Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:27 PM,
#12
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मुझे मेरी आँखों पर यकीन नहीं हुआ पर सामने तो वो ही थी , तुम यहाँ क्या कर रही हो पूछा मैंने 
पिस्ता- क्यों, जंगल क्या मोल ले लिया हैं तुमने जो मैं यहाँ पर नहीं आ सकती बताओ कौन सा गुनाह कर दिया तुम्हारी इस मिलकियत में आ कर 
मैं- अरे वो बात नहीं है, ऐसे ही चौंक गया तुम्हे इधर देख कर 
वो- दरअसल माँ के साथ लकडिया काटने आई थी एक जोड़ी तो माँ लेकर चली गयी मैं भी बस जा ही रही थी की तुम आ धमके वैसे इस समय तुम किधर से आ रहे हो 
मैंने सोचा नीनू का जिक्र करना ठीक नहीं होगा तो झूठ बोलते हूँए कह दिया की बस ऐसे ही तफरी मार रहा था जंगल का शांत वातावरण अच्छा लगता है इधर को आ जाया करता हूँ ,
वो- चलो ठीक ही हुआ तुम मिल गए एक काम करो इन लकडियो को अपनी साइकिल पर लाद लो वर्ना इनका बोझ मुझे धोना पड़ता 
मैं- अरे ये भी कोई कहने की बात हैं अभी लो और लाद ली लकडिया 
मैं- आज रात को खेत में आओगी क्या 
वो- क्यों, मेरा कोई घर बार नहीं हैं क्या जो रातो को भटकती फिरू तुम्हे मिलना हैं तो तुम आओ 
मैं- खेत के सिवाय कहा मिल सकते है तुम्हे बता दो
वो- देखो मिल तो अब भी रहे हैं ना , थोड़ी देर इधर ही रुक जाते है करलो तुम्हे जो बाते करनी हैं 
मैं- पर यार रात को जब तक तेरा चेहरा न देखूंगा तो नींद नहीं आएगी 
वो- तो मैं क्या तुम्हारे लिए नींद की गोली लेकर आउंगी और हसने लगी 
मैं- अब आदत हो गयी हैं तुम्हारी
वो- चार दिन हूँए न हमे मिले आदत भी हो गयी वैसे मेरा भी मन तो है तुमसे मिलने का बाते करने का पता नहीं क्यों तुमसे बात करना सुकून सा देता है मुझे पर क्या है न की मैं ठहरी लड़की ऊपर से करेक्टर ढीला अगर आज खेत में आई तो माँ शक कर लेगी फिर बिन बात का कलेश होगा घर में तो मेरी भी मज़बूरी हैं 

मैं- तो फिर ठीक हैं सह लेंगे तुम्हारी जुदाई किसी तरह से हम
वो- तुम यार हो चीज़ कमाल के दो दिन से ही तो मिली हूँ तुमसे पर लगता है की बरसो की पहचान हैं अब तुम परेशान हो तो फिर मैं भी परेशान करना पड़ेगा कुछ न कुछ क्या तुम मेरे घर आ सकते हो रात में
मैं- पागल है क्या किसी ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी
वो- कल तो बड़ी बड़ी बात कर रहे थे की दोस्ती की लिए कुछ भी कर दूंगा आज ही घबरा गए तो फिर क्या दोस्ती निभाओगे
मैंने उसकी साइकिल रोकी और उसकी कमर में हाथ डालकर उसको अपने आगोश में भर लिया और उसकी कजरारी आँखों में आँखे डालते हूँए कहा पता नहीं कैसा जादू सा कर दिया है तूने मुझ पर देखा तो पहले भी था तुझे इन राहो में पर हाथ रख मेरे दिल पर और महसूस कर इन दोड़ती धडकनों को बस आरज़ू लिए हैं तेरे दीदार की, तू जो हैं न अब तू नहीं हैं तू बस मैं हूँ तेरी महकती साँसों की लत सी हो गयी हैं मुझे काश मैं शब्दों में ढाल पाता की मेरी साँसों की सरगम तुझसे क्या कहना चाहती हैं हाथ जो थामा हैं तेरा अब जुदा न हो पाउँगा तुझसे 

