Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:55 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं हंस पड़ा, मैंने उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसके गालो को चूमने लगा मंजू बोली जल्दी कर ले मैंने हां कहा वो मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भर के हिलाने लगी मैं उसको किस करने लगा हमारी जीभ एक दुसरे से लड़ने लगी थी कुछ देर बाद मैं मंजू की चूचियो को पीते हुए उसकी गांड को दबा रहा मंजू गरम होने लगी थी और बार बार अपनी चूचियो को मेरे मुह में डाल रही थी मैं जब तक उसकी चूचियो को चूसता रहा तब तक उसके निप्पल को बहार को ना निकल आये 


उसकी चूत गीली हो चुकी थी वो मेरे लंड को चूत पर तेज तेज रगड़ रही थी मैंने उसको पंजो के बल झुकाया और उसकी कमर पकड़ते हुए अपने लंड को चूत में डाल दिया जल्दी ही हमारे जिस्म एक दुसरे से टकरा रहे थे मंजू बार बार अपनी गांड को आगे पीछे कर रही थी धीरे धीरे मैं उसकी चूचिया मसलने लगा तो वो और उत्तेजित होने लगी थप्प ठप्प करते हुए हम दोनों की टाँगे आपस में टकरा रही थी और ५ मिनट में ही मंजू झड गयी 


अब उसके लिए मुझे झेलना मुश्किल हो रहा था तो वो हटने लगी मैंने कहा दो मिनट और मैं भी झड गया मुझसे अलग होते ही वो निचे बैठके मूतने लगी मैं चबूतरे पर ही बैठ गया और तभी मेरी नजर सामने कीकर के झुरमुट पर पड़ी तो मुझे लगा की कोई औरत है मैं नंगा ही उधर भागा पर ताज्जुब अब वहा कोई नहीं था मैंने आस पास की तरफ देखा अब एक तो पेड़ इतने थे यहाँ पर और फिर झुरमुट की वजह से परेशानी हो रही थी पर मैं पक्के विश्वास से कह सकता था की कोई औरत ही थी 


जब तक मैं वापिस आया मंजू कपडे पहन चुकी थी मैंने उसको बताया की कोई औरत थी मैंने अपने कपडे पहने 

मंजू- मैंने पहले ही कहा था की कोई आ जायेगा 

मैं- चुप रह और मेरी बात सुन कोई हमारे पीछे है 

मंजू थोडा डर गयी पर मैंने ध्यान नहीं दिया , उसके बाद मैं और मंजू दोनों उस तरफ चलने लगे जिस तरफ से वो औरत गयी थी मैंने पिस्ता को फ़ोन किया की वो नीनू को लेके फलानी फलानी जगह पर पहुचे जितना जल्दी ही सके वहा हमारी गाड़ी खड़ी है तो उसकी सीढ़ी दिशा में करीब किलोमीटर अन्दर को आये जहा वो बरगद की त्रिवेणी है , उसके बाद मैं और मंजू आगे बढ़ गए कुछ दूर हमे एक कच्चा रास्ता दिखा जिस पर आराम से चला जा सकता था तो हम लोग उधर ही चलने लगे 


मैंने इशारे से मंजू को चेता दिया की हम किसी की नजरो में हो सकते है इसलिए चोकन्नी रहे करीब पन्द्रह मिनुत बाद हमे गाड़ी के निशान में मतलब आगे साधन जा सकता था , जो भी था वो गाड़ी लाया था और अब जा चूका था पर हम उन टायरो के निशानों को देखते हुए चलते रहे करीब दो किलोमीटर चले हम फिर एक चोराहा आ गया अब चारो तरफ कच्चे रस्ते थे पास से नहर गुजर रही थी और हैरत की बात यहाँ से दो रास्तो पर गाड़ी के निशान जा रहे थे तो निशान वाली थ्योरी फेल हो गयी थी 

मंजू- अब किस तरफ 

मैं- पता नहीं , एक काम कर तू एक रास्ता ले मैं दूसरा लेता हु देखते है कहा जाते है 

मंजू- देव, मुझे डर लग रहा है मैं नहीं कर पाऊँगी कही कई रस्ते में न पेल दे 

बात तो सही थी उसकी तो हम लोग वापिस हो लिए करीब घंटे भर बाद हम लोग जब पहुचे तो सब लोग चबूतरे पर ही बैठे थे 

