Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:29 PM,
#19
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
आँखों में आँखे तेरी, बाते सोगाते तेरी मेरा ना मुझमे कुछ रहा बाकी शायद ऐसा ही कुछ वो गाना था जो रेडियो की मद्धम मद्धम आवाज में बज रहा था हम दोनों और हमारी आवारगी पता नहीं तकदीर का कौन सा वो मोड़ था जहा हम दो मनचले टकरा गए थे, मैंने कभी सोचा ही नहीं था की पिस्ता से इस तरह मेरा रिश्ता जुड़ जायेगा आज मैंने जाना था की सची में किस्मत जैसा भी कुछ होता हैं पिस्ता मेरी बाँहों में चैन की नींद सोयी पड़ी थी 

पर पता नहीं क्यों मेरी आँखों में नींद नहीं थी पता नहीं साली क्या प्रॉब्लम सी थी कभी खुश रह ही नहीं पाता था मैं ये कैसा उदासी का आवरण था मेरे चारो और जिसे मैंचाह कर भी भेद नहीं पता था रात कितनी गयी कितनी बची थी कुछ पता नहीं था मुझे हवा में कुछ ठंडक सी हो गयी थी आहिशता से पिस्ता के सरको अपनी बाह पर से हटाया मैंने और उठा खड़ा हुआ दूर दूर तक बस सन्नाटा फैला हुआ था 

पानी के जग को देखा तो पानी था नहीं तो मैं चल पड़ा कुए की तरफ ठंडा पानी गले से उतरा तो चैन मिला कुछ देर मैं उधर ही मुंडेर पर बैठ गया और सोचने लगा अपने बारे में आनी वाले कल के बारे में ज़िन्दगी ने पिछले एक दो महीने में बहुत ज्यादा उतार चढाव आ गया था कहा तो बस मैं ऐसे ही खाली टाइम पास कर रहा था जाने अनजाने बिमला से जुडाव हो गया और फिर रेगिस्तान में किसी बेईमान बारिश की तरह पिस्ता आ गयी 

नीनू, भी थी एक दोस्त जो थोडा बहुत समझती थी मुझे अपने ख्यालो में मशगूल मैं खोया था उस चमकते चाँद की तरह वो भी खामोश था मैं भी खामोश ये भी एक अलग सा ही रिश्ता बन गया था उस चाँद से भी ना जाने कितनी राते उसको तकते तकते गुजर जाया करती थी हालाँकि ये ज़िन्दगी की शुरुआत ही थी पर ऐसा लगता था की सफ़र पर निकले हुए कितना समय बीत गया पता ही नहीं चला कब पिस्ता मेरे पास आकर बैठ गया 
सोये नहीं अभी तक पुछा उसने 
मैं- यार, नींद आई ही नहीं 
वो- कोई परेशानी है क्या 
मैं- पता नहीं 
वो – फिर क्यों भला 
मैं- सची में पता नहीं यार बस कभी कभी एक उदासी सी छा जाती है फिर काफ़ी देर तक परेशान होना पड़ता है 
इधर आओ मेरे पास मेरी गोद में सर रख कर लेट जाओ
उसकी बाहों में सच में ही सुकून मिलता था मुझे हौले हौले वो मेरे सर को सहलाने लगी बड़ी राहत मिली मुझे फिर ना जाने कब आँख लग गयी मेरी होश जब आया तो देखा वो जगा रही थी मुझे पिस्ता बोली- चलो उठो भी अब देखो दिन निकलने वाला है थोई देर में मैं चलती हूँ अब मै उसकी गोदी में ही सोया पा था मैंने कहा खाट पर नहीं गए क्या वो बोली तुम सो गए थे तो मैं बैठी रही ऐसे ही उसकी बात दिल को छु गयी 

