Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:39 PM,
#85
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
दूर दूर तक बस रेत ही दिख रही थी शाम ढल रही थी उस कुएँ में पानी तो था पर मैं उधर तक पहूँच पा रहा था नहीं तो उन कीकर के दो चार पेड़ जो की पता नहीं कैसे अपने वजूद को बचाए हुए थे उस रेगिस्तान में मैं उधर ही बैठ गया और सोचने लगा की तभी किसी की जानी पहचानी आवाज मेरे कानो में टकराई “प्यास लगी है क्या “

नजर घुमा कर जो मैंने देखा तो बंजारों के वेश में रति खड़ी थी हाथो में पानी का मटका लिए क्या खूब लग रही थी वो 

मैं- तुम यहाँ कैसे 

वो- जहा तुम हो वहा मैं भी तो हूँ 

मैं मुस्कुरा पड़ा 

रति- पानी पि लो प्यास लगी है तुम्हे 

मैं- तुम्हे देख लिया करार आ गया हर प्यास बुझ गयी 

वो- और जो मेरे मन के करार को लूट के ले गए उसका क्या 

मैं और रति उस ठंडी रेत पर बैठ गए और बाते करने लगे 

मैं- रति , तुम हो मैं हूँ और ये मेरे लबो पर जो बात है 

वो- जो बात लबो तक आ जाये उसे कह देना ही बेहतर होता है 

मैं- हां, पर जो बात तुमने पहले ही पढ़ ली है , जो बात तुम जानती हो , जो बात हमे पता है तुम्हे पता है उस बात को दोहराना भी नहीं चाहिए ना 

रति मेरी गोद में सर रख कर लेट गयी मैं उसकी उलझी जुल्फे सुलझाने लगा उसकी चोली में कैद उभारो का कातिलाना कटाव मेरे मन को भटकाने लगा जैसे सागर की लहरे किनारों से टकरा कर लौट जाती है वैसी ही जुस्तुजू में बंधा हुआ था मैं , दिल की वो अनकही बात मेरे होंठो पर आकर रुक सी जाया करती थी उसको बताना चाहता था की कितना प्यार उस से मैं करता था , उसे बताना चाहता था की दिल दीवानगी की किस हद तक उसको चाहता था , कितना टूटकर उसकी बाहों में बिखरना चाहता था मैं 

रति- किसी बारिश से भरे उमड़ते हुए बादल की तरह मेरे आगोश में अठखेलिया करते हूँवे- कह भी दो ना उस बात को जिसे सुनने के लिए ना जाने कब से मैं तरस रही हूँ 

मैं- दिल की बात को दिल को ही समझने दो ना 

वो- इज़हार क्यों नहीं करते हो 

मैं-इनकार भी तो नहीं किया है ना 

वो- तो इकरार भी कहा किया है 

मैं- तेरी मेरी ये छोटी सी कहानी , ये मोसम ये रुत मस्तानी, अब क्या इकरार करे क्या इज़हार करे मेरे दिल का हाल तुम जानो तुम्हारी धडकनों के हर एक साज़ को मैं अपने दिल का गीत बना लू, बस तुम हो बस मैं हूँ और ये झूमती हवा है जो मेरे प्यार की सदा को तुम्हारी सांसो में भरके महका रही है 

ये डूबते सूरज की जो हलकी सी तपिश है ना , ये जो केसरिया घटा लिपटी है उस तपते सूरज के चारो और ये मेरे प्यार का रंग है जिसमे तुम किसी उजली किरण की तरह रंग गयी हो , प्यार तो बस नाम है उस रूमानी लम्हे का जिसमे हम तुम एक दूजे के हो गए , पर तुम और मैं , हमारा रिश्ता प्यार ही नहीं एक अहसास है , हमारा रिश्ता वो महक है जो साँसों में बस गयी है, तेरा मेरा साथ कुछ ऐसा है की मेरी मुस्कान तुम्हारे लबो पर सजी है तेरे हर दर्द को मैं अपने होंठो पर गीत की तरह सजा लूँगा, मैं कोई मजनू नहीं, मैं कोई फरहाद नहीं ना मैं कोई आवारा आशिक मैं तो बस तुम हो , तुम तो बस मैं हूँ इतनी सी है तेरी मेरी कहानी , इतना है तेरा मेरा फ़साना 

जब जब तुम्हारा आँचल मुझे छु जाता है लगता है की जैसे बारिश से पहले बादलो की गडगडाहट से प्यासी धरती का दिल धड़क उठा हो, रति, जिस पल तुम्हे पहली बार देखा था जिस पल तेरी जुल्फों को संवारा था उसी पल से बस तेरा हो गया था मैं 

रति उठ कर मेरे गले लग गयी उसकी धड़कने मेरी धडकनों से टकराई, वो मेरी बाहों में थी मैं उसके आगोश में निगाहें निगाहों से कुछ कह रही थी मेरे हाथ उसकी पीठ पर थे उसकी चोली की डोरियो में उलझे, मेरे जन्मो से प्यासे लब अपनी प्यास बुझाने को रति के रसीले होठो की तरफ बढे ही थे , बस एक पल की ही दूरी थी की बस दूरी ही रह गयी थी, मुझे ऐसे लगा की किसी ने मुझे झिंझोड़ दिया हो आँख खुली तो पाया की कुछ नहीं था सिवाय मेरी उखड़ी हुई साँसों के और मेरे सूखे गले के प्यास पड़ी तेज लगी थी बदन पसीने से नहाया हुआ था 