नीनू- कहा चले गए थे 

मैंने उसको सब बताया बस चुदाई वाली बात छुपा ली मैंने उन लोगो को उस पूरी जमीन का एक राउंड लेने को कहा और खुद चबूतरे पर लेट गया अब मैंने सब सही ही बताया था उनको पर कहानी जैसे जम नहीं रही थी नीनू ने उस पुरे इलाके का जायजा लिया खूब ढूँढा पर कुछ नहीं मिला एक तरफ पहाड़ था घनी झाडिया थी कुल मिला के बहुत ही अजीब सी जगह थी 

पिस्ता- ये जमीन वैसे क्या सोच कर खरीदी गयी हो गी 

मैं- मुझे नहीं पता 

वो- कोई तो खास बात होगी ही 

माधुरी- भाई मैंने एक किताब में पढ़ा था था की अक्सर ऐसी जमीनों पर लोग पहले अपना खजाना छुपाते थे लॉजिक भी यही कहता है की ये जमीन हमेशा से ही उजाड़ पड़ी है और इस तरफ आबादी बिलकुल नहीं है बेशक कोई चरवाहा आ जाये अपने जानवरों को चराने वो भी कभी कभार एक अजीब सा डर है यहाँ जैसे ये जगह भुतहा हो 

मैं- हकीकत किस्से-कहानियो से अलग होती है

“”माधुरी की बात सच भी तो हो सकती है देव, “” नीनू ने हमारी ओर आते हुए कहा 

“देव, मुझे भी लगता है की इस जमीन का उस हादसे से कोई ना कोई ताल्लुक तो है वर्ना कोई इस जमीन को क्यों खरीदेगा खेती इसमें हो नहीं सकती , अब ये भी मान ले की भविष्य में फायदा दे जाये तो भी इस जमीन का कोई ख़ास मोल नहीं है ”

मैं- तो फिर पिताजी ने ये जमीन क्यों खरीदी 

पिस्ता - ये ही तो हम भी जानना चाहते है
मैं- और ये ही तो नहीं पता मुझे अब क्यों खरीदी ये तो इसे बेचने वाला ही बताएगा कल पता करता हु कुछ तो पता जरुर चलेगा 


नीनू- वैसे मैंने इस इलाके का मुआयना कर लिया है कुछ भी अजीब नहीं है सिवाय 


मैं- क्या 


वो- दो चीजों के करीब 2 कोस दूर एक मंदिर है छोटा सा पहले पूजा वगैरा होती होगी पर अब हालत बुरी है शायद वक़्त ने भुला दिया है उसको और लोगो ने भी और दूसरा ये चबूतरा 


मैं- मुझे भी ऐसा ही लगा था इस उजाड़ में कोई क्यों बनवाये गा और मान लो अगर मुझे इसे बनवाना होता तो मैं तीनो पेड़ो के निचे बनवाता ताकि बैठने को और जगह हो और सुन्दर भी लगे, वैसे इन तीन पेड़ो के में बीच वाले पेड़ पर ही क्यों बनाया गया , शायद इसलिए की अलग सा दिखने के कारण ये लोगो का ध्यान खीच सके नहीं बेसिक तो यही लगता है की शायद इसी लिए बनवाया होगा की कोई रही बैठ जाए सुस्ता ले , 


पिस्ता- देव, तुम्हारी बात सही है पर देखो लोग धर्मार्थ के लिए अगर इसको बनवाते तो अमूमन वो ऐसे चबूतरे के साथ पानी की टंकी भी बनवाते है ताकि रही की प्यास भी बुझ सके


मैं- सिंपल सी बात है इधर पानी का कोई जुगाड़ नहीं होगा तो नहीं बनवाई होगी और फिर बीते समय में तो आवा जाहि होती ही होगी


माधुरी- भाई, हमे इस चबूतरे को खोद के देखना चाहिए क्या पता इसके निचे कोई खजाना निकल आये 


नीनू- कैसी बाते करती हो खजाने बस किस्से कहानियो में होते है शायद हम लोग हम इस चबूतरे को लेकर ज्यादा ही सीरियस हो रहे 
है वैसे भी दोपहर हो गयी है हमे चलना चाहिए 


मैं- हाँ पर 


पिस्ता – पर 


मैं- कुछ नहीं चलो चलते है 


करीब पोने घंटे बाद हम लोग घर आये सब लोग थके थके से लग रहे थे माधुरी ने सब के लिए चाय बनाई पिस्ता और नीनू मजदूरों के साथ बात चीत कर रहे थे मैं चाय की चुसकिया लेते हुए अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहा था कुछ सोच कर मैंने चाचा को फ़ोन मिलाया 


मैं- आपसे एक बात पूछनी थी 


चाचा- हां 


मैं- जब हमने एक इंच भी जमीन बेचीं नहीं तो आपके पास इतना पैसा कहा से आ गया की आपने ज्वेल्लरी का कारोबार खड़ा कर लिया 