पिस्ता डगमग डगमग करते हुए चली गयी मैं भी अपने खेत पर चल पड़ा वहा जाकर थोड़ी देर ही हुई थी की पिताजी पहूँच गए मैंने मन ही मन भगवान् का शुकर किया की ये रात को नहीं आये वर्ना मेरी तो गांड मर जनि थी पिताजी से बात चीत हुई वो खेतो का निरिक्षण करने लगे मैं भी साथ हो लिया एक जगह वो रुक गए और बोले – बेटे क्या चल रहा हैं आज कल 
मैं – जी बस पढाई ही चल्र रही हैं थोडा क्रिकेट खेल लेता हूँ बस बाकि टाइम घर के कामो में चला जाता हैं 
पिताजी- मुझे लगा की तुमसे थोड़ी बाते करनी चाहिए बाप बेटे की बाते कुछ ऐसी ही होती हैं तो घर वालो के सामने कर नहीं सकता था इसीलिए यहाँ ठीक हैं 

मुझे मन ही मन लगने लगा था की कुछ सीरियस टाइप ही है किसी न किसी ने चुगली कर दी होगी 
पिताजी- तुम्हारे मास्टर जी से बात हुई थी वो बता रहे थे की आजकल तुम क्लास अटेंड नहीं कर रहे हो 
मैं- जी पिछले कुछ दिनों से जा नहीं पा रहा हूँ पर कल से रेगुलर हो जाऊंगा बीच में छुट्टिया हो गयी थी तो चंडीगढ़ चला गया था फिर कुछ कल्चरल एक्टिविटीज थी तो पढाई हो नहीं रही थी बस इसीलिए 

पिताजी- तुम्हारी माँ कह रही थी की आज कल तुम टाइम से घर नहीं आते हो और एक पूरी रात तुम घर से बाहर थे 
मैं- वो पिताजी एक दोस्त के घर विडियो लाये थे तो फिलम देखने चला गया था 
पिताजी- मैं तुम्हारा जवाब नहीं मांग रहा हूँ बल्कि तुम्हे समझा रहा हूँ की देखो तुम अपनी लाइफ की शुरुआत करने जा रहे हो बचपन बीत गया जवानी आई ये जो अल्हड उम्र होती है न इसमें खून थोडा ज्यादा जोर मारता है , इंसान के बगावती तेवर होते है मैं जानता हूँ की जब भी घरवाले कोई टोका टोकी करते है तो तुम्हे बहुत बुरा लगता है पर वो सब तुम्हारे भले के लिए ही है 

इस उम्र में हमारा मन अक्सर गलत रास्तो की तरफ भागता हैं गलतिया भी होती है कुछ माफ़ हो जाती है कुछ सारी उम्र हमे सालती रहती है माँ- बाप जो होते हैं न उन्हें अपने बच्चो की हर बात पता होती हैं जैसे की अभी तुमने झूठ बोल दिया की दोस्त के घर गए थे 
मैं बाप हूँ तुम्हारा पाला है तुम्हे, मुझे नहीं पता क्या तुम्हारे कितने दोस्त है पर मैं तुम्हे बाध्य भी नहीं करूँगा की तुम मुझे बताओ उस रात तुम कहा थे बस इतना ही चाहूँगा की जो भी समाज में पहचान तुम्हारे बाप ने मेहनत करके बनायीं है कोई ऐसा काम न करना की इस बाप की नजरे नीची हो पढाई पर ध्यान दो घर पर समय दो बैठो कभी परिवार के साथ थोडा जानो हमे, कितने दिन हो जाते है हाय हेल्लो से आगे हम बढ़ नहीं पाते है 

अपने ही घर में अजनबियों की तरह रहते हो कल तुम्हारी माँ ने तुम्हारे कमरे की सफाई की थी उन्हें कुछ ऐसा सामान भी मिला है जो शायद अभी तुम्हारे पास नहीं होना चाहिए था , पर चलो कोई बात नहीं समझदार को इशारा ही बहुत होता है मेरी बात पर थोडा गोर करना और समझना तुम अब बड़े हो रहे हो घर की जिम्मेदारी लेना सीखो बस यही कहना था मुझे 

मैं नजरे झुकाए उनकी हर बात को सुनता रहा ऐसा एजी रहा था की जैसे किसी ने भरे बाजार में नंगा कर दिया हो मुझे पर उनकी हर बात सही थी फिर करीब घंटे भर बाद ही हम साथ साथ घर आ गए मैं सोच रहा था दिन की शुरुआत ऐसी हुई हैं तो दिन कैसे कटेगा बस यही देखना था ..
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:29 PM

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