॅक वाला लड़का था मनिराम गुटका सा भारी सा,
सेकेंड एअर (साइ) स्टूडेंट्स जो उसके पुराने साथी थे उनके थ्रू उसने दबाब डलवाने की कोशिश की अपने को निर्विरोध सीआर चुनने के लिए,
सेकेंड एअर वालों ने हम सभी (FY) के स्टूडेंट से बोला भी,
हमने आपस में बात-चीत की, ज़्यादा तर लड़कों ने डिसाइड किया कि नही, हम अपना सीआर एलेक्षन से चुनेंगे.
हमारे गुट की तरफ से हमने धनंजय को आगे किया.
दो दिन में सीआर चुने जाने थे, तो सेकेंड एअर के कुछ स्टूडेंट्स ने हम सभी फर्स्ट एअर स्टूडेंट्स को ग्राउंड मे बुलाया, खुद एक पेड़ की छाया मे बैठ गये, और हमें लाइन लगाके धूप मे बिठा दिया, मेरी तो वहीं से सुलग गयी.
वो नंबर बाइ नंबर सभी को खड़ा करते और पूछते कि तुम्हें मनिराम के सीआर बनाने मे कोई एतराज तो नही है, शुरू के कुछ लड़कों ने डर की वजह सर हिलाकर अपनी रज़ामंदी देदि.
जिधर से पुछना शुरू किया था, उस तरफ से पहले धनंजय, फिर में, ऋषभ दॅन जगेश बैठे थे.
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