Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:55 AM,
#91
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
एक काली सी छाया मेरे पास हवा में तैरती हुई दिखाई दे रही थी, उस छाया ने अपना दाँया हाथ आगे किया और उसके हाथ से नीले रंग की अत्यंत चमकदार रोशनी निकली और मेरे शरीर में प्रवेश कर गयी. 

अंदर जाकर उस रोशनी ने मेरे सूक्ष्म शरीर (आत्मा) को अपने अंदर क़ैद सा कर लिया, अब मेरा सूक्ष्म शरीर अपनी स्वेक्षा से हिल भी नही सकता था.

देखते देखते मेरा सूक्ष्म शरीर मेरे स्थूल शरीर से बाहर आने लगा और उस नीली रोशनी में क़ैद उस काली छाया की ओर हवा में तैरता हुआ बढ़ने लगा. 

मे ये सब साक्षी भाव से अपने सामने होते देख रहा था, पर कुछ भी कर पाने की स्थिति में नही था.

उन नीली चमकदार किरणों में क़ैद मेरा सूक्ष्म शरीर हवा में तैरता हुआ उस काली छाया की ओर बढ़ रहा था.

इससे पहले कि वो उस तक पहुँच पाता कि अचानक एक सफेद रंग का सुनहरा चम्कीला तेज प्रकाश उस नीली रोशनी से टकराया और एक अत्यंत तेज प्रकाश युक्त बिस्फोट जैसा हुआ, वो नीली प्रकाश की रेखा बीलुप्त हो गयी और मेरा सूक्ष्म शरीर वही पर हवा में स्थिर हो गया.

मेरी नज़रों ने जैसे ही उस सफेद सुनहरे प्रकाश की किरणों का पीछा किया, तो वहाँ कुछ दूरी पर एक अत्यंत सफेद चम्किली आकृति को हवा में तैरते हुए पाया.

गौर से देखने पर वो आकृति जानी पहचानी सी लगी, कुछ ही क्षणों में मे उस आकृति को पहचान गया, वो वही देवदूत था, जो मुझे मेरे शरीर में पुनः प्रवेश कराके गया था मेरे जन्मकाल में.

वो काली छाया यमदूत थी.. अब मे उन दोनो के बीच होने वाली वार्ता को साफ-साफ सुन रहा था.

देवदूत- ये प्राणी अभी इस पृथ्वी लोक को नही छोड़ सकता तुम फ़ौरन चले जाओ यहाँ से और इसे यहीं छोड़ दो.

यमराज दूत- मुझे जो आदेश दिया गया है, मे उसी का पालन कर रहा हूँ श्रीमान !

देवदूत- नही ! तुम इसे नही ले जा सकते, आदरणीय चित्रगुप्त का आदेश है ये.

यमराज दूत- मुझे ऐसा कोई आदेश नही प्राप्त हुआ, वरना मे यहाँ क्यों आता इसे लेने.

देवदूत- एक ताम्रपत्र को दिखाते हुए.. ये देखो उनका आदेश, अब जाओ यहाँ से.

उस ताम्रपत्र पर देवनागरी में कुछ लिखा हुआ था और नीचे मुन्हर का निशान था, उसे देखते ही वो काली छाया ने अपना सर झुकाया और वहाँ से बीलुप्त हो गयी.

अब वो देवदूत मुझसे मुखातिब हो बोला - हे ! जीवात्मा अब अपने शरीर में वापस जाओ, अभी तुम्हारा काम इस लोक में पूरा नही हुआ है. इससे पहले कि तुम्हारे इस स्थूल शरीर को कोई हानि पहुँचाए, फ़ौरन इसमें चले जाओ.

डॉक्टर और नर्स मेरे निर्जीव शरीर पर लगे पड़े थे, करीब 15 मिनट से उसमें प्राणों का कोई लक्षण नही दिखा, साँसें बंद हो चुकी थी. वेंटिलेटर के सारे सिग्नल बंद हो चुके थे.

थक हार कर डॉक्टर ने फाइनली मुझे मृत घोसित कर दिया और बॉडी को पोस्ट मॉर्टेम के लिए बोल दिया.

मेरे सभी नज़दीकियों की आँखें जार-2 बरस रही थी. 

हॉस्पिटल प्रशासन ने मेरे शरीर को ले जाने की तैयारी शुरू कर दी. मैने एक बार अपने शरीर की तरफ देखा और उस देवदूत से कहा.

मे- पर श्रीमान ये तो बुरी तरह घायल है, क्या मेरा वापस जाना उचित होगा..?

देवदूत- तुम उसकी चिंता ना करो वत्स ! और अतिशीघ्र अपने शरीर में प्रवेश करो. नियती को तुम्हारे द्वारा अभी और बहुत सारे काम करने हैं. समय समय पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मेरा मार्गदर्शन तुम्हें मिलता रहेगा. कल्याडमस्तु..!

इतना कह कर वो देवदूत अदृश्य हो गया और मेरा सूक्ष्म शरीर वापस अपने शरीर में आगया…!

अचानक मेरी आँखें खुल गयी, मैने उठने की कोशिश की लेकिन उठ ना सका, पीठ में दर्द की एक तेज लहर सी उठी और मेरे मुँह से कराह निकल गयी.

पास खड़ी नर्स जो अब बॉडी को ले जाने की प्रक्रिया में लगी थी, मेरी कराह सुन कर मेरे पास आई और मेरे कंधों को पकड़ कर मुझे लेटे रहने को कहा और वापस मूड कर डॉक्टर को आवाज़ दी.