उसके बाद फिर हमारी कुछ बाते ना हूँई आँखों ने आँखों को अपनी भाषा में जो कहा बात दिल तक पहूँच ही गयी थी 
उसने भी मेरी बाहों से निकलने की कोई कोशिश नहीं की न उसको किसी का डर था न मुझे किसी का डर हाथ जो थाम लिया था उसका अब जो हो देखा जाये,
वो- अब छोड़ो भी मुझे कब तक ऐसे ही बाँहों में भरे रहोगे 
मैं- तुम कहो तो उम्र भर 
वो- पर अभी तो छोड़ दो देर हो रही हैं घर पर ढेर सारा काम पड़ा हैं तो फिर कुछ खट्टी-मिट्ठी बाते करते हूँए हम लोग घर आ गए उसके घर के बाहर लकडिया रखवाई मैं वापिस मुदा ही था की उसने कहा सुनो मैं ऊपर चोबारे में सोती हूँ , दूसरी तरफ गली में सीढ़ी लगा दूंगी इंतज़ार करुँगी तुम्हारा आ जाना याद से वर्ना मुझे भी नींद नहीं आएगी 

ये बोलकर जो तिरछी निगाहों से देखा जो उसने कसम से दिल साला टुकड़े टुकड़े हो गया मैंने कहा 11 बजे तक पक्का आ जाऊंगा 
घर गया तो तगड़ी वाली क्लास लगी आज पूरा दिन से लापता था घर का कोई काम किया नहीं था तो काफ़ी देर तक बस ताने ही सुनता रहा पर अपना ये रोज का काम था तो कोई दिक्कत नहीं थी हाथ मुह धोकर थोड़ी देर किताबो पर नजर मारी फिर खाना- वाना खा लिया था प्लान ये था की खेत पर जाऊँगा और फिर उधर से ही पिस्ता के घर आज से पहले कभी ऐसी गुस्ताखी की नहीं थी तो दिल थोडा घबरा भी रहा था पर जाना था तो जाना ही था 

बातो बातो में नो बज गए थे मैंने करी तैयारी घर से निकल ही रहा था की चाची ने टोक दिया बोली कहा जा रहे हो, 
मैं- जी खेत में सोने जा रहा हूँ, 
चाची- उसकी जरुरत नहीं हैं, तुम्हारे चाचा चले गए है, बोल रहे थे की तुम बस पढाई पर ध्यान दो 
उनकी ये बात सुनकर मेरे तो हुआ हाल बुरा , कहा तो प्लान था की दोस्त से मिलके बाते करेंगे कुछ अपनी कहूँगा कुछ उसकी सुनूंगा पर अब करू तो क्या अब पड़े न चैन मुझे मेरा करार तो पिस्ता ले गयी , पर वादा तो वादा करीब 11 बजे घर कमरे से निकला मैं लाइट बंद घर अँधेरे में डूबा सब लोग सोये पड़े थे आहिस्ता से मेन गेट को खोला सुनसान गली में फैला सन्नाटा थोडा डर भी लग रहा था पर अब तो जाना ही था घर से निकल कर चोरी छिपे चल पड़ा उसके घर की तरफ दो गालिया पार की और पहूँच गया उसके घर की पिछली साइड में बस अब थोड़ी देर और फिर उसको भर लेना था अपनी बाहों में .
दिल में हजार अरमान लिए मैं पहूँच गया पिछली गली में पर जाकर देखा तो सारे अरमानो पर पानी फिर गया गली में सीढ़ी थी ही नहीं अब हूँई जान को मुश्किल करे तो क्या करे आवाज दे सकता नहीं काफ़ी देर हो गयी इंतज़ार करते करते ऊपर से ये डर की कोई पेशाब करने या किसी और काम से घर से बाहर आ न निकले पकडे गए तो फिर आई जान गले में पर करू भी तो क्या करू फिर सोचा की मिलना तो हैं ही अब जो हो देखा जाये पर जाया कैसे जाए ऊपर तक थोडा घूम फिर कर देखा तो पास में टेलीफोन की लाइन का खम्बा था अगर उस पर चढ़ सकू तो काम बन जाये तो किसी तरह से मेहनत करके पिस्ता की दीवार पर चढ़ ही गया उसने बताया था की चोबारे में मिलेगी तो दबे पांव पहूँच गया 