चाचा कुछ देर खामोश रहे , फिर बोले- बेटे मुझे भाईसाहब ने काफी पैसे दिए थे 


मैं- पिताजी ने 


वो- हां, 


मैं- कब 


वो- बंटवारे के कुछ दिन बाद की बात है एक रात उन्होंने मुझे फ़ोन किया और कही बुलाया उन्होंने जल्दी आने को कहा था तो मैं घबराया की कही कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी थी मैं जब पंहुचा तो उन्होंने मुझे दो बैग दिए मैंने खोल के देखा तो दोनों में नोटों की गड्डी भरी थी मैंने पुछा भाईसाहब इतनी रकम कहा से आई तो उन्होंने कहा की तू रख ले और किसी से जीकर मत करना 


मैं- ऐसा कहा उन्होंने 


वो- हां, 


मैं- उसके बाद


वो-उसके बाद मैं पैसे लेकर घर आ गया पूरी रात मैंने पैसे गिने सारे नोट असली थे जैसे जैसे पैसो की गिनती बढती जा रही थी मेरी हालात ख़राब होती जा रही थी कई बार तो मुझे लगा की कोई सपना देख रहा हु पर फिर मेरे मन में ख्याल आया की भाई साहिब के पास इतनी रकम आई कहा से 


मैं- उसके बाद 


वो- उसके बाद मैंने उनसे पुछा तो उन्होंने बस इतना ही कहा की समझ ले तेरे भाई की तरफ से तोहफा है फिर मैं समझ गया था की वो बताएँगे नहीं 


मैं- वैसे कितने रूपये दिए थे उन्होंने आपको 


वो- करीब डेढ़ करोड़ रूपये 

ये सुनते ही मेरे कदमो के तले जैसे जमीन ही खिसक गयी हो ऐसा लगा मुझे डेढ़ करोड़ रूपये वो भी आज से करीब ७-8 साल पहले 


मैं- पक्का 

वो- हां बेटे भला मैं तुमसे झूट क्यों बोलूँगा 


मैं- इसके आलावा कोई और बात जो आपके ध्यान में हो 


चाचा- बेटा और कुछ खास तो नहीं था ऐसा पर हां घर में हुए हादसे के बाद जब तुम भी चले गए थे तब एक दिन मुझे घर में एक मटकी मिली उसमे कुछ आभूषण और सोने के बिस्कुट मिले थे 


मैं- अब कहा है वो 


चाचा- बेटे गहने तो मैंने ये सोच कर की वो शायद भाभी के हो बैंक में रख दिए और वो बिस्कुट मैंने गला लिए 


मैं- चाचा मेरा एक काम करोगे 


वो- ये भी कोई कहने की बात है 


मैं- मुझे वो गहने देखने है बस देखते ही मैं वापिस लौटा दूंगा 


वो- बेटे तूने ये बात कह के मुझे पराया कर दिया है सब कुछ तेरा ही तो है बैंक बंद होने में अभी समय है मैं अभी जाता हु और वो गहने लेकर जल्दी ही आता हु 


मैं- जैसा आप ठीक समझे 


तो यहाँ पर कहानी और उलझ गयी थी सच कहो तो मेरे सर में दर्द होने लगा था उसके बाद मैं मैंने माधुरी को एक चाय और लाने को कहा मैंने नीनू और पिस्ता को ऊपर के कमरे में आने के लिए कहा 

मैं- एक बात बताओ कोई तुमको पैसे दे की देव को मार दो तो तुम मार दो 


दोनों एक साथ- दिमाग ख़राब हुआ है क्या 


मैं- ना बस पूछ रहा हु 


पिस्ता- देख तेरा मेरा जो नाता है अब उसका ढोल पीटने की कोई जरुरत है ना, और रही बात पैसो की तो उसके बारे में मैंने कभी सोचा नहीं कोई और बात है तो बता वर्ना मैं जाती हु काम करवाना है 


मैं- दो मिनट बैठ 


मैं- नीनू मैं तुमको अगर कुछ लाख रूपये दू तो क्या तुम मुझसे धोखा कर दोगी 


नीनू- क्या बकवास कर रहे हो तुम 


मैं- अगर करोड़ दू तो 


नेनू-मैं सर फोड़ दूंगी तुम्हारा 


मैं- ढाई करोड़ के लिए तो कोई किसी को क्या पुरे परिवार को भी ख़तम कर सकता है की नहीं 


नीनू- कोई कर सकता होगा पर हम नहीं 


मैं- तो क्या चाचा ढाई करोड़ के लिए परिवार को रस्ते से हटा सकता है 
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