अभी-2 हुई अलौकिक घटनायें मेरे जेहन में चलने लगी और एक बार फिर से मेरी आँखें बंद हो गयी.



जब मेरी आँखें खुली तो पाया कि एक अधेड़ उम्र का डॉक्टर मेरे उपर झुका हुआ मुझे फिर से चेक कर रहा था.

मेरी खुली आँखें और मुँह से कराह सुन कर डॉक्टर सर्प्राइज़ हो गया, उसके चेहरे पर आश्चर्य से भरे कीटाणु नृत्य कर रहे थे. 

वो खुशी से चिल्लाते हुए बोला - कंग्रॅजुलेशन्स यंग मॅन ! तुम बच गये.. बताओ अब कैसा फील कर रहे हो ?

मेरे मुँह से मरी सी आवाज़ निकली - मेरे पीठ में बहुत दर्द है,

डॉक्टर - अरे वो तो होगा ही, एक तलवार जो तुम्हारे आर-पार हो गयी थी, वैसे तुम बहुत बहादुर हो जो इस जानलेबा हमले में बच गये. एक तरह से तुमने मौत को ही हरा दिया है.

फिर उसने एक इंजेक्षन दिया, रिपोर्ट्स चेक की और मुझे आराम करने की सलाह देकर बाहर चला गया. 

उसके जाते ही मेरे दोस्त अंदर आए और मुझे होश में देख कर खुशी से रो पड़े..

मेरे चेहरे पर एक दर्दयुक्त मुस्कान आई और अत्यंत धीमी आवाज़ में बोला- अरे रोते क्यों हो मेरे शेरो अभी तुमहरा ये कमीना दोस्त जिंदा है.

धनंजय जो मेरे सबसे करीब था बोला- ये तो खुशी के आँसू है मेरे यार ! तू नही जानता कि पिच्छले 36 घंटों में हम कितनी मौतें मरे हैं तेरी याद कर-करके, लेकिन ना जाने क्यों कभी दिल ने नही माना कि तू इतनी जल्दी और ऐसे हमें छोड़ कर जा सकता है. 

क्या..! 36 घंटे..? तो क्या मे 36 घंटे तक बेहोश था..?

तभी प्रिन्सिपल सर भी अंदर आए और आते ही बोले- हां अरुण तुम 36 घंटे के बाद होश में आए हो, डॉक्टर ने तो तुम्हें डेड डिकलेयर कर दिया था. लेकिन तुमने मौत को भी हरा दिया मेरे बच्चे ! और उनकी आँखें छलक पड़ी.

बातों-2 में पता चला कि मंजीत को कॉलेज से निकाल दिया गया है, और इस समय वो पोलीस हिरासत में है. 

हमारी तरफ से और कोई ज़्यादा गंभीर रूप से घायल नही हुआ था, लेकिन उधर से 4-6 लोगों को रोड की मार से भीतरी चोटें आई थी.

मेरा शरीर चमत्कारिक रूप से सही हो रहा था, दूसरे दिन ही मुझे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गयी, 

हॉस्पिटल से रति सीधे मुझे अपने घर ले गयी और मेरी सेवा में उसने अपनी जी-जान एक करदी, खुद से उसने मेरी देखभाल की जबकि उसकी प्रेग्नेन्सी को 7वाँ महीना चल रहा था.

एलेक्षन गुजर गया, धनंजय प्रेसीडेंट चुन लिया गया था, मैने भी अब कॉलेज आना जाना शुरू कर दिया था, लेकिन रति ने रखा मुझे अपने ही पास.

सब कुछ फिर से एक बार अच्छे से हो गया, कॉलेज प्रशासन और छात्र संघ मिलकर छात्रों के हित में काम कर रहे थे.

इधर रति की डेलिवरी का समय नज़दीक था, तो उसकी सास उसके पास आ गयी, जिसकी वजह से मे अपने हॉस्टिल चला आया.

और फिर एक दिन रति ने एक सुंदर सी परी को जन्म दिया, आलोक और उसके घर वाले सभी बड़े खुश हुए लक्ष्मी को पाकर. 

मैने भी मौका पाकर अपनी प्यारी सी गोरी चिटी, छुयि-मुई सी नन्ही परी को गोद में लेकर प्यार किया, रति थोड़ा एमोशनल हो गयी तो मैने उससे आँखों के इशारे से समझा दिया.

4-5 दिन बाद वो हॉस्पिटल से घर आ गई, उसकी सास बच्ची की देखभाल में लग गयी, सब कुछ अच्छे से चलने लगा.

देखते-2 साल का अंत आ गया, एग्ज़ॅम शुरू हो गये थे, हमारा ये अंतिम साल था. प्रिन्सिपल ने हमारे विदाई समारोह के लिए कुछ स्पेशल इवेंट सोच रखा था, डेट फिक्स करके कमिशनर और सिटी एसपी को भी इन्वाइट किया था, जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार किया.

वो दिन भी आ गया सबने हमारे बारे में कुछ ना कुछ कहा और हमें हमारे आनेवाले भविश्य के लिए ढेर सारी सूभकामनाएँ दी. सबकी आँखों में विदाई का दुख दिखाई दे रहा था.

लेकिन जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह शाम , किशोरे दा के इस गाने की लाइन भी तो यथार्थ से जुड़ी हुई है.

हमने सबको थॅंक्स बोला, अपने 4 साल बिताए समय को याद किया, खट्टी मीठी यादों को दोहराया और इवेंट ख़तम हुआ.
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