Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:35 PM,
#62
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चाची ने अपना पेट पकड़ लिया और खिलखिला के हंसने लगी , बाह रे दुनिया किसी की परेशानी किसी के हंसने का कारण बन जाते है 

मैं- ठीक है आप मत बताओ मैं सवाल करने वाली से ही बोल दूंगा की मुझे समझ ना आया 

वो- हां ये सही रहेगा वो भी समझ लेगी की किस मुर्ख से बात करने चली है वो 

मैं- चाची ये अहसान करदो, आप जो कहोगे वो करूँगा चाहे कितना भी काम करवा लेना कर दो ना मेरी मदद 

चाची- जा एक कलर पेन लेकर आ केसरिया वाला 

मैं दोड़ कर गया और पेन लेकर आया उन्होंने कागज़ पे कुछ लिख दिया और बोली- दे देना जिसे देना है 

मैंने देखा उस पर कुछ भी ना लिखा था बस आधे से ज्यादा कागज़ को उन्होंने रंग दिया था 

मैं- ये कैसा जावाब है 

वो- जैसा उसका सवाल है 

मैं- सवाल क्या है वो तो बता दो 

वो- वो पूछ रही है की कोरे कागज़ सी है मेरी जिंदगी तुम क्या लिखोगे 

मैं- और आपने क्या लिखा ये 

वो- यही की तुम्हारे जीवन में रंग लेकर आया हूँ 

मैंने अपना सर पीट लिया हाय रे मंजू तुझे क्या गम हो गया जो हमे भी उलझा डाला इस तरह से तूने सीधे सीधे ना पुछ लेती की बात क्या है , खैर चलो बात तो आगे बढ़ी जैसे तैसे करके 


Chachi-खाना बनाने जा रही हूँ क्या खाओगे 

मैं- जो रोज खाता हूँ वो ही खाऊंगा कौन सा मेरे लिए कुछ स्पेशल बनेगा 

वो- आज तो बना ही दूंगी , बेटा प्रेम की राह जो चल पड़ा है 

- ये मजाक था या आपका ताना 

वो- बता क्या खायेगा 

मैं- ऐसी बात है तो बना दो नमकीन चावल और बूंदी का रायता 

वो- ठीक है बनाती हूँ

चाची रसोई में चली गयी मैं बिमला की तरफ चला गया पर फिर से उसके घर पर ताला लटका हुआ था ये रोज रोज ताले को देख कर मेरा दिमाग सटकने लगा मैं घर आया और चाची से पुछा तो उन्होंने बताया की बिमला एक स्कूल में लग गयी है तो दोपहर बाद ही आती है , साला जिसे देखो तरक्की कर आहा है एक मैं ही हूँ बस नाकाबिल चाची रसोई में लगी थी मैंने अचानक से ही पूछ लिया की आपको कैसे पता चला की वो कोरे कागज़ के सवाल का तो उनकी सांस अटक गयी वो बोली- तेरा काम हो गया न तो निकल ले खाना बन जायेगा तो बोल दूंगी पर मैं ढीठ एक नुम्बर का पर वो कैसे बताती मुझे सबके अपने अपने दिन होते है जवानी के तो फिर जाने दिया

खाने के टाइम तक मम्मी भी आ गयी थी उन्होंने बताया की उनकी तबियत कुछ ठीक नहीं है तो मैं चाची के साथ प्लाट में चला जाऊ, तो दोपहर बाद मैं और चाची दोनों प्लाट में चल दिए सर पर बाल्टी रखे चाची मटकते हुए मेरे आगे आगे चली जा रही थी साडी में वो बहुत ही कमाल की लगती थी या मुझे ही लगती थी ऊपर से उनकी हाइट करीब 5फूट थी तो वो भी एक फैक्टर था , उनके पैरो में पड़ी पायल उनके हर कदम के साथ साथ बजती थी मैं सोचने लगा चाचा ही सही है ऐसे मस्त माल को हथिया लिया थोड़ी जलन सी हो रही थी 


रस्ते में मुझे पिस्ता मिल गयी वो भैंसों को पानी पिलाने लायी थी , मुझे देख कर वो मुस्कुराई और इशारा किया मैंने भी जवाब दिया की चाची साथ है तो थोडा हिसाब से पर उसको तो ऐसे मोको पर ही शरारत सूझती थी 

चाची- क्या हुआ जल्दी जल्दी चल ना 

मैं- चल तो रहा हूँ 

पिस्ता बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए बड़ी अदा से मेरे पास से अपनी चोटी को लहराते हुए निकल गयी मेरे दिल पर बिजलिया गिराते हुए ये ख्वाब बड़ा हसीं लगा करता था पर ये भी पता था की हर ख्वाब की तरह इसको भी कभी ना कभी टूटना ही था , मुझे डर लगता था की क्या होगा उस दिन जब ये ख्वाब टूट जायेगा , अब मैं क्या करता ख्वाब की तक़दीर में तो टूटना ही लिखा होता है देखो कब तक जिया जाये इस ख्वाब को कब तक मियाद इसकी 

