Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:47 AM,
#52
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
दूसरे दिन सुबह ही धनंजय और उसके पिता जी नज़दीक के शहर निकल गये कुछ काम होगा, बड़े भाई खेतों में थे, रह गया मे अकेला मर्द घर पर..! 

भाभी और धनंजय की बेहन रेखा को मंदिर जाना था, सोमवार का दिन था भोलेनाथ की पूजा करनी थी उन दोनो को.

मंदिर गाँव से बाहर कोई 400-500 मीटर की दूरी पर एक नहर के किनारे था.

उसकी माँ बोली, बेटा अरुण, तुम थोड़ा बहू और रेखा के साथ मंदिर तक चले जाओगे…?

मे- क्यों नही आंटी जी, और पड़े-2 करूँगा ही क्या, मेरा भी टाइम पास हो जाएगा.. चलिए भाभ जी, दीदी..!

हम तीनो मंदिर पहुँचे, उन्होने पूजा की, मैने भी भगवान के आगे डंडवत किया, थोड़ी देर वहाँ बैठे.

बड़ा ही मनोरम दृश्य था वहाँ, बड़ी शांति महसूस हुई मुझे तो.

नहर के किनारे बना मंदिर चरों ओर घने उँचे पेड़ों से घिरा, नहर का किनारा, ठंडी-2 हवा बड़ा सुकून दे रही थी, ज़्यादा लोग नही थे वहाँ.

में संगेमरमर के ठंडे फार्स पर लेट गया, अपने आप आँखें बंद हो गयी, और सुकून में लेटा रहा..!

रेखा और भाभी पूजा करके नहर की ओर निकल गयी..! 

थोड़ी देर बाद मुझे नहर की तरफ शोर सा सुनाई पड़ा, जैसे कोई औरत चीख रही हो..!

मैने उठके थोड़ा आगे बढ़के देखा तो… ओ तेरी का…!! मेरा तो यहाँ आना ही बेकार हो गया..!

वहाँ चार लड़के रेखा और भाभी को छेड़ रहे थे, छेड़ क्या रहे थे एक तरह से जबर्जस्ती ही कर रहे थे उनके साथ.

एक ने रेखा का हाथ ही पकड़ रहा था, और वो उसे छुड़ाने की कोशिश कर रही थी, दूसरे ने भाभी की कमर में हाथ डालके पीछे से जकड रखा था.

दो लड़के सामने से उन दोनो के साथ छेड़ खानी कर रहे थे..!

मे लपक के वहाँ पहुँचा, और उन दो लड़कों को जो सामने से छेड़-छाड़ कर रहे थे, पीछे से उन दोनो की गुद्दि पकड़ के उनके सर एक दूसरे से टकरा के दे मारे…कड़क..!

अनायास का हमला वो भी सर पे, चक्कर ख़ाके गिर ही पड़े दोनो साले.

फिर मैने भाभी के पीछे वाले का गला पकड़ के उसे पीछे को धकेला और जोरदार किक उसके थोबडे पे पड़ी, पट्ठा सीधा नहर में.

रेखा का हाथ पकड़ने वाला लड़का तो डर के मारे पहले ही हाथ छोड़ के निकलने की तैयारी कर ही रहा था कि लपक लिया मैने…! 

अबे साले…घोनचू ! जाता कहाँ है ? मज़े नही लेने क्या..?

वो ..मिमियाने लगा.. म..मुझे छोड़ दो..म.मुझे म.माफ़ करदो..

मे- क्यों ! मुफ़्त का माल समझा था क्या.. साले.. तेरी तो मे..माँ..

गाली देना चाहता था, पर बेहन और भाभी की वजह से दे नही पाया..और मैने उसे भी नहर में फेंक दिया..

फिर मैने उन दो के जिनके सर टकराए थे उन्हें उठाया और उनके गले पकड़ लिए, रेखा और भाभी से कहा-

अपने-अपने सॅंडल उतारो और लगाओ इन हरमियों थोबड़ों पर..!

उन दोनो ने सॅंडल उतार के दे-दबादब जो लगाए 4-6, सख़्त हील की सॅंडल की मार से उनकी चीखे गूंजने लगी, थोबडे लाल कर दिए सालों के.

उन चारों को अच्छा ख़ासा सबक सिखाने के बाद हम तीनों घर की ओर चल दिए…!

मे भाबी के बगल में चल रहा था, रेखा उनके दूसरे साइड मे थी, 

देवर्जी.. इस उमर में ये तेवर..? क्या यही काम करते हो वहाँ कॉलेज में या पढ़ाई भी करते हो…?

मे- थोड़ा हंसते हुए ! नही.. वो पार्ट टाइम ये भी काम कर लेते हैं.. अपने देवर को नही देखा अभी आपने…? वैसे ये लड़के थे कॉन..?

रेखा – अपने गाँव के तो नही लगते, वैसे भी हमारे गाँव के लड़कों की हिम्मत नही कि हमें कुछ कह सकें.

मैने भाभी के कान में फुसफुसा के कहा- वैसे भाभी इन बेचारे लड़कों की फालतू मे ही पिटाई हो गयी..! अब आप लग ही इतनी पटाखा रही हो कि कोई भी छेड़ना चाहेगा.

भाभी शर्मीली स्माइल के साथ तिर्छि नज़र से मेरी ओर देखते हुए- अच्छा जी तो तुम्हें भी मे पटाखा लग रही हूँ..? 

मे- पटाखा ही नही, एकदम कड़क माल लग रही हो भाभी सच कह रहा हूँ, अगर आपकी शादी भैया से नही हुई होती ना.. तो मे यहीं आपको किस कर लेता..!

रेखा भी नज़र तिर्छि करके हमारी बताओं को सुनने की कोशिश कर रही थी.

भाभी- क्या बात है..? तुम तो बड़े चालू निकले..! लगते तो नही हो ऐसे..? घर वालों को बोलके जल्दी शादी करनी पड़ेगी लगता है.

ऐसी ही देवर-भाभी के रिश्ते की छेड़-छाड़ भरी बातें करते-2 हम घर आ गये.

रेखा ने जो वहाँ हुआ, उसको अपनी माँ को बताया, शाम को सभी जब घर में मजूद थे, तभी आंटी ने बात चला दी.

धनंजय के पिता जी और भाई ने मुझे धन्यवाद किया, कि उसने उनके घर की इज़्ज़त पर आँच नही आने दी.

भाई- लेकिन अरुण तुमने अकेले ही उन चारों को पीट डाला, कैसे..? तुम तो अभी इतने छोटे हो..?

धनंजय- अरे भैया, ये दिखता छोटा है, अभी आपने इसके कारनामे नही देखे, वरना आप ऐसा कभी नही कहते..!

मे- और तू कम है..! 

धनंजय के पिता जी- तुम लोग क्या बात कर रहे हो..?

फिर धनंजय ने कॉलेज मे हुई दो साल की घटनाए डीटेल मे बताई.. सभी मुँह बाए मेरी ओर देख रहे थे. रेखा तो मानो कोई मूरत बन गयी हो, वो एक तक मुझे ही घूर रही थी, उसकी नज़रों में एक अजीब सी चाहत थी.

रात का खाना ख़ाके, सभी जान अपने-अपने कमरों में सोने चले गये, 
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा... - by sexstories - 12-19-2018, 01:47 AM

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