मैंने अपने होशो हवास संभाले तो मेरी नजरो के सामने चाची को पाया ,जो कुछ भी मैं जी रहा था वो बस एक छलावा था जिसे हकीकत ने आइना दिखा दिया था अपनी उखड़ी हुई सासों को सँभालते हुए मैंने पानी माँगा कुछ घूँट इस बेस्वाद तरल की में न जाने क्या बात है , प्यास कितनी भी हो ये बुझा ही देता है 
चाची- क्या हुआ क्या बडबडा रहे थे कोई सपना देखा क्या 

मैं- ना कुछ नहीं 

मैं चुपचाप तौलिया उठा कर बाहर जाने लगा तो उन्होंने मुझे रोक लिया और बोली- कौन है वो जिसने मेरे बेटे की नींद इस तरह उड़ा रखी है , तुम्हे छुपाने की कुछ जरुरत नहीं है तुम्हारी इन बढ़ी हुई धडकनों ने बता दिया है की मेरा बेटा अब मेरा नहीं रहा 

मैं- चाची, बस एक सपना था आँख खुलते ही टूट गया इसमें क्या छुपाना क्या बताना 
मैं बाथरूम में घुस गया पर रति का जो मुझ पर असर था उस सपने की एक एक बात जैसे मेरे सामने ऐसे ही घूम रही थी मन विचलित सा होने लगा , हम जैसे खुद से जुदा से होने लगे थे हर पल लोगो में बेगाने होने लगे थे , ये प्यार तो नहीं था क्योंकि वो जो हो नहीं सकता मेरा उसके बारे में सोचना ही नहीं, बस एक ख्वाब की तरह उसको वक़्त की रेत में खो जाना ही सही था , पर रति से खुद जो जुदा कर भी तो नहीं प् रहा था ये जानते हुए भी की वो बस एक मोड़ था जो गुजर गया रास्ता लम्बा है बहुत मंजिल का कोई पता नहीं इस मुसाफिर को बस तलाश थी किसी सराय की 

अपने आवारा दिल को समझा कर मैं नीचे आया चाची मेरा ही इंतज़ार कर रही थी उन्होंने चाय के लिए पुछा तो मैंने मना कर दिया तो वो बोली- चलो तुम्हे आज कुछ ऐसा दिखा कर लाती हूँ जो तुमने पहले नहीं देखा फिर हम लोग घर से निकल पड़े ..

घर से निकल कर हम दोनों साथ साथ ही चलने लगे 

मैं- चाची , हम कहा जा रहे है 

वो- चल तो सही वहा पहूँच के अच्छा लगेगा तुझे 

फिर कुछ नहीं पुछा मैंने दरअसल मेरी निघाहे चाची से हट नहीं रही थी, हलके गुलाबी रंग के कुर्ती- सल्वार में बहुत ही गजब माल लग रही थी वो जो कोई भी उन्हें देखता एक बार तो अरमान मचल ही जाते उसके मन में , उस ड्रेस का कपडा भी ऐसा नहीं था की उनके जोबन का भार उठा सके, उनकी अन्दर पहनी हुई सफ़ेद ब्रा बिलकुल साफ़ दिख रही थी मुझे , मेरा लंड गुस्ताख होने लगा पर अपना जोर अब हर चीज़ पर तो चलता था नहीं 

चाची अपने जोबन के बोझ तले दबी थी मैं अपनी हसरतो के बोझ तले, असल में हम दोनों बस सुलग रहे थे अपने आप में करीब बीस मिनट तक खेतो के बीच चलने के बाद हम एक ऐसी जगह पर पहूँचे जहा की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी , वो नानाजी का आमो का बाग़ था दूर दूर तक अब जहा मेरी नजर पड़े बस आम ही आम कुछ आदमी औरते वहा काम कर रहे थे वो लोग चाची को जानते थे तो दुआ सलाम हुए चाची ने उनसे बस इतना ही कहा की हम लोग जरा बाग़ घूमके आते है और मुझे लेकर आगे को बढ़ गयी 


थोड़ी दूर जाने के बाद वातावरण में बस ख़ामोशी थी , जो हौले हौले से हवा चल रही थी वो पेड़ो को जैसे चूम कर जा रही थी कुछ सूखे पत्ते जमीं पर पड़े थे हमारे कदमो के नीचे आने से वो च्र्र्र चर्र कर रहे थे हम लोग थोडा सा आगे और बढे तो मैं बोला- चाची, आपने पहले कभी बताया नहीं की आपका बाग़ है आम का 
वो- मैंने सोचा की तुम्हे देख कर अच्छा लगेगा तो सीधा ले ही आई 

मैं उनकी मोटी छातियो को निहारते हुए- आम तो खिलाया नहीं 

वो हस्ते हुए- आम भी खिला दूंगी पहले बाग़ तो देख लो अच्छे से चलो तुम्हे कुछ दिखाती हूँ जब मैं छोटी थी तो उधर बहुत जाया करती थी 

मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था की ये बाग़ है कितना बड़ा मैं चुपचाप उनके पीछे पीछे चलता गया उनकी लचकती गांड को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए ,पेड़ औ घने होते जा रह थे अँधेरा बढ़ रहा था करीब दस मिनट बाद जो मैंने देखा वो नजारा पहले कभी नहीं देखा था ये एक बहुत ही सुन्दर सा बगीचा था काफ़ी तरह के फूल खिले थे ऐसा लग रहा था की जैसे हजारो रंगों की चादर फैली हो मेरे आस पास आँखे मंत्रमुग्ध होने लगी मेरी मुझे विश्वाश नहीं था की बाग़ के इस तरफ इतना सुन्दर बगीचा होगा 

चाची- इसे कभी मैंने अपने हाथो से बनाया था पिताजी आज भी मेरी याद समझ कर इसकी देखभाल करते है 

मैं मुस्कुरा दिया 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:39 PM

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