चाची भैंसों को चारा मिलाने लगी मैं घास काटने लगा मुझे ये काम कभी भी पसंद नहीं थे पर मेरी बहुत ही मजबुरिया थी घास काटते काटते मैं थक गया पर घास उतनी के उतनी मेरे बदन में खुजली मचने लगी चाची मेरे पास आई और बोली- इधर लकड़ी ख़तम होने को आई है, कल जाके काट लाना 

मै- ना जाऊंगा मैं, आप और मम्मी चले जाना मेरे कोई लिख दी है 

चाची- ठीक है मैं या तेरी मम्मी में से कोई तेरे साथ चलेगा हर बात पे रोया मत कर अब घर के काम भी तो जरुरी है अब तुम थोड़ी मदद कर दो तू हमारी भी मदद भी हो जाती है और वैसे भी काम करने में कभी शर्म नहीं होनी चाहिए 

मैं- ठीक है जी 

चाची थोड़ी देर बाद दूध निकालने लगी वो बैठी हुई थी उनके बैठने का तरीका ऐसा था की उनके घुटने पेट से लग रहे थे, जिस से उनके बोबे ऊपर को हो गए थे उनका बिलाउज़ भी थोडा खुले गले का था उनके आधे से ज्यादा बोबे को ऊपर को हो गए थे मुझे दिख रहे थे, उनके उभारो की घाटी जैसे मुझे खुला आमंत्रण दे रहे थे पर क्या करू बस ठंडी आह ही भर सकते थे उस माल पर अपना कोई हक़ नहीं था और कोशिश् मैं कर नहीं सकता था तो बस आँखों से निहार ही सकता था 


चाची को भी पूरा आभास था की मेरी नजरे कहा पर है पर घर में इतना तो होता ही रेहता है तो उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया वहा के काम को निपटा कर मैंने कहा मैं घुमने जा रहा हूँ और कट लिया वहा से , चक्कर जो लगाना था मंजू के घर का , और किस्मत की बात देखिये मंजू अपने घर के बहार कुर्सी पर बैठी थी मैं इस तरह से उसके पास से निकला उसकी गोदी में अपने पत्र गिरा गया बिना उसकी तरफ देखे मैं गली में मुड गया धड़कने कुछ बढ़ सी गयी थी 

अब अपना कोई ठिकाना तो नहीं था तो पैरो को मोड़ लिया घर की तरफ घर के कोने की तरफ मुडा तो देखा की चाचा किसी औरत से हस हस के बात कर रहे थे मैं कोने पर ही ही खड़े होकर देखा तो पता चला की चाचा बिमला से बड़ा हस हस के बात कर रहे थे , बिमला से मैं आश्चर्य से भर गया , बिमला के वो चाचा ससुर लगते थे मैंने देखा की बिमला ने उनसे घूँघट भी नहीं किया हुआ था और बड़ा रस लेके बात कर रही थी चाचा ने बिमला के कंधे को थप थापाया मुझे ये बात बहुत अजीब लगी क्योंकि पहले तो उनका रिश्ता इस टाइप का नहीं था और फिर अंदाज दोस्ताना 


मैं तेजी से घर की तरफ बढ़ा उन्होंने जैसे ही मुझे देखा तो बिमला ने झट से बड़ा सा घूँघट निकाल लिया और अपने घर में अन्दर चली गयी चाचा मेरे पास आये और बोले- पूछ रहा था की किसी चीज़ की कोई जरुरत तो नहीं अब इसके भाई साहब और भाभी जी तो चंडीगढ़ है और इसका पति तो विदेश है , तो ये हमारी जिमेवारी है 

मैं- पर चाचा जी मैंने तो कुछ पुछा ही नहीं 

चाचा आगे बढ़ गए मैं वाही रुक गया पता नहीं क्यों मुझे कुछ ठीक सा नहीं लगा उस पल दिमाग में कुछ टेंशन सी हो गयी थी घर पे भी मैंने चाचा को देखा वो नार्मल से ही दिख रहे थे , पता नहीं क्या बात थी या मुझे ही बस कुछ ऐसा लग रहा था की बिमला से जैसे वो हस हस कर बात कर रहे थे अब इतना तो मैं भी नासमझ नहीं था ना उस रात रोटिया बड़ी मुस्किल से गले से उतरी मेरी खाने के बाद मैंने अपनी साइकिल ली और घर से निकल रहा था की चाचा ने मुझे टोक दिया 

वो- कहा जा रहे हो 

मैं-जी सब्जियों में पानी देना है तो खेत में जा रहा हूँ 

वो- बेटा, तू अपनी पढाई पे ध्यान दे, मैं पानी दे दूंगा तू घर रह खेत में मैं जाऊंगा 
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