दरवाजा खुला हुआ ही था बत्ती बंद बस पंखे की ही आवाज आ रही थी मतबल की सो रही थी थोडा गुस्सा भी आया की इसके लिए इतने पापड़ बेल कर यहाँ तक आया ये सो रही हैं मैंने दीवार पर बल्ब का स्विच तलाशा और लट्टू जलाया पड़ी जो नजर यार पर दिल को करार आया दीन दुनिया से बेखबर नींद की बाँहों में पड़ी थी वो आहिस्ता से जगाया उसे हडबडाते हूँए उठी और पूछा कब आये और कैसे आये मैंने कहा तुम्हारी सीढ़ी तो मिली नहीं तो खम्बा चढ़ कर ही आया हूँ , जम्हाई लेते हूँए वो बोली पता नहीं कैसे नींद लग गयी उसने चोबारे का दरवाजा बंद किया कुण्डी लगायी और आ गयी पास मेरे उसके गुलाबी गाल और भी गुलाबी हो गए थे मंद मंद मुस्कुराते हूँवे कहा उसने यकीन नहीं होता तुम यहाँ पर 
मैं- अब तुमने बुलाया तो आना ही था 
वो- अच्छा किया बड़ी याद आ रही थी तुम्हारी सच कहू तो सपना भी तुम्हारा ही आ रहा था 
मैं- अच्छा जी 
मैं- उसका हाथ अपने सीने पर रखते हूँए, देख यार मेरी धडकनों को कितना तेज भाग रही हैं 
वो- और जो मेरे चैन को चुरा लिया हैं तुमने उसका क्या
मैंने उसको अपनी और खीच लिया वो मेरी गोदी में सर रख कर लेट गयी चुन्नी सरक गयी साइड में उसके उभारो का नजारा मेरी आँखों में नशा भर रहा था नजरे थम सी गयी थी मैंने अपना हाथ उसके पेट पर रख दिया और सहलाने लगा उसके जिस्म में हरकत होने लगी क्या देख रहे हो पुछा उसने
मैं- तुम्हे 
वो- इस तरह से न देखो मुझे 
मैं- तो किस तरह से देखू तुम्हे
वो-खैर जाने दो ये बताओ की डर तो नहीं लगा तुम्हे 
मैं- डर कैसा कोई चोरी थोड़ी न कर रहा हूँ
वो- चोरी ही तो है देखो चोरी छिपे तुम मुझसे मेरे घर मिलने आ गए हो 
मैं अपने दुसरे हाथ से उसके बालो को सहलाते हूँए, तुम भी यार कैसी बाते लेकर बैठ गयी हो 

वो- तुम्हे कैसी बाते पसंद हैं 
मैं- मत पूछ हाल मेरे दिल का कर सकती है तो महसूस कर ले 
वो- एक बात पूछु, 
मैं- हां 
वो- कभी किस किया है 
मैं- किया तो नहीं पर तुम्हे कर लूँगा 
वो हँसते हूँए, दीखते हो उतने शरीफ हो नहीं तुम 
मैं- अब क्या दोस्त को किस्स नहीं कर सकता क्या 
वो- कर तो सकते हो पर अभी मेरा मूड नहीं हैं 
मैं- तो कब होगा तुम्हारा मूड 
वो-मैं क्या जानू 
वो मेरी आँखों में देखते हूँए बोली ना जाने क्यों बहुत अच्छा अच्छा सा लग रहा हैं, तुमसे दो दिन की दोस्ती लगती है जैसे की उम्र भर पुरानी हो, सच्ची कहती हूँ तुम्हारे जैसा ही एक दोस्त ढूंढ रही थी जिस से अपने दिल की बाते कर सकू, 
मैं – मैं भी तुम्हे ही ढूंढ रहा था , जिस से दो चार बाते कर सकू तुम्हे पता हैं एक खालीपन सा हैं मेरे अन्दर उस दिन जब खेत में तुमसे बाते की तभी ना जाने क्यों मुझे लगा की तुम एक बेहतर दोस्त हो सकती हो 
वो- पर मैं तो बदनाम हूँ, कभी सोचा हैं की मेरे जैसी लड़की के साथ तुम्हारा नाम जुड़ेगा तो ....... 
मैं- देख यार, तेरी अपनी ज़िन्दगी हैं जो तू करती है या किया हैं वो तू जाने, मैं क्या कर सकता हूँ तू रुकेगी तो अपनी मर्ज़ी से और इर कमिया तो सबमे होती है मुझे देख सबको लगता है इसकी लाइफ मजे में है सब सेट है पर हकीकत में घर में दो कोडी की भी औकात नहीं है मेरी जिसने जब चाहा सुना दिया कभी ये काम करो कभी वो काम करो , चलो काम तक तो ठीक है पर कोई नहीं समझता वहा मुझे बस रोटियों के टुकड़े डाल दिए और हो गया 
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